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देश-विदेश में महक रहे हिमाचल के फूल, हर साल सौ करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार - Flower business

हिमाचल के फूलों की महक देश नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंच रही है. प्रदेश में करीब पांच हजार से अधिक किसान 650 हेक्टेयर में फूलों की खेती कर रहे हैं. प्रदेश में हर साल करीब 100 करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो रहा है. हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती को व्यापक बढ़ावा देने के लिए 150 करोड़ रुपये की एक पंचवर्षीय महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई है, जिसके तहत प्रगतिशील कृषकों को फूलों की खेती को बड़े पैमाने पर अपनाने के प्रति प्रेरित किया जा रहा है.

हिमाचल के फूल
हिमाचल के फूल
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Published : Oct 14, 2021, 6:38 AM IST

शिमला : हिमाचल में फूलों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उपलब्ध होने की वजह से किसान इस लाभप्रद खेती को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं. इसी का परिणाम है कि आज हिमाचल के फूलों की महक देश नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंच रही है. हिमाचल के किसान फ्लाइट के माध्यम से चंडीगढ़ से दिल्ली, गाजीपुर मंडी फूल तक पहुंचाते हैं. अच्छी क्वालिटी होने के कारण हिमाचल के फूलों की मांग अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ने लगी है.

इस समय प्रदेश में लगभग पांच हजार से अधिक किसान 650 हेक्टेयर जमीन में फूलों की व्यावसायिक खेती कर रहे हैं, जिससे लगभग सौ करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो रहा है. प्रदेश में मुख्यतः गेंदा, गुलाब, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी, कारनेशन, लिलियम, जरबैरा और अन्य मौसमी फूल उगाए जा रहे हैं. प्रदेश में इस समय 'कट फ्लावर' का उत्पादन लगभग 16.74 करोड़ रुपये का हो रहा है. खुले बिकने वाले गेंदा और गुलदाउदी जैसे फूलों का यहां लगभग 12500 मीट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है.

इसके अलावा किसानों ने ग्रीन हाउस तथा अन्य नियंत्रित व्यवस्था जैसे शेड नेट हाउस में विदेशी फूलों-जिनकी राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मण्डियों में विशेष मांग रहती है, की खेती की जा रही है इनमें एल्स्ट्रोमीरिया, लिमोनियम, आइरिस, ट्यूलिप और आर्किड जैसे फूलों की किस्मों को उगाना शुरू कर दिया है. प्रदेश में पहले ही सोलन, बिलासपुर, मंडी व हमीरपुर जिले में बड़े पैमाने पर फूल उगाए जाते हैं.

प्रदेश में इस समय छह फूलों की नर्सरियां बनाई गई हैं, जो शिमला के नवबहार और छराबड़ा, सोलन जिले के परवाणू, कुल्लू के बजौरा तथा कांगड़ा जिले के धर्मशाला तथा भटुआं में स्थित हैं. इसके अलावा चायल और पालमपुर में मॉडल फूल उत्पादन केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें गुणवत्तापूर्ण फूलों की किस्में उपलब्ध करवाई जा रही हैं. इस समय प्रदेश में लगभग आठ फूल उत्पादक सहकारी समितियां कार्य कर रही हैं.

प्रदेश में फूलों की ढुलाई को पथ परिवहन की बसों में प्राधिकृत किया गया है, जिससे फूल उत्पादक लाभान्वित हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती को व्यापक बढ़ावा देने के लिए 150 करोड़ रुपये की एक पंचवर्षीय महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई है, जिसके तहत प्रगतिशील किसानों को फूलों की खेती को बड़े पैमाने पर अपनाने के प्रति प्रेरित किया जा रहा है. हिमाचल पुष्प क्रान्ति नामक इस योजना के तहत इस वर्ष 10 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं, जिसमें कृषकों को अनेक प्रोत्साहन देने का प्रावधान किया गया है, ताकि वे पुष्प खेती को अपनाने के लिए आगे आएं.

पढ़ें : हिमाचल के प्रगतिशील बागवान प्रविन्द्र ने अश्वगंधा के पौधे पर उगा दिए बैंगन-हरी मिर्च

फूलों का विपणन, किसानों को प्रशिक्षण, उन्हें बढ़िया किस्म का बीज व बल्ब इत्यादि उपलब्ध करवाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, ताकि किसानों को उत्पादन के बाद आने वाली विपणन चुनौतियों का सामना न करना पड़े और उन्हें बीज प्राप्त करने और परामर्श के लिए भटकना न पड़े. किसानों को एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत मिल रहे प्रोत्साहनों की तर्ज पर ही नई योजना में प्रोत्साहन प्रदान किए जाएंगे, ताकि उन्हें इसका लाभ उठा सकें.

ग्रीन हाउस तकनीक के माध्यम से फूलों की खेती को बढ़ावा : पुष्प क्रान्ति योजना को लागू करने के लिए बागवानी विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है, ताकि इस योजना को तुरन्त प्रभावशाली ढंग से लागू किया जा सके. योजना का मुख्य उद्देश्य फूलों की व्यावसायिक खेती और सजावटी पौधों की खेती को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर सृजित करना और आने वाले समय में हिमाचल को एक पुष्प राज्य के रूप में उभारना है. योजना के तहत नियंत्रित वातावरण में ग्रीन हाउस तकनीक के माध्यम से फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा तथा फूलों की उपज को राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर की मंडियों तक पहुंचाने के विशेष प्रबन्ध किए जाएंगे, ताकि किसानों को इसके बेहतर दाम मिल सकें.

खेत संरक्षण योजना 85 फीसदी तक सब्सिडी : खेती को बसहारा पशुओं से बचाने के लिए सरकार खेत संरक्षण योजना में सोलर बाड़ लगाने के लिए भी 85 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है. एचआरटीसी की बसों में फूल ले जाने पर किराए में विशेष छूट का प्रावधान भी है. इसके अलावा प्रदेश सरकार पॉलीहाउस को भी बढ़ावा दे रही है. जिन इलाके में परंपरागत खेती नहीं हो सकती, वहां इस तकनीक की मदद से फसल के उपज की संभावना बनती है. फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ जाती है. किसी भी स्थान पर सालों भर खेती संभव है. किसी भी फसल को किसी भी स्थान पर वर्ष पर्यन्त उत्पादित किया जा सकता है. बहुत कम क्षेत्र में फसल उत्पादन करके अच्छी कमाई की जा सकती है.

नवंबर महीने में शुरू हो सकती है प्रदेश की पहली फूलों की मंडी : हिमाचल की पहली फूल मंडी में किसानों को नवंबर से घरों के पास ही फूल बेचने की सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगा. अभी तक प्रदेश के पुष्प उत्पादकों को अपने स्तर पर पड़ोसी राज्यों की मंडियों या बाजारों में फूल बेचने के लिए भटकना पड़ता था. अब इन किसानों को फूल बेचने के लिए सिर्फ परवाणू फूल मंडी तक जाना पड़ेगा और खरीदार भी वहीं पहुंचेंगे. प्रदेश के पांच जिलों सिरमौर, सोलन, शिमला, बिलासपुर और किन्नौर के किसानों को परवाणू की फूल मंडी में फूल बेचने की सुविधा उपलब्ध होगी. प्रदेश सरकार ने करीब 75 लाख की राशि से फूल मंडी विकसित की है. इस फूल मंडी में दस दुकानें और फूलों की नीलामी को ऑक्शन यार्ड तैयार हो चुका है.

शिमला : हिमाचल में फूलों की खेती के लिए उपयुक्त जलवायु उपलब्ध होने की वजह से किसान इस लाभप्रद खेती को अपनाने के लिए आगे आ रहे हैं. इसी का परिणाम है कि आज हिमाचल के फूलों की महक देश नहीं बल्कि विदेशों तक भी पहुंच रही है. हिमाचल के किसान फ्लाइट के माध्यम से चंडीगढ़ से दिल्ली, गाजीपुर मंडी फूल तक पहुंचाते हैं. अच्छी क्वालिटी होने के कारण हिमाचल के फूलों की मांग अन्य राज्यों के साथ-साथ विदेशों में भी बढ़ने लगी है.

इस समय प्रदेश में लगभग पांच हजार से अधिक किसान 650 हेक्टेयर जमीन में फूलों की व्यावसायिक खेती कर रहे हैं, जिससे लगभग सौ करोड़ रुपये से अधिक का कारोबार हो रहा है. प्रदेश में मुख्यतः गेंदा, गुलाब, ग्लेडियोलस, गुलदाउदी, कारनेशन, लिलियम, जरबैरा और अन्य मौसमी फूल उगाए जा रहे हैं. प्रदेश में इस समय 'कट फ्लावर' का उत्पादन लगभग 16.74 करोड़ रुपये का हो रहा है. खुले बिकने वाले गेंदा और गुलदाउदी जैसे फूलों का यहां लगभग 12500 मीट्रिक टन का उत्पादन हो रहा है.

इसके अलावा किसानों ने ग्रीन हाउस तथा अन्य नियंत्रित व्यवस्था जैसे शेड नेट हाउस में विदेशी फूलों-जिनकी राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय मण्डियों में विशेष मांग रहती है, की खेती की जा रही है इनमें एल्स्ट्रोमीरिया, लिमोनियम, आइरिस, ट्यूलिप और आर्किड जैसे फूलों की किस्मों को उगाना शुरू कर दिया है. प्रदेश में पहले ही सोलन, बिलासपुर, मंडी व हमीरपुर जिले में बड़े पैमाने पर फूल उगाए जाते हैं.

प्रदेश में इस समय छह फूलों की नर्सरियां बनाई गई हैं, जो शिमला के नवबहार और छराबड़ा, सोलन जिले के परवाणू, कुल्लू के बजौरा तथा कांगड़ा जिले के धर्मशाला तथा भटुआं में स्थित हैं. इसके अलावा चायल और पालमपुर में मॉडल फूल उत्पादन केन्द्र स्थापित किए गए हैं, जिनमें गुणवत्तापूर्ण फूलों की किस्में उपलब्ध करवाई जा रही हैं. इस समय प्रदेश में लगभग आठ फूल उत्पादक सहकारी समितियां कार्य कर रही हैं.

प्रदेश में फूलों की ढुलाई को पथ परिवहन की बसों में प्राधिकृत किया गया है, जिससे फूल उत्पादक लाभान्वित हो रहे हैं. हिमाचल प्रदेश में फूलों की खेती को व्यापक बढ़ावा देने के लिए 150 करोड़ रुपये की एक पंचवर्षीय महत्वाकांक्षी योजना बनाई गई है, जिसके तहत प्रगतिशील किसानों को फूलों की खेती को बड़े पैमाने पर अपनाने के प्रति प्रेरित किया जा रहा है. हिमाचल पुष्प क्रान्ति नामक इस योजना के तहत इस वर्ष 10 करोड़ रुपये व्यय किए जा रहे हैं, जिसमें कृषकों को अनेक प्रोत्साहन देने का प्रावधान किया गया है, ताकि वे पुष्प खेती को अपनाने के लिए आगे आएं.

पढ़ें : हिमाचल के प्रगतिशील बागवान प्रविन्द्र ने अश्वगंधा के पौधे पर उगा दिए बैंगन-हरी मिर्च

फूलों का विपणन, किसानों को प्रशिक्षण, उन्हें बढ़िया किस्म का बीज व बल्ब इत्यादि उपलब्ध करवाने पर विशेष ध्यान दिया जाएगा, ताकि किसानों को उत्पादन के बाद आने वाली विपणन चुनौतियों का सामना न करना पड़े और उन्हें बीज प्राप्त करने और परामर्श के लिए भटकना न पड़े. किसानों को एकीकृत बागवानी विकास मिशन के तहत मिल रहे प्रोत्साहनों की तर्ज पर ही नई योजना में प्रोत्साहन प्रदान किए जाएंगे, ताकि उन्हें इसका लाभ उठा सकें.

ग्रीन हाउस तकनीक के माध्यम से फूलों की खेती को बढ़ावा : पुष्प क्रान्ति योजना को लागू करने के लिए बागवानी विभाग को नोडल एजेंसी बनाया गया है, ताकि इस योजना को तुरन्त प्रभावशाली ढंग से लागू किया जा सके. योजना का मुख्य उद्देश्य फूलों की व्यावसायिक खेती और सजावटी पौधों की खेती को बढ़ावा देकर स्थानीय लोगों को रोजगार के अवसर सृजित करना और आने वाले समय में हिमाचल को एक पुष्प राज्य के रूप में उभारना है. योजना के तहत नियंत्रित वातावरण में ग्रीन हाउस तकनीक के माध्यम से फूलों की खेती को बढ़ावा दिया जाएगा तथा फूलों की उपज को राष्ट्रीय व अन्तरराष्ट्रीय स्तर की मंडियों तक पहुंचाने के विशेष प्रबन्ध किए जाएंगे, ताकि किसानों को इसके बेहतर दाम मिल सकें.

खेत संरक्षण योजना 85 फीसदी तक सब्सिडी : खेती को बसहारा पशुओं से बचाने के लिए सरकार खेत संरक्षण योजना में सोलर बाड़ लगाने के लिए भी 85 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है. एचआरटीसी की बसों में फूल ले जाने पर किराए में विशेष छूट का प्रावधान भी है. इसके अलावा प्रदेश सरकार पॉलीहाउस को भी बढ़ावा दे रही है. जिन इलाके में परंपरागत खेती नहीं हो सकती, वहां इस तकनीक की मदद से फसल के उपज की संभावना बनती है. फसलों की उत्पादकता एवं गुणवत्ता बढ़ जाती है. किसी भी स्थान पर सालों भर खेती संभव है. किसी भी फसल को किसी भी स्थान पर वर्ष पर्यन्त उत्पादित किया जा सकता है. बहुत कम क्षेत्र में फसल उत्पादन करके अच्छी कमाई की जा सकती है.

नवंबर महीने में शुरू हो सकती है प्रदेश की पहली फूलों की मंडी : हिमाचल की पहली फूल मंडी में किसानों को नवंबर से घरों के पास ही फूल बेचने की सुविधा मिलनी शुरू हो जाएगा. अभी तक प्रदेश के पुष्प उत्पादकों को अपने स्तर पर पड़ोसी राज्यों की मंडियों या बाजारों में फूल बेचने के लिए भटकना पड़ता था. अब इन किसानों को फूल बेचने के लिए सिर्फ परवाणू फूल मंडी तक जाना पड़ेगा और खरीदार भी वहीं पहुंचेंगे. प्रदेश के पांच जिलों सिरमौर, सोलन, शिमला, बिलासपुर और किन्नौर के किसानों को परवाणू की फूल मंडी में फूल बेचने की सुविधा उपलब्ध होगी. प्रदेश सरकार ने करीब 75 लाख की राशि से फूल मंडी विकसित की है. इस फूल मंडी में दस दुकानें और फूलों की नीलामी को ऑक्शन यार्ड तैयार हो चुका है.

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