नई दिल्ली : न्याय तक स्वतंत्र पहुंच और निर्बाध अधिकार हमारी न्याय प्रणाली में अंतर्निहित हैं जहां कानून व्यवस्था है और इसे अवरुद्ध करने के किसी भी प्रयास को हल्के में नहीं लिया जा सकता. सुप्रीम कोर्ट ने गुरुवार को ऐसा कहा.
शीर्ष अदालत ने एक निजी कंपनी के निदेशक के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने समेत अन्य आदेशों को रद्द करते हुए यह टिप्पणी की. जमानती वारंट जारी करने का आदेश राष्ट्रीय उपभोक्ता विवाद निवारण आयोग (NCDRC) ने दिया था.
न्यायमूर्ति एम आर शाह और न्यायमूर्ति बी वी नागरत्ना की पीठ ने कहा कि जमानती वारंट 'अंतिम विकल्प' के तौर पर जारी किए जाते हैं और केवल उस मामले में जारी किए जाते हैं जहां देखा जाता है कि विरोधी पक्ष बिल्कुल भी सहयोग नहीं कर रहे हैं तथा जानबूझकर आयोग के समझ पेशी से बच रहे हैं या उनके अधिकृत प्रतिनिधि या वकील द्वारा भी उनकी ओर से पक्ष नहीं रखा जाता.
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शीर्ष अदालत ने एक मामले में एनसीडीआरसी के आदेश को चुनौती देने वाली याचिका पर फैसला सुनाया जिसमें शिकायती ने आरोप लगाया था कि दोनों विरोधी दलों के प्रतिनिधियों ने उस पर सुलह करने का दबाव बनाया जो उसके मुताबिक ना तो सौहार्दपूर्ण है और ना ही स्वैच्छिक.
एनसीडीआरसी ने कंपनी के निदेशक के खिलाफ जमानती वारंट जारी करने का निर्देश दिया था क्योंकि वह उसके समक्ष व्यक्तिगत रूप से या वीडियो कॉन्फ्रेंस से पेश नहीं हुआ था.
(पीटीआई-भाषा)