नई दिल्ली : केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट को सूचित किया है कि 30 दिनों के भीतर कोरोना के चलते आत्महत्या करने वाले लोगों के परिवार के सदस्य भी राज्य आपदा राहत कोष से भुगतान किए जाने वाले अनुग्रह मुआवजे के हकदार हैं. सुप्रीम कोर्ट के समक्ष गुरुवार को केंद्र द्वारा दायर एक अतिरिक्त हलफनामा में यह कहा गया.
इसमें यह भी कहा गया कि कि मुआवजे के दायरे को व्यापक और अधिक समावेशी बनाने के लिए, परीक्षण की तारीख से 30 दिनों के भीतर या चिकित्सकीय रूप से कोविड-19 सोबित होने के बाद हुई मौतों को कोविड -19 के कारण होने वाली मौतों के रूप में माना जाएगा, फिर भले ही मृत्यु अस्पताल/इन-पेशेंट सुविधा के बाहर क्यों न हुई हो.
उच्चतम न्यायालय ने गुरुवार को कोविड-19 से होने वाली मौतों के लिए दिशा-निर्देश तैयार करने और कोविड-19 के कारण मरने वालों के परिजनों को अनुग्रह राशि देने के संबंध में एक याचिका पर अपना आदेश 4 अक्टूबर के लिए सुरक्षित रख लिया.
केंद्र सरकार ने बुधवार को शीर्ष अदालत को सूचित किया था कि कोरोना से मरने वालों के परिजनों को राज्य आपदा राहत कोष से 50-50 हजार रुपये की राशि राज्यों की ओर से दी जाएगी. इसने आगे बताया कि अतिरिक्त जिला कलेक्टर, मुख्य चिकित्सा अधिकारी, अतिरिक्त सीएमओ, एक मेडिकल कॉलेज के चिकित्सा विभाग के प्रमुख और विषय विशेषज्ञ की एक समिति उन लोगों के मृत्यु प्रमाण पत्र से संबंधित शिकायतों पर गौर करेगी, जिनकी मृत्यु कोविड के कारण हुई थी, लेकिन प्रमाण पत्र पर 'कोरोना' कारण नहीं लिखा है.
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कोर्ट ने सरकार से पूछा कि उन स्थितियों में क्या होगा जहां अस्पताल द्वारा मेडिकल पेपर नहीं दिए गए और मौत के कारण का पता लगाना होगा. कोर्ट ने पूछा कि क्या समिति अस्पताल से सबूत के तौर पर कागजात जमा करने के लिए कह सकती है जिससे यह पक्का हो जाए कि मौत कोविड के कारण हुई थी. सरकार ने कहा कि उसे इससे कोई दिक्कत नहीं है.
जस्टिस एमआर शाह और जस्टिस एएस बोपन्ना की बेंच ने बड़ी आबादी के बावजूद लोगों की मदद करने के सरकार के प्रयासों की सराहना की. जस्टिस शाह ने कहा, भारत ने जो किया है, तमाम परिस्थितियों के बावजूद किसी देश ने नहीं किया है.
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सॉलिसिटर जनरल तुषार मेहता ने कहा कि भारत ने एक देश के रूप में स्थिति को विदेशों की तुलना में बेहतर तरीके से निपटाया है, जहां लोग मास्क, रोकथाम आदि के खिलाफ अदालतों का दरवाजा खटखटा रहे हैं, यह कहते हुए कि यह उनका शरीर, उनका जीवन और उनकी इच्छा है. कोर्ट ने कहा कि किसी को भी दूसरे व्यक्ति के जीवन को खतरे में डालने का अधिकार नहीं है.