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बंगाल के मुख्य सचिव को वापस बुलाने पर जानिए क्या बोले पूर्व नौकरशाह - slams

पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय को केंद्र के वापस बुलाने पर ज्यादातर नौकरशाहों और नेताओं ने प्रतिक्रिया दी है. इसे अभूतपूर्व. अलोकतांत्रिक. राजनीतिक प्रतिशोध के साथ किया गया काम बताया.

अल्पन बंदोपाध्याय
अल्पन बंदोपाध्याय
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Published : May 29, 2021, 9:06 PM IST

कोलकाता : केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय को वापस बुला लिया है. केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने राज्य सरकार को कहा कि जल्द से जल्द उन्हें रिलीव किया जाए. 31 मई तक बंदोपाध्याय को रिपोर्ट करने को कहा गया है.

केंद्र द्वारा ममता बनर्जी-सरकार की अपील पर राज्य के शीर्ष नौकरशाह को तीन महीने के विस्तार की अनुमति देने के तीन दिन बाद यह आदेश आया. इस पूरे मामले पर नौकरशाहों और नेताओं ने प्रतिक्रिया का कहना है कि ये अभूतपूर्व. अलोकतांत्रिक. राजनीतिक प्रतिशोध के साथ किया गया कार्य है.

फैसले को कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए : पूर्व नौकरशाह

पूर्व नौकरशाह अर्धेंदु सेन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव रह चुके हैं. उन्होंने 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के कार्यकाल के दौरान सफलतापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन किया था. 1976 बैच के आईएएस अधिकारी ने 'ईटीवी भारत' से कहा कि 'राज्य सरकार को अल्पन बंदोपाध्याय-मुद्दे पर अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि 'यह निर्णय अभूतपूर्व है ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. यह कानून की अदालत में स्टैंड नहीं कर पाएंगे.कानून के मूल सिद्धांत कहते हैं सभी निर्णय और आदेश तार्किक और कारणों से समर्थित होने चाहिए. तर्क द्वारा जो समझाया नहीं जा सकता वह कानून द्वारा समर्थित नहीं है. इसलिए यह अवैध हो जाता है. कानूनी भाषा में हम अक्सर इसे 'सत्ता का रंगीन आधिक्य' कहते हैं. मुझे लगता है कि इस फैसले (मुख्य सचिव के रिकॉल) को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

बंगाल से बदला लेने के लिए किया : जवाहर

एक अन्य वरिष्ठ नौकरशाह और प्रसार भारती के पूर्व प्रमुख जवाहर सिरकार भी केंद्र के फैसले को लेकर समान रूप से आलोचनात्मक रहे हैं. सिरकार ने एक ट्वीट में कहा, पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंद्योपाध्याय के सेवानिवृत्त होने के लिए बस 1 कार्य दिवस शेष है - उन्होंने उन्हें दिल्ली स्थानांतरित कर दिया है! सीएम को 3 महीने और चाहिए थे. यह चक्रवात राहत, कोविड नियंत्रण और भाजपा के खिलाफ 48% बंगाल वोट का बदला लेने के लिए जानबूझकर किया गया है.'

पूर्व नौकरशाह ने यह भी कहा, अगर केंद्र नौकरशाह के खिलाफ गैर-अनुपालन या अन्यथा के लिए कोई विभागीय कार्रवाई शुरू करना चाहता है, तो यह कोई आधार नहीं होगा.

जवाहर ने कहा कि 'अगर किसी कैडर अधिकारी को वापस बुलाना या प्रतिनियुक्ति पर लेना है, तो एक प्रक्रिया है. संबंधित राज्य के साथ-साथ संबंधित नौकरशाह को भी विश्वास में लेना होगा और कुछ मंजूरी लेनी होगी. यहां का नौकरशाह राज्य में कैडर का सबसे वरिष्ठ अधिकारी होता है. हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में बीजेपी बुरी तरह हार गई थी. वे पैसे या बाहुबल से नहीं जीत सकते थे. अब वे सरकार के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमले कर रहे हैं. यह प्रतिशोध का एक स्पष्ट मामला है.'

ये प्रतिशोध के अलावा कुछ नहीं : मित्रा

राज्य के एक अन्य नौकरशाह, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव और आईएएस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुनील मित्रा ने कहा, अगर केंद्र किसी कैडर अधिकारी को वापस बुलाता है, तो संबंधित राज्य सरकार को यह तय करने का पूरा अधिकार है कि वे अधिकारी को रिलीव करना चाहते हैं या नहीं. नौकरशाहों का सेवा करते समय राजनीति पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के साथ यह निर्णय राजनीतिक प्रतिशोध के अलावा और कुछ नहीं है'

नियम क्या कहता है?

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग नियम, 1954 की धारा 6(1) में कहा गया है कि केंद्र किसी भी सेवारत नौकरशाह को वापस बुला सकता है. पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय की सेवाओं का विस्तार करके, नियम उन पर भी लागू होता है. हालांकि अल्पन अपनी विस्तारित सेवाओं के दौरान कैडर अधिकारी नहीं होंगे, फिर भी वह नियमों द्वारा शासित होंगे.

वहीं 1954 का नियम कहता है कि किसी भी अधिकारी को वापस बुलाने से पहले राज्य सरकार से सलाह मशविरा किया जाएगा. नियम में उल्लेख है कि वापस बुलाए जाने से पहले संबंधित अधिकारी से भी चर्चा की जाएगी. हालांकि, नियम में एक प्रावधान है, जिसमें कहा गया है कि अगर संबंधित राज्य सरकार अधिकारी को वापस बुलाने के संबंध में आपत्ति जताती है, तो केंद्र एक मनमाना फैसला ले सकता है और राज्य सरकार को इसका पालन करना होगा.

राजनेताओं ने भी खड़े किए सवाल

वहीं, राजनीतिक नेता केंद्र के फैसले की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. बिकाश रंजन भट्टाचार्य और अरुणांगशु चक्रवर्ती जैसे वरिष्ठ वकीलों ने राय दी है कि इस फैसले को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के साथ-साथ अदालत में भी चुनौती दी जानी चाहिए. एक अन्य वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अरुणव घोष ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि अल्पन निश्चित रूप से उनके विस्तार को अस्वीकार कर सकते हैं.

पढ़ें- केंद्र ने प.बंगाल के मुख्य सचिव को वापस दिल्ली बुलाया

घोष ने कहा कि 'केंद्र सरकार के नीचे गिरने की कोई सीमा नहीं है. यदि मुख्य सचिव विस्तार को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लेते हैं, तो केंद्र उनके करियर को खराब करने के लिए अपनी झोली में से कुछ निकाल सकता है. यह सब तब होता है जब आधी-अधूरी और कम पढ़ी-लिखी भीड़ देश को चलाने की कोशिश करती है. यही कारण है कि यह मोदी-सरकार भारत की साक्षर आबादी के बीच तेजी से अपना आधार खो रही है.'

अधीर रंजन ने साधा निशाना

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, 'ये सभी के लिए चुनौतीपूर्ण समय है. देश भर में महामारी फैल रही है और मुख्य सचिव बैकअप के रूप में अपने विशाल अनुभव के साथ इस नाजुक स्थिति को संभाल रहे हैं. यह सब राजनीतिक बदले की भावना से हो रहा है और मुख्य सचिव को वापस बुलाने का ऐसा फैसला सभी को हैरान कर देता है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र से वर्तमान कोविड स्थिति के दौरान बंदोपाध्याय को वापस बुलाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है.

कोलकाता : केंद्र सरकार ने पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय को वापस बुला लिया है. केंद्रीय कार्मिक एवं प्रशिक्षण विभाग ने राज्य सरकार को कहा कि जल्द से जल्द उन्हें रिलीव किया जाए. 31 मई तक बंदोपाध्याय को रिपोर्ट करने को कहा गया है.

केंद्र द्वारा ममता बनर्जी-सरकार की अपील पर राज्य के शीर्ष नौकरशाह को तीन महीने के विस्तार की अनुमति देने के तीन दिन बाद यह आदेश आया. इस पूरे मामले पर नौकरशाहों और नेताओं ने प्रतिक्रिया का कहना है कि ये अभूतपूर्व. अलोकतांत्रिक. राजनीतिक प्रतिशोध के साथ किया गया कार्य है.

फैसले को कोर्ट में चुनौती देनी चाहिए : पूर्व नौकरशाह

पूर्व नौकरशाह अर्धेंदु सेन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव रह चुके हैं. उन्होंने 2010 में तत्कालीन मुख्यमंत्री बुद्धदेव भट्टाचार्य के कार्यकाल के दौरान सफलतापूर्वक अपने कर्तव्यों का पालन किया था. 1976 बैच के आईएएस अधिकारी ने 'ईटीवी भारत' से कहा कि 'राज्य सरकार को अल्पन बंदोपाध्याय-मुद्दे पर अदालत का दरवाजा खटखटाना चाहिए.'

उन्होंने कहा कि 'यह निर्णय अभूतपूर्व है ऐसा नहीं किया जाना चाहिए था. यह कानून की अदालत में स्टैंड नहीं कर पाएंगे.कानून के मूल सिद्धांत कहते हैं सभी निर्णय और आदेश तार्किक और कारणों से समर्थित होने चाहिए. तर्क द्वारा जो समझाया नहीं जा सकता वह कानून द्वारा समर्थित नहीं है. इसलिए यह अवैध हो जाता है. कानूनी भाषा में हम अक्सर इसे 'सत्ता का रंगीन आधिक्य' कहते हैं. मुझे लगता है कि इस फैसले (मुख्य सचिव के रिकॉल) को कोर्ट में चुनौती दी जाएगी.

बंगाल से बदला लेने के लिए किया : जवाहर

एक अन्य वरिष्ठ नौकरशाह और प्रसार भारती के पूर्व प्रमुख जवाहर सिरकार भी केंद्र के फैसले को लेकर समान रूप से आलोचनात्मक रहे हैं. सिरकार ने एक ट्वीट में कहा, पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंद्योपाध्याय के सेवानिवृत्त होने के लिए बस 1 कार्य दिवस शेष है - उन्होंने उन्हें दिल्ली स्थानांतरित कर दिया है! सीएम को 3 महीने और चाहिए थे. यह चक्रवात राहत, कोविड नियंत्रण और भाजपा के खिलाफ 48% बंगाल वोट का बदला लेने के लिए जानबूझकर किया गया है.'

पूर्व नौकरशाह ने यह भी कहा, अगर केंद्र नौकरशाह के खिलाफ गैर-अनुपालन या अन्यथा के लिए कोई विभागीय कार्रवाई शुरू करना चाहता है, तो यह कोई आधार नहीं होगा.

जवाहर ने कहा कि 'अगर किसी कैडर अधिकारी को वापस बुलाना या प्रतिनियुक्ति पर लेना है, तो एक प्रक्रिया है. संबंधित राज्य के साथ-साथ संबंधित नौकरशाह को भी विश्वास में लेना होगा और कुछ मंजूरी लेनी होगी. यहां का नौकरशाह राज्य में कैडर का सबसे वरिष्ठ अधिकारी होता है. हाल ही में संपन्न हुए चुनावों में बीजेपी बुरी तरह हार गई थी. वे पैसे या बाहुबल से नहीं जीत सकते थे. अब वे सरकार के लोकतांत्रिक ढांचे पर हमले कर रहे हैं. यह प्रतिशोध का एक स्पष्ट मामला है.'

ये प्रतिशोध के अलावा कुछ नहीं : मित्रा

राज्य के एक अन्य नौकरशाह, पूर्व केंद्रीय वित्त सचिव और आईएएस एसोसिएशन के पूर्व अध्यक्ष सुनील मित्रा ने कहा, अगर केंद्र किसी कैडर अधिकारी को वापस बुलाता है, तो संबंधित राज्य सरकार को यह तय करने का पूरा अधिकार है कि वे अधिकारी को रिलीव करना चाहते हैं या नहीं. नौकरशाहों का सेवा करते समय राजनीति पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है, लेकिन पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव के साथ यह निर्णय राजनीतिक प्रतिशोध के अलावा और कुछ नहीं है'

नियम क्या कहता है?

दिलचस्प बात यह है कि भारतीय प्रशासनिक सेवा संवर्ग नियम, 1954 की धारा 6(1) में कहा गया है कि केंद्र किसी भी सेवारत नौकरशाह को वापस बुला सकता है. पश्चिम बंगाल के मुख्य सचिव अल्पन बंदोपाध्याय की सेवाओं का विस्तार करके, नियम उन पर भी लागू होता है. हालांकि अल्पन अपनी विस्तारित सेवाओं के दौरान कैडर अधिकारी नहीं होंगे, फिर भी वह नियमों द्वारा शासित होंगे.

वहीं 1954 का नियम कहता है कि किसी भी अधिकारी को वापस बुलाने से पहले राज्य सरकार से सलाह मशविरा किया जाएगा. नियम में उल्लेख है कि वापस बुलाए जाने से पहले संबंधित अधिकारी से भी चर्चा की जाएगी. हालांकि, नियम में एक प्रावधान है, जिसमें कहा गया है कि अगर संबंधित राज्य सरकार अधिकारी को वापस बुलाने के संबंध में आपत्ति जताती है, तो केंद्र एक मनमाना फैसला ले सकता है और राज्य सरकार को इसका पालन करना होगा.

राजनेताओं ने भी खड़े किए सवाल

वहीं, राजनीतिक नेता केंद्र के फैसले की कड़ी आलोचना कर रहे हैं. बिकाश रंजन भट्टाचार्य और अरुणांगशु चक्रवर्ती जैसे वरिष्ठ वकीलों ने राय दी है कि इस फैसले को केंद्रीय प्रशासनिक न्यायाधिकरण के साथ-साथ अदालत में भी चुनौती दी जानी चाहिए. एक अन्य वरिष्ठ वकील और कांग्रेस नेता अरुणव घोष ने 'ईटीवी भारत' को बताया कि अल्पन निश्चित रूप से उनके विस्तार को अस्वीकार कर सकते हैं.

पढ़ें- केंद्र ने प.बंगाल के मुख्य सचिव को वापस दिल्ली बुलाया

घोष ने कहा कि 'केंद्र सरकार के नीचे गिरने की कोई सीमा नहीं है. यदि मुख्य सचिव विस्तार को स्वीकार नहीं करने का निर्णय लेते हैं, तो केंद्र उनके करियर को खराब करने के लिए अपनी झोली में से कुछ निकाल सकता है. यह सब तब होता है जब आधी-अधूरी और कम पढ़ी-लिखी भीड़ देश को चलाने की कोशिश करती है. यही कारण है कि यह मोदी-सरकार भारत की साक्षर आबादी के बीच तेजी से अपना आधार खो रही है.'

अधीर रंजन ने साधा निशाना

लोकसभा में कांग्रेस के नेता अधीर रंजन चौधरी ने कहा, 'ये सभी के लिए चुनौतीपूर्ण समय है. देश भर में महामारी फैल रही है और मुख्य सचिव बैकअप के रूप में अपने विशाल अनुभव के साथ इस नाजुक स्थिति को संभाल रहे हैं. यह सब राजनीतिक बदले की भावना से हो रहा है और मुख्य सचिव को वापस बुलाने का ऐसा फैसला सभी को हैरान कर देता है. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने केंद्र से वर्तमान कोविड स्थिति के दौरान बंदोपाध्याय को वापस बुलाने के निर्णय पर पुनर्विचार करने का आग्रह किया है.

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