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भारत में भविष्य में महाचक्रवातों का ज्यादा विनाशकारी प्रभाव हो सकता है : अध्ययन - effect of super cyclone

उष्णकटिबंधीय तूफानों का सबसे तीव्र रूप, महाचक्रवात (सुपर साइक्लोन) भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में लोगों पर अधिक विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है. एक प्रतिरूपण अध्ययन में यह बात सामने आई है.

भारत में भविष्य में महाचक्रवातों का ज्यादा विनाशकारी प्रभाव हो सकता है : अध्ययन
भारत में भविष्य में महाचक्रवातों का ज्यादा विनाशकारी प्रभाव हो सकता है : अध्ययन
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Published : May 28, 2022, 8:41 AM IST

लंदन : उष्णकटिबंधीय तूफानों का सबसे तीव्र रूप, महाचक्रवात (सुपर साइक्लोन) भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में लोगों पर अधिक विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है. एक प्रतिरूपण अध्ययन में यह बात सामने आई है. ब्रिटेन में ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दक्षिण एशिया में दस्तक देने वाले, सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाले 2020 के महाचक्रवात अम्फान की पड़ताल की और ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि के कई परिदृश्यों के तहत इसके प्रभाव की भविष्यवाणी की. ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि यदि हरित गैस उत्सर्जन मौजूदा दर से जारी रहा, तो भारत की आबादी से ढाई गुना (250 प्रतिशत) से अधिक लोगों को 2020 की घटना की तुलना में एक मीटर से अधिक की बाढ़ का अनुभव करना पड़ेगा.

पढ़ें: 21 साल बाद भी ओडिशा साइक्लोन का खौफनाक मंजर याद कर कांप जाती है रूह

ब्रिस्टल विश्वविद्यालय में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर व अध्ययन के प्रमुख लेखक डैन मिशेल ने कहा कि दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, जहां महाचक्रवात ऐतिहासिक मामलों में लाखों लोगों की मौत का कारण बनते हैं. मिशेल ने एक बयान में कहा कि तुलनात्मक रूप से, दक्षिण एशिया में जलवायु प्रभाव अनुसंधान बहुत कम किया गया है. बावजूद इसके कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति ने इसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उजागर किया है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन पेरिस समझौते के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हरित गैस उत्सर्जन को कम करने के समर्थन में साक्ष्य का एक महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत करता है, जहां साक्ष्य की अन्य पंक्तियां अक्सर उच्च आय वाले देशों पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जहां प्रभाव कम होते हैं, और वे बदलाव अधिक आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं. उन्होंने इस सदी के बाकी हिस्सों में चक्रवातों से प्रभावित लोगों के पैमाने का अनुमान लगाने के लिए परिष्कृत जलवायु मॉडल अनुमानों का इस्तेमाल किया.

पढ़ें: AMPHAN: स्पाइसजेट के तीन विमान कोलकाता से वाराणसी किए गए शिफ्ट

बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (बीयूईटी) में हाइड्रोलॉजी के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सैफुल इस्लाम का कहना है कि हाल में जारी आईपीसीसी रिपोर्ट का भी मानना है कि बढ़ते तापमान के चलते तीव्र श्रेणी वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ जाएगी. इस्लाम ने कहा कि शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक यदि उत्सर्जन में इसी तरह तेजी से वृद्धि होती है तो उसके चलते शक्तिशाली चक्रवातों और भीषण बाढ़ के कारण भारत और बांग्लादेश में लोगों पर मंडराता खतरा 200 फीसदी तक बढ़ जाएगा.

लंदन : उष्णकटिबंधीय तूफानों का सबसे तीव्र रूप, महाचक्रवात (सुपर साइक्लोन) भविष्य में जलवायु परिवर्तन के कारण भारत में लोगों पर अधिक विनाशकारी प्रभाव डाल सकता है. एक प्रतिरूपण अध्ययन में यह बात सामने आई है. ब्रिटेन में ब्रिस्टल विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने दक्षिण एशिया में दस्तक देने वाले, सबसे ज्यादा तबाही मचाने वाले 2020 के महाचक्रवात अम्फान की पड़ताल की और ग्लोबल वार्मिंग के कारण समुद्र के स्तर में वृद्धि के कई परिदृश्यों के तहत इसके प्रभाव की भविष्यवाणी की. ‘क्लाइमेट रेजिलिएंस एंड सस्टेनेबिलिटी’ नामक पत्रिका में प्रकाशित अध्ययन से पता चला है कि यदि हरित गैस उत्सर्जन मौजूदा दर से जारी रहा, तो भारत की आबादी से ढाई गुना (250 प्रतिशत) से अधिक लोगों को 2020 की घटना की तुलना में एक मीटर से अधिक की बाढ़ का अनुभव करना पड़ेगा.

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ब्रिस्टल विश्वविद्यालय में जलवायु विज्ञान के प्रोफेसर व अध्ययन के प्रमुख लेखक डैन मिशेल ने कहा कि दक्षिण एशिया दुनिया के सबसे अधिक जलवायु-संवेदनशील क्षेत्रों में से एक है, जहां महाचक्रवात ऐतिहासिक मामलों में लाखों लोगों की मौत का कारण बनते हैं. मिशेल ने एक बयान में कहा कि तुलनात्मक रूप से, दक्षिण एशिया में जलवायु प्रभाव अनुसंधान बहुत कम किया गया है. बावजूद इसके कि जलवायु परिवर्तन पर अंतर सरकारी समिति ने इसे एक महत्वपूर्ण क्षेत्र के रूप में उजागर किया है.

शोधकर्ताओं ने कहा कि अध्ययन पेरिस समझौते के जलवायु लक्ष्यों को प्राप्त करने के लिए हरित गैस उत्सर्जन को कम करने के समर्थन में साक्ष्य का एक महत्वपूर्ण अंश प्रस्तुत करता है, जहां साक्ष्य की अन्य पंक्तियां अक्सर उच्च आय वाले देशों पर ध्यान केंद्रित करती हैं, जहां प्रभाव कम होते हैं, और वे बदलाव अधिक आसानी से प्राप्त किए जा सकते हैं. उन्होंने इस सदी के बाकी हिस्सों में चक्रवातों से प्रभावित लोगों के पैमाने का अनुमान लगाने के लिए परिष्कृत जलवायु मॉडल अनुमानों का इस्तेमाल किया.

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बांग्लादेश यूनिवर्सिटी ऑफ इंजीनियरिंग एंड टेक्नोलॉजी (बीयूईटी) में हाइड्रोलॉजी के प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता सैफुल इस्लाम का कहना है कि हाल में जारी आईपीसीसी रिपोर्ट का भी मानना है कि बढ़ते तापमान के चलते तीव्र श्रेणी वाले उष्णकटिबंधीय चक्रवातों की संख्या पहले के मुकाबले बढ़ जाएगी. इस्लाम ने कहा कि शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं उनके मुताबिक यदि उत्सर्जन में इसी तरह तेजी से वृद्धि होती है तो उसके चलते शक्तिशाली चक्रवातों और भीषण बाढ़ के कारण भारत और बांग्लादेश में लोगों पर मंडराता खतरा 200 फीसदी तक बढ़ जाएगा.

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