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धार्मिक साहित्य की बढ़ी डिमांड, गीताप्रेस में रोजाना छप रही है 50 हजार कॉपी -

गीताप्रेस, गोरखपुर हिंदू धार्मिक साहित्य का सबसे बड़ा प्रकाशक है. जो लोग अपने घरों में हिंदू धार्मिक साहित्य रखते हैं, उनके पास गीताप्रेस में छपी श्रीमद्भगवतगीता या रामचरित मानस जरूर मिल जाएगी. पिछले 99 साल से गीताप्रेस धार्मिक साहित्य का प्रकाशन कर रहा है. अब प्रेस में जापान और जर्मनी की आधुनिक मशीनें लगाई गईं हैं, जिनकी मदद से रोजाना 16 भाषाओं में 1,800 से अधिक पुस्तकों की 50,000 से अधिक प्रतियां प्रकाशित हो रही हैं.

Gita Press
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Published : Mar 1, 2022, 1:19 PM IST

गोरखपुर : गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस, हनुमान चालीसा और श्रीकृष्ण की श्रीमद्भगवद्गीता से परंपरागत तौर पर आस्था जुड़ी रही है. 1923 में जब गीताप्रेस, गोरखपुर ने इसे छापना शुरू किया तो हर सतानती के घर-घर तक पहुंच गई. अब इस प्रेस में जापानी और जर्मन टेक्नॉलजी वाली मशीन लगाई गई है, जिनकी मदद से विभिन्न पुस्तकों की 50 हजार प्रतियां रोज प्रकाशित हो रही हैं.

गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने बताया कि आजादी से पहले धार्मिक पुस्तकें देश से गायब हो गई थीं. लोगों के पास किसी पुस्तक की एक कॉपी भी नहीं थी. हर व्यक्ति को पुस्तकें सुलभ कराने के उद्देश्य से जयदयाल गोयनका ने1923 में गीताप्रेस की नींव रखी. प्रेस ने अन्य हिंदू धार्मिक पुस्तक रामायण, महाभारत, पुराणों को भी छापना शुरू कर दिया. पहले पारंपरिक तरीके से पुस्तकों की छपाई शुरू हुई, अब नई टेक्नॉलजी से पुस्तक प्रकाशित हो रही हैं.

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गीताप्रेस में जर्मनी और जापानी मशीनें लगाई गई हैं.

देवीदयाल अग्रवाल ने बताया कि गीताप्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1,800 से अधिक किताबों का प्रकाशन हो रहा है. रोजाना लगभग 50,000 से 55,000 पुस्तकों की छपाई हो रही है. इन दिनों धार्मिक पुस्तकों की मांग अचानक बढ़ी है, हम डिमांड पूरा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गीता प्रेस का लक्ष्य लोगों को प्रमाणिक धार्मिक पुस्तक न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराना है. लोग यह देखकर हैरान हैं कि गीता प्रेस इतनी कम दरों पर किताबें कैसे उपलब्ध करा रही है.

पुस्तकों को सहज और सस्ता बनाने के लिए गीताप्रेस की रणनीति का खुलासा करते हुए ट्रस्टी ने बताया कि वह बुनियादी ढांचे की लागत को कीमत में नहीं जोड़ते हैं. साथ ही रॉ मटैरियल सीधे उद्योगों से खरीदते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गीता प्रेस को किसी भी प्रकार का दान नहीं मिलता है और यह केवल अपने संसाधनों के बलबूते चल रहा है.

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गीताप्रेस में लगी मशीनें अब हाईटेक हो गईं हैं.

उन्होंने बताया कि समझ में आने वाली भाषा के साथ उनकी त्रुटिहीन सामग्री और उच्च गुणवत्ता वाली छपाई के कारण गीता प्रेस की पुस्तक भारत लगभग हर घर तक पहुंची है. अभी तक गीताप्रेस ने धार्मिक साहित्य की 71.77 करोड़ प्रतियां लोगों तक पहुंचा चुका है. अभी तक श्रीमद्भगवत गीता की 1,558 लाख और श्रीरामचरितमानस की 1,139 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. इसके अलावा पुराण, उपनिषद और आदि ग्रंथ की 261 लाख प्रतियां भी बिकी हैं. महिलाओं और बच्चों के लिए शिक्षाप्रद किताबों की 261 लाख प्रति बिकी हैं. भक्ति चरित्र और भजन माला की 1,740 लाख और अन्य प्रकाशन की1,373 लाख कॉपी पाठकों तक पहुंच गई है.

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, 2021 में जुलाई से नवंबर तक गीताप्रेस के धार्मिक साहित्य की डिमांड ने रेकॉर्ड कायम किया था. पिछले साल अक्टूबर महीने में ही 8.67 करोड़ रुपये के साहित्य की बिक्री हुई थी. बता दें कि यह आंकड़ा तब है, जब गीता प्रेस लागत मूल्य पर ही पाठकों को किताबें उपलब्ध कराता है.

पढ़ें : भारत भेजेगा यूक्रेन के लिए 'मानवीय सहायता'

गोरखपुर : गोस्वामी तुलसीदास रचित रामचरित मानस, हनुमान चालीसा और श्रीकृष्ण की श्रीमद्भगवद्गीता से परंपरागत तौर पर आस्था जुड़ी रही है. 1923 में जब गीताप्रेस, गोरखपुर ने इसे छापना शुरू किया तो हर सतानती के घर-घर तक पहुंच गई. अब इस प्रेस में जापानी और जर्मन टेक्नॉलजी वाली मशीन लगाई गई है, जिनकी मदद से विभिन्न पुस्तकों की 50 हजार प्रतियां रोज प्रकाशित हो रही हैं.

गीता प्रेस के ट्रस्टी देवी दयाल अग्रवाल ने बताया कि आजादी से पहले धार्मिक पुस्तकें देश से गायब हो गई थीं. लोगों के पास किसी पुस्तक की एक कॉपी भी नहीं थी. हर व्यक्ति को पुस्तकें सुलभ कराने के उद्देश्य से जयदयाल गोयनका ने1923 में गीताप्रेस की नींव रखी. प्रेस ने अन्य हिंदू धार्मिक पुस्तक रामायण, महाभारत, पुराणों को भी छापना शुरू कर दिया. पहले पारंपरिक तरीके से पुस्तकों की छपाई शुरू हुई, अब नई टेक्नॉलजी से पुस्तक प्रकाशित हो रही हैं.

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गीताप्रेस में जर्मनी और जापानी मशीनें लगाई गई हैं.

देवीदयाल अग्रवाल ने बताया कि गीताप्रेस में फिलहाल 15 भाषाओं में 1,800 से अधिक किताबों का प्रकाशन हो रहा है. रोजाना लगभग 50,000 से 55,000 पुस्तकों की छपाई हो रही है. इन दिनों धार्मिक पुस्तकों की मांग अचानक बढ़ी है, हम डिमांड पूरा करने के लिए अपनी पूरी कोशिश कर रहे हैं. उन्होंने बताया कि गीता प्रेस का लक्ष्य लोगों को प्रमाणिक धार्मिक पुस्तक न्यूनतम मूल्य पर उपलब्ध कराना है. लोग यह देखकर हैरान हैं कि गीता प्रेस इतनी कम दरों पर किताबें कैसे उपलब्ध करा रही है.

पुस्तकों को सहज और सस्ता बनाने के लिए गीताप्रेस की रणनीति का खुलासा करते हुए ट्रस्टी ने बताया कि वह बुनियादी ढांचे की लागत को कीमत में नहीं जोड़ते हैं. साथ ही रॉ मटैरियल सीधे उद्योगों से खरीदते हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि गीता प्रेस को किसी भी प्रकार का दान नहीं मिलता है और यह केवल अपने संसाधनों के बलबूते चल रहा है.

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गीताप्रेस में लगी मशीनें अब हाईटेक हो गईं हैं.

उन्होंने बताया कि समझ में आने वाली भाषा के साथ उनकी त्रुटिहीन सामग्री और उच्च गुणवत्ता वाली छपाई के कारण गीता प्रेस की पुस्तक भारत लगभग हर घर तक पहुंची है. अभी तक गीताप्रेस ने धार्मिक साहित्य की 71.77 करोड़ प्रतियां लोगों तक पहुंचा चुका है. अभी तक श्रीमद्भगवत गीता की 1,558 लाख और श्रीरामचरितमानस की 1,139 लाख प्रतियां बिक चुकी हैं. इसके अलावा पुराण, उपनिषद और आदि ग्रंथ की 261 लाख प्रतियां भी बिकी हैं. महिलाओं और बच्चों के लिए शिक्षाप्रद किताबों की 261 लाख प्रति बिकी हैं. भक्ति चरित्र और भजन माला की 1,740 लाख और अन्य प्रकाशन की1,373 लाख कॉपी पाठकों तक पहुंच गई है.

मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, 2021 में जुलाई से नवंबर तक गीताप्रेस के धार्मिक साहित्य की डिमांड ने रेकॉर्ड कायम किया था. पिछले साल अक्टूबर महीने में ही 8.67 करोड़ रुपये के साहित्य की बिक्री हुई थी. बता दें कि यह आंकड़ा तब है, जब गीता प्रेस लागत मूल्य पर ही पाठकों को किताबें उपलब्ध कराता है.

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