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जम्मू-कश्मीर: प्रसिद्ध कश्मीरी गायकों ने पारंपरिक संगीत को पुनर्जीवित करने के लिए खोला संस्थान - कश्मीरी गायक बिलाल अहमद

जम्मू-कश्मीर के श्रीनगर में रहने वाले दो कश्मीरी गायक इरफान नबी और बिलाल अहमद ने क्षेत्रीय संगीत सिखाने के लिए एक केंद्र की शुरुआत की है. उनकी इस संस्था की शुरुआत 2020 में हुई थी, जिसमें अब करीब 120 छात्र संगीत सीख रहे हैं.

Kashmiri singers open institute to keep traditional music alive
कश्मीरी गायकों ने पारंपरिक संगीत को जीवित रखने के लिए खोला संस्थान
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Published : Nov 29, 2022, 11:08 PM IST

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर): 2000 के दशक की शुरुआत में, दो कश्मीरी गायक - इरफान नबी और बिलाल अहमद, अपने गीत 'ज़माने पाक ना हमदम, तोति किया गांव, तमस गई जुल्फी ब्रह्म, तोति किया गांव' के लिए काफी लोकप्रिय हुए. लोग इन दोनों सिंगर्स को इरफान बिलाल के नाम से जानने लगे और ऐसा लग रहा था कि ये दोनों दो नहीं बल्कि एक शख्स हैं. जहां ज्यादातर लोग लोकप्रियता हासिल करने के बाद अभिमानी हो जाते हैं, वहीं इरफान और बिलाल हमेशा जमीन से जुड़े रहे.

कश्मीरी गायकों ने पारंपरिक संगीत को जीवित रखने के लिए खोला संस्थान

उस समय उन्होंने संगीत सीखने के लिए एक केंद्र भी खोला था, लेकिन घाटी के हालात के कारण इसे बंद करना पड़ा था. आज लगभग 17 साल बीत चुके हैं और इरफान बिलाल अभी भी एक दूसरे के साथ हैं और अपने नए संस्थान में बच्चों को संगीत सिखा रहे हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए इरफान ने कहा, 'बिलाल और मैं दोस्त नहीं हैं और हम भाई भी नहीं है. हमने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया है. मैं बिलाल हूं और बिलाल इरफान हैं. हम दोनों में कभी-कभी हम एक-दूसरे के माता-पिता बन जाते हैं और कभी-कभी हम भागीदार बन जाते हैं.'

अपनी संस्था के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'साल 2020 में हमने यहां बिमेना में मेजराब नाम से इस संस्था की शुरुआत की थी. मेजराब नाम इसलिए दिया गया क्योंकि मेजराब संगीत वाद्ययंत्र बजाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री है. यहां हम न केवल छात्रों को पढ़ाते हैं संगीत के बारे में बल्कि उनके सामने आने वाली कठिनाइयों से कैसे मुकाबला किया जाए उस के बारे में भी बताते हैं. हमें खुशी है कि ये बच्चे हमसे प्रेरित होकर अपना मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं.'

बिलाल भी इरफान के विचारों से सहमत हैं और कहते हैं कि 'हमारे संस्थान में वर्तमान में 120 से अधिक बच्चे संगीत सीख रहे हैं. उनमें महिलाओं की भी अच्छी संख्या है. दिलचस्प बात यह है कि सबसे छोटा छात्र केवल तीन वर्ष का है, वहीं सबसे बड़े छात्र 80 वर्ष से अधिक का है. बूढ़े या बच्चे यहां घाटी के कोने-कोने से संगीत सीखने आते हैं.' उन्होंने कहा, 'हम मानते हैं और हम इन बच्चों को दृढ़ता से समझाते हैं कि टैलेंट हंट रास्ता आसान बनाता है, लेकिन कड़ी मेहनत आपको ऊंचाइयों पर ले जाती है.'

आगे उन्होंने कहा कि 'यहां हमारा उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक संगीत से परिचित कराना है. क्योंकि अगर आप अपनी विरासत को अच्छी तरह से समझते हैं और इसका ख्याल रखते तो मंजिल आसान हो जाती है. पश्चिमी देशों में भी पारंपरिक संगीत पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.'

पढ़ें: जहरीला पदार्थ मिली शराब पीने से दो की मौत, राहुल गांधी ने 'गुजरात मॉडल' पर उठाए सवाल

वहां मुसाकी घराने के बारे में बात करते हुए, बिलाल ने कहा, 'हम पटियाला घराने के हैं और यह हमारे मुसाकी में परिलक्षित होता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कश्मीर का अपना घराना नहीं है और कभी भी नहीं हो सकता है. हमारे पास सूफी संगीत है जिस पर हम काम कर रहे हैं.' संस्था में संगीत सीखने आए विद्यार्थियों ने भी संतोष व्यक्त किया और कहा कि उन्हें न केवल संगीत के बारे में बल्कि इतिहास के बारे में भी जानकारी दी जाती है, जिससे उनका ज्ञान बढ़ता है और मजा भी आता है.

श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर): 2000 के दशक की शुरुआत में, दो कश्मीरी गायक - इरफान नबी और बिलाल अहमद, अपने गीत 'ज़माने पाक ना हमदम, तोति किया गांव, तमस गई जुल्फी ब्रह्म, तोति किया गांव' के लिए काफी लोकप्रिय हुए. लोग इन दोनों सिंगर्स को इरफान बिलाल के नाम से जानने लगे और ऐसा लग रहा था कि ये दोनों दो नहीं बल्कि एक शख्स हैं. जहां ज्यादातर लोग लोकप्रियता हासिल करने के बाद अभिमानी हो जाते हैं, वहीं इरफान और बिलाल हमेशा जमीन से जुड़े रहे.

कश्मीरी गायकों ने पारंपरिक संगीत को जीवित रखने के लिए खोला संस्थान

उस समय उन्होंने संगीत सीखने के लिए एक केंद्र भी खोला था, लेकिन घाटी के हालात के कारण इसे बंद करना पड़ा था. आज लगभग 17 साल बीत चुके हैं और इरफान बिलाल अभी भी एक दूसरे के साथ हैं और अपने नए संस्थान में बच्चों को संगीत सिखा रहे हैं. ईटीवी भारत से बात करते हुए इरफान ने कहा, 'बिलाल और मैं दोस्त नहीं हैं और हम भाई भी नहीं है. हमने अपने रिश्ते को कोई नाम नहीं दिया है. मैं बिलाल हूं और बिलाल इरफान हैं. हम दोनों में कभी-कभी हम एक-दूसरे के माता-पिता बन जाते हैं और कभी-कभी हम भागीदार बन जाते हैं.'

अपनी संस्था के बारे में बात करते हुए उन्होंने कहा, 'साल 2020 में हमने यहां बिमेना में मेजराब नाम से इस संस्था की शुरुआत की थी. मेजराब नाम इसलिए दिया गया क्योंकि मेजराब संगीत वाद्ययंत्र बजाने के लिए इस्तेमाल की जाने वाली सामग्री है. यहां हम न केवल छात्रों को पढ़ाते हैं संगीत के बारे में बल्कि उनके सामने आने वाली कठिनाइयों से कैसे मुकाबला किया जाए उस के बारे में भी बताते हैं. हमें खुशी है कि ये बच्चे हमसे प्रेरित होकर अपना मार्ग प्रशस्त कर रहे हैं.'

बिलाल भी इरफान के विचारों से सहमत हैं और कहते हैं कि 'हमारे संस्थान में वर्तमान में 120 से अधिक बच्चे संगीत सीख रहे हैं. उनमें महिलाओं की भी अच्छी संख्या है. दिलचस्प बात यह है कि सबसे छोटा छात्र केवल तीन वर्ष का है, वहीं सबसे बड़े छात्र 80 वर्ष से अधिक का है. बूढ़े या बच्चे यहां घाटी के कोने-कोने से संगीत सीखने आते हैं.' उन्होंने कहा, 'हम मानते हैं और हम इन बच्चों को दृढ़ता से समझाते हैं कि टैलेंट हंट रास्ता आसान बनाता है, लेकिन कड़ी मेहनत आपको ऊंचाइयों पर ले जाती है.'

आगे उन्होंने कहा कि 'यहां हमारा उद्देश्य छात्रों को पारंपरिक संगीत से परिचित कराना है. क्योंकि अगर आप अपनी विरासत को अच्छी तरह से समझते हैं और इसका ख्याल रखते तो मंजिल आसान हो जाती है. पश्चिमी देशों में भी पारंपरिक संगीत पर ज्यादा ध्यान दिया जाता है.'

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वहां मुसाकी घराने के बारे में बात करते हुए, बिलाल ने कहा, 'हम पटियाला घराने के हैं और यह हमारे मुसाकी में परिलक्षित होता है. यह दुर्भाग्यपूर्ण है कि कश्मीर का अपना घराना नहीं है और कभी भी नहीं हो सकता है. हमारे पास सूफी संगीत है जिस पर हम काम कर रहे हैं.' संस्था में संगीत सीखने आए विद्यार्थियों ने भी संतोष व्यक्त किया और कहा कि उन्हें न केवल संगीत के बारे में बल्कि इतिहास के बारे में भी जानकारी दी जाती है, जिससे उनका ज्ञान बढ़ता है और मजा भी आता है.

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