नई दिल्ली: सुप्रीम कोर्ट द्वारा बनाई गई समिति (Report of the committee constituted by the Supreme Court) के सदस्य और किसान नेता अनिल घनवट ने सोमवार को यह रिपोर्ट सार्वजनिक की. जिसके मुताबिक समिति द्वारा संपर्क किये गए बहुतायत किसान संगठन तीन कृषि कानून के पक्ष में थे. वहीं ऐसे संगठनों की संख्या बहुत कम थी जो इन्हें रद्द करने की मांग कर रहे थे.
यह रिपोर्ट एक साल पहले मार्च 2021में सुप्रीम कोर्ट को सौंप दी गई थी लेकिन इसे अब तक न तो कोर्ट और न ही सरकार द्वारा इसे सार्वजनिक किया गया था. अब समिति के सदस्य ने ही इसे सार्वजनिक किया है. रिपोर्ट के मुताबिक समिति ने 266 किसान संगठनों से संपर्क किया. जिसमें, इसके खिलाफ आंदोलन कर रहे संगठन भी शमिल थे. इसके अलावा तीन सदस्यीय समिति ने हजारों की संख्या में लिखित सुझाव ई-मेल और चिट्ठियों के माध्यम से भी स्वीकार किये.
क्या कहती है रिपोर्ट
रिपोर्ट में बताया गया है कि कुल 73 किसान संगठनों से समिति की सीधी बातचीत हुई. ये किसान संगठन देश के 3.83 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं. इसमें से 3.3 करोड़ किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले कुल 61 किसान संगठन तीन कृषि कानूनों को लागू किये जाने के पक्ष में थे. जबकि महज चार किसान संगठन, जो कि लगभग 51 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करते हैं, ने इसे रद्द करने की मांग की थी. वहीं 3.6 लाख किसानों का प्रतिनिधित्व करने वाले सात ऐसे किसान संगठन भी थे जो इन कानूनों में संशोधन चाहते थे.
शेतकारी संगठन ने उठाए सवाल
महाराष्ट्र के बड़े किसान नेता ने सुप्रीम कोर्ट द्वारा गठित समिति की रिपोर्ट पर सवाल उठाए हैं. ईटीवी भारत ने महाराष्ट्र के किसान संगठन स्वाभिमानी शेत्कारि संगठन के प्रमुख और पूर्व सांसद राजू शेट्टी से बातचीत की. जिन्होंने बताया कि पूर्व में जब शेतकारि संगठन के बैनर तले शरद जोशी के साथ वह काम करते थे, तब रिपोर्ट सार्वजनिक करने वाले अनिल घनवट भी उनके साथ ही थे. कहा कि यदि यह रिपोर्ट सही है तो स्वयं उनके संगठन या उनके किसी अन्य सदस्य से समिति ने संपर्क नहीं किया.
समिति के दावों पर सवाल
समिति के दावे को खोखला बताते हुए राजू शेट्टी ने कहा कि अनिल घनवट जो कह रहे हैं, उसमें कोई दम नहीं है, क्योंकि पूरे देश और दुनिया ने देखा कि किस तरह से किसानों ने तीन कृषि कानूनों का विरोध किया. इसके लिये दिल्ली की सीमाओं पर हजारों किसान एक साल तक डटे रहे. तीन बार भारत बंद का कार्यक्रम भी किसान संगठनों द्वारा रखा गया. तब भारत बंद को व्यापक समर्थन मिला था.
सरकार ने चुने समिति सदस्य
समिति के गठन और उसमें शमिल सदस्यों पर संयुक्त किसान मोर्चा ने भी सवाल उठाए थे और कहा था कि किसानों की राय जानने के लिये सरकार द्वारा चुने गये नामों को समिति में रखा गया है. अनिल घनवट समिति में चुने जाने से पहले भी तीन कृषि कानूनों के पक्ष में अपनी राय सार्वजनिक कर चुके थे. ऐसे में समिति की विश्वश्नीयता पर सवाल उठाते हुए संयुक्त किसान मोर्चा में शामिल संगठनों ने समिति से बातचीत करने से साफ इनकार कर दिया था.
समिति के अन्य सदस्य अशोक गुलाटी भी कृषि कानूनों के समर्थक ही रहे हैं. राजू शेट्टी का कहना है कि समिति की क्या रिपोर्ट होगी और कौन इसमें शमिल होंगे, यह पहले ही तय हो चुका था. बाद में केवल स्क्रिप्ट पर मुहर लगी है. सरकार और सुप्रीम कोर्ट दोनों ये समझ चुके थे कि तीन कृषि कानूनों को वापस लिये बिना किसान नहीं मानेंगे. जिसकी वजह से सरकार ने कानूनों को रद्द किया. शायद यही कारण है कि इस रिपोर्ट को कोर्ट या सरकार ने कभी सार्वजनिक नहीं किया.
समिति में शामिल सदस्यों पर टिप्पणी करते हुए राजू शेट्टी ने कहा कि सुप्रीम कोर्ट के पूर्व न्यायाधीश शरद अरविंद बोबड़े जब महाराष्ट्र में वकालत कर रहे थे, तब वह किसान नेता शरद जोशी के कर्ज मुक्ति आंदोलन से भी जुड़े थे. उसी समय अनिल घनवट और अशोक गुलाटी सरीखे किसान नेताओं से उनके निजी संपर्क बने. जब उनके पास तीन कृषि कानूनों का मामला सुप्रीम कोर्ट में पहुंचा तो समिति में उन्होनें अपने परिचित लोगों के नाम रखे. किसान नेताओं ने इस रिपोर्ट को पूरी तरह से खारिज कर दिया है.