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राज्यपाल-राज्य सरकार खींचतान: विधानसभा के उद्घाटन सत्र में राज्यपाल धनखड़ के शामिल होने पर सस्पेंस

दो जुलाई को राज्य की 17वीं विधानसभा (Legislative Assembly) के उद्घाटन सत्र (inaugural session) से पहले इस बात को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है कि राज्यपाल उद्घाटन सत्र में शामिल होंगे या नहीं?

विधानसभा
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Published : Jun 30, 2021, 7:48 PM IST

कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार और राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Governor Jagdeep Dhankhar) के बीच तनातनी के बीच दो जुलाई को राज्य के 17वीं विधानसभा (Legislative Assembly) के उद्घाटन सत्र (inaugural session) के दौरान राज्यपाल की मौजूदगी पर संदेह जताया जा रहा है. इस बात को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है कि राज्यपाल राज्य सरकार (state government) द्वारा दिए गए अपने भाषण को पढ़ेंगे या नहीं. क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं? क्या राज्यपाल अच्छे स्वास्थ्य और शहर में होने के कारण उद्घाटन सत्र को छोड़ सकते हैं, जिसे उन्होंने खुद बुलाया है?

राज्यपाल निश्चित रूप से राज्य का विधायी प्रमुख होता है. किसी भी सरकार का उद्घाटन सत्र संविधान के प्रावधानों (provisions of the Constitution) के अनुसार राज्यपाल के माध्यम से शुरू होना चाहिए.

हालांकि, जब से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, राज्य सरकार-राज्यपाल की खींचतान (government- governor tussle) हर दिन मुखर होती जा रही है.

ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस बात पर संदेह है कि क्या धनखड़ 2 जुलाई, 2021 को वर्तमान विधानसभा के उद्घाटन सत्र में शामिल होंगे? यह भी आशंका है कि अगर वह आ भी गए, तो राज्य सरकार द्वारा उन्हें दिए जाने वाले भाषण से पीछे हट जाएंगे.

मानदंडों के अनुसार राज्य सरकार को विधानसभा के किसी भी सत्र में राज्यपाल को अउपस्थिति के लिए आमंत्रित करना होता है, चूंकि राज्य सरकार राज्यपाल के नाम से चलती है, इसलिए इतिहास में पहले कभी किसी राज्यपाल ने निमंत्रण को ठुकराया नहीं है. अब सवाल यह है कि इस बार क्या होगा?

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में वाम विधायक दल के पूर्व नेता डॉ सुजान चक्रवर्ती (Dr Sujan Chakraborty) ने कहा कि राज्य का राजनीतिक परिदृश्य (political scenario) राज्य सरकार-राज्यपाल के बीच एक अभूतपूर्व नाटकीयता से गुजर रहा है.

उन्होंने कहा कि राज्यपाल और राज्य सरकार दोनों ही मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. ऐसे में यह अनिश्चित है कि राज्यपाल आएंगे या नहीं? उनके अनुसार, यदि राज्यपाल उद्घाटन सत्र में आते हैं, तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा प्रदान किए गए लिखित भाषण (written speech) को पढ़ना होगा.

पहले, ऐसे उदाहरण थे कि राज्य सरकार ने राज्यपाल को विधानसभा के एक सत्र में पेश होने के लिए आमंत्रित नहीं किया है. हालांकि, उस स्थिति में उस सत्र को पिछले सत्र के विस्तार के रूप में दिखाया जाता है. हालांकि, इस बार इसकी कोई गुंजाइश नहीं है.

निर्मल घोष (Nirmal Ghosh) ने कहा है कि विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के चीफ व्हिप से स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार खुद असमंजस में है . उन्होंने कहा, 'यदि राज्यपाल खराब व्यवहार करते हैं, तो वह सत्र को छोड़कर जा सकते हैं. ऐसे में उद्घाटन सत्र को स्थगित करना पड़ सकता है.

यह मौजूदा विधानसभा का पहला सत्र होगा, जिसका उद्घाटन राज्यपाल के जरिए होगा. मुझे नहीं पता कि राज्यपाल के अनुपस्थित रहने पर सत्र शुरू होगा. या तो राष्ट्रपति या भारत या किसी भी राज्य का राज्यपाल अपनी मधुर इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर सकता है. राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है.

पढ़ें - ममता का केंद्र पर हमला, कहा- गृह मंत्रालय रच रहा 'षड्यंत्र', भाजपा फैला रही गलत सूचना

उन्होंने कहा कि बजट सत्र (budget session) के दौरान राज्य सरकार द्वारा उन्हें दिए गए लिखित भाषण को पढ़ना उनकी संवैधानिक मजबूरी (constitutional compulsion) है, वह कुछ और नहीं कर सकते.

घोष ने कहा कि हालांकि, उन्हें संदेह है कि राज्यपाल संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करेंगे या नहीं. वह भाजपा नेताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं. इसलिए हमें इस बात पर संदेह है कि वह क्या करेंगे.

पहले से ही सत्तारूढ़ दल और मुख्यमंत्री ने जैन हवाला घोटाले ( Jain Hawala scam) में राज्यपाल की संलिप्तता को लेकर उन पर हमला करना शुरू कर दिया है, राज्यपाल ने भी पलटवार किया है.

बुधवार को मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से सवाल किया कि क्या राज्य सरकार शुक्रवार को उद्घाटन सत्र में राज्यपाल को उपस्थित होने के लिए आमंत्रित करेगी. हालांकि, मुख्यमंत्री ( chief minister) ने जवाब देने से इनकार कर दिया.

संवैधानिक विशेषज्ञों (constitutional experts) के अनुसार, मौजूदा स्थिति में संवैधानिक संकट पैदा करने के लिए पर्याप्त तत्व हैं. यदि राज्यपाल आमंत्रित किए जाने के बाद भी उपस्थित होने से इनकार करते हैं, तो यह अभूतपूर्व होगा. ऐसे में राज्य सरकार के पास सत्र स्थगित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

प्रेसीडेंसी कॉलेज (presidency College) के पूर्व अध्यक्ष के अनुसार ऐसी स्थिति कभी भी वांछनीय नहीं थी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है मौजूदा संकट के परिणामस्वरूप विधायी राजनीति के इतिहास में कुछ अभूतपूर्व विकास होगा.

कोलकाता : पश्चिम बंगाल सरकार और राज्यपाल जगदीप धनखड़ (Governor Jagdeep Dhankhar) के बीच तनातनी के बीच दो जुलाई को राज्य के 17वीं विधानसभा (Legislative Assembly) के उद्घाटन सत्र (inaugural session) के दौरान राज्यपाल की मौजूदगी पर संदेह जताया जा रहा है. इस बात को लेकर भी अनिश्चितता बनी हुई है कि राज्यपाल राज्य सरकार (state government) द्वारा दिए गए अपने भाषण को पढ़ेंगे या नहीं. क्या राज्यपाल ऐसा कर सकते हैं? क्या राज्यपाल अच्छे स्वास्थ्य और शहर में होने के कारण उद्घाटन सत्र को छोड़ सकते हैं, जिसे उन्होंने खुद बुलाया है?

राज्यपाल निश्चित रूप से राज्य का विधायी प्रमुख होता है. किसी भी सरकार का उद्घाटन सत्र संविधान के प्रावधानों (provisions of the Constitution) के अनुसार राज्यपाल के माध्यम से शुरू होना चाहिए.

हालांकि, जब से ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) ने लगातार तीसरी बार मुख्यमंत्री पद की शपथ ली है, राज्य सरकार-राज्यपाल की खींचतान (government- governor tussle) हर दिन मुखर होती जा रही है.

ऐसे में स्वाभाविक रूप से इस बात पर संदेह है कि क्या धनखड़ 2 जुलाई, 2021 को वर्तमान विधानसभा के उद्घाटन सत्र में शामिल होंगे? यह भी आशंका है कि अगर वह आ भी गए, तो राज्य सरकार द्वारा उन्हें दिए जाने वाले भाषण से पीछे हट जाएंगे.

मानदंडों के अनुसार राज्य सरकार को विधानसभा के किसी भी सत्र में राज्यपाल को अउपस्थिति के लिए आमंत्रित करना होता है, चूंकि राज्य सरकार राज्यपाल के नाम से चलती है, इसलिए इतिहास में पहले कभी किसी राज्यपाल ने निमंत्रण को ठुकराया नहीं है. अब सवाल यह है कि इस बार क्या होगा?

पश्चिम बंगाल (West Bengal) में वाम विधायक दल के पूर्व नेता डॉ सुजान चक्रवर्ती (Dr Sujan Chakraborty) ने कहा कि राज्य का राजनीतिक परिदृश्य (political scenario) राज्य सरकार-राज्यपाल के बीच एक अभूतपूर्व नाटकीयता से गुजर रहा है.

उन्होंने कहा कि राज्यपाल और राज्य सरकार दोनों ही मौजूदा स्थिति के लिए जिम्मेदार हैं. ऐसे में यह अनिश्चित है कि राज्यपाल आएंगे या नहीं? उनके अनुसार, यदि राज्यपाल उद्घाटन सत्र में आते हैं, तो उन्हें राज्य सरकार द्वारा प्रदान किए गए लिखित भाषण (written speech) को पढ़ना होगा.

पहले, ऐसे उदाहरण थे कि राज्य सरकार ने राज्यपाल को विधानसभा के एक सत्र में पेश होने के लिए आमंत्रित नहीं किया है. हालांकि, उस स्थिति में उस सत्र को पिछले सत्र के विस्तार के रूप में दिखाया जाता है. हालांकि, इस बार इसकी कोई गुंजाइश नहीं है.

निर्मल घोष (Nirmal Ghosh) ने कहा है कि विधानसभा में तृणमूल कांग्रेस (Trinamool Congress) के चीफ व्हिप से स्पष्ट हो गया है कि राज्य सरकार खुद असमंजस में है . उन्होंने कहा, 'यदि राज्यपाल खराब व्यवहार करते हैं, तो वह सत्र को छोड़कर जा सकते हैं. ऐसे में उद्घाटन सत्र को स्थगित करना पड़ सकता है.

यह मौजूदा विधानसभा का पहला सत्र होगा, जिसका उद्घाटन राज्यपाल के जरिए होगा. मुझे नहीं पता कि राज्यपाल के अनुपस्थित रहने पर सत्र शुरू होगा. या तो राष्ट्रपति या भारत या किसी भी राज्य का राज्यपाल अपनी मधुर इच्छा के अनुसार कार्य नहीं कर सकता है. राज्यपाल को राज्य सरकार की सलाह के अनुसार कार्य करना होता है.

पढ़ें - ममता का केंद्र पर हमला, कहा- गृह मंत्रालय रच रहा 'षड्यंत्र', भाजपा फैला रही गलत सूचना

उन्होंने कहा कि बजट सत्र (budget session) के दौरान राज्य सरकार द्वारा उन्हें दिए गए लिखित भाषण को पढ़ना उनकी संवैधानिक मजबूरी (constitutional compulsion) है, वह कुछ और नहीं कर सकते.

घोष ने कहा कि हालांकि, उन्हें संदेह है कि राज्यपाल संवैधानिक मूल्यों का सम्मान करेंगे या नहीं. वह भाजपा नेताओं की तरह व्यवहार कर रहे हैं. इसलिए हमें इस बात पर संदेह है कि वह क्या करेंगे.

पहले से ही सत्तारूढ़ दल और मुख्यमंत्री ने जैन हवाला घोटाले ( Jain Hawala scam) में राज्यपाल की संलिप्तता को लेकर उन पर हमला करना शुरू कर दिया है, राज्यपाल ने भी पलटवार किया है.

बुधवार को मुख्यमंत्री ने विशेष रूप से सवाल किया कि क्या राज्य सरकार शुक्रवार को उद्घाटन सत्र में राज्यपाल को उपस्थित होने के लिए आमंत्रित करेगी. हालांकि, मुख्यमंत्री ( chief minister) ने जवाब देने से इनकार कर दिया.

संवैधानिक विशेषज्ञों (constitutional experts) के अनुसार, मौजूदा स्थिति में संवैधानिक संकट पैदा करने के लिए पर्याप्त तत्व हैं. यदि राज्यपाल आमंत्रित किए जाने के बाद भी उपस्थित होने से इनकार करते हैं, तो यह अभूतपूर्व होगा. ऐसे में राज्य सरकार के पास सत्र स्थगित करने के अलावा कोई विकल्प नहीं होगा.

प्रेसीडेंसी कॉलेज (presidency College) के पूर्व अध्यक्ष के अनुसार ऐसी स्थिति कभी भी वांछनीय नहीं थी. ऐसा पहले कभी नहीं हुआ है मौजूदा संकट के परिणामस्वरूप विधायी राजनीति के इतिहास में कुछ अभूतपूर्व विकास होगा.

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