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जानिए फ्लेक्स ईंधन वाहन क्या हैं?

केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी (Nitin Gadkari) ने हाल ही में कहा था कि सरकार जल्द एक आदेश जारी कर देश में ऑटोमोबाइल निर्माताओं को अनिवार्य रूप से फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV) का उत्पादन करने के लिए कह सकती है. पढ़िए इसके बारे में रिपोर्ट...

नितिन गडकरी
नितिन गडकरी
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Published : Jun 22, 2021, 7:39 PM IST

नई दिल्ली: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में घोषणा की थी कि सरकार जल्द से जल्द एक आदेश जारी कर देश में ऑटोमोबाइल निर्माताओं को अनिवार्य रूप से फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV) का उत्पादन करने के लिए कह सकती है, ताकि वाहन उपयोगकर्ताओं को लागत बचाने में मदद मिल सके.

मंत्री का यह बयान, जो केंद्र के हालिया फैसले की पृष्ठभूमि में 20 फीसद इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के लक्ष्य को पांच साल 2025 तक आगे बढ़ाने को लेकर आया है. इसके साथ ही भारत में एफएफवी की प्रभावकारिता पर बहस शुरू हो गई है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने 'भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण के लिए रोड मैप 2020-25' की समीक्षा की है, साथ ही इस महीने नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में देश में एफएफवी की उपयोगिता पर चर्चा की गई है. उसके बारे में जानिए.

फ्लेक्स ईंधन वाहन (FFV) क्या हैं?

मुख्य रूप से एफएफवी की अवधारणा पेट्रोल में बढ़ते इथेनॉल प्रतिशत को देखते हुए प्रस्तावित की गई है. हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, एफएफवी में 84 फीसद से अधिक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल पर चलने के लिए इंजन है.

वास्तव में, ये वाहन जनवरी 2003 में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम का विस्तार है. हालांकि यह कार्यक्रम इंडियन ऑयल, एचपीसीएल व बीपीसीएल जैसी तेल विपणन कंपनियों इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचने के लिए द्वारा बनाया जाता है.

पिछले साल, केंद्र ने 2022 तक पेट्रोल में 10 फीसद इथेनॉल मिश्रण और 2030 तक 20 फीसद मिश्रण तक पहुंचने का लक्ष्य रखा था. हालांकि, लक्ष्य को हाल ही में पांच साल 2025 तक के लिए इसे संशोधित किया गया है. फिलहाल पेट्रोल में करीब 8.5 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाता है, जो 2014 में 1-1.5 फीसदी था.

इथेनॉल मिश्रित ईंधन और एफएफवी के क्या फायदे हैं?

सरकार के अनुसार, इथेनॉल मिश्रित ईंधन के उपयोग से उपभोक्ताओं, किसानों और भारतीय अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से लाभ होगा. इस बारे में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले हफ्ते कहा था कि वैकल्पिक ईधन के रूप में एथेनॉल का प्रयोग कर सकते हैं जिसकी कीमत 60-62 रुपए प्रति लीटर है वहीं, पेट्रोल 100 रुपए के पार पहुंच गया है. इसलिए इथेनॉल का उपयोग करने से भारतीयों को 30-35 रुपये प्रति लीटर की बचत होगी.

मंत्री ने आगे कहा कि चूंकि भारत में मक्का, चीनी और गेहूं का अत्यधिक उत्पादन होता है, इसलिए इथेनॉल कार्यक्रम के अनिवार्य सम्मिश्रण से किसानों को अधिक आय प्राप्त करने में मदद मिलेगी. उन्होंने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि खाद्यान्न की अधिक आपूर्ति समस्या पैदा कर रही है, क्योंकि हमारे पास अतिरिक्त आपूर्ति को स्टोर करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है.

उन्होंने कहा, हमारी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) अंतरराष्ट्रीय कीमतों और घरेलू बाजार की कीमतों से अधिक है, इसलिए सरकार ने फैसला लिया है कि आप खाद्यान्न और गन्ने के रस का उपयोग करके इथेनॉल बना सकते हैं.

समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ऑटोमोबाइल ईंधन के रूप में इथेनॉल के अधिक उपयोग से आयात लागत को बचाने में मदद मिलेगी, क्योंकि देश कच्चे तेल की 80 फीसद से अधिक आवश्यकताओं को आयात के माध्यम से पूरा करता है.

एफएफवी का उपयोग करने के नुकसान/चुनौतियां क्या हैं?

नीति आयोग के अनुसार, ग्राहकों की स्वीकृति एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि स्वामित्व की लागत और चलने की लागत 100 फीसद पेट्रोल वाहनों की तुलना में बहुत अधिक होने वाली है. इसके अलावा नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ध्यान भी दिया जाना चाहिए कि फ्लेक्स ईंधन वाहन स्वयं सामग्री, इंजन भागों और ईंधन प्रणाली के उन्नयन के कारण नियमित वाहनों की तुलना में अधिक महंगे हो सकते हैं. इसके अलावा, 100 फीसग इथेनॉल (ई 100) के साथ चलाने पर चलने की लागत (कम ईंधन दक्षता के कारण) 30 फीसद से अधिक हो जाएगी.

इस बारे में विशेषज्ञ बताते हैं कि फ्लेक्स फ्यूल इंजन की कीमत अधिक होती है क्योंकि इथेनॉल में पेट्रोल की तुलना में बहुत अलग रासायनिक गुण होते हैं.इसके अलावा इथेनॉल में गैसोलीन की तुलना में बहुत कम (40 फीसद) कैलोरी मान होता है वहीं वाष्पीकरण की बहुत उच्च गर्मी चार्ज / दहन आदि को ठंडा करती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इथेनॉल भी एक विलायक के रूप में कार्य करता है और इंजन के अंदर सुरक्षात्मक तेल फिल्म को मिटा सकता है इंजन खराब हो सकता है. फ्लेक्स ईंधन वातावरण में चलने के लिए बहुत विशिष्ट इंजन की लागत में वृद्धि करते हैं.

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अनुसार, एफएफवी (चार पहिया वाहनों) की लागत 17,000 रुपये से 25,000 रुपये और दोपहिया फ्लेक्स ईंधन वाले वाहन सामान्य पेट्रोल वाहनों की तुलना में 5,000 रुपये से 12,000 रुपये तक महंगे होंगे.

आगे का रास्ता क्या है?

ग्राहकों द्वारा किए गए उच्च लागत को देखते हुए, रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि भारत को 20 फीसद इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अखिल भारतीय रोल आउट के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद ही 100 फीसद इथेनॉल पर लागू करना चाहिए.

वहीं यदि देश भर में ईंधन उपलब्ध नहीं है तो ऐसे वाहनों (FFV) के विकास में निवेश करना व्यवहार्य नहीं है. इसलिए, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने E20 ईंधन की उपलब्धता और उपयोग को अखिल भारतीय आधार पर स्थापित होने तक E100 कार्यान्वयन / फ्लेक्स ईंधन दृष्टिकोण को आगे नहीं बढ़ाने की सिफारिश करने के साथ ही उच्च मिश्रणों की स्पष्ट दृश्यता का अनुमान लगाया है.

नई दिल्ली: केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने हाल ही में घोषणा की थी कि सरकार जल्द से जल्द एक आदेश जारी कर देश में ऑटोमोबाइल निर्माताओं को अनिवार्य रूप से फ्लेक्स फ्यूल व्हीकल्स (FFV) का उत्पादन करने के लिए कह सकती है, ताकि वाहन उपयोगकर्ताओं को लागत बचाने में मदद मिल सके.

मंत्री का यह बयान, जो केंद्र के हालिया फैसले की पृष्ठभूमि में 20 फीसद इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल के लक्ष्य को पांच साल 2025 तक आगे बढ़ाने को लेकर आया है. इसके साथ ही भारत में एफएफवी की प्रभावकारिता पर बहस शुरू हो गई है. इस संबंध में ईटीवी भारत ने 'भारत में इथेनॉल सम्मिश्रण के लिए रोड मैप 2020-25' की समीक्षा की है, साथ ही इस महीने नीति आयोग द्वारा जारी एक रिपोर्ट में देश में एफएफवी की उपयोगिता पर चर्चा की गई है. उसके बारे में जानिए.

फ्लेक्स ईंधन वाहन (FFV) क्या हैं?

मुख्य रूप से एफएफवी की अवधारणा पेट्रोल में बढ़ते इथेनॉल प्रतिशत को देखते हुए प्रस्तावित की गई है. हालांकि नीति आयोग की रिपोर्ट के अनुसार, एफएफवी में 84 फीसद से अधिक इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल पर चलने के लिए इंजन है.

वास्तव में, ये वाहन जनवरी 2003 में केंद्रीय पेट्रोलियम और प्राकृतिक गैस मंत्रालय द्वारा शुरू किए गए इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल (EBP) कार्यक्रम का विस्तार है. हालांकि यह कार्यक्रम इंडियन ऑयल, एचपीसीएल व बीपीसीएल जैसी तेल विपणन कंपनियों इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल बेचने के लिए द्वारा बनाया जाता है.

पिछले साल, केंद्र ने 2022 तक पेट्रोल में 10 फीसद इथेनॉल मिश्रण और 2030 तक 20 फीसद मिश्रण तक पहुंचने का लक्ष्य रखा था. हालांकि, लक्ष्य को हाल ही में पांच साल 2025 तक के लिए इसे संशोधित किया गया है. फिलहाल पेट्रोल में करीब 8.5 फीसदी एथेनॉल मिलाया जाता है, जो 2014 में 1-1.5 फीसदी था.

इथेनॉल मिश्रित ईंधन और एफएफवी के क्या फायदे हैं?

सरकार के अनुसार, इथेनॉल मिश्रित ईंधन के उपयोग से उपभोक्ताओं, किसानों और भारतीय अर्थव्यवस्था को समग्र रूप से लाभ होगा. इस बारे में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले हफ्ते कहा था कि वैकल्पिक ईधन के रूप में एथेनॉल का प्रयोग कर सकते हैं जिसकी कीमत 60-62 रुपए प्रति लीटर है वहीं, पेट्रोल 100 रुपए के पार पहुंच गया है. इसलिए इथेनॉल का उपयोग करने से भारतीयों को 30-35 रुपये प्रति लीटर की बचत होगी.

मंत्री ने आगे कहा कि चूंकि भारत में मक्का, चीनी और गेहूं का अत्यधिक उत्पादन होता है, इसलिए इथेनॉल कार्यक्रम के अनिवार्य सम्मिश्रण से किसानों को अधिक आय प्राप्त करने में मदद मिलेगी. उन्होंने इस तथ्य पर भी जोर दिया कि खाद्यान्न की अधिक आपूर्ति समस्या पैदा कर रही है, क्योंकि हमारे पास अतिरिक्त आपूर्ति को स्टोर करने के लिए पर्याप्त बुनियादी ढांचा नहीं है.

उन्होंने कहा, हमारी फसलों का न्यूनतम समर्थन मूल्य (MSP) अंतरराष्ट्रीय कीमतों और घरेलू बाजार की कीमतों से अधिक है, इसलिए सरकार ने फैसला लिया है कि आप खाद्यान्न और गन्ने के रस का उपयोग करके इथेनॉल बना सकते हैं.

समग्र भारतीय अर्थव्यवस्था के लिए ऑटोमोबाइल ईंधन के रूप में इथेनॉल के अधिक उपयोग से आयात लागत को बचाने में मदद मिलेगी, क्योंकि देश कच्चे तेल की 80 फीसद से अधिक आवश्यकताओं को आयात के माध्यम से पूरा करता है.

एफएफवी का उपयोग करने के नुकसान/चुनौतियां क्या हैं?

नीति आयोग के अनुसार, ग्राहकों की स्वीकृति एक बड़ी चुनौती होगी क्योंकि स्वामित्व की लागत और चलने की लागत 100 फीसद पेट्रोल वाहनों की तुलना में बहुत अधिक होने वाली है. इसके अलावा नीति आयोग की रिपोर्ट में कहा गया है कि यह ध्यान भी दिया जाना चाहिए कि फ्लेक्स ईंधन वाहन स्वयं सामग्री, इंजन भागों और ईंधन प्रणाली के उन्नयन के कारण नियमित वाहनों की तुलना में अधिक महंगे हो सकते हैं. इसके अलावा, 100 फीसग इथेनॉल (ई 100) के साथ चलाने पर चलने की लागत (कम ईंधन दक्षता के कारण) 30 फीसद से अधिक हो जाएगी.

इस बारे में विशेषज्ञ बताते हैं कि फ्लेक्स फ्यूल इंजन की कीमत अधिक होती है क्योंकि इथेनॉल में पेट्रोल की तुलना में बहुत अलग रासायनिक गुण होते हैं.इसके अलावा इथेनॉल में गैसोलीन की तुलना में बहुत कम (40 फीसद) कैलोरी मान होता है वहीं वाष्पीकरण की बहुत उच्च गर्मी चार्ज / दहन आदि को ठंडा करती है.

रिपोर्ट में कहा गया है कि इथेनॉल भी एक विलायक के रूप में कार्य करता है और इंजन के अंदर सुरक्षात्मक तेल फिल्म को मिटा सकता है इंजन खराब हो सकता है. फ्लेक्स ईंधन वातावरण में चलने के लिए बहुत विशिष्ट इंजन की लागत में वृद्धि करते हैं.

सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) के अनुसार, एफएफवी (चार पहिया वाहनों) की लागत 17,000 रुपये से 25,000 रुपये और दोपहिया फ्लेक्स ईंधन वाले वाहन सामान्य पेट्रोल वाहनों की तुलना में 5,000 रुपये से 12,000 रुपये तक महंगे होंगे.

आगे का रास्ता क्या है?

ग्राहकों द्वारा किए गए उच्च लागत को देखते हुए, रिपोर्ट ने सुझाव दिया कि भारत को 20 फीसद इथेनॉल मिश्रित पेट्रोल कार्यक्रम के अखिल भारतीय रोल आउट के सावधानीपूर्वक मूल्यांकन के बाद ही 100 फीसद इथेनॉल पर लागू करना चाहिए.

वहीं यदि देश भर में ईंधन उपलब्ध नहीं है तो ऐसे वाहनों (FFV) के विकास में निवेश करना व्यवहार्य नहीं है. इसलिए, सोसाइटी ऑफ इंडियन ऑटोमोबाइल मैन्युफैक्चरर्स (SIAM) ने E20 ईंधन की उपलब्धता और उपयोग को अखिल भारतीय आधार पर स्थापित होने तक E100 कार्यान्वयन / फ्लेक्स ईंधन दृष्टिकोण को आगे नहीं बढ़ाने की सिफारिश करने के साथ ही उच्च मिश्रणों की स्पष्ट दृश्यता का अनुमान लगाया है.

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