नई दिल्ली : जबरन धर्मांतरण पर रोक लगाने की मांग वाली याचिका में सुप्रीम कोर्ट (Supreme Court) में एक नया आवेदन दाखिल किया गया है. आवेदन हिंदू धार्मिक गुरु स्वामी जीतेंद्रानंद सरस्वती ने दिया है. दिए गए आवेदन में उनका तर्क है कि संविधान का अनुच्छेद 25 धर्म परिवर्तन का अधिकार देता है न कि धर्मांतरण का अधिकार और केंद्र की निष्क्रियता के कारण कई मस्जिदें और चर्च समाज के आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग को धर्मांतरित करके धर्म परिवर्तन का केंद्र बन गए हैं.
उनका तर्क है कि धर्म परिवर्तन के लिए मिशनरियों का मुख्य लक्ष्य महिलाएं और बच्चे हैं और बल प्रयोग करके देश के सामाजिक, आर्थिक और वंचित और दलित लोगों का सामूहिक धर्मांतरण किया जा रहा है. आवेदन में कहा गया है, 'लोगों को अपने धर्म में परिवर्तित करने के अपने उत्साह में मुसलमानों और ईसाइयों दोनों ने अरबों लोगों को मार डाला, लाखों महिलाओं से बलात्कार किया और लाखों मंदिरों और अन्य पूजा केंद्रों को नष्ट कर दिया.'
साथ ही आवेदन में यह भी कहा गया कि धर्म की रक्षा का अधिकार प्रत्येक व्यक्ति का मौलिक अधिकार है लेकिन सदियों से हिंदुओं पर एक प्रकार का जैविक और जातीय आक्रमण भारत की सांप्रदायिक सद्भाव और अखंडता को बिगाड़ने के इरादे से किया जा रहा है. इस तरह के धार्मिक रूपांतरण किए जा रहे हैं. लव जिहाद या दैवीय सुख या अप्रसन्नता के लालच में या दान, शिक्षा, नौकरी, धन, चिकित्सा सुविधाओं के नाम पर या बल या धोखाधड़ी से और उनके शिकार किसी भी जाति या समुदाय के हो सकते हैं. इस मामले में मूल याचिका भाजपा सदस्य और अधिवक्ता अश्विनी उपाध्याय ने दायर की है. इस मामले की सुनवाई सुप्रीम कोर्ट में हो चुकी है और कोर्ट ने जबरन धर्मांतरण को लेकर चिंता जताई है और केंद्र से जवाब मांगा है.
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