नई दिल्ली : कृषि कानूनों के विरोध में किसान संगठनों के आंदोलन के 19वें दिन जहां एक तरफ दिल्ली बॉर्डर पर धरना प्रदर्शन कर रहे संगठनों के कुछ नेता एक दिवसीय अनशन पर बैठे वहीं दूसरी तरफ आज किसान आंदोलन को राजनीतिक पार्टियों का भी साथ मिला. दिल्ली में जंतर मंतर पर पंजाब के कुछ कांग्रेस सांसद धरने पर बैठे, वहीं दिल्ली में मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल अपनी पूरी कैबिनेट और आम आदमी पार्टी के विधायकों के साथ धरने पर बैठे. इसी के साथ एक बार फिर भाजपा नेताओं ने किसान आंदोलन पर सवाल खड़े करते हुए इसे राजनीति से प्रेरित और समर्थित होने की बात भी दोहराई. हालांकि, लेकिन किसान नेताओं की इस मुद्दे पर राय अलग है.
किसान संगठनों के आंदोलन पर कई तरह के आरोप लगाए जा रहे हैं और इसे विपक्ष के एजेंडा से प्रेरित भी बताया जा रहा है. केंद्रीय वाणिज्य मंत्री पीयूष गोयल खुद किसान नेताओं के साथ हुई वार्ता में मौजूद रहे हैं, लेकिन एक निजी चैनल के साथ इंटरव्यू में उन्होंने भी कहा है कि किसानों का आंदोलन कुछ राजनीतिक पार्टियों और देश विरोधी ताकतों द्वारा हथिया लिया गया है.
आंदोलन में सभी का योगदान
इसी बीच ईटीवी भारत ने आज किसान नेता और संयुक्त किसान मोर्चा के सदस्य डॉ दर्शनपाल से विशेष बातचीत की. किसान नेता डॉ दर्शनपाल ने आंदोलन पर उठ रहे तमाम सवालों के जवाब दिए हैं. उन्होंने कहा कि किसान एकजुट हो कर कुछ मुद्दों पर संघर्ष कर रहे हैं और इसमें सभी के योगदान का स्वागत है.
धरना-प्रदर्शन में भाजपा का भी स्वागत
बकौल डॉ दर्शनपाल, आज बहुत सारे धार्मिक और गैर किसान संगठन भी इस संघर्ष में सहयोग कर रहे हैं इसके ये मायने नहीं हैं कि यह संघर्ष धर्मिक या राजनीतिक मान लिया जाए. उन्होंने कहा कि यदि किसानों के समर्थन में भाजपा के नेता भी धरने पर बैठते हैं तो संयुक्त किसान मोर्चा उनका भी स्वागत करेगा. उन्होंने कहा कि आज किसानों को सबके समर्थन की जरूरत है बस इसमें एक बात का खयाल रखा जाए कि मुद्दा भटकना नहीं चाहिए.
संपन्न परिवार और वाम दल से संबंध
दूसरा सवाल संघर्ष से जुड़े कुछ किसान नेताओं पर सोशल मीडिया के माध्यम से उठाया जा रहा है जिसमें खुद डॉ दर्शनपाल भी शामिल हैं. दर्शनपाल के बारे में कहा जा रहा है कि वह सरकारी नौकरी से सेवानिवृत्त हैं और संपन्न परिवार से आते हैं. कम्युनिस्ट पार्टी से उनके संबंध रहे हैं लेकिन आज वह किसान आंदोलन से जुड़े हैं जबकि उनका खेती बाड़ी से कोई लेना देना नहीं है.
खेती से जुड़ाव, हजारों किसानों का समर्थन
इस सवाल पर डॉ दर्शनपाल ने कहा कि वह एक दशक से भी ज्यादा से खेती से जुड़े हैं और पंजाब से जो तीन प्रमुख नेता संयुक्त किसान मोर्चा के हिस्सा हैं सभी कृषि कार्यों से ही जुड़े हुए हैं. उन्होंने कहा कि पंजाब और हरियाणा के किसानों के बीच कोई गैर किसान नेता पैठ नहीं बना सकता, क्योंकि वह केवल किसान नेतृत्व को ही स्वीकार करते हैं. डॉ दर्शनपाल ने कहा, किसान नेतृत्व के कारण ही दिल्ली-हरियाणा बॉर्डर पर उनके नेतृत्व में इस कड़ाके की ठंड के बीच भी हजारों किसान अपनी मांगों को लेकर अडिग हैं.
क्या भटक रहा है आंदोलन ?
केंद्रीय मंत्री पीयूष गोयल की टिप्पणी पर सवाल उठाते हुए दर्शनपाल ने कहा कि केंद्रीय मंत्री केवल एक बात बताएं कि किसान नेताओं के साथ सरकार की जितनी भी बैठकें हुई हैं उसमें किसानों के मुद्दे के अलावा क्या किसी ने कोई और मुद्दा उठाया है? ऐसे में उन्हें यह नहीं कहना चाहिए कि आज यह आंदोलन मुद्दे से भटक गया है.
राजनीतिक दलों से आपत्ति नहीं, बशर्ते...
डॉ दर्शनपाल ने कहा कि तीनों कृषि कानून वापस लिए जाएं, न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) की गारंटी के लिए कानून बनाया जाए, बिजली संशोधन विधेयक को रोका जाए और पराली जलाने पर जो एक करोड़ जुर्माना और एक साल की सजा के प्रावधान का अध्यादेश लाया गया है उसे संशोधित किया जाए. डॉ दर्शनपाल ने स्पष्ट किया कि कोई भी राजनीतिक संगठन यदि किसान आंदोलन को समर्थन देता है, तो इस पर उन्हें या संयुक्त किसान मोर्चा को कोई आपत्ति नहीं है, बशर्ते उनका स्टैंड न्यूट्रल हो.
उन्होंने कहा कि बेशक जब राजनीतिक पार्टियां किसी आंदोलन को समर्थन देती हैं तो उसमें उनका वोट बैंक का एजेंडा और चुनाव में लाभ की अपेक्षा भी शामिल होती है. लेकिन देश में आखिर कौन सा राजनीतिक संगठन है जो किसी भी आंदोलन को समर्थन दे कर राजनीतिक लाभ नहीं उठाना चाहेगा?
किसानों के आंदोलन की हर पल की खबरें-
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का पहला दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का दूसरा दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का तीसरा दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध-प्रदर्शन का चौथा दिन
- पांचवें दिन भी डटे रहे अन्नदाता, कहा पीएम को सुनाना चाहते हैं अपने मन की बात
- कृषि कानून के विरोध का छठे दिन केंद्र सरकार और किसानों की वार्ता बेनतीजा
- कृषि कानूनों का विरोध, 7वें दिन किसानों ने कहा- संसद का विशेष सत्र बुलाए केंद्र सरकार
- कृषि कानूनों के विरोध का 8वां दिन, पंजाब के नेताओं ने लौटाए पद्म सम्मान
- 9वें दिन के विरोध प्रदर्शन में किसानों की दो टूक- जारी रहेगा आंदोलन, 8 दिसंबर को भारत बंद
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का 10वां दिन
- कृषि कानूनों के खिलाफ किसानों के विरोध प्रदर्शन का 11वां दिन
- किसान आंदोलन का 12वां दिन
- आंदोलन के 13वें दिन किसान नेताओं और गृह मंत्री अमित शाह के बीच बैठक
- कृषि कानूनों को वापस लेने की मांग, 14वें दिन भी आंदोलन जारी
- दिल्ली - हरियाणी सीमा पर किसानों के आंदोलन का 15वां दिन
- 16वें दिन भी अडिग हैं किसान, प्रदर्शन औऱ तेज करने की चेतावनी
- किसान आंदोलन का 17वां दिन
- किसान आंदोलन का 18वां दिन, केंद्र सरकार ने वार्ता की बात दोहराई
- किसान आंदोलन के 19वें दिन अन्नदाताओं की भूख हड़ताल
आंदोलन पर कृषि मंत्री के सवाल
गौरतलब है कि विगत 26 नवंबर से शुरू हुए आंदोलन के संबंध में भाजपा नेता और केंद्रीय मंत्रियों की तरफ से कई बार ऐसे बयान भी दिए गए हैं, जिससे दोनों पक्षों (सरकार-किसान) के बीच का गतिरोध गहराता दिखाई देता है. खुद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमिर ने किसानों के आंदोलन के दौरान दिल्ली दंगों के आरपियों की रिहाई की मांग को लेकर सवाल खड़े किए थे.
ऐसे ही एक वाकये में पंजाब के भाजपा नेता हरजीत सिंह ग्रेवाल ने कहा था कि किसान आंदोलन में नक्सलवादी घुस आए हैं.
एक अन्य बयान में किसानों को लेकर केंद्रीय कृषि राज्यमंत्री कैलाश चौधरी ने कहा था, सरकार ने कहा है, एमएसपी जारी रहेगा. हम इसे लिखित में भी दे सकते हैं. मुझे लगता है कि कांग्रेस सरकार (राज्यों में) और विपक्ष किसानों को भड़काने की कोशिश कर रही है. राष्ट्र के किसान इन कानूनों के पक्ष में हैं, लेकिन कुछ राजनीतिक लोग आग में घी डालने की कोशिश कर रहे हैं.
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विपक्षी दलों का समर्थन
गौरतलब है कि किसानों के विरोध प्रदर्शन को ममता बनर्जी ने भी समर्थन दिया है. बीते दिनों उन्होंने एक ट्वीट में कहा था, 'भारत सरकार हर चीज बेच रही है. आप रेलवे, एयर इंडिया, कोयला, बीएसएनएल, बीएचईएल, बैंक, रक्षा इत्यादि को नहीं बेच सकते. गलत नीयत से लाई गई विनिवेश और निजीकरण की नीति वापस लीजिए. हम अपने राष्ट्र के खजाने को भाजपा की व्यक्तिगत संपत्ति नहीं बनने देंगे.'
गौरतलब है कि केंद्रीय गृहमंत्री अमित शाह ने किसानों को वार्ता के लिए आमंत्रित करते हुए कहा था कि सरकार सभी मुद्दों पर बातचीत के लिए तैयार है. उन्होंने गतिरोध खत्म करने और बुराड़ी मैदान में जाने की अपील की थी.
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राजद और वाम नेताओं का समर्थन
हालांकि, तमाम विरोधों के बावजूद नीति आयोग के सदर्य ने कहा था कि कानूनों का विरोध कर रहे किसान कंद्र सरकार के कानूनी प्रावधानों को समझ नहीं पा रहे हैं.
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कहां से पनपना शुरू हुआ असंतोष
बीते 17 सितंबर को विधेयकों के पारित होने के बाद कृषि मंत्री नरेंद्र सिंह तोमर ने कहा था कि अब किसान अपनी मर्जी का मालिक होगा, किसान को उत्पाद सीधे बेचने की आजादी मिलेगी. न्यूनतम समर्थन मूल्य (एमएसपी) को लेकर उन्होंने कहा कि यह व्यवस्था भी जारी रहेगी.
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कृषि सुधार विधेयकों को लेकर पीएम मोदी का कहना है कि विपक्ष किसानों को गुमराह कर रहा है. उनके अनुसार इन विधेयकों के पारित हो जाने के बाद किसानों की न सिर्फ आमदनी बढ़ेगी, बल्कि उनके सामने कई विकल्प भी मौजूद होंगे.