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क्या आप जानते हैं गोवर्धन पूजा की कथा, इसी के जरिए मिला था प्रकृति संरक्षण का संदेश

गोवर्धन पूजा का संदेश भगवान कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ते हुए दिया था और स्थानीय संसाधनों के संरक्षण का महत्व भी समझाया था. तो आइए जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत और गोवर्धन पूजा शुरू होने का वह प्रसंग जिसको लोग आज भी मानते हैं.

Govardhan Puja History and Govardhan Puja Story related with Celebration
गोवर्धन पूजा (फाइल फोटो सौ. सोशल मीडिया)
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Published : Oct 18, 2022, 12:41 PM IST

दीपावली की सुबह गोवर्धन पूजा का पर्व भारत के प्रमुख हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसको मनाने को लेकर एक खास तरह की कथा चर्चित है. इस कथा में भगवान कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा का संदेश दिया था और स्थानीय संसाधनों के संरक्षण का महत्व भी समझाया था. तो आइए जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत और गोवर्धन पूजा शुरू होने का वह प्रसंग जिसको लोग आज भी मानते हैं.

गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कथा (Govardhan Puja Story)
गोवर्धन पूजा को मनाने के पीछे हमारे धार्मिक शास्त्रों में एक खास कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार भगवान कृष्ण जी ने लोगों को गोवर्धन पूजा करने को सलाह कुछ खास कारणों से दी थी और अपने आसपास के लोगों को प्रकृति के संरक्षण व उसके महत्व को समझाने की कोशिश की थी. इस कथा के अनुसार, एक दिन जब कृष्ण जी की मां यशोदा जब भगवान इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रही थीं, तो उस समय कृष्ण जी ने अपनी मां से जिज्ञासा बस पूछ लिया कि वो इंद्र भगवान की पूजा क्यों करने जा रही हैं, आखिर इससे क्या फायदा होता है..? कृष्ण जी के इस सवाल के जवाब में उनकी मां ने उनको समझाते हुए बताया कि सारे गांव वाले भगवान इंद्र की पूजा इसलिए करते हैं, ताकि उनके गांव में बारिश हो और अच्छी बारिश के चलते उनके गांव में अच्छी फसल हो. आसपास के खेतों में हमारी गायों के लिए अच्छी घास की पैदावार हो और उन्हें हरा चारा मिल सके.

Govardhan Puja History and Govardhan Puja Story related with Celebration
गोवर्धन पूजा (फाइल फोटो सौ. सोशल मीडिया)

अपनी मां की पूरी बात सुनने के बाद भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो हमें इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस पर्वत पर ही हमारी गायों को खाने को हरी घास मिलती है. यह हमारे सामने प्रत्यक्ष रुप से विराजमान हैं और हमें हमेशा दिखायी देते हैं. कृष्ण जी की इस बात का असर उनकी मां के साथ साथ ब्रजवासियों पर भी पड़ा और ब्रजवासियों ने इंद्र देव की पूजा करने की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी.

इसे भी पढ़ें : गोवर्धन पूजा का है धार्मिक व पौराणिक महत्व, इसलिए मनाते हैं त्योहार

कहा जाता है कि ब्रजवासियों को गोवर्धन की पूजा जैसे ही नारद जी ने भगवान इंद्र को दी, इंद्र देवता इसे अपना अपमान समझ बैठे और नाराज होकर मेघों को ब्रज में जाकर खूब बारिश करके तबाह कर देने की आज्ञा दे दी. इसके बाद पूरे ब्रज मंडल में तेज बारिश करना शुरू हो गयी. सबको लगने लगा कि अब प्रलय आ जाएगा. तेज बारिश के कारण परेशान लोग कृष्ण भगवान के पास मदद मांगने पहुंचे. अपने गांव के लोगों को बारिश और इंद्र के कहर से बचाने के लिए कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और सारे ब्रजवासियों को इसी पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा. कहा जाता है कि भगवान ने इस पर्वत को एक सप्ताह तक अपनी एक उंगली पर उठाए रखा.

इसे भी पढ़ें : ऐसे मनाया जाएगा दीपावली 2022 का महापर्व, जानिए धनतेरस से लेकर भाई दूज तक की अपडेट्स

जब इंद्र देव को यह पता चला कि कृष्ण जी ही भगवान विष्णु का स्वरुप हैं, तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने बारिश को रोककर भगवान से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. तब बारिश रुकने के बाद कृष्ण जी ने पर्वत को नीचे रख दिया और उन्होंने अपने गांव के लोगों को हर साल गोवर्धन पूजा करने के लिए कहा, जिसके बाद से ये त्योहार हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा.

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दीपावली की सुबह गोवर्धन पूजा का पर्व भारत के प्रमुख हिस्सों में बहुत उत्साह के साथ मनाया जाता है. इसको मनाने को लेकर एक खास तरह की कथा चर्चित है. इस कथा में भगवान कृष्ण ने इंद्र के अहंकार को तोड़ते हुए गोवर्धन पर्वत की पूजा का संदेश दिया था और स्थानीय संसाधनों के संरक्षण का महत्व भी समझाया था. तो आइए जानते हैं कि गोवर्धन पर्वत और गोवर्धन पूजा शुरू होने का वह प्रसंग जिसको लोग आज भी मानते हैं.

गोवर्धन पर्वत से जुड़ी कथा (Govardhan Puja Story)
गोवर्धन पूजा को मनाने के पीछे हमारे धार्मिक शास्त्रों में एक खास कथा प्रचलित है. इस कथा के अनुसार भगवान कृष्ण जी ने लोगों को गोवर्धन पूजा करने को सलाह कुछ खास कारणों से दी थी और अपने आसपास के लोगों को प्रकृति के संरक्षण व उसके महत्व को समझाने की कोशिश की थी. इस कथा के अनुसार, एक दिन जब कृष्ण जी की मां यशोदा जब भगवान इंद्र की पूजा करने की तैयारी कर रही थीं, तो उस समय कृष्ण जी ने अपनी मां से जिज्ञासा बस पूछ लिया कि वो इंद्र भगवान की पूजा क्यों करने जा रही हैं, आखिर इससे क्या फायदा होता है..? कृष्ण जी के इस सवाल के जवाब में उनकी मां ने उनको समझाते हुए बताया कि सारे गांव वाले भगवान इंद्र की पूजा इसलिए करते हैं, ताकि उनके गांव में बारिश हो और अच्छी बारिश के चलते उनके गांव में अच्छी फसल हो. आसपास के खेतों में हमारी गायों के लिए अच्छी घास की पैदावार हो और उन्हें हरा चारा मिल सके.

Govardhan Puja History and Govardhan Puja Story related with Celebration
गोवर्धन पूजा (फाइल फोटो सौ. सोशल मीडिया)

अपनी मां की पूरी बात सुनने के बाद भगवान कृष्ण ने कहा कि अगर ऐसी बात है तो हमें इंद्र भगवान की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी चाहिए. क्योंकि इस पर्वत पर ही हमारी गायों को खाने को हरी घास मिलती है. यह हमारे सामने प्रत्यक्ष रुप से विराजमान हैं और हमें हमेशा दिखायी देते हैं. कृष्ण जी की इस बात का असर उनकी मां के साथ साथ ब्रजवासियों पर भी पड़ा और ब्रजवासियों ने इंद्र देव की पूजा करने की जगह गोवर्धन पर्वत की पूजा करनी शुरू कर दी.

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कहा जाता है कि ब्रजवासियों को गोवर्धन की पूजा जैसे ही नारद जी ने भगवान इंद्र को दी, इंद्र देवता इसे अपना अपमान समझ बैठे और नाराज होकर मेघों को ब्रज में जाकर खूब बारिश करके तबाह कर देने की आज्ञा दे दी. इसके बाद पूरे ब्रज मंडल में तेज बारिश करना शुरू हो गयी. सबको लगने लगा कि अब प्रलय आ जाएगा. तेज बारिश के कारण परेशान लोग कृष्ण भगवान के पास मदद मांगने पहुंचे. अपने गांव के लोगों को बारिश और इंद्र के कहर से बचाने के लिए कृष्ण भगवान ने गोवर्धन पर्वत को अपनी छोटी उंगली से उठा लिया और सारे ब्रजवासियों को इसी पर्वत के नीचे शरण लेने के लिए कहा. कहा जाता है कि भगवान ने इस पर्वत को एक सप्ताह तक अपनी एक उंगली पर उठाए रखा.

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जब इंद्र देव को यह पता चला कि कृष्ण जी ही भगवान विष्णु का स्वरुप हैं, तो उन्हें अपनी गलती का एहसास हुआ और उन्होंने बारिश को रोककर भगवान से अपनी गलती के लिए क्षमा मांगी. तब बारिश रुकने के बाद कृष्ण जी ने पर्वत को नीचे रख दिया और उन्होंने अपने गांव के लोगों को हर साल गोवर्धन पूजा करने के लिए कहा, जिसके बाद से ये त्योहार हर साल हर्षोल्लास के साथ मनाया जाने लगा.

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