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कर्नाटक के जलाशय में मिली विशालकाय दुर्लभ मछली

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Published : Nov 27, 2022, 2:31 PM IST

2016 में बंगाल की खाड़ी के पास मछलियों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया था कि इसका नाम इंडियन अनपैटर्नेड मोरे रखा जाना चाहिए. ईल मछली ताजा होने पर समान रूप से हल्के भूरे रंग की दिखाई देती है. इसके शरीर पर कोई धब्बा या पैटर्न नहीं होता है.

Kalaburagi Karnataka Nagara Reservoir Eel Fish Bay of Bengal Rare Fish
कर्नाटक के जलाशय में मिली विशालकाय दुर्लभ मछली

कलबुर्गी (कर्नाटक) : कलबुर्गी जिले के चिंचोली तालुक के नागरा जलाशय में विशालकाय दुर्लभ मछली मिली है. इसे 'ईल फिश' माना जा रहा है. आमतौर से यह यूरोप और न्यूजीलैंड जैसे देशों में पाई जाती है. यहां मिली मछली की लंबाई करीब 6 फीट और वजन 13 किलो है. मछली मछुआरे ईश्वर के जाल में फंसी थी. बताया जा रहा है कि ईश्वर ने बिना यह जाने कि यह एक दुर्लभ मछली है, इसे एक सामान्य मछली की तरह काटकर बेच दिया. मैदानी इलाकों में ऐसी मछली बहुत कम देखने को मिलती है. यह पहली बार है कि कर्नाटक में इस तरह की मछली दिखाई दी है.

पढ़ें: All women Ima Keithal market Manipur : एशिया के सबसे बड़े ऑल वुमन इमा कैथल मार्केट में पहुंचे विदेश मंत्री

ईल सांप जैसी मछलियां हैं जिनके पंख और गलफड़े होते हैं. ईल का वैज्ञानिक नाम जिम्नोथोरैक्स इंडिकस है, यह आमतौर से लगभग एक फीट लंबा और खाने योग्य होता है. 2016 में बंगाल की खाड़ी के पास मछलियों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया था कि इसका नाम इंडियन अनपैटर्नेड मोरे रखा जाना चाहिए. ईल मछली ताजा होने पर समान रूप से हल्के भूरे रंग की दिखाई देती है. इसके शरीर पर कोई धब्बा या पैटर्न नहीं होता है. इसकी आंखों का रिम भी पीला होता है. ईल में 194 कशेरुक होते हैं. इसके ऊपरी पंख पर एक काला किनारा होता है. यह प्रजाति आमतौर से समुद्र में 35 मीटर की गहराई में पाई गई थी.

पढ़ें: महबूबा मुफ्ती को फ्लैट खाली करने का आदेश, पूर्व सीएम ने केंद्र सरकार पर बोला हमला

तटीय क्षेत्रों में खपत: ईल ज्यादातर नदियों और समुद्र के तल में पाए जाते हैं. विश्व स्तर पर, ईल की लगभग 1,000 प्रजातियों की पहचान की गई है और भारत में इनकी संख्या लगभग 125 है. हालांकि जापान जैसे कई देश इसे स्वादिष्ट मानते हैं, भारत में ईल की खपत तटीय क्षेत्रों तक सीमित है. चूंकि मीठे पानी और समुद्री सहित मछली पकड़ने के संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि नई खोजी गई प्रजातियां भविष्य में खाद्य सुरक्षा में योगदान दे सकती हैं.

कलबुर्गी (कर्नाटक) : कलबुर्गी जिले के चिंचोली तालुक के नागरा जलाशय में विशालकाय दुर्लभ मछली मिली है. इसे 'ईल फिश' माना जा रहा है. आमतौर से यह यूरोप और न्यूजीलैंड जैसे देशों में पाई जाती है. यहां मिली मछली की लंबाई करीब 6 फीट और वजन 13 किलो है. मछली मछुआरे ईश्वर के जाल में फंसी थी. बताया जा रहा है कि ईश्वर ने बिना यह जाने कि यह एक दुर्लभ मछली है, इसे एक सामान्य मछली की तरह काटकर बेच दिया. मैदानी इलाकों में ऐसी मछली बहुत कम देखने को मिलती है. यह पहली बार है कि कर्नाटक में इस तरह की मछली दिखाई दी है.

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ईल सांप जैसी मछलियां हैं जिनके पंख और गलफड़े होते हैं. ईल का वैज्ञानिक नाम जिम्नोथोरैक्स इंडिकस है, यह आमतौर से लगभग एक फीट लंबा और खाने योग्य होता है. 2016 में बंगाल की खाड़ी के पास मछलियों का अध्ययन कर रहे वैज्ञानिकों ने प्रस्ताव दिया था कि इसका नाम इंडियन अनपैटर्नेड मोरे रखा जाना चाहिए. ईल मछली ताजा होने पर समान रूप से हल्के भूरे रंग की दिखाई देती है. इसके शरीर पर कोई धब्बा या पैटर्न नहीं होता है. इसकी आंखों का रिम भी पीला होता है. ईल में 194 कशेरुक होते हैं. इसके ऊपरी पंख पर एक काला किनारा होता है. यह प्रजाति आमतौर से समुद्र में 35 मीटर की गहराई में पाई गई थी.

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तटीय क्षेत्रों में खपत: ईल ज्यादातर नदियों और समुद्र के तल में पाए जाते हैं. विश्व स्तर पर, ईल की लगभग 1,000 प्रजातियों की पहचान की गई है और भारत में इनकी संख्या लगभग 125 है. हालांकि जापान जैसे कई देश इसे स्वादिष्ट मानते हैं, भारत में ईल की खपत तटीय क्षेत्रों तक सीमित है. चूंकि मीठे पानी और समुद्री सहित मछली पकड़ने के संसाधनों का अत्यधिक दोहन किया गया है, वैज्ञानिकों का मानना ​​है कि नई खोजी गई प्रजातियां भविष्य में खाद्य सुरक्षा में योगदान दे सकती हैं.

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