नई दिल्ली : दिल्ली-चंडीगढ़ मार्ग पर पहला प्रमुख किसान आंदोलन स्थल सिंघु सीमा, पिछले 17 दिनों के दौरान राष्ट्रीय राजधानी में किसानों के धरने के लिए भविष्य की रणनीति बनाने के साथ किसानों के प्रदर्शन के लिए एक प्रभावशाली केंद्र बन गया है.
यह तीन महीने पहले संसद द्वारा तीन कृषि कानूनों को लागू करने के बाद उनके मुद्दों को हल करने में सरकार के साथ चर्चा करने के लिए प्रतिनिधियों का चयन करने और धरने को लेकर रणनीति बनाने का अड्डा बन गया है.
शांतिपूर्ण विरोध जिसमें पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के हजारों किसान शामिल हैं, विभिन्न राज्यों और कस्बों के 40 से अधिक किसान यूनियनों से जुड़े किसानों के प्रतिनिधियों द्वारा केंद्रीय रूप से निगरानी की जा रही है, जो 26 नवंबर से सिंघु बॉर्डर पर डेरा डाले हुए हैं.
मध्य दिल्ली से 50 किलोमीटर दूर, सिंघु, जहां बहुसंख्यक 'जाट और गुर्जर' समुदाय निवास करते हैं, उस समय सुर्खियों में आया जब अपने 'दिल्ली चलो मार्च' के तहत झंडे लेकर जा रहे हजारों किसान नारे लगाते हुए यहां और दिल्ली-हरियाणा में टीकरी सीमा पर 17 दिन पहले एकत्रित हो गए. इन किसानों को आगे बढ़ने से रोकने के लिए पुलिस ने बैरिकेड लगाए, आंसू गैस के गोले छोड़े और लाठीचार्ज भी किया.
क्रान्तिकारी किसान यूनियन के अध्यक्ष दर्शनपाल ने आईएएनएस को बताया कि सिंघु सीमा से जारी संदेश का अनुपालन दिल्ली के विभिन्न सीमाओं पर विरोध प्रदर्शन कर रहे किसानों द्वारा किया जा रहा है, जो उन्हें अब तक के पूरे आंदोलन को शांतिपूर्ण बनाए रखने में मदद करते हैं.
हालांकि, नेता ने इस दावे को नकार दिया कि विरोध में वामपंथी लोग हावी हैं। लोगों ने जोर देकर कहा कि सिंघु से मीडिया के माध्यम से एक केंद्रीय संदेश प्रसारित किया जाता है. विभिन्न राज्यों के हमारे किसानों द्वारा इसका पालन किया जा रहा है जो सरकार के तीन कृषि कानूनों के खिलाफ यहां एकत्र हुए हैं.
भारतीय किसान यूनियन के नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने बताया कि कई लोगों ने अपना कार्यक्रम लिया, लेकिन हम उन्हें ऐसा नहीं करने की अपील कर रहे हैं क्योंकि यह आंदोलन को दिशाहीन बनाता है. यह समस्याओं को बढ़ाता है. सिंघु बॉर्डर से जो भी संदेश दिए जाते हैं, उनका सभी को पालन करना चाहिए.
आंदोलन का मैदान, जहां अधिकांश किसान पंजाबी हैं, अब उन सभी लोगों के लिए आकर्षण का केंद्र है, जो इनके समर्थन में खड़े हैं. देश भर के गायक, पहलवान और राजनेता किसानों के समर्थन में आए हैं, बॉर्डर पहुंचकर किसानों से मिले हैं.
पिछले कुछ दिनों में 'मिनी-पंजाब' में तब्दील हो चुके सिंघु ने अब तक किसानों-सरकार की वार्ता के तीसरे, चौथे और 5 वें दौर का आयोजन किया है, जो दुर्भाग्य से, तीन कृषि कानूनों को लेकर दोनों पक्षों के अड़ियल रुख के कारण बेनतीजा रहे.
केंद्रीय नेतृत्व ने सिंघु से अपने फैसले सर्कुलेट किए और किसानों की पंचायत बैठक का आयोजन भी उस जगह पर किया गया, जहां किसानों के विभिन्न समूह अपने ट्रक और ट्रैक्टरों के साथ, तीन कृषि कानूनों को रद्द करने की अपनी मांग को स्वीकार करने के सरकार के फैसले का इंतजार कर रहे हैं, जिसे वे काला कानून, किसान विरोधी कानून कहते हैं.सिंघू सीमा विरोध स्थल से ही 8 दिसंबर को 'भारत बंद' का आह्वान किया था, जिसका कई विपक्षी दलों ने समर्थन किया था.