नई दिल्ली : मशहूर लेखिका तस्लीमा नसरीन ने कहा है कि उन्हें भारत के संविधान में यकीन है और वे जानती हैं कि भारत में अल्पसंख्यकों के साथ कभी ऐसा कुछ नहीं होने वाला जैसा पाकिस्तान या बांग्लादेश में होता रहता है. ईटीवी भारत के नेशनल ब्यूरो चीफ राकेश त्रिपाठी के साथ एक टेलीफोनिक इंटरव्यू में उन्होंने ये भी कहा कि यह जरूरी नहीं कि मुसलमानों का नेता मुसलमान ही हो.
सवाल : आप भारत में बहुत दिनों से हैं. कई देशों में रही हैं,दुनिया घूमी है, कई देशों के समाज आपने देखे हैं. आपका अनुभव क्या रहा ?
जवाब: देखिए मैने बहुत सी सोसाइटीज देखी हैं, यूरोप, अमेरिका और भारतीय उपमहाद्वीप में. जो सोसायटी है इंडियन सबकॉन्टिनेंट में, वह बहुत पितृसत्तात्मक समाज है, महिला विरोधी (Misogynist) सोसायटी है. लोकतंत्र है यहां , लेकिन सच्चा लोकतंत्र नहीं है. अभिव्यक्ति की आजादी है, लेकिन पूरी तरह नहीं है. औरतों को अधिकार थोड़ा बहुत है, लेकिन वो भी पूरी तरह नहीं है. बराबरी का दर्जा और महिलाओं के प्रति न्यायसंगत दृष्टिकोण थोड़ा बहुत है, लेकिन पूरी तरह नहीं है. औरतों को पूरी तरह आजादी नहीं है. क्योंकि बहुत सारी परंपराएं तो औरतों के खिलाफ हैं ही, बहुत से रीति-रिवाज और संस्कृतियां भी उनके खिलाफ हैं. जो धार्मिक कानून हैं, वे औरतों के खिलाफ हैं और इसीलिए औरतों को बराबरी का दर्जा नहीं मिलता. उन अधिकारों के लिए इस पूरे उपमहाद्वीप में महिलाओं को लड़ना होगा. जिन देशों ने स्टेट और धर्म को अलग कर दिया, उन देशों में मानवाधिकार ज्यादा हैं, अभिव्यक्ति की आजादी ज़्यादा है और महिलाओं के अधिकार भी वहां ज्यादा हैं. इसलिए धर्म और स्टेट दोनों को अलग करना बहुत जरूरी है. कानून धर्म के आधार पर बनना ही नहीं चाहिए. कानून समानता पर आधारित होना चाहिए.
सवाल : अभी भारत में जो कानून हैं, वो धर्म पर आधारित नहीं हैं. तो क्या यहां महिलाओं का स्थिति ठीक है?
जवाब : यहां जो समाज धार्मिक कानूनों का पालन करता है, वहां तो महिलाओं का स्थिति ठीक नहीं है, उनको बराबरी का दर्जा नहीं मिला है. जैसे मुसलमानों का जो पर्सनल लॉ है, वह धर्म पर आधारित है. बाकी सबके लिए तो 1956 में कानून में बदलाव हुए और उनके मुताबिक औरतों को आजादी मिली हुई है, लेकिन बावजूद इसके जो समाज परंपरा और रीति-रिवाजों में बंधा होता है, उनकी महिलाओं के लिए आजादी फिर भी बहुत मुश्किल होती है.
सवाल : आपका कहना है कि मुस्लिम पर्सनल लॉ की वजह से औरतों की स्थिति ठीक नहीं है. मुसलमानों के बीच से कोई ऐसा नेता क्यों नहीं हुआ जो कहता कि पर्सनल लॉ किनारे करो, महिलाओं को आजादी दो.
जवाब : मुसलमानों में समझदारी का अभाव रहा, लेकिन बांग्लादेश में देखिए तो वहां के अल्पसंख्यक रूढ़िवादी हिंदू परिवारों को भी औरतों की आजादी नहीं चाहिए. उन्हें भी महिलाओं के लिए बराबरी का दर्जा नहीं चाहिए. उनका कानून भी पर्सनल लॉ पर आधारित है. वहां औरतों को तलाक का अधिकार नहीं है.
सवाल : ऐसा क्यों नहीं हुआ कि आजादी के बाद मुसलमानों को कोई ऐसा नेता नहीं मिला, जो उन्हें एक उजाले की तरफ ले जाता.
जवाब : भारतीय उपमहाद्वीप के देशों में राजनेता धर्म का इस्तेमाल ज्यादा करते हैं. इसीलिए लोगों में समझदारी का अभाव रहता है और औरतों को बराबरी के दर्जे की बात की नहीं जाती, चूंकि धर्म औरतों को दबा कर रखता है. मुसलमानों में पढ़ाई लिखाई करने से कुछ तो समझदारी आई है, लेकिन अब भी बहुत से लोग ऐसे हैं जिनमें समझदारी का अभाव है, कई लोग पढ़े-लिखे नहीं है, उनके पास नौकरी नहीं है. वे अब भी अंधेरे में जी रहे हैं, मदरसे जाते हैं, मस्जिद जाते हैं, उनके पास वैज्ञानिक सोच नहीं है, जो बहुत जरूरी है. जरूरी नहीं है कि मुसलमानों का नेता मुसलमान ही हो. अगर कोई नेता है, तो सभी धर्मों के लोगों का है और वह धर्म और आस्था से परे होता है. उसे बगैर किसी का धर्म देखे , सब को सेकुलरिज्म और समझदारी का रास्ता दिखाना चाहिए, जिससे धार्मिक पिछड़ेपन से वे वैज्ञानिक सोच की तरफ जाएं. नेता सेक्युलर होना चाहिए, जो सभी तरह के समाज के बारे में सोचे. उसे औरतों की स्वतंत्रता के बारे में , उनकी बराबरी के बारे में भी बात करनी चाहिए. मुसलमानों का नेता मुसलमान ही हो, ये सोच ठीक नहीं है, एक पिछड़ेपन की निशानी है. नेता धर्मनिरपेक्ष और सभी संप्रदायों के लिए प्रगतिवादी विचारधारा का होना चाहिए.
सवाल : तो मुसलमानों का नेतृत्व करने वाला कोई नेता आपको लगता है ?
जवाब : मुस्लिम लोगों को गाइड करने के लिए मुस्लिम लीडर क्यों होना चाहिए, जो भी धर्मनिरपेक्ष हो, हर संप्रदाय के लोगों का प्रतिनिधित्व करें, किसी का धर्म देखे बिना हर संप्रदाय की औरतों की आजादी के लिए काम करे, ऐसा नेता सबका होना चाहिए.
सवाल : ऐसा कोई नेता दिखता है तस्लीमा आपको हिंदुस्तान में ?
जवाब : बड़े राजनेता यह नहीं कहते हैं कि हिंदू को विकास चाहिए और मुसलमानों को नहीं चाहिए. वे सबके विकास की बात करते हैं. अच्छे नेता भी इस देश में हैं. आप भी जानते हैं. कुछ ऐसे अच्छे नेता जरूर होते हैं जो चाहते हैं कि समाज आगे बढ़े, स्टेट सेक्युलर रहे. अच्छे नेता यह चाहते हैं.
सवाल : क्या आप ऐसे किसी नेता का नाम ले सकती हैं ?
जवाब : नहीं, मैं किसी नेता का नाम नहीं ले सकती.
सवाल : बहुत से लोग कहते हैं कि भारत में पहले जैसा माहौल नहीं रहा. क्या आप मानती हैं कि भारत में वह सेक्युलरिज़्म नहीं रहा, जो पहले था ?
जवाब : मेरे साथ तो ऐसा कुछ नहीं हुआ. कई लोग ऐसा कहते हैं, लेकिन मैं भारत के संविधान में यकीन करती हूं, मैं यहां की धर्मनिरपेक्षता में विश्वास रखती हूं. बहुत से लोग यहां हैं, जो सभी दूसरे समुदायों के साथ अच्छी तरह शांतिपूर्वक रहना चाहते हैं. 1947 में विभाजन के समय इस उपमहाद्वीप ने बड़ी ट्रेजेडी देखी है. हिंसा और राजनीति से बंटवारे के समय लाखों लोगों की जान गई. तो अब शांति चाहने वाले लोग किसी तरह का दंगा या अशांति नहीं चाहते.
सवाल : क्या आप मानती हैं कि पिछले कुछ सालों से भारत में आपस में नफरत की भावना बढ़ी है?
जवाब : कभी-कभी तो हिंदू-मुस्लिम दोनों समुदायों के बीच थोड़ी नफरत दिखाई देती है, लेकिन इतना नहीं है कि इधर का मुसलमान उधर चला जाएगा. कुछ तो हो रहा है. बांग्लादेश में हिंदुओं के ऊपर बहुत हमले हुए. मैंने तो इसका बहुत विरोध किया. उधर कुछ होता है और हिंदू वहां से चला जाए, तो ये सब तो अच्छा नहीं है. आप इस देश की बात कर रहे हैं, मैं तो पूरी दुनिया की बात सोचती हूं, खासतौर पर यह भारतीय उप महाद्वीप के देशों के बारे में. भारत में लोकतंत्र अच्छी स्थिति में है, इसीलिए भारत में मेरा भरोसा है. मुझे यकीन है कि भारत में ऐसा कुछ नहीं होगा जैसा पाकिस्तान या बांग्लादेश में होता है. अल्पसंख्यकों पर अत्याचार की जो घटनाएं वहां होती हैं, मेरा विश्वास है. यहां नहीं होंगी. भारत में हिंदू बहुसंख्यक हैं और उनमें ज्यादातर सेक्युलर हैं. थोड़े से गिने-चुने कट्टर हिंदुओं की वजह से यह हम नहीं कह सकते कि सब सत्यानाश हो गया यहां, ऐसे सोचने की जरूरत नहीं है.
सवाल : हाल ही में अफगानिस्तान में जिस तरह के बदलाव हुए हैं, वहां औरतों के अधिकारों पर जिस तरह हमले हो रहे हैं, उसे आप कैसे देखती हैं ?
जवाब : यह नहीं होना चाहिए. बहुत लोग मारे गए. अफगानिस्तान से बहुत लोग बाहर भाग गए. तालिबानियों ने भरोसा दिलाया कि इस बार कुछ गड़बड़ी नहीं होगी, लेकिन क्या कहा जा सकता है. संयुक्त राष्ट्र और बहुत सारे देश अफगानिस्तान की कई तरह से मदद कर रहे हैं. उम्मीद करें कि अफगानिस्तान में जल्दी ही लोकतंत्र वापस आए. मैं हताश नहीं हूं, मुझे उम्मीद है. कभी-कभी हताशा होती है, लेकिन मुझे लगता है कि अच्छा वक्त जरूर वापस आएगा.
सवाल : बतौर लेखिका आपने विभिन्न विषयों पर बहुत सी किताबें लिखी हैं, क्या आप अब तक के लेखन से संतुष्ट हैं?
जवाब : मैंने करीब 45 किताबें लिखी हैं, ज्यादातर औरतों के अधिकारों पर आधारित किताबें हैं. लेकिन, मैं संतुष्ट नहीं हूं, हालांकि मेरे संस्मरण ऐसे हैं, जो महिलाओं को प्रेरित करते हैं. लेकिन फिर भी मुझे लगता है मुझे और अच्छा लिखना चाहिए.
सवाल : नई पीढ़ी की लड़कियों के लिए कुछ कहना चाहेंगी आप ?
जवाब : आज की महिलाओं के लिए मैं यही कहूंगी कि वे पढ़ाई-लिखाई करें, आर्थिक रूप से स्वतंत्र रहें.