नई दिल्ली : भारत और चीन के बीच कुल 3488 किमी की सीमा लगती है. सीमा से सटे कई इलाके हैं, जिन्हें 'घोस्ट विलेज' कहा जाता है. यानि वहां पर आबादी बिल्कुल विरल हो चुकी है. वहां पर आबादी को बसाने और उन्हें रोकने के लिए भारत सरकार ने 'वीवीपी' (वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम) की शुरुआत की है. केंद्र सरकार ने बजट में भी इसका जिक्र किया था.
वीवीपी के तहत उत्तरी सीमा पर विरल आबादी वाले सीमावर्ती गांवों को बसाया जा रहा है. सीमित कनेक्टिविटी और बुनियादी ढांचे का विकास किया जा रहा है. पहले इन इलाकों में विकास को प्राथमिकता नहीं दी जाती थी. यहां पर पिछली और मौजूदा योजनाओं को शामिल किया गया है. केंद्रीय गृह मंत्रालय ने लद्दाख, उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम से अरुणाचल प्रदेश तक फैली सीमा से सटे इलाकों में लगभग 2,300 गांवों की पहचान की है. इस प्रयास में और विशेष रूप से अरुणाचल प्रदेश बहुत ही अहम भूमिका रखता है.
पूर्वोत्तर में चीन के साथ सीमा की जिम्मेदारी सेकेंड माउंटेन डिवीजन के पास है. अरुणाचल प्रदेश के पांच जिलों के 990 गांवों को वाइब्रेंट विलेज प्रोग्राम के तहत पहचाना गया है. सेना ने इनमें से 77 गांवों की खास पहचान की है. वीवीपी का एक सैन्य घटक भी है. क्योंकि सीमावर्ती गांवों में सुरक्षा की पहली पंक्ति के रूप में वहां की आबादी ही मुख्य भूमिका निभाती है. वहां की आबादी ही हमारी 'आंख और कान' हैं. वे चीन के खिलाफ हमारे सीमा प्रहरी बन सकते हैं.
अरुणाचल प्रदेश राज्य विधानसभा के अध्यक्ष पासंग दोरजी सोना ने ईटीवी भारत को बताया, 'अरुणाचल में यह हमारे लिए एक बड़ी समस्या है. विधानसभा में इस पर चर्चा भी हुई है. हमने कई रिपोर्टें भेजी हैं. लोगों के पलायन से पैदा हुई रिक्तता के कारण पड़ोसी देश के लिए यह अवसर देने जैसी बात होती है. इसलिए इस पर गंभीरता से काम होना चाहिए.'
अरुणाचल प्रदेश पहले से ही केवल 17 व्यक्ति प्रति वर्ग किमी के साथ भारत का सबसे कम जनसंख्या घनत्व वाला राज्य है. भारत के पूर्वोत्तर में सबसे बड़ा राज्य होने के बावजूद, 2011 में इसकी जनसंख्या 13,82,611 थी. राज्य की कुल आबादी का लगभग 2.7 लाख या 20% हिस्सा 41 सीमावर्ती ब्लॉकों के लगभग 1,600 गांवों में रहता है. अरुणाचल प्रदेश में ऊंचाई वाले सीमा क्षेत्रों से निचले इलाकों में लोगों के प्रवास के परिणामस्वरूप, इनमें से कई बस्तियां 'घोस्त विलेज' बन गई हैं.
लोगों के पलायन के कारणों पर, सोना ने कहा- 'तीन मुख्य कारण हैं, स्वास्थ्य बुनियादी ढांचे की कमी, बच्चों के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा की कमी और आजीविका या रोजगार के स्रोतों की कमी.' हिमालय का यह इलाका दुनिया के सबसे कठिन इलाकों में से एक है.
सीमा की दूसरी ओर चीन की साइड में, निर्वासन और अल्प आवास की समस्याओं का सामना करने के लिए चीन ने 2017 से लगातार 'ज़ियाओकांग' गांव नीति का पालन कर रहा है. 'ज़ियाओकांग' समृद्ध समाजों को संदर्भित करता है - एक ऐसा दृष्टिकोण जिसे चीनी कम्युनिस्ट पार्टी हासिल करना चाहती है.
'ज़ियाओकांग' सीमावर्ती गांव की योजना में 21 सीमावर्ती काउंटियों में 628 अच्छी तरह से तैयार किए गए आधुनिक गांवों की स्थापना शामिल थी. यहां पर लगभग 62,160 घरों में आबादी थी. तिब्बती सीमा पर कुल 2,41,835 लोग थे, जो कि लद्दाख के नगारी से लेकर न्यिंगची और मेचुका (अरुणाचल प्रदेश) और म्यांमार तक फैला हुआ है. 2020 तक 30 अरब युआन (4.6 अरब डॉलर) की लागत से करीब 604 गांवों का निर्माण किया जा चुका है.
2014 में, भाजपा के नेतृत्व वाले एनडीए के सत्ता में आने के तुरंत बाद, अरुणाचल प्रदेश के तत्कालीन राज्यपाल लेफ्टिनेंट जनरल निर्भय शर्मा (सेवानिवृत्त) ने पीएमओ को एक पत्र लिखा था, जिसमें सीमा पर विरल हो रही आबादी का उन्होंने संकेत दिया था. जनरल शर्मा ने लिखा था: 'इस मुद्दे को तत्काल संबोधित करने की आवश्यकता है अन्यथा, प्रवेश के लगातार खतरे के अलावा, चीन द्वारा इन क्षेत्रों को धीरे-धीरे आत्मसात किया जा सकता है. जैसा कि उत्तरी म्यांमार में पहले से ही देखा गया है. आप देखिए, एलएसी की ओर बढ़ते ही विकास कमजोर हो जाता है. नतीजतन सीमावर्ती आबादी कम होती जा रही है. वे बेहतर अवसरों की तलाश में ऊपरी से निचले इलाकों में जा रहे हैं.'
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