नई दिल्ली : एक साल और तेरह दिन के बाद किसान नेताओं ने दिल्ली के बार्डरों से घर वापसी की घोषणा कर दी है. साथ ही संयुक्त किसान मोर्चा के नेताओं ने स्पष्ट कहा है कि किसान आंदोलन खत्म नहीं बल्कि केवल स्थगित हुआ है. इन नेताओं ने कहा कि गुरुवार को सरकार की तरफ से जो आधिकारिक प्रस्ताव उनके पास आया है वह केवल एक आश्वासन मात्र है और 15 जनवरी को एक बार फिर किसान नेता दिल्ली में बैठक कर अपनी मांगों के ऊपर सरकार के अमल की समीक्षा करेंगे.
उन्होंने कहा कि यदि वादे के अनुसार सरकार ने एक महीने के भीतर कार्य करने शुरु कर दिए और कमेटी गठित हो जाती है तब भी किसान मोर्चा पूर्ण क्रियान्वयन तक इंतजार करेगा. जब तक सभी आश्वासन को सरकार पूरी तरह पूरा नहीं करती तब तक के लिए किसान आंदोलन केवल स्थगित रहेगा. इसका मतलब स्पष्ट है कि यदि सरकार अपने वादों पर खरी नहीं उतरी तो एक बार फिर देशव्यापी आंदोलन शुरू किया जा सकता है.
ईटीवी भारत ने आंदोलन वापसी की घोषणा के बाद संयुक्त किसान मोर्चा की पांच सदस्यीय कमेटी के सदस्य और किसान नेता शिव कुमार कक्का से बात की. इस पर उनका कहना था किदेश में इससे पहले भी 50 से ज्यादा कमेटी और आधा दर्जन के करीब कमीशन का गठन हो चुका है लेकिन सभी की रिपोर्ट और सिफारिशें ठंडे बस्ते में चली गईं. सबसे लोकप्रिय उदाहरण स्वामीनाथन आयोग का ही है. इसलिए संयुक्त किसान मोर्चा का यह प्रयास रहेगा कि सीमित समय में न केवल कमेटी का निष्कर्ष सामने आए बल्कि उसका प्रभावी रूप से क्रियान्वयन भी हो.
ये भी पढ़ें - Farmers Protest : किसान आंदोलन स्थगित, 11 दिसंबर से घर लौटेंगे आंदोलनकारी
गुरनाम सिंह चढूनी चले राजनीति की राह, शुरू करेंगे मिशन पंजाब
संयुक्त किसान मोर्चा की पांच सदस्यीय कमेटी के ही सदस्य और किसान नेता गुरनाम सिंह चढूनी ने आज एक बार फिर स्पष्ट कहा कि वह पंजाब चुनाव में मिशन पंजाब नाम के साथ उतरेंगे और न केवल स्वयं चुनाव लड़ेंगे बल्कि उम्मीदवार भी उतारेंगे. चढुनी ने आगे बताया कि इसका संयुक्त किसान मोर्चा से कोई संबंध नहीं है बल्कि यह उनका निजी निर्णय है. वह किसान हित में आगे की लड़ाई को और आगे बढ़ाना चाहते हैं और इसके लिए बहुत लोगों ने उन्हें चुनाव में उतरने के लिए कहा है.
सरकार से अच्छे होंगे संबंध, कमेटी से समस्या नहीं: धर्मेन्द मलिक
भारतीय किसान यूनियन (टिकैत) के प्रवक्ता धर्मेंद्र मलिक ने आंदोलन वापसी की घोषणा के बाद ईटीवी भारत से कहा कि देश में पहली बार किसानों ने अपनी राजनीतिक शक्ति का आभास सरकार को कराया है और सरकार के चर्चा के केंद्र में किसान आज हैं, यह आंदोलन की सबसे बड़ी उपलब्धि है. उन्होंने आंदोलन वापसी को बीच का रास्ता नहीं बल्कि किसानों की जीत बताया क्यूंकि सरकार को उनकी लगभग सभी प्रमुख बात माननी पड़ी. हालांकि उन्होने यह भी कहा कि उनका या उनके संगठन का सरकार या उनके लोगों से कोई बैर नहीं है और न ही सरकार की अन्य किसी कमेटी से उन्हें गुरेज है. बता दें कि धर्मेन्द्र मलिक खुद भी सरकार की कृषि संबंधित राष्ट्रीय स्तर की कमेटी का हिस्सा रह चुके हैं लेकिन आंदोलन की शुरुआत में ही उन्होंने कमेटी से इस्तीफा दे दिया था.
बहरहाल दिल्ली बॉर्डर स्थित सभी मोर्चे पर 11दिसंबर को किसान विजय जुलूस निकालेंगे और उसके साथ ही अपने घरों को वापस जाएंगे. इसके बाद 15 दिसंबर को संयुक्त किसान मोर्चा के नेता दिल्ली में बैठक कर सरकार के आश्वासन पर क्रियान्वयन की समीक्षा करेंगे और उसके बाद आगे के निर्णय की घोषणा करेंगे.
वहीं दूसरी ओर किसान आंदोलन स्थगन की सूचना के साथ ही सिंघु बॉर्डर पर किसानों ने जश्न मानना शुरू कर दिया और लंगरों के पास भारी भीड़ जमा हो गई. हालांकि देश के रक्षा प्रमुख समेत 13 की दुर्घटना में मृत्यु के कारण संयुक्त किसान मोर्चा ने आज किसी भी तरह के उत्सव मनाने से मना किया था और विजय जुलूस के लिए 11 दिसंबर का दिन तय किया था. किसानों का कहना था कि यह उनके एक साल से ज्यदा के संघर्ष का नतीजा है जिसके दौरान 700 से ज्यादा किसानों की मौत भी हुई. उन्हें खुशी है कि सरकार उनकी मांगों पर सहमत हो गई और लिखित रूप में आश्वासन भी दिया.