सलेम : तमिलनाडु में 16वीं विधानसभा के लिए हुए चुनाव-2021 में द्रमुक (डीएमके) को पूरे एक दशक बाद सत्ता हाथ लगी है. द्रमुक ने एम के स्टालिन को अपना विधायक दल का नेता चुना और राज्यपाल बनवारी लाल पुरोहित ने उन्हें राज्य के 9वें मुख्यमंत्री की शपथ दिलाई. यह पहली बार है जब स्टालिन को बतौर मुख्यमंत्री सत्ता का स्वाद चखने को मिला है.
इधर, पिछले एक दशक से सत्ता पर काबिज रही अन्नाद्रमुक की साख और भविष्य पर संकट मंडरा रहा है. क्योंकि बीते एक दशक में अन्नाद्रमुक में पांच बार मुख्यमंत्री के चेहरे की अदला-बदला की गई. एडप्पादी के पलानीस्वामी (ईपीएस) पार्टी की ओर से मुख्यमंत्री थे, लेकिन विधानसभा चुनाव 2021 में डीएमके के स्टालिन ने उन्हें पटखनी दी.
अब दक्षिण की राजनीति में सवाल उठ रहे हैं कि क्या पलानीस्वामी को विपक्ष का नेता चुना जाएगा? क्या उन्हें डीएमके के समक्ष एक विरोधी की भूमिका दी जाएगी? राजनीति का लंबा अनुभव होने के बाद भी उनकी आगे की क्या रणनीति है? क्या वह अपने राजनीतिक अनुभव से पार्टी को भविष्य में कोई लाभ दे पाएंगे?
खैर, राज्य में सत्ता परिवर्तन हो चुका है और स्टालिन ने राज्य की कमान अपने हाथ में ले ली है. एम के स्टालिन दिवंगत दिग्गज राजनेता एम. करुणानिधि के बेटे हैं और लंबे समय से पार्टी में रहते हुए राजनीतिक दांव-पेंच सीख रहे थे.
चुनाव 2021 में अन्नाद्रमुक का हाल
बीती 6 अप्रैल को राज्य में हुए विधानसभा चुनाव के 2 मई को आए नतीजे से अन्नाद्रमुक का राज्य में जीत की हैट्रिक का सपना ध्वस्त हो गया. राज्य की 234 विधानसभा सीट पर हुए चुनाव में अन्नाद्रमुक को 75 सीटों पर जीत मिली. वहीं, पलानीस्वामी के नेतृत्व में अन्नाद्रमुक ने सलेम जिले की 11 सीटों में से 10 सीटों पर कब्जा किया. लेकिन वो उत्तरी सलेम से सीट से हार गई. 2016 के चुनाव में भी पार्टी को इस सीट से हार मिली थी.
धरातल पर काम करने की जरूरत
जब अन्नाद्रमुक के सलेम के उपनगरीय जिला इकाई किसान विंग के सचिव चेल्लादुरई से पूर्व मुख्यमंत्री पलानीस्वामी की भविष्य की राजनीतिक रणनीतियों के बारे में पूछा गया, तो उन्होंने जवाब दिया, वर्तमान स्थिति से साबित हो गया है कि सलेम की जनता अभी भी हमारे पक्ष में है. हमारी पार्टी जनता के इस समर्थन का धन्यवाद करती है. हालांकि, उत्तरी सलेम से मिली हार चिंता का विषय है. लेकिन, यह बात अचंभित करती है कि उत्तरी सलेम की जनता हमारे मुख्यमंत्री पलामीस्वामी की आभारी नहीं रही, जबकि उन्होंने कोरोना के कारण राज्य में लगे लंबे लॉकडाउन में भी सरकारी कर्मचारियों को उनका पूरा वेतन देने की बात कही थी, जबिक कुछ राज्य सरकारें कर्मचारियों के वेतन में कटौती कर रही थीं.
उन्होंने आगे कहा कि हमारी पार्टी को दक्षिण जिलों के लोगों के लिए धरातल पर काम करने की जरूरत है और साथ ही यहां पर घटक दलों को चुनने में भी सावधानी बरतनी होगी. उन्होंने आगे कहा कि यह पार्टी की हार नहीं है, क्योंकि मतदाताओं ने हमें पूरी तरह नकारा नहीं है.
इस बीच, पूर्व मंत्री आरबी उदयकुमार ने पूर्व मुख्यमंत्री पलामीस्वामी से मिलकर हार की समीक्षा कर मीडिया से भी बात की. उन्होंने मीडिया को बताया, पार्टी की हार के कई कारण रहे हैं, हम घटक दलों को दोष नहीं देना चाहते हैं, क्योंकि यहां जनता ने पार्टी को पूरी तरह से नहीं नकारा है. एएमएमके के साथ मिलकर चुनाव लड़ने का विचार पार्टी हाईकमान का था और हमने पार्टी हाईकमान के इस फैसले का पालन और सम्मान किया है.
वहीं, पूर्व मंत्री वालरमथी ने कहा कि राज्य में पार्टी को पूरी तरह से नकारा नहीं गया है, हमारे पक्ष में कई सीटें हैं. राज्य में मिली 75 सीटों पर जीत का श्रेय पलानास्वामी को ही जाता है. क्योंकि उनकी कड़ी मेहनत के बदौलत ही पार्टी इतनी सीटों पर जीत हासिल कर चुकी है. इसलिए वो ही विपक्ष की भूमिका अदा करेंगे, पार्टी की विधायक दल की बैठक में इस बात से भी जल्द पर्दा उठ जाएगा. राजनीति में हार-जीत का सिलसिला पुराना है.
पलानीस्वामी ने बदला था पावर-सेंटर
बता दें, राज्य के अधिकतर राजनेताओं के राजधानी में आवास चर्चा में रहे हैं, लेकिन, पलानीस्वामी एक किसान परिवार से हैं और जमीन से जुड़े व्यक्ति हैं. इसलिए उन्होंने चेन्नई की वजह सलेम को अपना कार्यस्थल चुना और महीने में तीन बार ही वह शहर का दौरा करते थे. पलानीस्वामी अकेले ऐसे मुख्यमंत्री थे जो चेन्नई से बाहर जाकर राज्य की कमान संभाल रहे थे, लेकिन अब हाईवे नगर पर उनका आवास भी पावर सेंटर नहीं रहा है, क्योंकि पार्टी कैडर के लिए यह असहज था. हो सकता है पार्टी हाईकमान इस पर जल्द कुछ करती नजर आएगी.