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Pervez Musharraf Demise : मुशर्रफ के निधन पर भारत-पाक रिश्तों को लेकर पूर्व रॉ चीफ और एक्सपर्ट ने कही बड़ी बात

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Published : Feb 5, 2023, 5:42 PM IST

पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) का लंबी बीमारी के बाद निधन हो गया. उनके कार्यकाल के दौरान भारत-पाकिस्तान के रिश्ते कैसे रहे, और अब उनके निधन के बाद क्या असर पड़ेगा? इसे लेकर ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा ने रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत और जेएनयू के पूर्व रेक्टर अजय दुबे से बात की. जानिए खास बातचीत में दोनों ने क्या कहा (former RAW chief and expert reaction).

Pervez Musharraf
पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ

नई दिल्ली : पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत ने दुख व्यक्त किया. दुलत ने कहा कि 'मुशर्रफ अच्छे आदमी थे, जिन्होंने महसूस किया था कि भारत के साथ दोस्ती ही एकमात्र अच्छा विकल्प है. एएस दुलत एक स्पाईमास्टर और कश्मीर के विशेषज्ञ थे. वह 1999 से 2000 तक भारतीय खुफिया ब्यूरो (IB) के पूर्व विशेष निदेशक और अनुसंधान और विश्लेषण विंग (R&AW) के पूर्व प्रमुख रहे.

सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में जम्मू और कश्मीर के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया. जिस दौरान कारगिल युद्ध तब वह रॉ प्रमुख थे और बाद में कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत के मोर्चे का नेतृत्व करने वाले भारत के अग्रणी व्यक्ति थे. जानिए परवेज मुशर्रफ के निधन पर दुलत ने खास साक्षात्कार में क्या कहा.

सवाल : अब जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया है, तो आप भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य को कैसे देखते हैं? क्या यह शांति के संदर्भ में समाप्त हो गया है?

जवाब : परवेज मुशर्रफ पिछले 25-30 वर्षों में हमारे सबसे अच्छे 'दांव' थे और वह हमारे सबसे अच्छे व्यक्ति थे जो भारत-पाक के बीच तनाव को कम कर सकते थे. वह अत्यंत उदार थे और उन्होंने महसूस किया था कि भारत के साथ मित्रता ही एकमात्र अच्छा विकल्प है. वह कश्मीर मुद्दे को भी कुछ हद तक सुलझा सकते थे, अगर तब हालात ठीक होते. द्विपक्षीय संबंधों के मामले में दोनों पक्ष शांति की तलाश जारी रखेंगे.

सवाल : फिर आगरा समिट फेल क्यों हुआ? आपने कहा था कि वह हमारे सर्वश्रेष्ठ दांव थे लेकिन फिर शिखर सम्मेलन विफल क्यों हुआ? उस समिट से काफी उम्मीदें थीं?

जवाब : यह भारत-पाक त्रासदियों में से एक है और मुझे लगता है कि इसके लिए दोनों पक्षों को दोषी ठहराया गया था.

सवाल : मुशर्रफ ने कभी मुजाहिदों को हीरो कहा था और अब वही मुजाहिद पाकिस्तान के लिए गहरी चिंता का विषय बन गए हैं, आपकी टिप्पणी?

जवाब : मुशर्रफ जो सबसे महत्वपूर्ण बात कहते रहे वह यह थी कि कश्मीर के लिए जो कुछ भी कश्मीरियों को स्वीकार्य होगा वह पाकिस्तान को स्वीकार्य होगा और यह सबसे उचित बयान था.

सवाल : तो क्या आप मानते हैं कि मुशर्रफ आखिरी आदमी थे जो कश्मीर में शांति ला सकते थे?

जवाब : मुझे नहीं लगता कि वह आखिरी आदमी थे, लेकिन जब वह आसपास थे तो सबसे अच्छे आदमी थे. यह भविष्यवाणी करना मुश्किल होगा कि क्या वह आखिरी आदमी थे लेकिन मुझे आशा है कि वह दूसरे सबसे अच्छे आदमी थे.

सवाल : अब भारत में अटल जी नहीं रहे और मुशर्रफ भी चल बसे. इन दोनों नेताओं की अपने-अपने देशों में विरासत थी. क्या आप मानते हैं कि उनकी विरासत का अंत हो गया है?

जवाब : नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता.
सवाल : क्या आप मानते हैं कि मुशर्रफ के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे को कुछ हद तक सुलझाया जा सकता था?

जवाब : कश्मीर बहुत जटिल है और इसे सुलझाया नहीं जा सकता लेकिन हां, मुशर्रफ के कार्यकाल में यह मसला कुछ हद तक सुलझाया जा सकता था. चाहे वह अटल जी हों या फिर डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी (आगरा समिट और बाद की बातचीत डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में) अगर बेहतर सौदे होते तो अगले 10-15 सालों तक कश्मीर में शांति लाई जा सकती थी.

सवाल : क्या आप कभी परवेज मुशर्रफ से व्यक्तिगत रूप से मिले हैं?
जवाब : 'नहीं'. लेकिन मैं वास्तव में उन्हें देखना और मिलना चाहता था. मैं उनसे मिलना चाहता था जब वह दुबई में थे, लेकिन किसी तरह मैं असमर्थ था. दूसरे लोग उनसे मिले होंगे लेकिन मैं नहीं मिला.

'मुशर्रफ ने शांति की बात की, लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंपा' : जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर अजय दुबे से जब मुशर्रफ के निधन पर प्रतिक्रिया ली गई तो उनका मानना है कि मुशर्रफ ने शांति की बात की, लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंपा. प्रोफेसर अजय दुबे से विस्तार से सवाल जवाब.

सवाल : अब जब मुशर्रफ नहीं रहे, तो आप भारत-पाक संबंधों के भविष्य को कैसे देखते हैं?

जवाब : मुशर्रफ, भारत पाकिस्तान संबंधों में एक प्रासंगिक कारक नहीं रह गए थे. उनके निधन से पाकिस्तान के एक सैन्य तानाशाह का नैरेटिव खत्म हो गया, जो केवल शांति के लिए बोलता था लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंप रहा था - जैसा कि उनकी कारगिल घुसपैठ में सामने आया.

सवाल : जब कारगिल हुआ तब मुशर्रफ देश के प्रमुख थे, मुशर्रफ के कार्यकाल में नई दिल्ली के लेंस से भारत-पाक संबंधों में सबसे बड़ा संकट क्या था?
जवाब : मुशर्रफ पाकिस्तान की हजार कट नीति से भी आगे बढ़कर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर चुके थे. कारगिल घुसपैठ युद्ध की स्थिति से कम नहीं थी. दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध एक अत्यंत खतरनाक स्थिति थी और भारत को पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान द्वारा इसे जीतना था. साथ ही भारत के सामने पाकिस्तान के परमाणु युद्ध में उलझाने से निपटने के लिए कूटनीतिक साधनों का उपयोग करने की भी चुनौती थी.

सवाल : आप क्यों सोचते हैं कि आगरा शिखर सम्मेलन असफल रहा?
जवाब : आगरा शिखर वार्ता इसलिए विफल रही, क्योंकि पाकिस्तान की सेना भारत-पाकिस्तान संबंधों में K फैक्टर को समाप्त करने के लिए काफी दूर जा रही थी. यह पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को पाकिस्तानी राजनीति में सबसे विशेषाधिकार प्राप्त और अपरिहार्य प्रतिष्ठान होने के कारण से बाहर कर सकता था.

सवाल : मुशर्रफ ने एक बार कहा था कि ये मुजाहिदीन 'हमारे हीरो' हैं. अब जब पाकिस्तान खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान के अशांत क्षेत्रों और डुरंड रेखा के पास के इलाकों में टीटीपी और अन्य संगठनों से गहरी चुनौतियों के साथ अपने सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है, तो आप पाकिस्तान का भविष्य कैसे देखते हैं?

जवाब : मुजाहिदीन, हीरो या भाड़े के आतंकवादी, मोदी के अधीन भारत की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकते. वे कहां जाएं... उन्हें पाकिस्तान के भीतर जीवित रहना है और अपने कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त करनी है क्योंकि वे सुसज्जित, सशस्त्र और सिद्धांतबद्ध हैं. पाकिस्तान को अंदर ही भीतरी मार झेलनी होगी. इन आतंकवादियों और भाड़े के आतंकवादियों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के चारों ओर जो कुछ हो रहा है, वह अप्रत्याशित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान ने उन्हें पालने-पोषने में जो किया है वह उसका स्वाभाविक परिणाम है.

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पढ़ें- Pervez Musharraf : जब भारत ने मुशर्रफ के कुटिल इरादों पर लगाई थी लगाम

नई दिल्ली : पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ (Pervez Musharraf) की मौत पर प्रतिक्रिया देते हुए रॉ के पूर्व चीफ एएस दुलत ने दुख व्यक्त किया. दुलत ने कहा कि 'मुशर्रफ अच्छे आदमी थे, जिन्होंने महसूस किया था कि भारत के साथ दोस्ती ही एकमात्र अच्छा विकल्प है. एएस दुलत एक स्पाईमास्टर और कश्मीर के विशेषज्ञ थे. वह 1999 से 2000 तक भारतीय खुफिया ब्यूरो (IB) के पूर्व विशेष निदेशक और अनुसंधान और विश्लेषण विंग (R&AW) के पूर्व प्रमुख रहे.

सेवानिवृत्ति के बाद उन्हें प्रधानमंत्री कार्यालय में जम्मू और कश्मीर के सलाहकार के रूप में नियुक्त किया गया. जिस दौरान कारगिल युद्ध तब वह रॉ प्रमुख थे और बाद में कश्मीर में अलगाववादियों के साथ बातचीत के मोर्चे का नेतृत्व करने वाले भारत के अग्रणी व्यक्ति थे. जानिए परवेज मुशर्रफ के निधन पर दुलत ने खास साक्षात्कार में क्या कहा.

सवाल : अब जब पाकिस्तान के पूर्व राष्ट्रपति परवेज मुशर्रफ का निधन हो गया है, तो आप भारत-पाकिस्तान संबंधों के भविष्य को कैसे देखते हैं? क्या यह शांति के संदर्भ में समाप्त हो गया है?

जवाब : परवेज मुशर्रफ पिछले 25-30 वर्षों में हमारे सबसे अच्छे 'दांव' थे और वह हमारे सबसे अच्छे व्यक्ति थे जो भारत-पाक के बीच तनाव को कम कर सकते थे. वह अत्यंत उदार थे और उन्होंने महसूस किया था कि भारत के साथ मित्रता ही एकमात्र अच्छा विकल्प है. वह कश्मीर मुद्दे को भी कुछ हद तक सुलझा सकते थे, अगर तब हालात ठीक होते. द्विपक्षीय संबंधों के मामले में दोनों पक्ष शांति की तलाश जारी रखेंगे.

सवाल : फिर आगरा समिट फेल क्यों हुआ? आपने कहा था कि वह हमारे सर्वश्रेष्ठ दांव थे लेकिन फिर शिखर सम्मेलन विफल क्यों हुआ? उस समिट से काफी उम्मीदें थीं?

जवाब : यह भारत-पाक त्रासदियों में से एक है और मुझे लगता है कि इसके लिए दोनों पक्षों को दोषी ठहराया गया था.

सवाल : मुशर्रफ ने कभी मुजाहिदों को हीरो कहा था और अब वही मुजाहिद पाकिस्तान के लिए गहरी चिंता का विषय बन गए हैं, आपकी टिप्पणी?

जवाब : मुशर्रफ जो सबसे महत्वपूर्ण बात कहते रहे वह यह थी कि कश्मीर के लिए जो कुछ भी कश्मीरियों को स्वीकार्य होगा वह पाकिस्तान को स्वीकार्य होगा और यह सबसे उचित बयान था.

सवाल : तो क्या आप मानते हैं कि मुशर्रफ आखिरी आदमी थे जो कश्मीर में शांति ला सकते थे?

जवाब : मुझे नहीं लगता कि वह आखिरी आदमी थे, लेकिन जब वह आसपास थे तो सबसे अच्छे आदमी थे. यह भविष्यवाणी करना मुश्किल होगा कि क्या वह आखिरी आदमी थे लेकिन मुझे आशा है कि वह दूसरे सबसे अच्छे आदमी थे.

सवाल : अब भारत में अटल जी नहीं रहे और मुशर्रफ भी चल बसे. इन दोनों नेताओं की अपने-अपने देशों में विरासत थी. क्या आप मानते हैं कि उनकी विरासत का अंत हो गया है?

जवाब : नहीं, मुझे ऐसा नहीं लगता.
सवाल : क्या आप मानते हैं कि मुशर्रफ के कार्यकाल में कश्मीर मुद्दे को कुछ हद तक सुलझाया जा सकता था?

जवाब : कश्मीर बहुत जटिल है और इसे सुलझाया नहीं जा सकता लेकिन हां, मुशर्रफ के कार्यकाल में यह मसला कुछ हद तक सुलझाया जा सकता था. चाहे वह अटल जी हों या फिर डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में भी (आगरा समिट और बाद की बातचीत डॉ. मनमोहन सिंह के कार्यकाल में) अगर बेहतर सौदे होते तो अगले 10-15 सालों तक कश्मीर में शांति लाई जा सकती थी.

सवाल : क्या आप कभी परवेज मुशर्रफ से व्यक्तिगत रूप से मिले हैं?
जवाब : 'नहीं'. लेकिन मैं वास्तव में उन्हें देखना और मिलना चाहता था. मैं उनसे मिलना चाहता था जब वह दुबई में थे, लेकिन किसी तरह मैं असमर्थ था. दूसरे लोग उनसे मिले होंगे लेकिन मैं नहीं मिला.

'मुशर्रफ ने शांति की बात की, लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंपा' : जेएनयू में स्कूल ऑफ इंटरनेशनल स्टडीज में प्रोफेसर अजय दुबे से जब मुशर्रफ के निधन पर प्रतिक्रिया ली गई तो उनका मानना है कि मुशर्रफ ने शांति की बात की, लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंपा. प्रोफेसर अजय दुबे से विस्तार से सवाल जवाब.

सवाल : अब जब मुशर्रफ नहीं रहे, तो आप भारत-पाक संबंधों के भविष्य को कैसे देखते हैं?

जवाब : मुशर्रफ, भारत पाकिस्तान संबंधों में एक प्रासंगिक कारक नहीं रह गए थे. उनके निधन से पाकिस्तान के एक सैन्य तानाशाह का नैरेटिव खत्म हो गया, जो केवल शांति के लिए बोलता था लेकिन भारत की पीठ में छुरा घोंप रहा था - जैसा कि उनकी कारगिल घुसपैठ में सामने आया.

सवाल : जब कारगिल हुआ तब मुशर्रफ देश के प्रमुख थे, मुशर्रफ के कार्यकाल में नई दिल्ली के लेंस से भारत-पाक संबंधों में सबसे बड़ा संकट क्या था?
जवाब : मुशर्रफ पाकिस्तान की हजार कट नीति से भी आगे बढ़कर भारतीय क्षेत्र पर कब्जा कर चुके थे. कारगिल घुसपैठ युद्ध की स्थिति से कम नहीं थी. दो परमाणु शक्ति संपन्न देशों के बीच युद्ध एक अत्यंत खतरनाक स्थिति थी और भारत को पाकिस्तानी आक्रमणकारियों को बाहर निकालने के लिए सैन्य अभियान द्वारा इसे जीतना था. साथ ही भारत के सामने पाकिस्तान के परमाणु युद्ध में उलझाने से निपटने के लिए कूटनीतिक साधनों का उपयोग करने की भी चुनौती थी.

सवाल : आप क्यों सोचते हैं कि आगरा शिखर सम्मेलन असफल रहा?
जवाब : आगरा शिखर वार्ता इसलिए विफल रही, क्योंकि पाकिस्तान की सेना भारत-पाकिस्तान संबंधों में K फैक्टर को समाप्त करने के लिए काफी दूर जा रही थी. यह पाकिस्तानी सैन्य प्रतिष्ठान को पाकिस्तानी राजनीति में सबसे विशेषाधिकार प्राप्त और अपरिहार्य प्रतिष्ठान होने के कारण से बाहर कर सकता था.

सवाल : मुशर्रफ ने एक बार कहा था कि ये मुजाहिदीन 'हमारे हीरो' हैं. अब जब पाकिस्तान खैबर पख्तूनख्वा, बलूचिस्तान के अशांत क्षेत्रों और डुरंड रेखा के पास के इलाकों में टीटीपी और अन्य संगठनों से गहरी चुनौतियों के साथ अपने सबसे बड़े संकट का सामना कर रहा है, तो आप पाकिस्तान का भविष्य कैसे देखते हैं?

जवाब : मुजाहिदीन, हीरो या भाड़े के आतंकवादी, मोदी के अधीन भारत की ताकत का मुकाबला नहीं कर सकते. वे कहां जाएं... उन्हें पाकिस्तान के भीतर जीवित रहना है और अपने कार्य में उत्कृष्टता प्राप्त करनी है क्योंकि वे सुसज्जित, सशस्त्र और सिद्धांतबद्ध हैं. पाकिस्तान को अंदर ही भीतरी मार झेलनी होगी. इन आतंकवादियों और भाड़े के आतंकवादियों के परिणामस्वरूप पाकिस्तान के चारों ओर जो कुछ हो रहा है, वह अप्रत्याशित नहीं है, बल्कि पाकिस्तान ने उन्हें पालने-पोषने में जो किया है वह उसका स्वाभाविक परिणाम है.

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