पुणे : महाराष्ट्र के पुणे शहर के बाहरी इलाके में स्थित लोनी कलभोर में एक सेप्टिक टैंक की सफाई (cleaning a septic tank in Loni Kalbhor) के दौरान दम घुटने से बुधवार को चार लोगों की मौत हो गई. पुलिस के एक अधिकारी ने बताया कि यह हादसा लोनी कलभोर के कदम वाक वस्ती इलाके की एक रिहायशी इमारत में पूर्वाह्न करीब साढ़े 11 बजे हुआ.
उन्होंने कहा, 'सेप्टिक टैंक की सफाई के लिए लाए गए चार लोगों की दम घुटने से मौत हो गई. जब पहले पीड़ित को टैंक से बाहर निकाला गया, तो वह बेहोश पाया गया था. उसे निकटवर्ती अस्पताल ले जाया गया, जहां चिकित्सकों ने उसे मृत घोषित कर दिया.' अधिकारी ने बताया कि अन्य तीन को इसके तत्काल बाद टैंक से बाहर निकाला गया, लेकिन उनकी पहले ही मौत हो चुकी थी.
पहले भी बेमौत मारे गए हैं लोग
गौरतलब है कि जनवरी, 2020 में भी महाराष्ट्र में सीवर सफाई के दौरान लोगों की मौत हुई थी. मुंबई के गोरेगांव में सीवर में सफाई के लिए उतरे दो कर्मचारियों की मौत हो गई थी. इससे पहले दिसंबर, 2019 में भी सीवर सफाई करने के दौरान पांच सफाईकर्मियों की मौत हुई थी. अगस्त, 2019 में राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली से सटे गाजियाबाद में दम घुटने के कारण पांच लोगों की मौत हुई थी. हादसा सीवर सफाई के दौरान हुआ था. यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने 10-10 लाख रुपये मुआवजे का एलान किया था.
जून, 2019 में पीएम मोदी के गृह राज्य गुजरात के वडोदरा में भी मैनुअल सीवर क्लीनिंग का मामला सामने आया था. एक होटल में सीवर साफ करने के दौरान दम घुटने से चार सफाईकर्मियों सहित सात लोगों की मौत हुई थी. इस संबंध में अधिकारियों ने बताया था कि वड़ोदरा शहर से करीब 30 किलोमीटर दूर डभोई तहसील में सीवर सफाई के दौरान कई लोगों की मौत हो गई.
सीवर सफाई के कारण मौतों की खबरें-
- जानलेवा सीवर : बिहार के पांच सफाईकर्मियों की गाजियाबाद में मौत, 10-10 लाख मुआवजा
- मुंबई में सीवर सफाई के दौरान दो और कर्मचारियों की मौत, पहले भी हो चुकी हैं मौतें
- वड़ोदरा में होटल में सीवर साफ करने के दौरान दम घुटने से सात लोगों की मौत
सीवर सफाई पर भारत के कानून और सामाजिक बदलाव के प्रयास
मलत्याग को हाथ से साफ करना का एक बहुत ही अपमानजनक काम है, जो किसी व्यक्ति से उसका इंसान होने का हक छीन लेता है. इस कार्य को करने में कुछ भी पुन्यमय नहीं है. भारतीय संविधान के वास्तुकार डॉ. बाबा साहेब अम्बेडकर ने चेतावनी दी थी. भंगी झाड़ू छोडो का नारा देते हुए उन्होंने मैला ढोने के कार्य का तुरंत बहिष्कार करने का आह्वान किया था. उन्होंने इस वीभत्स पेशे के महिमामंडित करने की धारणा का पुरजोर खंडन किया था. दशकों बीत जाने के बाद आज भी भारत में हाथ से मैला ढोने वालों को रोजगार पर रखा जा रहा है. हाथ से मैला ढोने के खिलाफ बने कानून भी इसे खत्म करने के लिए नाकाफी साबित हुए हैं. 2013 में, केंद्र ने हाथ से मैला सफाईकर्मी कार्य का प्रतिषेध एवं उनका पुनर्वास विधेयक के प्रारूपित किया लेकिन यह अभी भी इसे पूरी ताक़त से लागू होना बाकी है. वर्तमान में, सीवर और सेप्टिक टैंकों की खतरनाक सफाई के कार्य के लिए किसी व्यक्ति को नियुक्त करने वाला व्यक्ति या एजेंसी को 5 साल तक के कारावास या 5 लाख रुपये तक का जुर्माना या दोनों का प्रावधान है. केंद्र नए विधेयक में इसके लिए और कठोर दंड पर विचार कर रहा है. भारत सरकार ने 1993 में सफाई कर्मचारी नियोजन और शुष्क शौचालय सन्निर्माण (प्रतिषेध) अधिनियम के खिलाफ एक कानून बनाया. राज्यों की ज़िदगी रवैये के कारण किसी भी स्तर पर कानून को ठीक से लागू नहीं किया. बीस साल बाद, 2013 में, मानव मलमूत्र को साफ करने के लिए मनुष्यों के उपयोग पर प्रतिबंध लगाने और उनके पुनर्वास के लिए कानूनी गारंटी प्रदान करने के लिए एक और कानून पारित किया गया. लेकिन इसके बाद भी मैला ढोने वालों और सफाई कर्मचारियों के जीवन में कोई बदलाव नहीं हुआ है.
सीवर सफाई से एक साल में 22 मौतें : संसद में मोदी सरकार
2021 में दिसंबर महीने तक सीवर और सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान 22 लोगों की मौत होने की जानकारी केंद्र सरकार ने संसद में दी थी. लोकसभा में सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय ने सांसद भगीरथ चौधरी के एक प्रश्न का जवाब दिया था. सामाजिक न्याय और अधिकारिता राज्य मंत्री रामदास अठावले ने बताया था कि कर्नाटक और तमिलनाडु में पांच-पांच, दिल्ली में चार, गुजरात में तीन, हरियाणा और तेलंगाना में दो-दो और एक की मौत हुई है.
हाथ से मैला ढोना एक शर्मनाक प्रथा : राष्ट्रपति कोविंद
नवंबर, 2021 में स्वच्छ सर्वेक्षण पुरस्कार 2021 प्रदान करने के दौरान राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद ने कहा था कि देश को पूरी तरह से स्वच्छ और साफ-सुथरा बनाने के हमारे प्रयास हमारे स्वतंत्रता सेनानियों को सच्ची श्रद्धांजलि है. उन्होंने कहा कि सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए प्रतिबद्ध है कि असुरक्षित सफाई कार्यों के कारण किसी भी सफाई कर्मचारी का जीवन खतरे में न पड़े. उन्होंने आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय की 'सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज' पहल की सराहना कर कहा था, 246 शहरों में सीवर और सेप्टिक टैंक की यांत्रिक सफाई को बढ़ावा देने के उद्देश्य से सफाई मित्र सुरक्षा चैलेंज शुरू किया गया है. उन्होंने आवास एवं शहरी कार्य मंत्रालय को सभी शहरों में इस यांत्रिक सफाई सुविधा का विस्तार करने की सलाह दी. राष्ट्रपति ने कहा था कि हाथ से मैला ढोना एक शर्मनाक प्रथा (president kovind manual scavenging shameful practice) है. इस प्रथा का उन्मूलन न केवल सरकार की बल्कि समाज और नागरिकों की भी जिम्मेदारी है.
सीवर क्लीनिंग पर केंद्र सरकार के रवैये पर सवाल
सीवर सफाई को लेकर लचर रवैये के कारण केंद्र सरकार अक्सर आलोचकों के निशाने पर रही है. जून, 2021 में केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय (Union Ministry of Social Justice and Empowerment) के संसद में कहा था कि हाथ से मैला साफ-सफाई के कारण किसी व्यक्ति की मौत नहीं हुई (no deaths due to manual scavenging) है. इससे पहले अठावले ने संसद में ही मार्च महीने में कहा था, 'हाथ से मैला साफ करने के कारण किसी की मौत नहीं हुई. बहरहाल, शौचालय टैंक या सीवर की सफाई के दौरान लोगों की मौत की खबर है.'
मैनुअल स्कवैंजिंग और सीवर क्लिनिंग की अन्य खबरें-
- हाथ से मैला साफ करने के कारण कोई मौत नहीं, जवाब से मानवाधिकार कार्यकर्ता खफा
- केटीएस तुलसी ने हाथ से मैला ढोने और उससे होने वाली मौतों का मुद्दा राज्यसभा में उठाया
बता दें कि भारत में हाथ से साफ-सफाई को 'हाथ से मैला उठाने वाले कर्मियों के नियोजन का प्रतिषेध और उनका पुनर्वास अधिनियम, 2013' के तहत प्रतिबंधित किया गया है. दिसंबर, 2021 में छत्तीसगढ़ से राज्य सभा सांसद (Chhattisgarh Congress MP KTS Tulsi ) केटीएस तुलसी ने संसद सत्र के दौरान में हाथ से मैला ढोने (manual scavenging ) की वजह हो रही मौतों का मुद्दा उठाया था. केटीएस तुलसी ने हाथ से मैला ढोने की परंपरा खत्म करने की मांग (end manual scavenging demand) कर कहा, पूरे देश में 2016 से 2020 तक 472 लोगों की मौत हाथ से मैला ढोने के कारण हुई.
शीर्ष अदालत में सीवर क्लीनिंग के मामला
सितंबर, 2019 में सीवर क्लीनिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने सख्त टिप्पणी की थी. सुप्रीम कोर्ट में न्यायमूर्ति अरुण मिश्रा की अध्यक्षता वाली पीठ ने भारत में मैला ढोने और सीवेज की सफाई के दौरान मरने वाले लोगों पर गंभीर चिंता व्यक्त की थी. तीन जजों की पीठ में में जस्टिस एम आर शाह और जस्टिस बीआर गवई भी शामिल थे तल्ख टिप्पणी में सुप्रीम कोर्ट ने कहा था कि दुनिया में कहीं भी लोगों को 'मरने के लिए गैस चैंबर' में (gas chambers to die) नहीं भेजा जाता है. शीर्ष अदालत कहा था, आजादी के 70 साल से अधिक समय बीतने के बावजूद देश में जातिगत भेदभाव अभी भी कायम है. केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल के के वेणुगोपाल से सीवर क्लीनिंग पर सुप्रीम कोर्ट ने सवाल किया था, हाथ से मैला ढोने और सीवेज या मैनहोल की सफाई में लगे लोगों को मास्क और ऑक्सीजन सिलेंडर जैसे उचित सुरक्षात्मक गियर क्यों नहीं दिए जा रहे हैं. कोर्ट ने कहा था, हर महीने चार से पांच लोगों की मौत हो रही है. सरकार मास्क और ऑक्सीजन सिलिंडर क्यों नहीं मुहैया करा रही ?
सीवर, सेप्टिक टैंक की मैनुअल सफाई नहीं : पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट
अक्टूबर, 2019 में पंजाब और हरियाणा हाई कोर्ट ने पंजाब, हरियाणा और चंडीगढ़ को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया था कि कोई भी व्यक्ति मेनहोल सहित सेप्टिक टैंक, सीवर लाइनों को साफ करने के लिए नियोजित नहीं है. साथ ही कहा था कि सीवर लाइन, सेप्टिक टैंक और मैनहोल को नवीनतम तकनीकी उपकरणों का उपयोग करके मशीन से साफ किया जाएगा. कोर्ट ने कहा था कि नगर निकायों और ग्राम पंचायतों के सभी अधिकारी यह सुनिश्चित करेंगे कि किसी भी व्यक्ति द्वारा किसी भी सड़क या सार्वजनिक स्थान पर कोई कचरा, कचरा, गंदगी जमा न हो.
सेप्टिक टैंक में उतरने पर मौत के जिम्मेदार निकाय प्रमुख : मद्रास हाई कोर्ट
बता दें कि मद्रास हाई कोर्ट ने एक मामले में कहा था कि यदि सफाई के दौरान यदि किसी कर्मचारी सीवर में मौत होती है तो उसके लिए नगर निकाय के प्रमुखों को जिम्मेदार माना जाएगा और उनके खिलाफ केस दर्ज किया जाना चाहिए. मद्रास हाई कोर्ट ने सफाई कर्मचारी आंदोलन नाम के संगठन की ओर से दायर याचिका पर सुनवाई करते हुए यह बात कही थी. अदालत ने कहा था कि यदि कोई सफाई कर्मचारी सेप्टिक टैंक में सफाई के लिए उतरता है और उसकी मौत होती है तो नगर निकाय के प्रमुख को जिम्मेदार माना जाएगा और केस दर्ज किया जाएगा. देशभर में अकसर ऐसे मामले सामने आते हैं, जब सफाई कर्मचारी की सेप्टिक टैंक में दम घुटने के चलते मौत हो जाती है.
एक अन्य मामले में सितंबर, 2021 में सीवर क्लीनिंग के मामले में मद्रास उच्च न्यायालय ने निर्देश दिया था कि स्थानीय निकायों के सभी कार्यकारी प्रमुखों को यह वचन देना होगा कि भविष्य में पदभार संभालने के दौरान उनके दायरे में आने वाले क्षेत्रों में किसी भी तरह की मैला ढोने की अनुमति नहीं दी जाएगी. मुख्य न्यायाधीश संजीब बनर्जी और न्यायमूर्ति पीडी ऑडिकेसवालु (Chief Justice Sanjib Banerjee and Justice P D Audikesavalu) की पहली पीठ ने यह भी निर्देश दिया था कि जब हाईकोर्ट हाथ से मैला ढोने वालों की नियुक्ति के खिलाफ जनहित याचिका पर सुनवाई करे, तो सरकार को मैनुअल स्कैवेंजिंग पर महत्वपूर्ण मुद्दों के बारे में अपने दिशानिर्देश प्रस्तुत करने होंगे. मद्रास हाईकोर्ट ने कहा था, मैला ढोने की प्रथा बिल्कुल स्वीकार्य नहीं हो सकती.
सीवर सफाई पर बॉम्बे हाईकोर्ट
सितंबर, 2021 में ही सीवर क्लीनिंग पर बॉम्बे हाईकोर्ट ने कहा था, राज्य सरकार यह सुनिश्चित करने के लिए उत्तरदायी और जिम्मेदार है कि इस प्रथा को समाप्त किया जाए. सुप्रीम कोर्ट सहित कई अदालतों ने समय-समय पर माना है कि सेप्टिक टैंक की सफाई के खतरनाक काम को करने व हाथ से मैला ढोना समाज के निचले तबके के लोगों को रोजगार देने का एक अपमानजनक और शर्मनाक तरीका है.
यह भी पढ़ें- राज्य में हाथ से मैला ढोने की प्रथा को समाप्त करना महाराष्ट्र सरकार की जिम्मेदारी : बॉम्बे HC
सीवर क्लीनिंग पर बॉम्बे हाईकोर्ट में न्यायमूर्ति उज्ज्वल भुइयां और न्यायमूर्ति माधव जामदार की खंडपीठ तीन महिलाओं द्वारा दायर याचिका पर सुनवाई के दौरान मुंबई उपनगरीय कलेक्टर को प्रत्येक याचिकाकर्ता को मुआवजे के रूप में 10 लाख रुपये का भुगतान करने का निर्देश दिया. अदालत ने कहा था, याचिकाकर्ता के पतियों की मृत्यु के लिए जिम्मेदार व्यक्ति या संस्था से कलेक्टर द्वारा राशि की वसूली की जाएगी. महिलाओं के पति मैनुअल स्कैवेंजर्स के रूप में कार्यरत थे और दिसंबर 2019 में उपनगरीय गोवंडी में एक निजी सोसायटी में एक सेप्टिक टैंक की सफाई के दौरान उनकी मृत्यु हो गई. याचिकाकर्ताओं ने प्रावधानों के अनुसार सरकार से मुआवजे की मांग की थी.
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