नई दिल्ली: स्वास्थ्य और परिवार कल्याण पर एक संसदीय समिति (Parliamentary panel) ने सरकार को सुझाव दिया है कि मुफ्त बूस्टर डोज (free booster doses) देने की अवधि को 75 दिनों के लिए बढ़ा दिया जाए, ताकि सभी का पूर्ण टीकाकरण हो सके.
राज्यसभा सांसद प्रोफेसर राम गोपाल यादव (Rajya Sabha MP Prof Ram Gopal Yadav) की अध्यक्षता वाली समिति ने अपने नवीनतम रिपोर्ट में कहा है कि मुफ्त बूस्टर डोज की घोषणा के बाद इसे लगवाने के लिए लोग आगे आए हैं. सरकार के अनुमान के अनुसार, बूस्टर खुराक का 7-दिवसीय रोलिंग औसत 16 अप्रैल में 0.14 मिलियन से बढ़कर 23 जुलाई, 2022 को 2.20 मिलियन हो गया.' 15 जुलाई से शुरू हुई 18 वर्ष और उससे अधिक आयु वर्ग के लिए मुफ्त बूस्टर खुराक 30 सितंबर तक जारी रहेगी.
समिति के मुताबिक टीकाकरण स्थलों तक पहुंच में आसानी की भी टीकाकरण दर में वृद्धि में प्रमुख भूमिका होती है. समिति ने कहा, 'मंत्रालय को सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों में सरकारी कोविड टीकाकरण केंद्रों को बढ़ाना चाहिए.' समिति स्वास्थ्य कर्मियों के साथ-साथ जनता में बूस्टर खुराक की कम संख्या पर भी चिंतित है. समिति दृढ़ता से सिफारिश करती है कि मंत्रालय जनता के बीच एहतियाती खुराक के बारे में जागरूकता बढ़ाने की दिशा में काम करे.
फ्रंट लाइन वर्कर्स ने भी बूस्टर डोज लेने में की देरी : समिति की ओर से कहा गया है कि जनता में बूस्टर डोज लेने को लेकर ढिलाई बरती जा रही है. उसके मुताबिक 'हेल्थ वर्कर्स में से भी लगभग 37.3 प्रतिशत छह महीने के अंतराल पर डोज ले चुके हैं. बूस्टर के लिए देर से आने वाले स्वास्थ्य कर्मियों की पूर्ण संख्या 2.97 मिलियन है.' समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा, 24.6 प्रतिशत पात्र फ्रंटलाइन वर्कर्स को बूस्टर के लिए नौ महीने से अधिक की देरी हुई है.
समिति ने अपने निष्कर्षों में आगे कहा कि हालांकि टीकाकरण अभियान जब शुरू किया गया तो टीकाकरण रोलआउट ने फ्रंटलाइन स्वास्थ्य कार्यकर्ताओं को प्राथमिकता दी, जिनमें ज्यादातर महिलाएं थीं. लेकिन आंकड़ों से पता चला कि डोज लेने में महिलाएं पुरुषों की तुलना में बहुत पीछे हैं.
रिपोर्ट में कहा गया है कि जुलाई 2021 में को-विन डेटा से पता चला कि 1000 पुरुषों की तुलना में केवल 867 महिलाओं को टीका लगाया गया था. जनवरी 2021 से 309 मिलियन Covid19 टीकों में से केवल 143 मिलियन महिलाओं को दिए गए, जबकि पुरुषों को दिए गए टीकों की संख्या 167 मिलियन थी. यह लैंगिक अंतर चिंताजनक था क्योंकि यह 6 प्रतिशत से कहीं अधिक था.
सरकारी आधिकारिक आंकड़ों के अनुसार जुलाई 2022 के मध्य तक देश में कुल 1.99 बिलियन डोज लग चुके थे. कुल खुराक में से 988 मिलियन खुराक पुरुषों को और 950 मिलियन खुराक महिलाओं को दी गई हैं. यानी 38 मिलियन से अधिक का अंतर है.
महिलाओं में कम टीकाकरण के ये कारण बताए : समिति की रिपोर्ट में टीकाकरण के इस अंतर के लिए न सिर्फ देश में विषम लिंगानुपात को जिम्मेदार ठहराया गया है, बल्कि कई अंतर्निहित लिंग असमानता से संबंधित मुद्दों जैसे, स्वास्थ्य सुविधाओं या टीकाकरण स्थलों तक पहुंचने के लिए सीमित गतिशीलता, स्वास्थ्य की मांग में निर्णय लेने की सीमित शक्ति, आवश्यक संसाधनों तक सीमित पहुंच और नियंत्रण को जिम्मेदार ठहराया गया है. एक कारण ये भी दिया गया है कि स्मार्टफोन-इंटरनेट तक पहुंच भी टीकाकरण में अहम रोल निभाता है. यानी इनकी कमी से भी महिलाओं का टीकाकरण प्रतिशत कम रहा. समिति ने एक कारण ये भी दिया है कि महिलाओं में वैक्सीन सुरक्षा के बारे में अफवाहें और गलत धारणाएं, गर्भवती और स्तनपान कराने वाली महिलाओं पर नैदानिक परीक्षण डेटा की कमी भी इसका कारण है.
रिपोर्ट में आगे कहा गया है कि डिजिटल डिवाइड और CoWIN प्लेटफॉर्म पर पंजीकरण की आवश्यकता भी महिलाओं के लिए टीकाकरण तक पहुंचना मुश्किल बना देती है. पुरुषों की तुलना में महिलाओं में टीके की हिचकिचाहट अधिक है. रिपोर्ट में कहा गया है कि 'महिलाओं को मासिक धर्म के दौरान कोविड -19 के टीके नहीं लेने चाहिए या टीके प्रजनन क्षमता को प्रभावित करेंगे' जैसी बातें भी महिलाओं के कम टीके लेने का कारण हो सकती हैं.
इस तथ्य के बाद कि महिलाओं के पास इंटरनेट या किसी भी डिजिटल उपकरण तक पहुंच नहीं है. किसी भी जानकारी के लिए परिवार के पुरुष सदस्य पर उनकी अत्यधिक निर्भरता टीकाकरण में लिंग अंतर को और बढ़ा देती है. समिति ने महिलाओं में टीकाकरण की दर बढ़ाने के लिए विशेष रूप से गरीब क्षेत्रों में अधिक व्यापक जागरूकता अभियानों का सुझाव दिया है.
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