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कारगर कदम न उठाए जाने से फिर पलायन का दंश, हो रही सिर्फ सियासत

कोरोना के बढ़ते मामलों के बीच लॉकडाउन लगने के डर से कई राज्यों से प्रवासी मजदूरों का पलायन शुरू हो गया है. दिल्ली, गुजरात, महाराष्ट्र, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश की सड़कों पर लोग घरों की ओर जाते नजर आ रहे हैं. इन्हें लेकर केंद्र सरकार और ना ही राज्य सरकारें कोई ठोस कदम उठा रही हैं. अगर कुछ हो रहा है तो एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोप लगाने की सिर्फ राजनीति.

मजदूरों के पलायन पर राजनीति शुरू
मजदूरों के पलायन पर राजनीति शुरू
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Published : Apr 21, 2021, 6:09 AM IST

Updated : Apr 21, 2021, 6:43 AM IST

नई दिल्ली : पूरे दिन टीवी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से कोरोना से संबंधित विज्ञापन हर 15 मिनट के अंतराल पर लगभग दिखाए जा रहे हैं.

सूत्रों की माने तो इस पर एक दिन में कई करोड़ का खर्च आ रहा है. इस बार के बजट में भी केजरीवाल सरकार ने लगभग 550 करोड़ रुपये मात्र विज्ञापन के मद में रखे हैं. अगर इस विज्ञापन की बजाए केजरीवाल इतने पैसे दिल्ली के मजदूरों को पलायन से रोकने में लगाते उनके लिए कोई ठोस योजना या फिर उनके खाते में पैसे डाले जाते तो शायद एक बार फिर से मजदूरों को पलायन का दंश नहीं झेलना पड़ता.

सुनिए भाजपा के प्रवक्ता क्या बोले

यह कहानी मात्र दिल्ली की नहीं बल्कि बाकी राज्यों में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. बात करें मध्य प्रदेश की वहां भी लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च हो रहे हैं लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर शुरुआती दौर में ही पलायन कर रहे मजदूरों को रोकने के लिए कोई भी ठोस योजना नहीं बनाई गई.

महाराष्ट्र की यदि बात करें तो मजदूरों के पलायन की संख्या आंशिक लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही शुरू हो चुकी थी, आंकड़े का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पश्चिम भारत से उत्तर भारत के लिए 45 विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं जिसमें 80 हजार के लगभग मजदूरों ने मार्च से अप्रैल के मध्य में पश्चिम भारत में मुख्य तौर पर महाराष्ट्र से अलग-अलग शहरों से उत्तर भारत के अलग-अलग शहरों पर पलायन किया.

कमोबेश यही हालात गुजरात के भी अलग-अलग शहरों से मजदूरों के लौटने के हैं.

मजबूर मजदूरों के लिए नहीं बनी कोई नीति

अलग-अलग राज्यों में सत्ताधारी पार्टी अलग-अलग लेकिन तस्वीरें हर जगह एक जैसी. हर जगह से बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन. 2020 में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन पर केंद्र सरकार ने यह सफाई दी थी कि कोरोना से बीमारी के लिए पहले से कोई भी सरकार लड़ने को तैयार नहीं थी और इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन को आगे कभी नहीं होने दिया जाएगा.

एक साल बीत जाने के बाद फिर वही नजारा सड़कों पर नजर आ रहा है ,ना तो इसके लिए राज्य सरकार ने कोई ठोस नीतियां तैयार कीं और ना ही केंद्र ने. एक साल में असंगठित मजदूरों के लिए ऐसे आपातकाल या महामारी में बेरोजगारी का दंश झेल रहे और पलायन को मजबूर मजदूरों के लिए कोई नीति या फंड तैयार नही किया गया.

राज्य सरकारों को उठाने चाहिए थे कारगर कदम : भाजपा

इस बाबत पूछे जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने तमाम जिम्मेदारी राज्य सरकारों की बताईं, उन्होंने 'ईटीवी भारत' से कहा कि कोरोना की त्रासदी को लेकर कुछ प्रदेश लॉकडाउन तक लगा रहे हैं जैसे महाराष्ट्र और दिल्ली लेकिन प्रदेश सरकारों को ध्यान में रखना चाहिए कि मजदूरों का पिछली बार जिस तरह से पलायन हुआ था और भगदड़ मची थी और उनको जो तकलीफ हुई थी, इस बार पूरी तरह पहले से कर लेनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा कि खास तौर पर महाराष्ट्र और दिल्ली ने कोई तैयारी नहीं की और लॉकडाउन की घोषणा कर दी, जबकि इन मजदूरों को उत्तर प्रदेश सरकार बस में लेकर आ रही है.

उन्होंने कहा कि सरकारों ने आपस में समन्वय नहीं किया. इन प्रदेश की सरकारों को यह समझना चाहिए कि मजदूरों के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी.

भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र सरकार इस संकट में और पैनिक क्रिएट करने का काम कर रही है जबकि उत्तर प्रदेश की सरकार उन प्रवासी मजदूरों को लाने की व्यवस्था कर रही है.

पढ़ें- फिर पलायन का दौर : कारण, दावे, आरोप और सुझाव

दिल्ली की सरकार को इन मजदूरों से बातचीत कर उन्हें आश्वासन देकर उनके खाने पीने रहने की व्यवस्था करके, अपने कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें मदद पहुंचानी चाहिए थी.

तब इस तरह का निर्देश जारी किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि जिस तरह से कोरोना वायरस भयंकर रूप लेता जा रहा है प्रदेश सरकारों का फेलियर और भी नजर आ रहा है.

नई दिल्ली : पूरे दिन टीवी में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की तरफ से कोरोना से संबंधित विज्ञापन हर 15 मिनट के अंतराल पर लगभग दिखाए जा रहे हैं.

सूत्रों की माने तो इस पर एक दिन में कई करोड़ का खर्च आ रहा है. इस बार के बजट में भी केजरीवाल सरकार ने लगभग 550 करोड़ रुपये मात्र विज्ञापन के मद में रखे हैं. अगर इस विज्ञापन की बजाए केजरीवाल इतने पैसे दिल्ली के मजदूरों को पलायन से रोकने में लगाते उनके लिए कोई ठोस योजना या फिर उनके खाते में पैसे डाले जाते तो शायद एक बार फिर से मजदूरों को पलायन का दंश नहीं झेलना पड़ता.

सुनिए भाजपा के प्रवक्ता क्या बोले

यह कहानी मात्र दिल्ली की नहीं बल्कि बाकी राज्यों में भी ऐसा ही कुछ हो रहा है. बात करें मध्य प्रदेश की वहां भी लाखों रुपए विज्ञापन पर खर्च हो रहे हैं लेकिन कोरोना के बढ़ते मामलों को लेकर शुरुआती दौर में ही पलायन कर रहे मजदूरों को रोकने के लिए कोई भी ठोस योजना नहीं बनाई गई.

महाराष्ट्र की यदि बात करें तो मजदूरों के पलायन की संख्या आंशिक लॉकडाउन की घोषणा से पहले ही शुरू हो चुकी थी, आंकड़े का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि पश्चिम भारत से उत्तर भारत के लिए 45 विशेष ट्रेनें चलाई जा रही हैं जिसमें 80 हजार के लगभग मजदूरों ने मार्च से अप्रैल के मध्य में पश्चिम भारत में मुख्य तौर पर महाराष्ट्र से अलग-अलग शहरों से उत्तर भारत के अलग-अलग शहरों पर पलायन किया.

कमोबेश यही हालात गुजरात के भी अलग-अलग शहरों से मजदूरों के लौटने के हैं.

मजबूर मजदूरों के लिए नहीं बनी कोई नीति

अलग-अलग राज्यों में सत्ताधारी पार्टी अलग-अलग लेकिन तस्वीरें हर जगह एक जैसी. हर जगह से बड़ी संख्या में मजदूरों का पलायन. 2020 में इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन पर केंद्र सरकार ने यह सफाई दी थी कि कोरोना से बीमारी के लिए पहले से कोई भी सरकार लड़ने को तैयार नहीं थी और इतनी बड़ी संख्या में मजदूरों के पलायन को आगे कभी नहीं होने दिया जाएगा.

एक साल बीत जाने के बाद फिर वही नजारा सड़कों पर नजर आ रहा है ,ना तो इसके लिए राज्य सरकार ने कोई ठोस नीतियां तैयार कीं और ना ही केंद्र ने. एक साल में असंगठित मजदूरों के लिए ऐसे आपातकाल या महामारी में बेरोजगारी का दंश झेल रहे और पलायन को मजबूर मजदूरों के लिए कोई नीति या फंड तैयार नही किया गया.

राज्य सरकारों को उठाने चाहिए थे कारगर कदम : भाजपा

इस बाबत पूछे जाने पर भाजपा के राष्ट्रीय प्रवक्ता गोपाल अग्रवाल ने तमाम जिम्मेदारी राज्य सरकारों की बताईं, उन्होंने 'ईटीवी भारत' से कहा कि कोरोना की त्रासदी को लेकर कुछ प्रदेश लॉकडाउन तक लगा रहे हैं जैसे महाराष्ट्र और दिल्ली लेकिन प्रदेश सरकारों को ध्यान में रखना चाहिए कि मजदूरों का पिछली बार जिस तरह से पलायन हुआ था और भगदड़ मची थी और उनको जो तकलीफ हुई थी, इस बार पूरी तरह पहले से कर लेनी चाहिए थी.

उन्होंने कहा कि खास तौर पर महाराष्ट्र और दिल्ली ने कोई तैयारी नहीं की और लॉकडाउन की घोषणा कर दी, जबकि इन मजदूरों को उत्तर प्रदेश सरकार बस में लेकर आ रही है.

उन्होंने कहा कि सरकारों ने आपस में समन्वय नहीं किया. इन प्रदेश की सरकारों को यह समझना चाहिए कि मजदूरों के लिए उचित व्यवस्था की जानी चाहिए थी.

भाजपा प्रवक्ता का कहना है कि दिल्ली सरकार और महाराष्ट्र सरकार इस संकट में और पैनिक क्रिएट करने का काम कर रही है जबकि उत्तर प्रदेश की सरकार उन प्रवासी मजदूरों को लाने की व्यवस्था कर रही है.

पढ़ें- फिर पलायन का दौर : कारण, दावे, आरोप और सुझाव

दिल्ली की सरकार को इन मजदूरों से बातचीत कर उन्हें आश्वासन देकर उनके खाने पीने रहने की व्यवस्था करके, अपने कार्यकर्ताओं के साथ उन्हें मदद पहुंचानी चाहिए थी.

तब इस तरह का निर्देश जारी किया जाना चाहिए था. उन्होंने कहा कि जिस तरह से कोरोना वायरस भयंकर रूप लेता जा रहा है प्रदेश सरकारों का फेलियर और भी नजर आ रहा है.

Last Updated : Apr 21, 2021, 6:43 AM IST
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