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पूर्व CJI ललित ने कार्यकर्ता साईबाबा के मामले को छुट्टी के दिन सूचीबद्ध करने पर सफाई दी

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध मामले में बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर शीर्ष अदालत की एक विशेष पीठ ने शनिवार (15 अक्टूबर) को सुनवाई की थी और उनकी रिहाई पर रोक लगा दी थी. कुछ वर्गों ने अवकाश के दिन मामले को सूचीबद्ध करने में कथित जल्दबाजी और पीठ के गठन पर सवाल उठाए हैं.

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Published : Nov 14, 2022, 10:44 AM IST

नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (पूर्व सीजेआई) उदय उमेश ललित ने शीर्ष अदालत के अवकाश के दिन कार्यकर्ता जी एन साईबाबा के मामले की विशेष सुनवाई को लेकर उठे सवालों का रविवार को जवाब देते हुए कहा कि सीजेआई की भूमिका अवसर की मांग पर पीठ गठित करने की होती है और ऐसे मामलों की सुनवाई तथा उसके परिणाम पर उनका "कोई नियंत्रण नहीं" होता.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध मामले में बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर शीर्ष अदालत की एक विशेष पीठ ने शनिवार (15 अक्टूबर) को सुनवाई की थी और उनकी रिहाई पर रोक लगा दी थी. कुछ वर्गों ने अवकाश के दिन मामले को सूचीबद्ध करने में कथित जल्दबाजी और पीठ के गठन पर सवाल उठाए हैं.

विशेष पीठ की स्थापना के लिए घटनाओं का क्रमवार ब्योरा देते हुए न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि त्वरित सुनवाई के लिए इस मामले का उल्लेख 14 अक्टूबर को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष किया गया था, जो अब भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सेवानिवृत्त हो रहे न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता के साथ औपचारिक पीठ में बैठे थे.

उन्होंने कहा कि इस संबंध में रजिस्ट्री अधिकारी से मिली सूचना पर कार्रवाई करते हुए अगले दिन विशेष पीठ में बैठने के लिए कई न्यायाधीशों से सलाह ली गई. पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायमूर्ति शाह और न्यायमूर्ति त्रिवेदी इसका हिस्सा बनने के लिए सहमत हुए. न्यायमूर्ति ललित ने साक्षात्कार में कहा कि किसी पीठ के सामने जो कुछ भी होता है, उस पर सीजेआई का कोई नियंत्रण नहीं होता है और वह इसमें पक्षकार नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा, "सीजेआई के रूप में मेरी भूमिका अवसर की मांग के अनुरूप (विशेष) पीठ उपलब्ध कराने की थी."

पूर्व सीजेआई ने कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज, न्यायपालिका में महिलाओं की कम संख्या, मामलों के लंबित रहने और विशेष रूप से संविधान पीठों के समक्ष मामलों की सूची सहित कई मुद्दों पर बात की. उच्च न्यायपालिका में 'न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति' अर्थात कॉलेजियम प्रणाली को लेकर हो रही आलोचना पर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा, "कॉलेजियम प्रणाली जारी रहने वाली है और यह एक स्थापित मानदंड है, जहां न्यायाधीश ही न्यायाधीशों का चयन करते हैं."

पूर्व सीजेआई ने कहा कि प्रणाली के मूल सिद्धांतों को ठीक किया जा सकता है. उन्होंने शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों के कम कार्यकाल पर एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि एक विशाल प्रतिभा वाले देश में यह बेहतर है कि न्यायाधीश सेवानिवृत्त हों और नए न्यायाधीश नियमित रूप से आते रहें. यह पूछे जाने पर कि वह सेवानिवृत्ति के बाद वह क्या करना चाहेंगे, न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि उन्हें भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का बहुत शौक है और वह बांग्ला सीखना चाहते हैं, जो बहुत "मीठी भाषा" है और ‘रोशोगुल्ला’ की तरह प्यारी भी." उन्होंने कहा, "मैंने संस्कृत के लिए ऑनलाइन कक्षाएं भी शुरू कर दी हैं और संस्कृत साहित्य को पढ़ने की कोशिश करूंगा." पूर्व सीजेआई ने कहा कि फिलहाल वह मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती जानते और बोलते हैं तथा पंजाबी भाषा समझ सकते हैं, लेकिन पढ़ नहीं सकते.

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : भारत के पूर्व प्रधान न्यायाधीश (पूर्व सीजेआई) उदय उमेश ललित ने शीर्ष अदालत के अवकाश के दिन कार्यकर्ता जी एन साईबाबा के मामले की विशेष सुनवाई को लेकर उठे सवालों का रविवार को जवाब देते हुए कहा कि सीजेआई की भूमिका अवसर की मांग पर पीठ गठित करने की होती है और ऐसे मामलों की सुनवाई तथा उसके परिणाम पर उनका "कोई नियंत्रण नहीं" होता.

दिल्ली विश्वविद्यालय के पूर्व प्रोफेसर साईबाबा और अन्य को माओवादियों से संबंध मामले में बरी करने के खिलाफ महाराष्ट्र सरकार की अपील पर शीर्ष अदालत की एक विशेष पीठ ने शनिवार (15 अक्टूबर) को सुनवाई की थी और उनकी रिहाई पर रोक लगा दी थी. कुछ वर्गों ने अवकाश के दिन मामले को सूचीबद्ध करने में कथित जल्दबाजी और पीठ के गठन पर सवाल उठाए हैं.

विशेष पीठ की स्थापना के लिए घटनाओं का क्रमवार ब्योरा देते हुए न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि त्वरित सुनवाई के लिए इस मामले का उल्लेख 14 अक्टूबर को न्यायमूर्ति डी वाई चंद्रचूड़ के नेतृत्व वाली पीठ के समक्ष किया गया था, जो अब भारत के प्रधान न्यायाधीश (सीजेआई) हैं. न्यायमूर्ति चंद्रचूड़ सेवानिवृत्त हो रहे न्यायमूर्ति हेमंत गुप्ता के साथ औपचारिक पीठ में बैठे थे.

उन्होंने कहा कि इस संबंध में रजिस्ट्री अधिकारी से मिली सूचना पर कार्रवाई करते हुए अगले दिन विशेष पीठ में बैठने के लिए कई न्यायाधीशों से सलाह ली गई. पूर्व सीजेआई ने कहा कि न्यायमूर्ति शाह और न्यायमूर्ति त्रिवेदी इसका हिस्सा बनने के लिए सहमत हुए. न्यायमूर्ति ललित ने साक्षात्कार में कहा कि किसी पीठ के सामने जो कुछ भी होता है, उस पर सीजेआई का कोई नियंत्रण नहीं होता है और वह इसमें पक्षकार नहीं हो सकते हैं. उन्होंने कहा, "सीजेआई के रूप में मेरी भूमिका अवसर की मांग के अनुरूप (विशेष) पीठ उपलब्ध कराने की थी."

पूर्व सीजेआई ने कॉलेजियम प्रणाली के कामकाज, न्यायपालिका में महिलाओं की कम संख्या, मामलों के लंबित रहने और विशेष रूप से संविधान पीठों के समक्ष मामलों की सूची सहित कई मुद्दों पर बात की. उच्च न्यायपालिका में 'न्यायाधीशों द्वारा न्यायाधीशों की नियुक्ति' अर्थात कॉलेजियम प्रणाली को लेकर हो रही आलोचना पर उन्होंने कहा कि इसमें कुछ भी गलत नहीं है. उन्होंने कहा, "कॉलेजियम प्रणाली जारी रहने वाली है और यह एक स्थापित मानदंड है, जहां न्यायाधीश ही न्यायाधीशों का चयन करते हैं."

पूर्व सीजेआई ने कहा कि प्रणाली के मूल सिद्धांतों को ठीक किया जा सकता है. उन्होंने शीर्ष अदालत में न्यायाधीशों के कम कार्यकाल पर एक प्रश्न के उत्तर में कहा कि एक विशाल प्रतिभा वाले देश में यह बेहतर है कि न्यायाधीश सेवानिवृत्त हों और नए न्यायाधीश नियमित रूप से आते रहें. यह पूछे जाने पर कि वह सेवानिवृत्ति के बाद वह क्या करना चाहेंगे, न्यायमूर्ति ललित ने कहा कि उन्हें भारत में बोली जाने वाली भाषाओं का बहुत शौक है और वह बांग्ला सीखना चाहते हैं, जो बहुत "मीठी भाषा" है और ‘रोशोगुल्ला’ की तरह प्यारी भी." उन्होंने कहा, "मैंने संस्कृत के लिए ऑनलाइन कक्षाएं भी शुरू कर दी हैं और संस्कृत साहित्य को पढ़ने की कोशिश करूंगा." पूर्व सीजेआई ने कहा कि फिलहाल वह मराठी, हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती जानते और बोलते हैं तथा पंजाबी भाषा समझ सकते हैं, लेकिन पढ़ नहीं सकते.

(पीटीआई-भाषा)

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