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एमएसपी वृद्धि में सरकार का संदेश स्पष्ट, खेती में दाल-तेल की तरफ बढ़ें किसान : कृष्णबीर चौधरी

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Published : Sep 12, 2021, 7:43 PM IST

ईटीवी भारत संवाददाता अभिजीत ठाकुर से बातचीत करते हुए भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि नई घोषणा में सरकार का संदेश स्पष्ट है. जिस तरह से किसानों को गुमराह किया जा रहा था कि सरकार एमएसपी को खत्म कर देगी और मंडियां बंद हो जाएंगी ऐसा कुछ नहीं होगा.

कृष्णबीर चौधरी
कृष्णबीर चौधरी

नई दिल्ली : रबी विपणन वर्ष 2022-23 के लिये मोदी सरकार ने एमएसपी घोषित की तो यह स्पष्ट करने का प्रयास एक बार फिर किया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं और नये कृषि कानूनों में एमएसपी को खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है.

एक तरफ जहां एमएसपी पर खरीद की अनिवार्यता के लिये कानून की मांग के साथ किसान आंदोलन कर रहे हैं. वहीं नये घोषणा के अनुसार दलहन और तेलहन के एमएसपी में रिकॉर्ड 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है. हालांकि अनाज की बात करें तो गेहूं और जौ के एमएसपी में केवल 35-40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि ही की गई जो कई किसान संगठनों को नाकाफ़ी लग रही है, लेकिन कुछ किसान संगठन और नेता ऐसे भी हैं जो नये एमएसपी का स्वागत कर रहे हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि नई घोषणा में सरकार का संदेश स्पष्ट है. जिस तरह से किसानों को गुमराह किया जा रहा था कि सरकार एमएसपी को खत्म कर देगी और मंडियां बंद हो जाएंगी ऐसा कुछ नहीं होगा.

कृष्णबीर चौधरी का बयान

भारतीय कृषक समाज और कई अन्य किसान संगठनों की हमेशा से यह मांग रही है कि फसल की बुआई से पहले उसकी एमएसपी घोषित की जाए. इस बार सरकार ने आगामी रबी की बुआई के लिये जो एमएसपी घोषित किया उसमें स्पष्ट संकेत है कि सरकार किसानों को दलहन और तेलहन की ओर आकर्षित करना चाहती है. जिस प्रकार से देश में खाद्य तेलों और दाल का आयात बढ़ रहा है उसे कम करने के उद्देश्य से सरकार ने किसानों को दलहन और तेलहन के उत्पाद को बढ़ाने में सहयोग करने का प्रयास किया है.

सरसों की एमएसपी को 4650 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5050 रुपये किया गया है, जबकि मसूर दाल की एमएसपी को 5100 से बढ़ाकर 5500 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है. इसी प्रकार चने में भी 130 रुपये की वृद्धि की गई है. 5100 से बढ़ाकर 5230 किया गया है. इसी प्रकार सूरजमुखी में भी 113 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है.

कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि अनाज के मामले में देश पहले ही आत्मनिर्भर है और आज देश के भण्डार अनाज से भरे हुए हैं. जन वितरण प्रणाली के तहत देश की 80 करोड़ जनता को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है और इसके बावजूद अनाज के भंडार क्षमता से कहीं ज्यादा ऊपर हैं.

वहीं दूसरी तरफ खाद्य तेल के लिये देश बाहरी देशों पर निर्भर है और आयात के कारण भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है. देश को अब दलहन और तेलहन में भी आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सरकार ने एमएसपी में बढ़ोतरी कर किसानों को एक अवसर दिया है. किसानों को लाभ मिलना चाहिये और इसके लिये यदि वो चाहें तो अब सरसों, दाल या अन्य तेलहन की फसलों की बुआई जरूर करेंगे. इस न्यूनतम समर्थन मूल्य को इसी प्रकार से देखा जाना चाहिये.

पढ़ें - चाय की खेती के लिए अनिवार्य मंजूरी को निलंबित करने के फैसले से उद्योग पर असर नहीं : चाय बोर्ड

खुले बाजार का समर्थन करते हुए कृष्णबीर चैधरी ने मुजफ्फरनगर का उदाहरण दिया और बताया कि मुज़फ्फरनगर मंडी के व्यापारियों ने 4 लाख 34000 कट्टे गुड़ की खरीद सीधे किसानों से की और गुड़ पर एक रुपये प्रति किलो ज्यादा का भुगतान दिया जो 100 रुपये।प्रति क्विंटल हो जाता है.

इस तरह से किसानों को मंडी तक अपने उत्पाद पहुंचाने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ी. दूसरा उदाहरण चौधरी ने सरसों का दिया जिस पर मौजूदा सत्र में किसानों को एमएसपी से भी ज्यादा कीमत मिली है. बतौर किसान नेता कृष्णबीर चौधरी ने बताया कि देश के कुछ हिस्सों में किसानों को सरसों पर एमएसपी से 2000 रुपये ज्यादा तक भी मिले हैं. मध्य्प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को सोयाबीन की फसल पर एमएसपी से ज्यादा भुगतान मिला है.

इसी तरह से कपास पर भी किसानों को अच्छा लाभ मिला है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में बाजार को किसानों के लिये खोलने से किसानों का शोषण खत्म होगा और उन्हें लाभकारी मूल्य मिल सकेगा. यह किसान निर्णय करेगा कि उसे अपनी फसल कहां बेचनी है और जहां उसे लाभकारी मूल्य मिलेगा वहां अपने फसल को बेच सकेगा.

कृष्णबीर चौधरी का अनुमान है कि आगामी रबी विपणन वर्ष में फसलों के चुनाव में बदलाव देखने को मिलेगा और किसान अनाज की बजाय दाल और तेलहन को प्राथमिकता देंगे. मौजूदा समय में जहाँ हम 70 % तक खाद्य तेल के लिये आयात पर निर्भर करते हैं उसमें भी भारी कमी आएगी.

नई दिल्ली : रबी विपणन वर्ष 2022-23 के लिये मोदी सरकार ने एमएसपी घोषित की तो यह स्पष्ट करने का प्रयास एक बार फिर किया कि वह न्यूनतम समर्थन मूल्य की व्यवस्था को बरकरार रखना चाहते हैं और नये कृषि कानूनों में एमएसपी को खत्म करने का कोई प्रावधान नहीं है.

एक तरफ जहां एमएसपी पर खरीद की अनिवार्यता के लिये कानून की मांग के साथ किसान आंदोलन कर रहे हैं. वहीं नये घोषणा के अनुसार दलहन और तेलहन के एमएसपी में रिकॉर्ड 400 रुपये प्रति क्विंटल तक की वृद्धि की गई है. हालांकि अनाज की बात करें तो गेहूं और जौ के एमएसपी में केवल 35-40 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि ही की गई जो कई किसान संगठनों को नाकाफ़ी लग रही है, लेकिन कुछ किसान संगठन और नेता ऐसे भी हैं जो नये एमएसपी का स्वागत कर रहे हैं.

ईटीवी भारत से बातचीत में भारतीय कृषक समाज के अध्यक्ष कृष्णबीर चौधरी ने कहा कि नई घोषणा में सरकार का संदेश स्पष्ट है. जिस तरह से किसानों को गुमराह किया जा रहा था कि सरकार एमएसपी को खत्म कर देगी और मंडियां बंद हो जाएंगी ऐसा कुछ नहीं होगा.

कृष्णबीर चौधरी का बयान

भारतीय कृषक समाज और कई अन्य किसान संगठनों की हमेशा से यह मांग रही है कि फसल की बुआई से पहले उसकी एमएसपी घोषित की जाए. इस बार सरकार ने आगामी रबी की बुआई के लिये जो एमएसपी घोषित किया उसमें स्पष्ट संकेत है कि सरकार किसानों को दलहन और तेलहन की ओर आकर्षित करना चाहती है. जिस प्रकार से देश में खाद्य तेलों और दाल का आयात बढ़ रहा है उसे कम करने के उद्देश्य से सरकार ने किसानों को दलहन और तेलहन के उत्पाद को बढ़ाने में सहयोग करने का प्रयास किया है.

सरसों की एमएसपी को 4650 रुपये प्रति क्विंटल से बढ़ाकर 5050 रुपये किया गया है, जबकि मसूर दाल की एमएसपी को 5100 से बढ़ाकर 5500 रुपये प्रति क्विंटल किया गया है. इसी प्रकार चने में भी 130 रुपये की वृद्धि की गई है. 5100 से बढ़ाकर 5230 किया गया है. इसी प्रकार सूरजमुखी में भी 113 रुपये प्रति क्विंटल की वृद्धि की गई है.

कृष्णबीर चौधरी कहते हैं कि अनाज के मामले में देश पहले ही आत्मनिर्भर है और आज देश के भण्डार अनाज से भरे हुए हैं. जन वितरण प्रणाली के तहत देश की 80 करोड़ जनता को मुफ़्त राशन दिया जा रहा है और इसके बावजूद अनाज के भंडार क्षमता से कहीं ज्यादा ऊपर हैं.

वहीं दूसरी तरफ खाद्य तेल के लिये देश बाहरी देशों पर निर्भर है और आयात के कारण भारी मात्रा में विदेशी मुद्रा देश से बाहर जाती है. देश को अब दलहन और तेलहन में भी आत्मनिर्भर बनाने के उद्देश्य से सरकार ने एमएसपी में बढ़ोतरी कर किसानों को एक अवसर दिया है. किसानों को लाभ मिलना चाहिये और इसके लिये यदि वो चाहें तो अब सरसों, दाल या अन्य तेलहन की फसलों की बुआई जरूर करेंगे. इस न्यूनतम समर्थन मूल्य को इसी प्रकार से देखा जाना चाहिये.

पढ़ें - चाय की खेती के लिए अनिवार्य मंजूरी को निलंबित करने के फैसले से उद्योग पर असर नहीं : चाय बोर्ड

खुले बाजार का समर्थन करते हुए कृष्णबीर चैधरी ने मुजफ्फरनगर का उदाहरण दिया और बताया कि मुज़फ्फरनगर मंडी के व्यापारियों ने 4 लाख 34000 कट्टे गुड़ की खरीद सीधे किसानों से की और गुड़ पर एक रुपये प्रति किलो ज्यादा का भुगतान दिया जो 100 रुपये।प्रति क्विंटल हो जाता है.

इस तरह से किसानों को मंडी तक अपने उत्पाद पहुंचाने की जहमत भी नहीं उठानी पड़ी. दूसरा उदाहरण चौधरी ने सरसों का दिया जिस पर मौजूदा सत्र में किसानों को एमएसपी से भी ज्यादा कीमत मिली है. बतौर किसान नेता कृष्णबीर चौधरी ने बताया कि देश के कुछ हिस्सों में किसानों को सरसों पर एमएसपी से 2000 रुपये ज्यादा तक भी मिले हैं. मध्य्प्रदेश और महाराष्ट्र के किसानों को सोयाबीन की फसल पर एमएसपी से ज्यादा भुगतान मिला है.

इसी तरह से कपास पर भी किसानों को अच्छा लाभ मिला है. इससे यह स्पष्ट हो जाता है कि देश में बाजार को किसानों के लिये खोलने से किसानों का शोषण खत्म होगा और उन्हें लाभकारी मूल्य मिल सकेगा. यह किसान निर्णय करेगा कि उसे अपनी फसल कहां बेचनी है और जहां उसे लाभकारी मूल्य मिलेगा वहां अपने फसल को बेच सकेगा.

कृष्णबीर चौधरी का अनुमान है कि आगामी रबी विपणन वर्ष में फसलों के चुनाव में बदलाव देखने को मिलेगा और किसान अनाज की बजाय दाल और तेलहन को प्राथमिकता देंगे. मौजूदा समय में जहाँ हम 70 % तक खाद्य तेल के लिये आयात पर निर्भर करते हैं उसमें भी भारी कमी आएगी.

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