नई दिल्ली : कृषि सुधार कानूनों के विरोध में आंदोलन कर रहे संयुक्त किसान मोर्चा ने सरकार द्वारा भेजे गए बातचीत के प्रस्ताव को स्वीकार कर लिया है. हालांकि, किसान नेताओं को बुधवार की बातचीत से ज्यादा उम्मीद नहीं है. वहीं, देश के चार प्रमुख शहरों में आज नए कृषि कानूनों के विरोध में किसान रैलियों का आयोजन किया गया.
किसान नेता बलबीर सिंह राजेवाल ने दिल्ली के सिंघु बॉर्डर पर आंदोलनरत किसानों को संबोधित करते हुए कहा कि आज यह आंदोलन केवल पंजाब, हरियाणा और हिमाचल प्रदेश तक सीमित नहीं रह गया है. उत्तर प्रदेश के हजारों किसानों ने मोर्चा संभाल रखा है, वहीं मध्य प्रदेश से भी बड़ी संख्या में किसान आंदोलन में शरीक हो रहे हैं. राजस्थान के किसान जत्थेबंदियों ने भी आंदोलन में सक्रिय भूमिका दिखाई है और जयपुर हाईवे को जाम किया है.
राजेवाल ने बताया कि आज कर्नाटक में विधानसभा का घेराव किया गया, वहीं हैदराबाद में भी किसान रैली का आयोजन हुआ है. संयुक्त किसान मोर्चा के आह्वान पर मणिपुर और बिहार में भी किसानों ने रैलियां निकालीं. सरकार को अब समझ लेना चाहिए कि देशभर के किसान इस आंदोलन का हिस्सा बन चुके हैं.
बलबीर सिंह राजेवाल ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि उन्हें केंद्रीय कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर पर तरस आती है, क्योंकि वह केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के मोहरे हैं और उनके कुछ भी कहने से कोई फर्क नहीं पड़ता. सरकार से कल एक बार फिर बातचीत का समय तय है, बातचीत के बाद बताएंगे कि आगे का रुख क्या रहेगा.
किसानों ने ट्रैक्टर रैली स्थगित की
30 दिसंबर को सरकार से बातचीत के मद्देनजर संयुक्त किसान मोर्चा ने बुधवार को तय की गई बड़ी ट्रैक्टर रैली का आयोजन बहरहाल एक दिन के लिए स्थगित कर दिया है. सिंघु बॉर्डर से केएमपी हाईवे होते हुए इस ट्रैक्टर रैली को टिकरी बॉर्डर तक जाना तय हुआ था, जिसमें 2000 ट्रैक्टर-ट्रॉलियों के शामिल होने की बात कही जा रही थी.
एक किसान नेता ने जानकारी देते हुए कहा कि यदि ट्रैक्टर रैली को पुलिस द्वारा हाईवे पर कहीं भी रोका गया, तो किसान वहीं डेरा डाल देंगे, लेकिन यदि कोई गतिरोध नहीं हुआ, तो रैली टिकरी बॉर्डर तक जाने के बाद वापस सिंघु बॉर्डर पर पड़ाव डालेगी.
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बताया जा रहा है कि अब यह बड़ी ट्रैक्टर रैली 31 दिसंबर को आयोजित की जा सकती है.
तय मुद्दों के अलावा सरकार से कोई बातचीत नहीं
उधर, अखिल भारतीय किसान संघर्ष समन्वय समिति ने कहा है कि नए कृषि कानूनों और बिजली बिल 2020 के रद्द किए जाने पर चर्चा से पहले सरकार से किसी अन्य मुद्दे पर वार्ता नहीं की जाएगी.
सरकार ने वार्ता में मुद्दों, तर्क और तथ्यों पर जोर दिया है, उन्हें याद रखना चाहिए कि इन कानूनों को रद्द करने का सवाल सात महीने से उनके पास ही लंबित है.