नई दिल्ली : पिछले कुछ दिनों में कश्मीर घाटी में आतंकवादियों द्वारा कुछ हिंदुओं और सिखों की हत्या किये जाने के बाद जम्मू-कश्मीर (Jammu Kashmir) का माहौल एक बार फिर तनाव से घिर गया है. लोगों के मन में इन हिंसक घटनाओं को लेकर कई सवाल हैं. सवाल यह भी उठ रहा है कि घाटी के अल्पसंख्यकों जैसे कश्मीरी हिंदू और सिखों के खिलाफ हिंसा की वारदातों में अचानक वृद्धि क्यों हुई?
इस बारे में संप्रग सरकार के दौरान कश्मीर मामलों को लेकर वार्ताकार रहे एम एम अंसारी (M M Ansari) ने कहा कि जम्मू कश्मीर में हिंसा की घटनाओं में वृद्धि तथा कश्मीरी पंडितों सहित निर्दोष नागरिकों का आतंकी हमले में बेमौत मारा जाना बेहद दुर्भाग्यपूर्ण है.
उन्होंने कहा कि शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अन्य सामाजिक सेवाओं के कार्यों से जुड़े हिन्दुओं, सिखों, मुसलमानों को निशाना बनाया जा रहा है, उनकी हत्या की जा रही है. इसके दोषियों को दंडित किया जाना चाहिए. लेकिन, इसका दुखद पहलु यह भी है कि सरकार नागरिकों, स्कूलों एवं स्वास्थ्य क्षेत्र के कर्मियों, राजनीतिक कार्यकर्ताओं को सुरक्षा देने में विफल हो रही है, जो इन चरमपंथी गुटों द्वारा निशाना बनाये जा रहे हैं. दुर्भाग्य से, ऐसी घटनाओं से कश्मीरियों को संदेह की नजर से देखा जाता है. लोक सुरक्षा कानून (PSA), सशस्त्र बल विशेष अधिकार अधिनियम, गैर कानूनी गतिविधि रोकथाम अधिनियम जैसे कानूनों के अनियंत्रित इस्तेमाल से भी स्थितियां प्रभावित हो रही हैं. ऐसे में सरकार को अपनी नीतियों की समीक्षा कर उनपर पुनर्विचार करने की जरूरत है.
जम्मू कश्मीर के संबंध में वार्ताकार समूह के सदस्य रहे अंसारी की रिपोर्ट में कश्मीरी पंडितों सहित विस्थापितों के पुनर्वास एवं सुरक्षा के लिए उनके दिये सुझाव पर उन्होंने कहा कि 'जम्मू कश्मीर के लोगों के साथ नई संविदा' नामक हमारी रिपोर्ट में हमने सिफारिश की थी कि सरकार को युद्ध एवं आतंकवाद से प्रभावित लोगों की शिकायतों को दूर करने के लिए गंभीर प्रसास करना चाहिए. प्रभावितों में हिंसा के खतरे के कारण पलायन करने वाले लोग एवं शरणार्थी शामिल हैं. इन सरकारों ने कश्मीरी पंडितों के लिए शायद ही कुछ किया और वर्तमान सरकार से भी इन्हें निराशा हाथ लगी.
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उन्होंने कहा कि अनुच्छेद 370 जम्मू कश्मीर को मामूली स्वायत्ता देता था जिसे एकतरफा ढंग से पांच अगस्त 2019 को खत्म कर दिया गया. यह संवैधानिक प्रावधान इस विचार से लाया गया था कि एक तरफ विकास गतिविधियों को आगे बढ़ाया जाए और दूसरी तरफ आतंकवाद पर लगाम लगाई जाए. लेकिन, अनुच्छेद 370 को खत्म करने और पूर्ववर्ती जम्मू कश्मीर को दो केंद्र शासित क्षेत्रों में पुनर्गठित करने के अंतरराष्ट्रीय प्रभाव पड़े हैं. जम्मू कश्मीर भारत का आंतरिक मामला है, लेकिन इसका अंतरराष्ट्रीयकरण हुआ है और इसके दूरगामी प्रभाव होंगे. इसके साथ ही आवासीय नियमों में बदलाव को लेकर भी निर्णय किये गए हैं. ऐसे फैसलों से कानून एवं व्यवस्था की स्थिति खराब हुई है जिनका अब अनुभव हो रहा है.
जम्मू कश्मीर के विकास में बड़ी बाधा पाकिस्तान से सीमापार आतंकवाद को मानी जाती है, इससे नीतिगत एवं सामुदायिक स्तर पर निपटने के बारे में अंसारी ने कहा कि जम्मू कश्मीर की स्थिति युद्ध क्षेत्र की तरह हो गई है. इस वजह से विकास से जुड़ी नीतियों को प्रभावी ढंग से लागू नहीं किया जा सकता है.
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उन्होंने कहा कि भारत और पाकिस्तान के संबंध काफी खराब हो गए हैं और दोनों के बीच लगातार आरोप-प्रत्यारोप चलता रहता है. इन आरोपों में आतंकी गतिविधियों के वित्तपोषण का विषय प्रमुख है. पाकिस्तान, चीन के काफी करीब चला गया है तो दूसरी तरफ भारत और अमेरिका में सहयोग बढ़ा है. ऐसे में बातचीत के जरिये समाधान निकालने की बजाय क्षेत्रीय संघर्ष की स्थितियां बनती दिखती हैं. ऐसे में समाधान एवं विकास की संभावना पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है.
उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने लाल किले की प्राचीर से कहा था कि न गाली से, न गोली से बल्कि गले लगाने से कश्मीर समस्या हल होगी. इस बड़ी सोच वाले विचार के अनुरूप लोकतांत्रिक प्रक्रियाओं एवं स्थापित नियमों का पालन करते हुए सरकार को गुपकार गठबंधन की घोषणा पर विचार करते हुए सभी मान्यता प्राप्त राजनीतिक दलों से खुले मन से बातचीत करनी चाहिए.
उन्होंने कहा कि सरकार इस क्षेत्र में टिकाऊ शांति एवं विकास सुनिश्चित करें एवं उन्हें निर्णय लेने की प्रक्रिया में लोगों की लोकतांत्रिक भागीदारी को बढ़ावा देना चाहिए. सरकार को चाहिए कि शुरुआती कदम उठाते हुए तत्काल लोकतांत्रिक प्रक्रिया शुरू करे, राज्य का दर्जा वापस करे और चुनाव कराए.
(पीटीआई-भाषा)