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उत्तराखंड : कहीं धधक रहे जंगल तो कहीं हो रही भारी बर्फबारी - forest fire and snowfall

उत्तराखंड में एक ओर धू-धू कर जंगल जल रहे हैं. दूसरी ओर भारी बर्फबारी हो रही है. ये नजारा कई सवालों को जन्म दे रहा है. जानिए क्या कहते हैं पर्यावरणविद और जानकार.

fire snow
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Published : Apr 8, 2021, 4:04 PM IST

देहरादून : उत्तराखंड के जंगल इन दिनों धू-धू कर जल रहे हैं. जंगलों में लगी इस आग से करोड़ों की बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. कई दुलर्भ पेड़-पौधे और जड़ी बूटियां इस आग की भेंट चढ़ गई हैं. लाख प्रयासों के बाद भी आग बुझ नहीं रही है. वहीं, बीते दिन हुई बारिश और बर्फबारी से आग की लपटें बुझी हैं. बल्कि, धधक रहे जंगलों के लिए संजीवनी साबित हुई है. लेकिन अप्रैल महीने में हुई बर्फबारी से हर कोई अचंभित है.

कहीं धधक रहे जंगल तो कहीं भारी बर्फबारी

पर्यावरणविदों और जानकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर कैसे एक ओर भारी बर्फबारी हो रही है तो वहीं, दूसरी ओर पहाड़ जल रहे हैं. ऐसे में एक ही पहाड़ पर आग और बर्फबारी का क्या कनेक्शन है?

उत्तराखंड के पहाड़ों में अजीब सी हलचल हो रही है. कहीं बर्फबारी तो कहीं आग ने तांडव मचाया हुआ है. बीते दिनों ही मौसम में बदलाव से जहां मैदानी क्षेत्रों में हवा के साथ ही हल्की बूंदाबांदी हुई तो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी शुरू हो गई. बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री में जहां बर्फबारी हुई तो वहीं, गढ़वाल और कुमाऊं के तमाम जंगलों आग लगी हुई है. जंगलों में धधक रही आग अब रिहायशी क्षेत्रों में भी पहुंच रही है. आग को लगे हुए एक हफ्ते से भी ज्यादा का समय हो गया है.

वहीं, पर्यावरण के जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों के मौसम में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आग लगने का मुख्य कारण चीड़ के जंगल हैं. चीड़ के लीसा और पिरूल में तेज आग लगती है, जिससे आग लगने की घटनाएं गर्मी में बढ़ जाती हैं. इतना ही नहीं अब आग ग्लेशियर के आसपास के जंगलों में भी देखने को मिल रही है. पर्यावरणविदों का कहना है कि जबतक धीरे-धीरे चीड़ को जंगलों से हटाया नहीं जाएगा, तबतक आग लगने की घटनाएं बढ़ती रहेंगी. अगर ग्लेशियर तक इस आग से नुकसान होगा तो हिमालय का ईको सिस्टम बदल जाएगा. जो आने वाले समय के लिए घातक होगा.

पढ़ें :- महामारियों और नगरों पर संयुक्त-राष्ट्र-पर्यावास की रिपोर्ट

हालांकि, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने इस बात से इनकार किया है कि जहां एक ओर जंगलों में आग लग रही है तो वहीं दूसरी ओर उच्च हिमालई क्षेत्रों पर बर्फबारी होने के बीच कोई कनेक्शन है. डायरेक्टर के अनुसार गर्मियों के सीजन में जंगलों में आग लगने के कई कारण होते हैं. जिसमें मुख्य वजह यह है कि ज्यादा गर्मी की वजह से जंगलों में पाए जाने वाले चीड़ के पत्तियों से आग लगती है तो वहीं, कुछ लोगों की गलतियों की वजह से भी जंगल में आग लगती है.

कालाचंद साईं बताते हैं कि मुख्य रूप से देखें तो ठंड के मौसम में हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी अमूमन होती है. जैसे-जैसे गर्मियों का सीजन शुरू होता है उसी अनुपात में हिमालयी क्षेत्रों पर बर्फबारी का दायरा घटता रहता है. यानी गर्मियों के मौसम में बर्फबारी का क्षेत्र ऊपर की ओर खिसक जाता है. साथ ही बताया कि जंगलों में आग लगने से न सिर्फ वन संपदा और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचता है, बल्कि वहां की मिट्टी पर भी इसका बड़ा असर पड़ता है. क्योंकि, जंगलों में आग लगने से वहां की मिट्टी फिसल जाती है, जिससे उस जगह पर पानी को अवशोषित करने की क्षमता घट जाती है.

देहरादून : उत्तराखंड के जंगल इन दिनों धू-धू कर जल रहे हैं. जंगलों में लगी इस आग से करोड़ों की बहुमूल्य वन संपदा जलकर राख हो चुकी है. कई दुलर्भ पेड़-पौधे और जड़ी बूटियां इस आग की भेंट चढ़ गई हैं. लाख प्रयासों के बाद भी आग बुझ नहीं रही है. वहीं, बीते दिन हुई बारिश और बर्फबारी से आग की लपटें बुझी हैं. बल्कि, धधक रहे जंगलों के लिए संजीवनी साबित हुई है. लेकिन अप्रैल महीने में हुई बर्फबारी से हर कोई अचंभित है.

कहीं धधक रहे जंगल तो कहीं भारी बर्फबारी

पर्यावरणविदों और जानकारों को भी सोचने पर मजबूर कर दिया कि आखिर कैसे एक ओर भारी बर्फबारी हो रही है तो वहीं, दूसरी ओर पहाड़ जल रहे हैं. ऐसे में एक ही पहाड़ पर आग और बर्फबारी का क्या कनेक्शन है?

उत्तराखंड के पहाड़ों में अजीब सी हलचल हो रही है. कहीं बर्फबारी तो कहीं आग ने तांडव मचाया हुआ है. बीते दिनों ही मौसम में बदलाव से जहां मैदानी क्षेत्रों में हवा के साथ ही हल्की बूंदाबांदी हुई तो उच्च हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी शुरू हो गई. बदरीनाथ, केदारनाथ और गंगोत्री में जहां बर्फबारी हुई तो वहीं, गढ़वाल और कुमाऊं के तमाम जंगलों आग लगी हुई है. जंगलों में धधक रही आग अब रिहायशी क्षेत्रों में भी पहुंच रही है. आग को लगे हुए एक हफ्ते से भी ज्यादा का समय हो गया है.

वहीं, पर्यावरण के जानकारों की मानें तो उनका कहना है कि हिमालयी क्षेत्रों के मौसम में लगातार परिवर्तन देखने को मिल रहा है. आग लगने का मुख्य कारण चीड़ के जंगल हैं. चीड़ के लीसा और पिरूल में तेज आग लगती है, जिससे आग लगने की घटनाएं गर्मी में बढ़ जाती हैं. इतना ही नहीं अब आग ग्लेशियर के आसपास के जंगलों में भी देखने को मिल रही है. पर्यावरणविदों का कहना है कि जबतक धीरे-धीरे चीड़ को जंगलों से हटाया नहीं जाएगा, तबतक आग लगने की घटनाएं बढ़ती रहेंगी. अगर ग्लेशियर तक इस आग से नुकसान होगा तो हिमालय का ईको सिस्टम बदल जाएगा. जो आने वाले समय के लिए घातक होगा.

पढ़ें :- महामारियों और नगरों पर संयुक्त-राष्ट्र-पर्यावास की रिपोर्ट

हालांकि, वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के डायरेक्टर कालाचंद साईं ने इस बात से इनकार किया है कि जहां एक ओर जंगलों में आग लग रही है तो वहीं दूसरी ओर उच्च हिमालई क्षेत्रों पर बर्फबारी होने के बीच कोई कनेक्शन है. डायरेक्टर के अनुसार गर्मियों के सीजन में जंगलों में आग लगने के कई कारण होते हैं. जिसमें मुख्य वजह यह है कि ज्यादा गर्मी की वजह से जंगलों में पाए जाने वाले चीड़ के पत्तियों से आग लगती है तो वहीं, कुछ लोगों की गलतियों की वजह से भी जंगल में आग लगती है.

कालाचंद साईं बताते हैं कि मुख्य रूप से देखें तो ठंड के मौसम में हिमालयी क्षेत्रों में बर्फबारी अमूमन होती है. जैसे-जैसे गर्मियों का सीजन शुरू होता है उसी अनुपात में हिमालयी क्षेत्रों पर बर्फबारी का दायरा घटता रहता है. यानी गर्मियों के मौसम में बर्फबारी का क्षेत्र ऊपर की ओर खिसक जाता है. साथ ही बताया कि जंगलों में आग लगने से न सिर्फ वन संपदा और जीव-जंतुओं को नुकसान पहुंचता है, बल्कि वहां की मिट्टी पर भी इसका बड़ा असर पड़ता है. क्योंकि, जंगलों में आग लगने से वहां की मिट्टी फिसल जाती है, जिससे उस जगह पर पानी को अवशोषित करने की क्षमता घट जाती है.

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