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पिता की मौत के बाद बेटे ने नहीं किया मृत्यु भोज, समाज ने बंद किया हुक्का पानी

Bihar News: सदियों से चली आ रही परंपराओं को दरकिनार करते हुए एक बेटे ने अपनी पिता की मौत के नौंवे दिन ही श्रद्धांजलि सभा का आयोजन किया. इतना ही नहीं इसके अलावा किसी भी अन्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया गया. बेटे द्वारा पिता का मृत्यु भोज और क्रियाक्रम ना करने का विरोध शुरू हो गया है. गांव वालों ने परिवार का बहिष्कार कर दिया है. मामला बिहार के सहरसा का है.

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By ETV Bharat Hindi Team

Published : Dec 28, 2023, 1:53 PM IST

पिता की मौत के बाद बेटे ने नहीं किया मृत्यु भोज

सहरसा: सामाजिक कुप्रथा एवं कुरीतियों का शुरू से विरोध करने वाले अधिवक्ता अजय आजाद के पिता नित्यानन्द भगत का गत दिनों निधन हो गया. पिता की मौत के बात मृत्यु भोज नहीं कराने का बेटे ने बड़ा निर्णय लिया. इस फैसले के खिलाफ समाज का गुस्सा फूट पड़ा है और परिवार को समाज से बहिष्कृत कर दिया गया है.

पिता की मौत के बाद बेटे ने नहीं किया मृत्यु भोज: बता दें कि नित्यानंद भगत अपने पीछे तीन बेटे छोड़ गए हैं. सबसे बड़े बेटे अजय आजाद पेशे से अधिवक्ता हैं. वहीं दूसरा बेटा विजय भगत अनाज खरीद फरोख्त का काम करते हैं. जबकि तीसरे बेटे डॉ शशि भगत जेएनयू दिल्ली में पढ़ाई करते थे, अब ब्राजील जाकर PHD कर रहे हैं.

विधिवत क्रियाकर्म करने का फरमान जारी : पिता के निधन के बाद छोटे पुत्र के इंतजार में चार दिनों तक शव पड़ा रहा और ब्राजील से आने के बाद शव का दाह संस्कार किया गया. नौवें दिन शोकसभा आयोजित कर क्रियाकर्म सम्पन्न करने का प्रयास किया गया. जब इसकी सूचना ग्रामीणों को मिली तो उनलोगों ने आनन फानन में आपात बैठक कर इनलोगों को मृतक का विधिवत क्रियाकर्म करने का फरमान जारी किया.

नौवें दिन शोकसभा आयोजित
नौवें दिन शोकसभा आयोजित

ग्रामीणों ने किया हुक्का पानी बंद: साथ ही नया फरमान नहीं मानने पर सामाजिक बहिष्कार करते हुए हुक्का पानी बंद करने का ऐलान कर दिया गया. हालांकि सामाजिक फरमान के बाद मंझला भाई विजय भगत ने परम्परा निवर्हन का फैसला लेते हुए न सिर्फ अपना बाल का मुंडन करवाया बल्कि मृत्यु भोज करने का निर्णय लेते हुए पूरे समाज को एक दिन भोज भी खिलाया.

एक बेटे ने मान ली लोगों की बात: वहीं दो अन्य भाइयों पर कोई असर नहीं पड़ा. उनलोगों ने समाज के विरुद्ध अपने फैसले पर कायम रहते हुए किसी भी कर्मकांड को मानने से इनकार करते हुए अपने पूर्व के निर्णय पर कायम रहे. न नखबाल करवाया और न ही भोज में शरीक हुए.

पंचायत लगाकर ग्रामीणों ने जारी किया फरमान
पंचायत लगाकर जारी किया फरमान

सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ है बड़ा बेटा: वहीं इस मामले पर जब बड़े भाई अजय आजाद अधिवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम शुरू से ही मृत्यु भोज के खिलाफ थे. कर्मकांड और ये जो सामाजिक कुप्रथा है जो वर्षों से चली आ रही थी, उसके विरुद्ध वे लगातार आवाज बुलंद करते थे. यदि किसी पड़ोसी का निधन होता था तो हम उसको जागरूक करते थे कि मृत्य भोज मत किजिये.

शिक्षा में पैसे खर्च करने की सलाह: अजय आजाद ने कहा कि मैं लोगों को यही कहता हूं कि मृत्यु भोज में जो खर्च होगा उसको शिक्षा पर खर्च कीजिये. पारिवारिक समृद्धि तभी आयेगी. समाज जब शिक्षित होगा तभी हम समृद्ध होंगे. इन्होंने कहा कि हम वर्षों से चली आ रही परम्परा को तिलांजलि देने की शुरुआत किये हैं.

"हमने पिताजी के निधन के पश्चात कोई क्रियाकर्म नहीं किया. नौंवे दिन श्रद्धांजलि सभा किया और किसी भी अन्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया. हालांकि इसका विरोध भी हुआ. वैसे नए कार्यों का हमेशा विरोध होता है. सनातन धर्म के बड़े पैरोकार मोदी जी ने अपनी मां के निधन पर बाल नहीं मुंडवाया. हमने भी वहीं किया."- अजय आजाद, नित्यानन्द भगत के बड़े बेटे

'क्रियाकर्म करना अनिवार्य'- ग्रामीण: वहीं अजय आजाद के निर्णय से आहत ग्रामीणों का स्पष्ट कहना था कि मृत्युभोज न करे पर क्रियाकर्म करना अनिवार्य था. उनलोगों ने इन सभी नियमों का उल्लंघन करते सामाजिक परम्परा को तोड़ा है जिसके कारण समाज ने उसे बहिष्कृत कर दिया है. मौके पर मौजूद दिलीप शर्मा की मानें तो सामाजिक परम्परा का उल्लंघन करना विरोध का मुख्य कारण था.

"मृत्यु भोज नहीं करना अलग बात है लेकिन मृतक की आत्मा की शांति के लिए क्रियाकर्म करना अनिवार्य था. समाज का दबाव भी इसी कार्यक्रम को लेकर था जो विरोध का कारण बना."- ग्रामीण

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पिता की मौत के बाद बेटे ने नहीं किया मृत्यु भोज

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पिता की मौत के बाद बेटे ने नहीं किया मृत्यु भोज: बता दें कि नित्यानंद भगत अपने पीछे तीन बेटे छोड़ गए हैं. सबसे बड़े बेटे अजय आजाद पेशे से अधिवक्ता हैं. वहीं दूसरा बेटा विजय भगत अनाज खरीद फरोख्त का काम करते हैं. जबकि तीसरे बेटे डॉ शशि भगत जेएनयू दिल्ली में पढ़ाई करते थे, अब ब्राजील जाकर PHD कर रहे हैं.

विधिवत क्रियाकर्म करने का फरमान जारी : पिता के निधन के बाद छोटे पुत्र के इंतजार में चार दिनों तक शव पड़ा रहा और ब्राजील से आने के बाद शव का दाह संस्कार किया गया. नौवें दिन शोकसभा आयोजित कर क्रियाकर्म सम्पन्न करने का प्रयास किया गया. जब इसकी सूचना ग्रामीणों को मिली तो उनलोगों ने आनन फानन में आपात बैठक कर इनलोगों को मृतक का विधिवत क्रियाकर्म करने का फरमान जारी किया.

नौवें दिन शोकसभा आयोजित
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ग्रामीणों ने किया हुक्का पानी बंद: साथ ही नया फरमान नहीं मानने पर सामाजिक बहिष्कार करते हुए हुक्का पानी बंद करने का ऐलान कर दिया गया. हालांकि सामाजिक फरमान के बाद मंझला भाई विजय भगत ने परम्परा निवर्हन का फैसला लेते हुए न सिर्फ अपना बाल का मुंडन करवाया बल्कि मृत्यु भोज करने का निर्णय लेते हुए पूरे समाज को एक दिन भोज भी खिलाया.

एक बेटे ने मान ली लोगों की बात: वहीं दो अन्य भाइयों पर कोई असर नहीं पड़ा. उनलोगों ने समाज के विरुद्ध अपने फैसले पर कायम रहते हुए किसी भी कर्मकांड को मानने से इनकार करते हुए अपने पूर्व के निर्णय पर कायम रहे. न नखबाल करवाया और न ही भोज में शरीक हुए.

पंचायत लगाकर ग्रामीणों ने जारी किया फरमान
पंचायत लगाकर जारी किया फरमान

सामाजिक कुप्रथा के खिलाफ है बड़ा बेटा: वहीं इस मामले पर जब बड़े भाई अजय आजाद अधिवक्ता से पूछा गया तो उन्होंने कहा कि हम शुरू से ही मृत्यु भोज के खिलाफ थे. कर्मकांड और ये जो सामाजिक कुप्रथा है जो वर्षों से चली आ रही थी, उसके विरुद्ध वे लगातार आवाज बुलंद करते थे. यदि किसी पड़ोसी का निधन होता था तो हम उसको जागरूक करते थे कि मृत्य भोज मत किजिये.

शिक्षा में पैसे खर्च करने की सलाह: अजय आजाद ने कहा कि मैं लोगों को यही कहता हूं कि मृत्यु भोज में जो खर्च होगा उसको शिक्षा पर खर्च कीजिये. पारिवारिक समृद्धि तभी आयेगी. समाज जब शिक्षित होगा तभी हम समृद्ध होंगे. इन्होंने कहा कि हम वर्षों से चली आ रही परम्परा को तिलांजलि देने की शुरुआत किये हैं.

"हमने पिताजी के निधन के पश्चात कोई क्रियाकर्म नहीं किया. नौंवे दिन श्रद्धांजलि सभा किया और किसी भी अन्य कार्यक्रम का आयोजन नहीं किया. हालांकि इसका विरोध भी हुआ. वैसे नए कार्यों का हमेशा विरोध होता है. सनातन धर्म के बड़े पैरोकार मोदी जी ने अपनी मां के निधन पर बाल नहीं मुंडवाया. हमने भी वहीं किया."- अजय आजाद, नित्यानन्द भगत के बड़े बेटे

'क्रियाकर्म करना अनिवार्य'- ग्रामीण: वहीं अजय आजाद के निर्णय से आहत ग्रामीणों का स्पष्ट कहना था कि मृत्युभोज न करे पर क्रियाकर्म करना अनिवार्य था. उनलोगों ने इन सभी नियमों का उल्लंघन करते सामाजिक परम्परा को तोड़ा है जिसके कारण समाज ने उसे बहिष्कृत कर दिया है. मौके पर मौजूद दिलीप शर्मा की मानें तो सामाजिक परम्परा का उल्लंघन करना विरोध का मुख्य कारण था.

"मृत्यु भोज नहीं करना अलग बात है लेकिन मृतक की आत्मा की शांति के लिए क्रियाकर्म करना अनिवार्य था. समाज का दबाव भी इसी कार्यक्रम को लेकर था जो विरोध का कारण बना."- ग्रामीण

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