नई दिल्ली : वित्त मंत्री निर्मला सीतारमण सोमवार को केंद्रीय बजट पेश करेंगी. स्वास्थ्य क्षेत्र के विशेषज्ञों को उम्मीद है कि वित्त मंत्री देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए कोई बड़ी घोषणा करेंगी.
ऐसे समय में स्वास्थ्य क्षेत्र को विशेष ध्यान देने की जरूरत है, जब भारत कोरोना महामारी के कारण स्वास्थ्य आपातकाल की स्थिति का सामना कर रहा है.
सरकारी सूत्रों की मानें तो इस बार बजट में स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए मेक इन इंडिया की अवधारणा पर प्रमुख घोषणाएं होंगी. खासकर जब घरेलू कंपनियों देश के स्वास्थ्य क्षेत्र में योगदान दे रही हैं.
ईटीवी भारत ने देश के स्वास्थ्य क्षेत्र के प्रमुख विशेषज्ञों के साथ बात की. उनका मानना है कि सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का 1.3 प्रतिशत स्वास्थ्य क्षेत्र को आवंटित होता है, लेकिन इसे पांच प्रतिशत तक किया जाना चाहिए.
पिछले साल के बजट में स्वास्थ्य सेवा क्षेत्र के लिए 69,000 करोड़ रुपये के आवंटन को मंजूरी दी गई थी. इसके अतिरिक्त पोषण संबंधी कार्यक्रमों के लिए 35,000 करोड़ रुपये आवंटित किए गए थे.
वरिष्ठ स्वास्थ्य विशेषज्ञ और नोनटोलॉजिस्ट (नवजात शिशु रोग विशेषज्ञ) डॉ. अरविंद गर्ग का कहना है कि सरकार को स्वास्थ्य बीमा योजनाओं को अधिक सस्ता बनाना चाहिए. हम सिर्फ अपना शोध और विनिर्माण क्षेत्र विकसित करते हैं ताकि हमें न्यूनतम लागत में अच्छी दवाएं मिलें.
उन्होंने इस बात पर जोर दिया कि सरकार को मोहल्ला क्लिनिक की अवधारणा को अपनाना चाहिए.
डॉ. गर्ग ने कहा, 'वास्तव में, प्रत्येक क्षेत्र के लिए अलग-अलग चिकित्सा देखभाल सुविधाएं होनी चाहिए. ताकि लोगों को सभी बुनियादी चीजों के लिए किसी विशेष संस्थान में जाने की जरूरत न पड़े.'
उल्लेखनीय है कि दिल्ली सरकार ने मोहल्ला क्लिनिक अवधारणा शुरू की है, जिसके तहत राष्ट्रीय राजधानी में सभी को चिकित्सा सुविधा मुहैया कराई जाती है.
स्वास्थ्य क्षेत्र के लिए हो राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा कैडर
डॉ. गर्ग ने आगे कहा कि भारतीय प्रशासनिक सेवा (आईएएस), भारतीय राजस्व सेवा (आईआरएस) की तरह एक अलग राष्ट्रीय चिकित्सा सेवा (एनएमएस) कैडर होना चाहिए, जो स्वास्थ्य क्षेत्र को ठीक कर सकता है.
डॉ. गर्ग ने इस तथ्य को स्वीकार किया कि कोरोना महामाीर एक तरह से हमारे अवसर भी लेकर आई. उन्होंने कहा, 'हमारे पास उचित डेटा संग्रह की सुविधा होनी चाहिए. कोरोना वायरस आपदा में अवसर की तरह था, जिसने सचेत किया कि हम भविष्य में इसी तरह के स्वास्थ्य आपातकाल के लिए बेहतर तरीके से तैयार रहें.'
प्रसिद्ध स्वास्थ्य विशेषज्ञ और इंडियन काउंसिल ऑफ मेडिकल रिसर्च (ICMR) की सलाहकार डॉ. सुनीला गर्ग ने कहा कि कोरोना महामारी में स्वास्थ्य क्षेत्र पर होने वाला खर्च लोगों की जेब पर भारी पड़ रहा है.
उन्होंने कहा, 'हम उम्मीद करते हैं कि सरकार को निश्चित रूप से स्वास्थ्य बजट में वृद्धि करनी चाहिए, क्योंकि पिछले साल भारत को कोविड-19 से लड़ने के लिए अधिक पैसे खर्च करने पड़े. हमें असाधारण स्थितियों के लिए बजट में आकस्मिक प्रावधान की आवश्यकता है.
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यह तथ्य है कि कोरोना महामारी के प्रारंभिक चरण में, भारत को पीपीई, वेंटिलेटर, मास्क आदि के आयात में करोड़ों रुपये खर्च करने पड़े. बाद में, भारतीय कंपनियों ने पीपीई, वेंटिलेटर, मास्क और अन्य आवश्यक चिकित्सा उपकरणों को बनाना शुरू कर दिया.
डॉ सुनीला गर्ग ने कहा कि हमें स्वास्थ्य देखभाल क्षेत्र की निजी कंपनियों को प्रोत्साहन देने की जरूरत है. क्योंकि उनके योगदान के कारण आज हम चिकित्सा उपकरणों का निर्यात करने की स्थिति में हैं. हम कोविड वैक्सीन का भी निर्यात कर रहे हैं.
उनका मानना है कि भारत के स्वास्थ्य ढांचे को मजबूत करने के लिए केंद्रीय बजट में आयुष्मान भारत और आत्मनिर्भार भारत के लिए बड़ी घोषणाएं होंगी.