अहमदाबाद : केंद्र सरकार ने पहले राज्यपालों की नियुक्ति (appointed governors ) की और फिर अगले दिन कैबिनेट का विस्तार किया है. दो दिनों में दिल्ली की घटना पर पूरे देश का ध्यान था. देश में महंगाई ने दस्तक दे दी है. पेट्रोल-डीजल के दाम (Petrol and diesel prices ) आसमान छू रहे हैं, रसोई गैस (LPG-cooking gas ) की कीमतें दोगुनी हो गई हैं, सब्जियों के दाम बढ़ गए हैं, खाद्य तेल के दाम भी बढ़ गए हैं. कोरोना काल (Corona period) में मध्यमवर्गीय परिवारों (middle class families) का बजट चरमरा गया है. दूसरी तरफ देश कोरोना वैक्सीन (corona vaccine) की कमी से जूझ रहा है. इन परिस्थितियों में केंद्र सरकार ने अपने खराब प्रदर्शन को सुधारने के लिए नई टीम का गठन किया है.
पाटीदार, ओबीसी और कोली का दबदबा
अब बात करते हैं 2022 में होने वाले गुजरात विधानसभा चुनाव की. इसकी रणनीति तैयार की जा चुकी है. गुजरात के सात सांसद मोदी कैबिनेट में प्रतिनिधित्व कर रहे हैं. यह क्षेत्रवार समीकरण के साथ-साथ जातिवाद का समीकरण (equation of casteism) भी तय करता है.
पाटीदार, ओबीसी और कोली समुदाय को महत्व देकर वोट बैंक को साधे रखने का प्रयास किया गया है. साथ ही आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) ने सूरत में पैठ बना ली है, जिससे सूरत की सांसद दर्शनबेन जरदोश ( Darshnaben Jardosh) को कैबिनेट में जगह दी गई है और उन्हें कपड़ा और रेल राज्य मंत्री (Minister of State for Textiles and Railways )बनाया गया है. इस तरह बीजेपी ने दक्षिण गुजरात और खासकर सूरत के वोट बैंक को बचा लिया है. 2022 के विधानसभा चुनावों में दर्शनबेन के दक्षिण गुजरात बेल्ट और विशेष रूप से सूरत के वोट खींचने की संभावना है.
पाटीदारों की नाराजगी दूर करने की कोशिश
पाटीदार भाजपा का सबसे बड़ा वोट बैंक (vote bank) है, जिसे साधने के लिए रूपाला और मांडविया को कैबिनेट मंत्री बनाया गया है, रूपाला को मत्स्य पालन और पशुपालन मंत्री ( Minister of Fisheries and Animal Husbandry) बनाया गया है, मांडविया को स्वास्थ्य, रसायन और उर्वरक मंत्री (Minister of Health, Chemicals and Fertilizers) बनाया गया है.
ये दोनों पाटीदार नेता हैं, इनका दबदबा भी बढ़ा है. जैसा कि पाटीदारों ने दावा किया था कि उन्हें दरकिनार कर दिया गया है और दोनों कुलों 'कड़वा' और 'लेउवा' में भारी नाराजगी है. दोनों पाटीदार नेताओं की पदोन्नति को पाटीदार गुटों के बीच नाराजगी से निपटने के रूप में देखा जा रहा है. इस प्रकार रूपाला और मांडविया पाटीदारों के साथ बैठ सकते हैं और उनके अन्याय को दूर कर सकते हैं और भाजपा के वोट बैंक को बचा सकते हैं.
क्या डॉ मुंजपारा कोली को बरकरार रख पाएंगे?
डॉ महेंद्र मुंजपारा कोली समुदाय से हैं. सौराष्ट्र और दक्षिण गुजरात (Saurashtra and South Gujarat) में बहुत बड़ा कोली समुदाय है. डॉ मुंजपारा को मंत्रिमंडल में शामिल कर उन्हें स्थान दिया गया है, उनके समुदाय में उनका महत्व निश्चित रूप से बढ़ गया है. इससे यह सुनिश्चित होगा कि 2022 के चुनाव में कोली मतदाता भाजपा के साथ रहे.
क्या दूर करेंगे देवसिंह ठाकोर अपने समुदाय की नाराजगी ?
देवू सिंह चौहान (Devu Singh Chauhan) ठाकोर समाज के नेता हैं, उन्हें कैबिनेट में इसलिए लाया गया है, ताकि 2017 के चुनाव में कांग्रेस का रुख करने वाले ठाकोर समाज को इस बार वापस लाया जा सके. देवू सिंह चौहान 2022 के चुनाव में मध्य गुजरात में ठाकोर समुदाय की नाराजगी को दूर करने में सक्षम होंगे.
और कितने समीकरण बदलेंगे
इस तरह सारी रणनीति और समीकरण तय कर मोदी कैबिनेट का विस्तार किया गया है. 2022 के विधानसभा चुनाव में यह कितना फलदायी होगा यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन उससे पहले चुनाव में अभी डेढ़ साल बाकी है, तब तक कई समीकरण (equations) बदल जाएंगे.
गुजरात बहुत तेजी से बढ़ेगा
ईटीवी भारत के साथ एक साक्षात्कार में राज्य भाजपा (State BJP spokesperson ) के प्रवक्ता यमल व्यास (Yamal Vyas) ने कहा, 'ऐसा कभी नहीं हुआ है कि गुजरात के सात सांसदों को केंद्रीय मंत्रिमंडल में शामिल किया गया हो. यह निश्चित रूप से कोई छोटी बात नहीं है. राज्य के सभी क्षेत्रों को कवर किया गया है और इससे राज्य को लाभ होगा. गुजरात बहुत तेजी से विकास करेगा. इसमें कोई संदेह नहीं है कि मोदी कैबिनेट के विस्तार के साथ, गुजरात की अधूरी परियोजनाओं को जल्दी से पूरा किया जा सकता है और गुजरात का विकास होगा. इसका सीधा फायदा 2022 के चुनावों में होगा. इस कैबिनेट विस्तार में सभी जातियों को प्राथमिकता दी गई है और इससे निश्चित रूप से गुजरात को फायदा होगा.
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खराबी सरकार के इंजन में है
कांग्रेस प्रवक्ता मनीष दोशी (Manish Doshi) ने ईटीवी भारत को बताया कि 'मोदी कैबिनेट का विस्तार लोगों को मंदी, महंगाई और महामारी से राहत देने के बजाय सुर्खियों में लाने के लिए किया गया है. खामी सरकार के इंजन में है.
देश को आर्थिक संकट (economic trouble) की ओर ले जा रही सरकार के नेतृत्व में खामियां हैं, जिससे देश की जनता नाराज है. कोरोना में फेल होने के बाद स्वास्थ्य मंत्री (health minister) को बदल दिया गया है. यह अच्छी बात है कि सरकार ने भी इस विफलता को स्वीकार किया, लेकिन साथ ही देश की जीडीपी को आर्थिक हालात में विफल करने में अहम भूमिका निभाने वाले वित्त मंत्रालय (finance ministry) को क्यों नहीं बदला गया, पेट्रोल के दाम 100 रुपये के पार पहुंच गए हैं. किसान और आम जनता नाराज है.
पेट्रोलियम मंत्रालय क्या कर रहा है? इससे स्पष्ट है कि सरकार की कथनी और करनी में अंतर है. जहां तक गुजरात की बात है, तो गुजरात की जनता से 'अच्छे दिन' का वादा किया था, सौ दिनों में महंगाई कम हो जाएगी. क्या हुआ ? नोटबंदी और जीएसटी से कारोबार चौपट हो गया है, तो दूसरी ओर किसान काले कानून से परेशान है. सरकार की नीति जनविरोधी, किसान विरोधी रही है. लोगों का ध्यान भटकाने के लिए सुर्खियों में बदलाव किया गया है.
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सरकार में केवल दो लोग हैं
आम आदमी पार्टी (Aam Aadmi Party) के नेता और पूर्व पत्रकार इसुदान गढ़वी (Ishudan Gadhvi) ने ईटीवी भारत से बातचीत में कहा कि आम आदमी पार्टी गुजरात में आगे बढ़ रही है. उधर, गुजरात के पांच मंत्री मोदी कैबिनेट के विस्तार में शामिल हुए हैं, लेकिन ये मंत्री काम नहीं कर रहे हैं, इससे परेशानी हो रही है. क्योंकि देश को दो ही लोग चल रहे हैं.
गुजरात से कई मंत्री हैं, लेकिन जिस तरह से दो लोग सरकार चला रहे हैं, ये मंत्री 2022 तक ही रहेंगे. गुजरात को अब बदलाव की जरूरत है. गुजरात के लोगों को पता चल गया है. भाजपा ने सिर्फ वादे किए हैं, काम नहीं. गुजरात की जनता अब अपने झूठे वादों को जानती है.
स्वास्थ्य मंत्री को बदल दिया गया जिसका शाब्दिक अर्थ है कि सरकार कोरोना काल में विफल रही है. हम उस समय का वीडियो भी देख सकते हैं जब वे पेट्रोल और डीजल में 60 रुपये का विरोध कर रहे थे. अच्छे पुराने दिन चंद व्यापारियों और व्यापारियों के लिए ही आए हैं.
गुजरात में लोग बीजेपी के नाम से नाराज हैं. गांव के लोग मुझसे नाम नहीं लेने को कह रहे हैं. बीजेपी का नाम लेना भी पाप माना जाता है. यानी जनता अब भाजपा की नीति से वाकिफ है.