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पत्नी के साथ जबरन बनाया गया शारीरिक संबंध रेप नहीं : हाई कोर्ट

पति-पत्नी के बीच यौन संबंध को लेकर अगस्त महीने में तीन अदालतों ने अहम फैसले दिए हैं. छत्तीसगढ़ HC ने आदेश दिया कि कानूनी रूप से विवाहित पुरुष पर अगर 18 साल से ज्यादा उम्र की पत्नी धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के लिए आरोप लगाती है तो ये अपराध नहीं है. इससे पहले केरल और मुंबई की अदालत ने भी ऐसे फैसले दिए थे. पढ़ें पूरी खबर.

फैसला
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Published : Aug 26, 2021, 7:59 PM IST

Updated : Aug 27, 2021, 12:55 PM IST

हैदराबाद/बिलासपुर : पति-पत्नी के बीच यौन संबंध किस हद तक जायज हैं इसको लेकर इस महीने देश की तीन अदालतों के फैसले सामने आए हैं. छत्तीसगढ़ HC ने पति द्वारा पत्नी के साथ जबरिया बनाये गए संबंध को रेप की श्रेणी में नहीं माना है.

हाई कोर्ट ने साफ कहा कि धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ आरोपों को अपराध नहीं माना जाएगा यदि शिकायतकर्ता उसकी पत्नी है. अगर वह कानूनी रूप से विवाहित है और उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है तो ये अपराध नहीं है. वैवाहिक बलात्कार अन्य देशों में अपराध है लेकिन भारत में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

हाईकोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में पति को वैवाहिक बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया है. पीड़ित पति के अधिवक्ता के मुताबिक अब किसी भी पति के खिलाफ इस आदेश के बाद कहीं भी ऐसा अपराध पंजीबद्ध नहीं होगा. यह आदेश ऐतिहासिक के साथ ही न्यायदृष्टांत भी साबित होगा.

पत्नी की मर्जी बिना संबंध बनाना अब रेप की श्रेणी में नहीं

बेमेतरा जिले में पत्नी ने दर्ज कराया था मामला

दरअसल पूरा मामला बेमेतरा जिले का है, जहां एक पत्नी ने अपने पति द्वारा उसके साथ जबरन संबंध बनाने के खिलाफ थाने में बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया था. इसको लेकर निचली अदालत में चालान पेश हुआ. निचली अदालत ने पति को इस कृत्य के लिए आरोपी करार दिया था. इसके खिलाफ पीड़ित पति ने अपने अधिवक्ता वाईसी शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. अधिवक्ता ने सुप्रीमकोर्ट समेत कई जजमेंट का हवाला दिया था. मामले की सुनवाई जस्टिस एनके चंद्रवंशी की सिंगल बेंच में हुई.

जस्टिस चंद्रवंशी ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने सारे तर्क और जजमेंट को देखने के बाद एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता पीड़ित पति को वैवाहिक बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया है. साथ ही पत्नी द्वारा लगाए गए जबरिया संबंध के आरोप को रेप की श्रेणी में भी नहीं माना है.

इससे पहले मुंबई सत्र न्यायालय ने कहा था कि पति का पत्नी के साथ जबरदस्ती या उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. मुंबई की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजश्री घरात (Sanjashree Gharat ) ने कहा, एक महिला ने अपने पति पर उसकी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था. हालांकि महिला की शिकायत किसी कानूनी जांच में फिट नहीं बैठती.एक पति के रूप में यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने कुछ भी अवैध किया. महिला ने शिकायत में कहा था कि उसकी शादी पिछले साल 22 नवंबर को हुई थी. शादी के बाद उसके पति और उसके परिवार ने उस पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने शादी के एक महीने बाद उसकी मर्जी के खिलाफ उससे यौन संबंध बनाए.

केरल हाई कोर्ट ने ये कहा था

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि वैवाहिक बलात्कार, तलाक का दावा करने का एक अच्छा आधार हो सकता है लेकिन कानून के तहत अपराध नहीं है, यह क्रूरता की श्रेणी में आता है. हालांकि इस तरह के आचरण को दंडित नहीं किया जा सकता है.

पढ़ें- अपेक्षाओं और डर से डगमगाते शारीरिक रिश्ते

कोर्ट ने वैवाहिक संबंधों में शारीरिक स्वायत्तता के महत्व को भी समझाया था. कोर्ट ने कहा कि स्वायत्तता अनिवार्य रूप से उस भावना या स्थिति को संदर्भित करती है जिस पर कोई व्यक्ति उस पर नियंत्रण रखने का विश्वास करता है. विवाह में, पति या पत्नी के पास ऐसी निजता होती है, जो व्यक्तिगत रूप से उसके अंदर निहित अमूल्य अधिकार है इसलिए, वैवाहिक गोपनीयता अंतरंग रूप से और आंतरिक रूप से व्यक्तिगत स्वायत्तता से जुड़ी हुई है और इस तरह के स्थान में शारीरिक रूप से या अन्यथा किसी भी घुसपैठ से गोपनीयता कम हो जाएगी. अदालत ने कहा कि इस तरह का अनुचित हस्तक्षेप क्रूरता होगी.

हैदराबाद/बिलासपुर : पति-पत्नी के बीच यौन संबंध किस हद तक जायज हैं इसको लेकर इस महीने देश की तीन अदालतों के फैसले सामने आए हैं. छत्तीसगढ़ HC ने पति द्वारा पत्नी के साथ जबरिया बनाये गए संबंध को रेप की श्रेणी में नहीं माना है.

हाई कोर्ट ने साफ कहा कि धारा 376 (बलात्कार के लिए सजा) के तहत एक व्यक्ति के खिलाफ आरोपों को अपराध नहीं माना जाएगा यदि शिकायतकर्ता उसकी पत्नी है. अगर वह कानूनी रूप से विवाहित है और उसकी उम्र 18 वर्ष से अधिक है तो ये अपराध नहीं है. वैवाहिक बलात्कार अन्य देशों में अपराध है लेकिन भारत में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है.

हाईकोर्ट ने अपने इस ऐतिहासिक फैसले में पति को वैवाहिक बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया है. पीड़ित पति के अधिवक्ता के मुताबिक अब किसी भी पति के खिलाफ इस आदेश के बाद कहीं भी ऐसा अपराध पंजीबद्ध नहीं होगा. यह आदेश ऐतिहासिक के साथ ही न्यायदृष्टांत भी साबित होगा.

पत्नी की मर्जी बिना संबंध बनाना अब रेप की श्रेणी में नहीं

बेमेतरा जिले में पत्नी ने दर्ज कराया था मामला

दरअसल पूरा मामला बेमेतरा जिले का है, जहां एक पत्नी ने अपने पति द्वारा उसके साथ जबरन संबंध बनाने के खिलाफ थाने में बलात्कार का मामला दर्ज करा दिया था. इसको लेकर निचली अदालत में चालान पेश हुआ. निचली अदालत ने पति को इस कृत्य के लिए आरोपी करार दिया था. इसके खिलाफ पीड़ित पति ने अपने अधिवक्ता वाईसी शर्मा के माध्यम से हाईकोर्ट में याचिका दायर की थी. अधिवक्ता ने सुप्रीमकोर्ट समेत कई जजमेंट का हवाला दिया था. मामले की सुनवाई जस्टिस एनके चंद्रवंशी की सिंगल बेंच में हुई.

जस्टिस चंद्रवंशी ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला

जस्टिस एनके चंद्रवंशी ने सारे तर्क और जजमेंट को देखने के बाद एक बड़ा और ऐतिहासिक फैसला सुनाते हुए याचिकाकर्ता पीड़ित पति को वैवाहिक बलात्कार के आरोप से मुक्त कर दिया है. साथ ही पत्नी द्वारा लगाए गए जबरिया संबंध के आरोप को रेप की श्रेणी में भी नहीं माना है.

इससे पहले मुंबई सत्र न्यायालय ने कहा था कि पति का पत्नी के साथ जबरदस्ती या उसकी इच्छा के विरुद्ध यौन संबंध बनाना गैरकानूनी नहीं है. मुंबई की अतिरिक्त सत्र न्यायाधीश संजश्री घरात (Sanjashree Gharat ) ने कहा, एक महिला ने अपने पति पर उसकी मर्जी के खिलाफ यौन संबंध बनाने का आरोप लगाया था. हालांकि महिला की शिकायत किसी कानूनी जांच में फिट नहीं बैठती.एक पति के रूप में यह नहीं कहा जा सकता है कि उसने कुछ भी अवैध किया. महिला ने शिकायत में कहा था कि उसकी शादी पिछले साल 22 नवंबर को हुई थी. शादी के बाद उसके पति और उसके परिवार ने उस पर पाबंदियां लगानी शुरू कर दीं. उसने यह भी आरोप लगाया कि पति ने शादी के एक महीने बाद उसकी मर्जी के खिलाफ उससे यौन संबंध बनाए.

केरल हाई कोर्ट ने ये कहा था

हाल ही में केरल उच्च न्यायालय ने कहा था कि वैवाहिक बलात्कार, तलाक का दावा करने का एक अच्छा आधार हो सकता है लेकिन कानून के तहत अपराध नहीं है, यह क्रूरता की श्रेणी में आता है. हालांकि इस तरह के आचरण को दंडित नहीं किया जा सकता है.

पढ़ें- अपेक्षाओं और डर से डगमगाते शारीरिक रिश्ते

कोर्ट ने वैवाहिक संबंधों में शारीरिक स्वायत्तता के महत्व को भी समझाया था. कोर्ट ने कहा कि स्वायत्तता अनिवार्य रूप से उस भावना या स्थिति को संदर्भित करती है जिस पर कोई व्यक्ति उस पर नियंत्रण रखने का विश्वास करता है. विवाह में, पति या पत्नी के पास ऐसी निजता होती है, जो व्यक्तिगत रूप से उसके अंदर निहित अमूल्य अधिकार है इसलिए, वैवाहिक गोपनीयता अंतरंग रूप से और आंतरिक रूप से व्यक्तिगत स्वायत्तता से जुड़ी हुई है और इस तरह के स्थान में शारीरिक रूप से या अन्यथा किसी भी घुसपैठ से गोपनीयता कम हो जाएगी. अदालत ने कहा कि इस तरह का अनुचित हस्तक्षेप क्रूरता होगी.

Last Updated : Aug 27, 2021, 12:55 PM IST
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