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कई मायनों में ऐतिहासिक रहा पांच राज्यों का विधानसभा चुनाव परिणाम

पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव परिणाम कई मायनों में अलग रहे. पश्चिम बंगाल में ममता बनर्जी तीसरी बार सत्ता में आ गईं. भाजपा ने पूरी कोशिश की, लेकिन उसे कामयाबी नहीं मिली. तमिलनाडु में डीएमके 10 सालों बाद सत्ता में लौटी. हालांकि, एआईएडीएमके को उस तरह का नुकसान नहीं हुआ, जैसा कि कुछ एग्जिट पोल में अनुमान लगाए गए थे.

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Published : May 4, 2021, 6:46 PM IST

हैदराबाद : इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक रहा. प. बंगाल में भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली. तमिलनाडु में एआईएडीएमके तीसरी बार सत्ता हासिल करना चाहती थी, लेकिन फेल हो गई. केरल में कांग्रेस गठबंधन लोगों को लुभाने में नाकामयाब रहा. असम में भाजपा अपनी गद्दी बचाने में सफल रही. पांचों राज्य मिलाकर कुल 824 सीटों पर चुनाव हुए थे.

2016 में इन राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा को सिर्फ 64 सीटें मिली थीं. ऐसे में भाजपा ने इस बार कोई कसन नहीं छोड़ी थी. अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास किया. पुदुचेरी में भाजपा ने रंगा स्वामी की पार्टी के साथ गठबंधन कर मैदान में मुकाबला किया. लेकिन किसी चुनावी भविष्यवक्ताओं ने इस परिणाम की उम्मीद नहीं की थी.

1975 में डीएमके के तत्कालीन प्रमुख एमके करुणानिधि ने अपने बेटे एमके स्टालिन की पीठ पर हाथ रखकर कहा था कि इंदिरा गांधी तुम्हें बड़ा नेता बनाना चाहती हैं, जाओ कठिनाइयों को झेलना शुरू कर दो. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान स्टालिन ने 'नामाक्कु नामे' नाम से पूरे प्रदेश में यात्रा की थी. ऐसा लगता है कि इसका परिणाम अब देखने को मिल रहा है. उन्हें स्पष्ट जनादेश मिल चुका है. 37 फीसदी वोट हासिल हुए हैं. हालांकि, एआईएडीएमके को पूरी तरह से नकारा नहीं गया. पार्टी को 33 फीसदी वोट मिले. 77 सीटें हासिल हुईं हैं.

केरल में पिनराई विजयन ने बहुत ही नियोजित और संगठित तरीके से कोविड का मुकाबला किया. जनता ने इसका उन्हें फल भी दिया. भगवा पार्टी को अपना खाता भी नहीं खोल सकी. इस लिहाज से केरल का चुनाव परिणाम बिल्कुल अलग रहा.

प. बंगाल का चुनाव पर पूरे देश की नजर थी. ममता बनर्जी 10 सालों से सत्ता में थीं. विधानसभा की संख्या के लिहाज से भी सबसे अधिक सीटें यहीं पर थीं. आठ चरणों में चुनाव कराए गए. केंद्रीय बलों की तैनाती, रिटर्निंग ऑफिसर की पोस्टिंग, पोलिंग एजेंट की नियुक्ति से लेकर हर मामलों में टीएमसी ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाए. गृह मंत्री अमित शाह ने 200 सीटों जीतने का दावा किया था. लेकिन परिणाम ठीक उलट रहा. ममता को 213 सीटें मिल गईं. 2016 में टीएमसी को 211 सीटें मिली थीं.

भाजपा को 2016 में 10.2 फीसदी मत मिले थे. तीन सीटें मिली थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया. तब 121 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त मिली थी. भाजपा को यह अहसास हो गया कि थोड़े अधिक प्रयास करने से वह प. बंगाल में सत्ता हासिल कर सकती है. उसके बाद चुनाव प्रचार युद्ध का मैदान बन गया. आरोप-प्रत्यारोप खूब लगे. 2016 में कांग्रेस को 44 और लेफ्ट को 32 सीटें मिली थीं. इस बार दोनों में से कोई भी अपना खाता नहीं खोल सका. बंगाल का मैदान पूरी तरह से भाजपा वर्सेस तृणमूल हो गया. सबसे विचित्र ये हुआ कि टीएमसी की प्रचंड जीत के बावजूद ममता का चुनाव हार जाना. उन्हें उनके ही सहयोगी शुभेंदु अधिकारी ने चुनाव में हरा दिया.

2016 में असम में भाजपा की जीत चौंकाने वाली थी. लेकिन इस बार पार्टी ने आसानी से जीत हासिल कर ली. कांग्रेस को 34 फीसदी मुस्लिम मतदाता पर भरोसा था. इसलिए पार्टी ने एआईयूडीएफ से समझौता भी किया. लेकिन उन्हें सत्ता नहीं मिली. भाजपा को 72 सीटें मिली. हालांकि, यहां पर विपक्ष कमजोर नहीं रहा.

हैदराबाद : इस बार का विधानसभा चुनाव कई मामलों में ऐतिहासिक रहा. प. बंगाल में भाजपा ने एड़ी-चोटी का जोर लगा दिया, लेकिन सफलता नहीं मिली. तमिलनाडु में एआईएडीएमके तीसरी बार सत्ता हासिल करना चाहती थी, लेकिन फेल हो गई. केरल में कांग्रेस गठबंधन लोगों को लुभाने में नाकामयाब रहा. असम में भाजपा अपनी गद्दी बचाने में सफल रही. पांचों राज्य मिलाकर कुल 824 सीटों पर चुनाव हुए थे.

2016 में इन राज्यों में हुए चुनाव में भाजपा को सिर्फ 64 सीटें मिली थीं. ऐसे में भाजपा ने इस बार कोई कसन नहीं छोड़ी थी. अपना प्रभाव बढ़ाने के लिए पूरा प्रयास किया. पुदुचेरी में भाजपा ने रंगा स्वामी की पार्टी के साथ गठबंधन कर मैदान में मुकाबला किया. लेकिन किसी चुनावी भविष्यवक्ताओं ने इस परिणाम की उम्मीद नहीं की थी.

1975 में डीएमके के तत्कालीन प्रमुख एमके करुणानिधि ने अपने बेटे एमके स्टालिन की पीठ पर हाथ रखकर कहा था कि इंदिरा गांधी तुम्हें बड़ा नेता बनाना चाहती हैं, जाओ कठिनाइयों को झेलना शुरू कर दो. पिछले विधानसभा चुनाव के दौरान स्टालिन ने 'नामाक्कु नामे' नाम से पूरे प्रदेश में यात्रा की थी. ऐसा लगता है कि इसका परिणाम अब देखने को मिल रहा है. उन्हें स्पष्ट जनादेश मिल चुका है. 37 फीसदी वोट हासिल हुए हैं. हालांकि, एआईएडीएमके को पूरी तरह से नकारा नहीं गया. पार्टी को 33 फीसदी वोट मिले. 77 सीटें हासिल हुईं हैं.

केरल में पिनराई विजयन ने बहुत ही नियोजित और संगठित तरीके से कोविड का मुकाबला किया. जनता ने इसका उन्हें फल भी दिया. भगवा पार्टी को अपना खाता भी नहीं खोल सकी. इस लिहाज से केरल का चुनाव परिणाम बिल्कुल अलग रहा.

प. बंगाल का चुनाव पर पूरे देश की नजर थी. ममता बनर्जी 10 सालों से सत्ता में थीं. विधानसभा की संख्या के लिहाज से भी सबसे अधिक सीटें यहीं पर थीं. आठ चरणों में चुनाव कराए गए. केंद्रीय बलों की तैनाती, रिटर्निंग ऑफिसर की पोस्टिंग, पोलिंग एजेंट की नियुक्ति से लेकर हर मामलों में टीएमसी ने चुनाव आयोग पर सवाल उठाए. गृह मंत्री अमित शाह ने 200 सीटों जीतने का दावा किया था. लेकिन परिणाम ठीक उलट रहा. ममता को 213 सीटें मिल गईं. 2016 में टीएमसी को 211 सीटें मिली थीं.

भाजपा को 2016 में 10.2 फीसदी मत मिले थे. तीन सीटें मिली थीं. 2019 के लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 18 सीटें जीतकर सबको चौंका दिया. तब 121 विधानसभा क्षेत्रों में पार्टी को बढ़त मिली थी. भाजपा को यह अहसास हो गया कि थोड़े अधिक प्रयास करने से वह प. बंगाल में सत्ता हासिल कर सकती है. उसके बाद चुनाव प्रचार युद्ध का मैदान बन गया. आरोप-प्रत्यारोप खूब लगे. 2016 में कांग्रेस को 44 और लेफ्ट को 32 सीटें मिली थीं. इस बार दोनों में से कोई भी अपना खाता नहीं खोल सका. बंगाल का मैदान पूरी तरह से भाजपा वर्सेस तृणमूल हो गया. सबसे विचित्र ये हुआ कि टीएमसी की प्रचंड जीत के बावजूद ममता का चुनाव हार जाना. उन्हें उनके ही सहयोगी शुभेंदु अधिकारी ने चुनाव में हरा दिया.

2016 में असम में भाजपा की जीत चौंकाने वाली थी. लेकिन इस बार पार्टी ने आसानी से जीत हासिल कर ली. कांग्रेस को 34 फीसदी मुस्लिम मतदाता पर भरोसा था. इसलिए पार्टी ने एआईयूडीएफ से समझौता भी किया. लेकिन उन्हें सत्ता नहीं मिली. भाजपा को 72 सीटें मिली. हालांकि, यहां पर विपक्ष कमजोर नहीं रहा.

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