गोरखपुर : जिले की हेमलता ओझा जरूरतमंद महिलाओं के लिए उम्मीद की नई राेशनी हैं. वे अपने हुनर और समाजसेवा के जरिए कई गरीबाें का घर खुशियाें से राेशन कर रहीं हैं. शिक्षित हाेने के बावजूद पारिवारिक हालात के कारण वह अपने सपने पूरे नहीं कर पाईं, लेकिन कई महिलाओं काे सही रास्ता दिखाने का काम कर रहीं हैं. वह उत्पीड़न की शिकार महिलाओं को संकट से उबारने, कानूनी मदद मुहैया कराने और उन्हें आर्थिक रूप से सक्षम बनाने का काम कर रहीं हैं.
बता दें कि कल 8 मार्च काे अंतरराष्ट्रीय महिला दिवस है. इस खास दिन पर अलग हटकर मुकाम हासिल करने वाली, अपनी पहचान कायम करने वाली महिलाओं के बारे में खास तौर पर चर्चा होती है. इनमें से एक हेमलता ओझा भी हैं. वह जरूरतमंद महिलाओं के लिए दो वक्त का भोजन और दवा के इंतजाम को लेकर परेशान रहती हैं. स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के बाद, ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर आर्थिक समृद्धि का रस्ता ढूंढने वाली हेमलता आज सैकड़ाें महिलाओं का सहारा हैं. उनके इस कार्य के कारण उन्हें जिले से लेकर देश और प्रदेश के कई बड़े मंचों पर सम्मानित किया जा चुका है. वह लिखने-पढ़ने की भी शौकीन हैं. उनकी अब तक दर्जनों किताबें छप चुकी हैं. इनमें से कुछ अमेजन पर भी उपलब्ध हैं.
जज बनने का था सपना : हेमलता कहती हैं कि ग्रेजुएशन के बाद उनकी शादी हो गई. उनकी इच्छा एलएलबी की पढ़ाई कर जज बनने की थी. शादी के बाद ससुराल की परिस्थितियां इस लायक नहीं रहीं. परिवार चलाने से लेकर, बच्चों के भविष्य की चिंता सताने लगी. इसके कारण गांव छोड़कर वह शहर की ओर परिवार के साथ निकल पड़ी. उनके पति प्राइवेट नौकरी करने लगे. इसके बाद हेमलता कुछ लोगों की मदद से हैंडीक्राफ्ट का काम करने लगीं. अपने हुनर के बल पर वह बाजार में अच्छी पकड़ बनाती गईं. वह लिखती-पढ़ती भी रहीं. कई तरह की इनकी रचनाएं पत्र-पत्रिकाओं प्रकाशित हाेने के साथ रेडियाे पर भी आती रही. इससे उनकी सामाजिक ख्याति बढ़ती गई.
अन्य महिलाओं काे भी साथ जाेड़ा : हेमलता बताती हैं कि उन्हें ₹2 लाख का लोन डूडा से मिला. इसके बाद वह अपनी जैसी अन्य महिलाओं के भी जीवन में सुधार लाने का प्रण ले लिया. इस कार्य के दौरान उन्हें ऐसी महिलाओं के जीवन को उबारने और निखारने का अवसर प्राप्त हुआ जो पतियों की प्रताड़ित थीं. हेमलता ने इन्हें हैंडक्राफ्ट के कार्य से जोड़ा. उनसे प्रशिक्षण पाकर अन्य महिलाएं भी हुनरमंद होती गईं. इससे हेमलता को एक बड़ी पहचान भी मिलती गई. जिला प्रशासन ने इन्हें एक महिला स्वयं सहायता समूह के रूप में स्थापित किया. हेमलता कहतीं हैं कि जीवन का लक्ष्य है, मदर टेरेसा की तरह जानी जाऊं. खुद के लिए नहीं, लोगों को कुछ दे पाऊं, ऐसी तमन्ना है. एक ऐसा महिला आश्रय बनाऊं, जहां महिलाओं को रोजगार मिले, ठिकाना मिले और उनके बच्चों को पढ़ने-लिखने का माहौल. इसी को लेकर दिन रात मेहनत चल रही है. उनके साथ की महिलाएं भी हेमलता के प्रयासों का गुणगान बखूबी करती हैं. वह कहती हैं कि उनके जीवन में उजाला हेमलता दीदी के प्रयासों से आया.
हेमलता ने दर्जनों पुस्तकें लिखी हैं. वे गोरखपुर से लेकर दिल्ली में भी उपलब्ध हैं. इन किताबाें में कशमकश, लो झुक गया आसमां, पुरुषोत्तम राम, अक्षरों के साए, यह कैसी बदनसीबी, एक कप चाय और जिंदगी, स्वर्ण मंजरी, शक्तिपुंज कविता संग्रह हैं. हेमलता काे सामाजिक संगठनों से लेकर राजनीतिक और प्रशासनिक स्तर पर काफी पुरस्कार मिल चुके हैं. फिल्मी कलाकारों भी मंच पर सम्मानित कर चुके हैं. हेमलता कहती हैं कि असली सम्मान और आनंद उन्हें तब और आता है, जब वह हर दिन किसी न किसी परेशान, असहाय और लाचार महिला की मदद कर पाती हैं.
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