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बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद यूपी चुनाव पर दीदी की नजर, सपा से हो सकता गठजोड़

बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद अब तृणमूल सुप्रीमो व पश्चिम बंगाल की मुख्यंमत्री ममता बनर्जी अपनी पार्टी के विस्तार के लिए आगामी यूपी विधानसभा चुनाव में प्रत्याशी मैदान में उतारने का मन बना बैठी हैं. वहीं, सियासी गलियारों में इस बात की चर्चा तेज है कि दीदी सूबे में समाजवादी पार्टी के साथ गठजोड़ कर सकती हैं. हालांकि, सूबे में सियासी एंट्री से पहले तृणमूल कांग्रेस की ओर से जमीनी स्तर पर एक सर्वे भी कराया गया, जिसमें कई बातें सामने आई हैं.

बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद यूपी चुनाव पर दीदी की नजर
बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद यूपी चुनाव पर दीदी की नजर
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Published : Oct 1, 2021, 4:26 PM IST

लखनऊ : पश्चिम बंगाल की सियासी परिधि से बाहर निकल कर अपनी पार्टी के विस्तार के लिए तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) लगातार काम कर रही हैं. दीदी बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद अब दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी देने और उन राज्यों की सियासी जमीन को समझने को अभी से ही अपने प्रतिनिधियों को काम पर लगा दिया है, ताकि उन राज्यों में सियासी एंट्री से पहले वहां की देश-काल-परिस्थितियों को भलीभांति समझ लिया जाए और जमीनी समीक्षा के बाद रणनीतियां बना कर संभावनाएं तलाशी जांए.

हालांकि, त्रिपुरा और गोवा में तृणमूल की बढ़ी सक्रियता के बाद अब दीदी की नजर उस राज्य पर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि केंद्रीय सियासत की वैतरणी पार करने को गोमती में डुबकी अनिवार्य है. दरअसल, हम यहां तृणमूल की मिशन यूपी की बात कर रहे हैं. यूपी में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की लोकप्रियता और उनकी पार्टी के लिए संभावनाओं की तलाश को कराए गए एक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हो गया है कि दीदी सूबे की पूर्वांचल (Purvanchal) और रोहेलखंड के पीलीभीत (Pilibhit of Rohilkhand) समेत मथुरा में अपने प्रत्याशी देने का मन बना रही हैं.

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, रोहेलखंड और मथुरा से लगे क्षेत्रों में कराए गए एक सर्वे में कई चीजें सामने आई हैं. ऐसे में सभी बिंदुओं की फिलहाल समीक्षा जारी है. इतना ही नहीं, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के सांसद भतीजे संग चर्चा के बाद राज्य पार्टी नेतृत्व ने जिलेवार पार्टी की सदस्यता अभियान को गति देना शुरू कर दिया है.

वहीं, पीलीभीत के कई इलाकों में 1972 में बसे बांग्लादेशी बंगालियों को आज तक देश की नागरिकता नहीं मिली है. बावजूद इसके की उन्हें किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (The then Prime Minister Indira Gandhi) ने यहां बसाया था. और तो और यहां बसे बंगालियों को आजीविका चलाने को जमीन के पट्टे भी दिए गए. यहां रह रहे बंगालियों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता है, पर दुख इस बात की है कि इतने सालों से यहां रहने के बावजूद इन्हें नागरिकता नहीं दी गई.

खैर, दीदी ऐसे ही उलझे मुद्दों को उठा अब की बार कई सीटों पर भाजपा की सीट समीकरण को बिगाड़ सकती हैं. इसके अलावे बात अगर सूबे के पूर्वांचल क्षेत्र की करें तो इस क्षेत्र की बड़ी आबादी का बंगाल से खासकर राजधानी कोलकाता व संलग्न जिलों से गहरा लगाव जगजाहिर है.

वहीं, सूत्रों की मानें तो यूपी में तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो सकता है. तृणमूल सूबे में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर विचार कर रही है. साथ ही जल्द इस बाबत दोनों पार्टियों के नेताओं के फैसला लिए जाने की उम्मीद जाहिर की जा रही है.

पढ़ें - गुजरात में मादक पदार्थ जब्ती मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज से हो : दिग्विजय सिंह

हालांकि, पिछले कुछ समय से तृणमूल कांग्रेस की यूपी में सक्रियता बढ़ी है. वहीं, तृणमूल ने यूपी के पीलीभीत से अपने जनसंपर्क कार्यक्रम की शुरुआत की है, जहां किसानों ने गन्ना बकाया के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया था.

तृणमूल के प्रदेश अध्यक्ष नीरज राय ने कहा - 'हम लोगों को बंगाल में लागू की गई नीतियों के बारे में बता रहे हैं और राज्य सरकार की कल्याणकारी नीतियों पर जनता की प्रतिक्रिया लेकर ही हम लोगों की उम्मीदों के अनुरूप तृणमूल का घोषणापत्र तैयार करेंगे.'

उन्होंने कहा कि तृणमूल यूपी में एक मजबूत संगठनात्मक संरचना और कैडर आधार बनाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है. पार्टी ने सदस्यता अभियान के माध्यम से 30 से अधिक जिलों में 100 से अधिक प्रतिबद्ध सदस्यों को जोड़ा है.

इधर, समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने कहा कि तृणमूल के साथ गठबंधन हो सकता है, क्योंकि अखिलेश यादव के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ मधुर संबंध हैं. इसके अलावा, वह अब एक विपक्षी शुभंकर हैं, जिन्होंने अपने राज्य में सभी बाधाओं के खिलाफ सांप्रदायिक ताकतों को कुचलने का काम किया है. यूपी में उनका अभियान निश्चित रूप से विपक्ष को बढ़ावा देगा.

लखनऊ : पश्चिम बंगाल की सियासी परिधि से बाहर निकल कर अपनी पार्टी के विस्तार के लिए तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी (Mamata Banerjee) लगातार काम कर रही हैं. दीदी बंगाल में सत्ता की हैट्रिक लगाने के बाद अब दूसरे राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में प्रत्याशी देने और उन राज्यों की सियासी जमीन को समझने को अभी से ही अपने प्रतिनिधियों को काम पर लगा दिया है, ताकि उन राज्यों में सियासी एंट्री से पहले वहां की देश-काल-परिस्थितियों को भलीभांति समझ लिया जाए और जमीनी समीक्षा के बाद रणनीतियां बना कर संभावनाएं तलाशी जांए.

हालांकि, त्रिपुरा और गोवा में तृणमूल की बढ़ी सक्रियता के बाद अब दीदी की नजर उस राज्य पर है, जिसके बारे में कहा जाता है कि केंद्रीय सियासत की वैतरणी पार करने को गोमती में डुबकी अनिवार्य है. दरअसल, हम यहां तृणमूल की मिशन यूपी की बात कर रहे हैं. यूपी में पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी की लोकप्रियता और उनकी पार्टी के लिए संभावनाओं की तलाश को कराए गए एक सर्वेक्षण में यह स्पष्ट हो गया है कि दीदी सूबे की पूर्वांचल (Purvanchal) और रोहेलखंड के पीलीभीत (Pilibhit of Rohilkhand) समेत मथुरा में अपने प्रत्याशी देने का मन बना रही हैं.

पार्टी सूत्रों से मिली जानकारी के मुताबिक उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल, रोहेलखंड और मथुरा से लगे क्षेत्रों में कराए गए एक सर्वे में कई चीजें सामने आई हैं. ऐसे में सभी बिंदुओं की फिलहाल समीक्षा जारी है. इतना ही नहीं, पार्टी के राष्ट्रीय महासचिव व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के सांसद भतीजे संग चर्चा के बाद राज्य पार्टी नेतृत्व ने जिलेवार पार्टी की सदस्यता अभियान को गति देना शुरू कर दिया है.

वहीं, पीलीभीत के कई इलाकों में 1972 में बसे बांग्लादेशी बंगालियों को आज तक देश की नागरिकता नहीं मिली है. बावजूद इसके की उन्हें किसी और ने नहीं, बल्कि तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी (The then Prime Minister Indira Gandhi) ने यहां बसाया था. और तो और यहां बसे बंगालियों को आजीविका चलाने को जमीन के पट्टे भी दिए गए. यहां रह रहे बंगालियों को सरकारी योजनाओं का लाभ भी मिलता है, पर दुख इस बात की है कि इतने सालों से यहां रहने के बावजूद इन्हें नागरिकता नहीं दी गई.

खैर, दीदी ऐसे ही उलझे मुद्दों को उठा अब की बार कई सीटों पर भाजपा की सीट समीकरण को बिगाड़ सकती हैं. इसके अलावे बात अगर सूबे के पूर्वांचल क्षेत्र की करें तो इस क्षेत्र की बड़ी आबादी का बंगाल से खासकर राजधानी कोलकाता व संलग्न जिलों से गहरा लगाव जगजाहिर है.

वहीं, सूत्रों की मानें तो यूपी में तृणमूल कांग्रेस और समाजवादी पार्टी का गठबंधन हो सकता है. तृणमूल सूबे में अगले साल की शुरुआत में होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए समाजवादी पार्टी के साथ गठबंधन करने पर विचार कर रही है. साथ ही जल्द इस बाबत दोनों पार्टियों के नेताओं के फैसला लिए जाने की उम्मीद जाहिर की जा रही है.

पढ़ें - गुजरात में मादक पदार्थ जब्ती मामले की जांच सुप्रीम कोर्ट के जज से हो : दिग्विजय सिंह

हालांकि, पिछले कुछ समय से तृणमूल कांग्रेस की यूपी में सक्रियता बढ़ी है. वहीं, तृणमूल ने यूपी के पीलीभीत से अपने जनसंपर्क कार्यक्रम की शुरुआत की है, जहां किसानों ने गन्ना बकाया के मुद्दे पर विरोध प्रदर्शन किया था.

तृणमूल के प्रदेश अध्यक्ष नीरज राय ने कहा - 'हम लोगों को बंगाल में लागू की गई नीतियों के बारे में बता रहे हैं और राज्य सरकार की कल्याणकारी नीतियों पर जनता की प्रतिक्रिया लेकर ही हम लोगों की उम्मीदों के अनुरूप तृणमूल का घोषणापत्र तैयार करेंगे.'

उन्होंने कहा कि तृणमूल यूपी में एक मजबूत संगठनात्मक संरचना और कैडर आधार बनाने पर भी ध्यान केंद्रित कर रही है. पार्टी ने सदस्यता अभियान के माध्यम से 30 से अधिक जिलों में 100 से अधिक प्रतिबद्ध सदस्यों को जोड़ा है.

इधर, समाजवादी पार्टी के सूत्रों ने कहा कि तृणमूल के साथ गठबंधन हो सकता है, क्योंकि अखिलेश यादव के पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री व तृणमूल सुप्रीमो ममता बनर्जी के साथ मधुर संबंध हैं. इसके अलावा, वह अब एक विपक्षी शुभंकर हैं, जिन्होंने अपने राज्य में सभी बाधाओं के खिलाफ सांप्रदायिक ताकतों को कुचलने का काम किया है. यूपी में उनका अभियान निश्चित रूप से विपक्ष को बढ़ावा देगा.

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