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लुप्तप्राय पक्षियों की संख्या में लगातार आ रही गिरावट, SC ने केंद्र से मांगा जवाब - ग्रेट इंडियन बस्टर्ड

लुप्तप्राय पक्षियों की प्रजातियों में शामिल दो पक्षियों की प्र​जातियों को लेकर हाल ही में एक अध्ययन रिपोर्ट में चौंकाने वाली जानकारी सामने आई है. पेश है रिपोर्ट के हवाले से भारत में लुप्तप्राय पक्षियों की स्थिति पर समग्र विश्लेषण...

climate change, Great Indian Bustard
ग्रेट इंडियन बस्टर्ड
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Published : Jul 18, 2021, 8:11 PM IST

नई दिल्ली: देश की लुप्तप्राय पक्षियों की प्रजातियों में शामिल दो पक्षियों ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन की संख्या में अचानक हुई गिरावट एक बार फिर से चिंताजनक हालात हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उन राज्य सरकारों से जवाब मांगा है, जहां इन पक्षियों की ये दो प्रजातियां प्रमुख रूप से पाई जाती हैं.

बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2019 को इन दो भारतीय पक्षियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था. दरअसल, भारत में पाई जाने वाली पक्षियों की दस प्रजातियों को 2015 में ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्वर्सेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने विलुप्त प्राय प्रजातियों में घोषित किया. इसके पीछे के प्रमुख कारणों की बात करें तो पर्यावरण प्रदूषण, अवैध शिकार सहित अन्य शामिल हैं. इन विलुप्त प्राय पक्षियों की प्रजातियों में उक्त दो पक्षियों के अलावा लाल सिर वाला गिद्ध, वन उल्लू, स्पून बिल्ड सैंडपाइपर, सफेद बेली बगुला, हिमालयी बटेर, लैपविंग आदि शामिल हैं.

जानें इनकी वर्तमान स्थितियों के बारे में

भारतीय वन्यजीव संस्थान, सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री और नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी के सहयोग से साल 2020 में आई स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स ने 867 पक्षी प्रजातियों के बारे में अध्ययन किया. इस रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से 261 प्रजातियों में से जिनके लिए दीर्घकालिक रुझान निर्धारित किए जा सकते हैं. वर्ष 2000 के बाद से लगभग सभी की संख्या में 80 % गिरावट आ रही है, लगभग 50 % पक्षियों की संख्या में तेजी के साथ कमी आ रही है.

पढ़ें: राजस्थान : डाकघर के पार्सलों में जंगली पक्षियों के मिले अंग, बर्ड तस्करी का खुलासा

कुल मिलाकर, 43 % प्रजातियों में एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति दिखाई दी, जो कि स्थिर थी और 5 % ने एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति दिखाई. ईगल और गिद्धों की संख्या भी कम हो गई है. 20 वर्षों में उत्तराखंड में पाए जाने वाले फिन पक्षी की संख्या में 94% तक की गिरावट आई है.

पक्षियों को बचाने के लिए एक नजर सरकार की पहल पर

पक्षियों की रक्षा के लिए भारत सरकार 10 साल की योजना लेकर आई है. भारत में कम से कम 1,317 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं और उनमें से लगभग 100 विलुप्त प्राय श्रेणी में हैं. इस योजना के मसौदे में प्रवासी पक्षियों की रक्षा, आर्द्रभूमि के संरक्षण और शहरी क्षेत्रों में पक्षियों के संरक्षण पर ध्यान देने का प्रस्ताव है. इसमें इस बात का भी उल्लेख है कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के स्तर में वृद्धि हुई है, जो वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है.

इससे एविफ़्यूना पक्षी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं. मसौदा में शहरी क्षेत्रों में पक्षियों की घटती आबादी की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है. इन पक्षियों में घरेलू गौरैया, रेड-वेंटेड बुलबुल, कौवा, चित्तीदार उल्लू आदि शामिल हैं. इसके पीछे कारण बताया गया है कि तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण इन पक्षियों की संख्या भारी गिरावट आई है.

प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल

भारत में दर्ज 1,317 प्रजातियों में से लगभग 30 प्रतिशत प्रवासी पक्षी हैं. प्रवासी पक्षियों की लगभग 370 प्रजातियां तीन फ्लाईवे - मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ), पूर्वी एशियाई-ऑस्ट्रेलियाई फ्लाईवे (ईएएएफ) और एशियाई-पूर्वी अफ्रीकी फ्लाईवे (एईएएफ) से भारत आती हैं.

साथ ही 80 प्रतिशत से अधिक प्रवासी पक्षी (307 प्रजातियां) सीएएफ के माध्यम से भारत आते हैं. इनमें से 87 प्रजातियां की स्थित बेहद चिंताजनक का विषय हैं जिनमें दो गंभीर रूप से लुप्तप्राय, पांच लुप्तप्राय और 13 कमजोर प्रजातियां शामिल हैं.

नई दिल्ली: देश की लुप्तप्राय पक्षियों की प्रजातियों में शामिल दो पक्षियों ग्रेट इंडियन बस्टर्ड और लेसर फ्लोरिकन की संख्या में अचानक हुई गिरावट एक बार फिर से चिंताजनक हालात हैं. सुप्रीम कोर्ट ने केंद्र और उन राज्य सरकारों से जवाब मांगा है, जहां इन पक्षियों की ये दो प्रजातियां प्रमुख रूप से पाई जाती हैं.

बताते चलें कि सुप्रीम कोर्ट ने 18 जुलाई 2019 को इन दो भारतीय पक्षियों को विलुप्त होने से बचाने के लिए एक उच्चाधिकार प्राप्त समिति का गठन किया था. दरअसल, भारत में पाई जाने वाली पक्षियों की दस प्रजातियों को 2015 में ही इंटरनेशनल यूनियन फॉर कन्वर्सेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) ने विलुप्त प्राय प्रजातियों में घोषित किया. इसके पीछे के प्रमुख कारणों की बात करें तो पर्यावरण प्रदूषण, अवैध शिकार सहित अन्य शामिल हैं. इन विलुप्त प्राय पक्षियों की प्रजातियों में उक्त दो पक्षियों के अलावा लाल सिर वाला गिद्ध, वन उल्लू, स्पून बिल्ड सैंडपाइपर, सफेद बेली बगुला, हिमालयी बटेर, लैपविंग आदि शामिल हैं.

जानें इनकी वर्तमान स्थितियों के बारे में

भारतीय वन्यजीव संस्थान, सलीम अली सेंटर फॉर ऑर्निथोलॉजी एंड नेचुरल हिस्ट्री और नेशनल बायोडायवर्सिटी अथॉरिटी के सहयोग से साल 2020 में आई स्टेट ऑफ इंडियाज बर्ड्स ने 867 पक्षी प्रजातियों के बारे में अध्ययन किया. इस रिपोर्ट के अनुसार, इनमें से 261 प्रजातियों में से जिनके लिए दीर्घकालिक रुझान निर्धारित किए जा सकते हैं. वर्ष 2000 के बाद से लगभग सभी की संख्या में 80 % गिरावट आ रही है, लगभग 50 % पक्षियों की संख्या में तेजी के साथ कमी आ रही है.

पढ़ें: राजस्थान : डाकघर के पार्सलों में जंगली पक्षियों के मिले अंग, बर्ड तस्करी का खुलासा

कुल मिलाकर, 43 % प्रजातियों में एक दीर्घकालिक प्रवृत्ति दिखाई दी, जो कि स्थिर थी और 5 % ने एक बढ़ती हुई प्रवृत्ति दिखाई. ईगल और गिद्धों की संख्या भी कम हो गई है. 20 वर्षों में उत्तराखंड में पाए जाने वाले फिन पक्षी की संख्या में 94% तक की गिरावट आई है.

पक्षियों को बचाने के लिए एक नजर सरकार की पहल पर

पक्षियों की रक्षा के लिए भारत सरकार 10 साल की योजना लेकर आई है. भारत में कम से कम 1,317 प्रजातियों के पक्षी पाए जाते हैं और उनमें से लगभग 100 विलुप्त प्राय श्रेणी में हैं. इस योजना के मसौदे में प्रवासी पक्षियों की रक्षा, आर्द्रभूमि के संरक्षण और शहरी क्षेत्रों में पक्षियों के संरक्षण पर ध्यान देने का प्रस्ताव है. इसमें इस बात का भी उल्लेख है कि ग्रीन हाउस गैस उत्सर्जन के स्तर में वृद्धि हुई है, जो वैश्विक स्तर पर पर्यावरण को भी प्रभावित कर रही है.

इससे एविफ़्यूना पक्षी बुरी तरह से प्रभावित हो रहे हैं. मसौदा में शहरी क्षेत्रों में पक्षियों की घटती आबादी की ओर भी ध्यान आकर्षित किया गया है. इन पक्षियों में घरेलू गौरैया, रेड-वेंटेड बुलबुल, कौवा, चित्तीदार उल्लू आदि शामिल हैं. इसके पीछे कारण बताया गया है कि तेजी से हो रहे शहरीकरण के कारण इन पक्षियों की संख्या भारी गिरावट आई है.

प्रवासी पक्षियों के लिए महत्वपूर्ण स्थल

भारत में दर्ज 1,317 प्रजातियों में से लगभग 30 प्रतिशत प्रवासी पक्षी हैं. प्रवासी पक्षियों की लगभग 370 प्रजातियां तीन फ्लाईवे - मध्य एशियाई फ्लाईवे (सीएएफ), पूर्वी एशियाई-ऑस्ट्रेलियाई फ्लाईवे (ईएएएफ) और एशियाई-पूर्वी अफ्रीकी फ्लाईवे (एईएएफ) से भारत आती हैं.

साथ ही 80 प्रतिशत से अधिक प्रवासी पक्षी (307 प्रजातियां) सीएएफ के माध्यम से भारत आते हैं. इनमें से 87 प्रजातियां की स्थित बेहद चिंताजनक का विषय हैं जिनमें दो गंभीर रूप से लुप्तप्राय, पांच लुप्तप्राय और 13 कमजोर प्रजातियां शामिल हैं.

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