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सात साल बाद जोशीमठ में केदारनाथ जैसी तबाही, डराने वाली हैं तस्वीरें - glacier burst on joshimath

जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा नदी पर बना बांध टूटने से नदी का जलस्तर बढ़ गया है, जिसकी वजह से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है. मौके पर आपदा प्रबंधन टीम रवाना हो गई है और नदी किनारे स्थित घरों को खाली कराने के निर्देश दिए गए.

देवभूमि में फिर जल प्रलय
देवभूमि में फिर जल प्रलय
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Published : Feb 7, 2021, 1:56 PM IST

Updated : Feb 7, 2021, 3:30 PM IST

चमोली/देहरादून : 16 जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ जल प्रलय आज भी लोगों के जहन में ताजा है. इस जल प्रलय ने हजारों जिंदगियां लील ली थीं. केदारनाथ और प्रदेश के सभी पहाड़ी जिलों रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, पिथौरागढ़ की लाखों की आबादी आपदा की जद में आ गई थी. सड़कें, पुल और संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए थे. वहीं एक बार फिर जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से 2013 आपदा के जख्म हरे हो गए हैं. जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा नदी पर बना बांध टूट गया है. बांध टूटने से नदी में मलबा के आने से जलस्तर बढ़ गया है, जिसकी वजह से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.

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केदारनाथ जैसी त्रासदी

दरअसल, ग्लेशियर टूटने की खबर की पुष्टि जोशीमठ हेड कॉन्स्टेबल मंगल सिंह ने की है. मंगल सिंह ने बताया कि उन्हें सुबह 10:55 बजे सूचना मिली कि जोशीमठ की रैणी गांव में ग्लेशियर टूटा है. मौके पर आपदा प्रबंधन टीम रवाना हो गई है. नदी किनारे बने घरों को खाली कराने के निर्देश दिए गए. वहीं, ग्लेशियर टूटने की घटना पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिव आपदा प्रबंधन और डीएम चमोली से पूरी जानकारी ली. मुख्यमंत्री लगातार पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं. संबंधित सभी जिलों में अलर्ट कर दिया गया है. चमोली जिला प्रशासन, एसडीआरएफ के अधिकारी और कर्मचारी मौके पर पहुंच गए हैं. लोगों से अपील की जा रही है कि गंगा नदी के किनारे न जाएं. वहीं, मदन कौशिक ने कहा कि सारे विभाग हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर में लोगों से गंगा किनारे वाले इलाकों को खाली करवाया गया है.

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जल प्रलय

2013 में जल प्रलय ने मचाई थी भारी तबाही

केदारनाथ में 16 जून 2013 को दैवीय आपदा से हुई तबाही को 7 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीड़ित परिवारों को फौरी राहत भले ही मिल गई हो, लेकिन उनके जख्म आज भी हरे के हरे हैं. शायद ही वो इस आपदा को कभी भूल पाएं. वक्त भी उनके जख्मों पर मरहम नहीं लगा पाया. 15 जून 2013 से केदारनाथ घाटी में भारी बारिश शुरू हुई थी. इस दौरान केदारनाथ के आसपास के पहाड़ों पर झीलों में भारी मात्रा में पानी भर गया था और ग्लेशियर भी पिघलने लगे थे. केदारनाथ में उस समय तीर्थयात्रियों की भी भारी भीड़ थी. वो बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन किसी को यह खबर नहीं थी कि प्रकृति कितना भयावह रूप लेने वाली है.

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सैलाब में समाए गांव

देवभूमि में दिखा मौत का भयानक मंजर

लगातार हो रही बारिश से केदारनाथ के मंदाकिनी और सरस्वती नदियां भी उफान पर थीं. इसी दौरान केदारनाथ के आस-पास पहाड़ों पर बादल भी फटने लगे थे. 16 जून की रात करीब 8.30 बजे केदारनाथ में पहली बार मौत के भयानक मंजर से लोगों का सामना हुआ. इस जल प्रलय ने हजारों जिंदगियां लील लीं. इस जलप्रलय में कई लोग लापता और मर गए.

चमोली/देहरादून : 16 जून 2013 को उत्तराखंड के केदारनाथ में हुआ जल प्रलय आज भी लोगों के जहन में ताजा है. इस जल प्रलय ने हजारों जिंदगियां लील ली थीं. केदारनाथ और प्रदेश के सभी पहाड़ी जिलों रुद्रप्रयाग, चमोली, उत्तरकाशी, बागेश्वर, पिथौरागढ़ की लाखों की आबादी आपदा की जद में आ गई थी. सड़कें, पुल और संपर्क मार्ग ध्वस्त हो गए थे. वहीं एक बार फिर जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से 2013 आपदा के जख्म हरे हो गए हैं. जोशीमठ के रैणी गांव में ग्लेशियर टूटने से ऋषि गंगा नदी पर बना बांध टूट गया है. बांध टूटने से नदी में मलबा के आने से जलस्तर बढ़ गया है, जिसकी वजह से बाढ़ का खतरा मंडरा रहा है.

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केदारनाथ जैसी त्रासदी

दरअसल, ग्लेशियर टूटने की खबर की पुष्टि जोशीमठ हेड कॉन्स्टेबल मंगल सिंह ने की है. मंगल सिंह ने बताया कि उन्हें सुबह 10:55 बजे सूचना मिली कि जोशीमठ की रैणी गांव में ग्लेशियर टूटा है. मौके पर आपदा प्रबंधन टीम रवाना हो गई है. नदी किनारे बने घरों को खाली कराने के निर्देश दिए गए. वहीं, ग्लेशियर टूटने की घटना पर मुख्यमंत्री त्रिवेंद्र सिंह रावत ने सचिव आपदा प्रबंधन और डीएम चमोली से पूरी जानकारी ली. मुख्यमंत्री लगातार पूरी स्थिति पर नजर रखे हुए हैं. संबंधित सभी जिलों में अलर्ट कर दिया गया है. चमोली जिला प्रशासन, एसडीआरएफ के अधिकारी और कर्मचारी मौके पर पहुंच गए हैं. लोगों से अपील की जा रही है कि गंगा नदी के किनारे न जाएं. वहीं, मदन कौशिक ने कहा कि सारे विभाग हरिद्वार, ऋषिकेश और श्रीनगर में लोगों से गंगा किनारे वाले इलाकों को खाली करवाया गया है.

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जल प्रलय

2013 में जल प्रलय ने मचाई थी भारी तबाही

केदारनाथ में 16 जून 2013 को दैवीय आपदा से हुई तबाही को 7 साल पूरे होने जा रहे हैं. इस त्रासदी में मारे गए लोगों के परिजनों व पीड़ित परिवारों को फौरी राहत भले ही मिल गई हो, लेकिन उनके जख्म आज भी हरे के हरे हैं. शायद ही वो इस आपदा को कभी भूल पाएं. वक्त भी उनके जख्मों पर मरहम नहीं लगा पाया. 15 जून 2013 से केदारनाथ घाटी में भारी बारिश शुरू हुई थी. इस दौरान केदारनाथ के आसपास के पहाड़ों पर झीलों में भारी मात्रा में पानी भर गया था और ग्लेशियर भी पिघलने लगे थे. केदारनाथ में उस समय तीर्थयात्रियों की भी भारी भीड़ थी. वो बारिश रुकने का इंतजार कर रहे थे लेकिन किसी को यह खबर नहीं थी कि प्रकृति कितना भयावह रूप लेने वाली है.

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सैलाब में समाए गांव

देवभूमि में दिखा मौत का भयानक मंजर

लगातार हो रही बारिश से केदारनाथ के मंदाकिनी और सरस्वती नदियां भी उफान पर थीं. इसी दौरान केदारनाथ के आस-पास पहाड़ों पर बादल भी फटने लगे थे. 16 जून की रात करीब 8.30 बजे केदारनाथ में पहली बार मौत के भयानक मंजर से लोगों का सामना हुआ. इस जल प्रलय ने हजारों जिंदगियां लील लीं. इस जलप्रलय में कई लोग लापता और मर गए.

Last Updated : Feb 7, 2021, 3:30 PM IST
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