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हिंसा के आह्वान की निंदा की जानी चाहिए चाहे उसका कोई भी धार्मिक, वैचारिक स्रोत हो : पूर्व अधिकारी

पांच राज्यों में चुनाव से पहले हेट स्पीच (hate speech) के मामले सामने आने से राजनीतिक दलों की चिंता बढ़ी है. इस बीच 32 पूर्व राजदूतों ने संयुक्त बयान में अभद्र भाषा की निंदा करने का आह्वान किया साथ ही आरोप लगाया कि ऐसी निंदा सार्वभौम होनी चाहिए, न कि चुनिंदा तरीके से की जानी चाहिए. जानिए पूर्व आईएफएस अधिकारियों के समूह ने एक खुले पत्र में क्या कहा.

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प्रतीकात्मक फोटो
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Published : Jan 5, 2022, 5:09 PM IST

नई दिल्ली : हरिद्वार धर्म संसद में नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाने के खिलाफ सशस्त्र बलों के कुछ पूर्व प्रमुखों सहित कई जानी-मानी हस्तियों द्वारा कार्रवाई की मांग किए जाने के कुछ दिनों बाद, भारतीय विदेश सेवा (IFS) के पूर्व अधिकारियों के एक समूह ने बुधवार को उन पर सरकार को 'बदनाम करने का अभियान' चलाने का आरोप लगाया. और कहा कि ऐसी निंदा सार्वभौम होनी चाहिए, न कि चुनिंदा तरीके से की जानी चाहिए.

कंवल सिब्बल (Kanwal Sibal), वीणा सीकरी (Veena Sikri), लक्ष्मी पुरी (Lakshmi Puri) समेत 32 पूर्व आईएफएस अधिकारियों के समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि हिंसा के सभी तरह के आह्वानों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे उसके धार्मिक, जातीय, वैचारिक या क्षेत्रीय उत्पत्ति स्थल कुछ भी हो तथा इसकी निंदा करने में किसी भी तरह का दोहरा मापदंड और चयनात्मकता उद्देश्यों व नैतिकता पर सवाल उठाती है.

'सरकार को बदनाम करने का बहाना'

उन्होंने आरोप लगाया कि सक्रियतावादियों के एक समूह , जिनमें माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले कई जाने माने वामपंथी शामिल हैं, के साथ कुछ पूर्व लोक सेवकों और अपने करियर में उच्च पदों पर रहे सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों के अलावा मीडिया के कुछ हिस्से ने मौजूदा सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रखा है. इसकी वजह ये है कि उन्हें लगता है कि सरकार देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन कर रही है.

उन्होंने दावा किया कि 'हिंदुत्व विरोध' की आड़ में यह तेज़ी से 'हिंदू विरोधी' तत्व बन रहा है. उन्होंने दावा किया कि हिंदू विरोध 'धर्मनिरपेक्षता' का दिखावा करने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने के लिए 'नाज़ीवाद' और 'नरंसहार' जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करने और (केंद्र की नरेंद्र) मोदी सरकार को बदनाम करने का आसान बहाना हो गया है.

सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों ने लिखा था पत्र

इससे पहले, सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों, नौकरशाहों समेत कई प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'नफरत फैलाने वाले भाषणों की हालिया घटनाओं' को लेकर पत्र लिखा था और उनसे उपयुक्त कदम उठाने का आग्रह किया था. पत्र में, 100 से अधिक लोगों के समूह ने हाल में उत्तराखंड के हरिद्वार में की गई मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों का हवाला दिया था और इसकी निंदा की थी.

जानिए जवाबी पत्र में क्या

अपने जवाबी पत्र में पूर्व आईएफएस अधिकारियों ने स्वीकार किया कि हरिद्वार के कार्यक्रम में की गई टिप्पणियों की सभी विचारधाराओं द्वारा निंदा की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि इन इक्का-दुक्का घटनाओं को इस तरह बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है जैसे कि वह सत्तारूढ़ दल की भावना का प्रतिनिधित्व करती हों, ऐसे में आलोचकों की राजनीतिक प्रतिबद्धता और नैतिकता पर सवाल उठाना चाहिए.

पढ़ें- ओवैसी के खिलाफ CJI को लिखा पत्र, 'नफरत भरे भाषण' पर संज्ञान लेने की अपील

उन्होंने कहा, 'सरकार पर यह सभी हमले पूरी तरह से एकतरफा और एक ओर झुकाव रखने वाले हैं. वे देश में कहीं भी किसी भी उस समूह द्वारा दिए गए बयान के लिए सरकार को दोषी ठहराने की कोशिश करते हैं जो 'हिंदू' नाम का इस्तेमाल करते हैं.'

'पुरस्कार नहीं मिलने की हताशा'

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वालों की आलोचना करते हुए, उन्होंने कहा कि क्या यह सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कुछ पुरस्कार नहीं मिलने की हताशा को प्रदर्शित करता है या उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद अब तक निष्क्रिय पड़े अपने राजनीतिक जुड़ाव का पता चला? क्या वे केंद्र में संभावित राजनीतिक बदलाव में निवेश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इन ज्ञानी व्यक्तियों को स्वतंत्रता के बाद और पहले से मौजूद सांप्रदायिक और धार्मिक हिंसा के बारे में जानकारी नहीं है तथा यह 2014 के बाद अचानक नहीं प्रकट हुआ है.

पढ़ें- हेट स्पीच केस : हाईकोर्ट से बोला आरोपी, हिंदू राष्ट्र की मांग धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाना नहीं

उन्होंने कहा कि अपील पर हस्ताक्षर करने वालों की नजर में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को पाकिस्तान और चीन से उतना खतरा नहीं है, जितना कि मुट्ठी भर हिंदू सक्रियतावादियों द्वारा अल्पसंख्यकों के बारे में कम महत्व के मंच से कुछ बुरा कहना और आक्रामक रूप से अपनी हिंदू पहचान का दावा करने से है. दरअसल एक अन्य पार्टी ने एक समुदाय के लोगों को 'भारत में चार मिनी पाकिस्तान बनाने' के लिए एक साथ आने के लिए उकसाया था. इससे पहले 'पूरे बहुसंख्यक समुदाय का सफाया करने के लिए केवल 15 मिनट की आवश्यकता है' वाला बयान भी सामने आया था.

पढ़ें- haridwar dharma sansad hate speech : जांच के लिए पांच सदस्यीय SIT का गठन

नई दिल्ली : हरिद्वार धर्म संसद में नफरत फैलाने वाले भाषण दिए जाने के खिलाफ सशस्त्र बलों के कुछ पूर्व प्रमुखों सहित कई जानी-मानी हस्तियों द्वारा कार्रवाई की मांग किए जाने के कुछ दिनों बाद, भारतीय विदेश सेवा (IFS) के पूर्व अधिकारियों के एक समूह ने बुधवार को उन पर सरकार को 'बदनाम करने का अभियान' चलाने का आरोप लगाया. और कहा कि ऐसी निंदा सार्वभौम होनी चाहिए, न कि चुनिंदा तरीके से की जानी चाहिए.

कंवल सिब्बल (Kanwal Sibal), वीणा सीकरी (Veena Sikri), लक्ष्मी पुरी (Lakshmi Puri) समेत 32 पूर्व आईएफएस अधिकारियों के समूह ने एक खुले पत्र में कहा है कि हिंसा के सभी तरह के आह्वानों की निंदा की जानी चाहिए, चाहे उसके धार्मिक, जातीय, वैचारिक या क्षेत्रीय उत्पत्ति स्थल कुछ भी हो तथा इसकी निंदा करने में किसी भी तरह का दोहरा मापदंड और चयनात्मकता उद्देश्यों व नैतिकता पर सवाल उठाती है.

'सरकार को बदनाम करने का बहाना'

उन्होंने आरोप लगाया कि सक्रियतावादियों के एक समूह , जिनमें माओवादियों से सहानुभूति रखने वाले कई जाने माने वामपंथी शामिल हैं, के साथ कुछ पूर्व लोक सेवकों और अपने करियर में उच्च पदों पर रहे सशस्त्र बलों के सेवानिवृत्त अधिकारियों के अलावा मीडिया के कुछ हिस्से ने मौजूदा सरकार को बदनाम करने का अभियान चला रखा है. इसकी वजह ये है कि उन्हें लगता है कि सरकार देश के धर्मनिरपेक्ष लोकाचार का उल्लंघन कर रही है.

उन्होंने दावा किया कि 'हिंदुत्व विरोध' की आड़ में यह तेज़ी से 'हिंदू विरोधी' तत्व बन रहा है. उन्होंने दावा किया कि हिंदू विरोध 'धर्मनिरपेक्षता' का दिखावा करने, अंतरराष्ट्रीय समुदाय का ध्यान खींचने के लिए 'नाज़ीवाद' और 'नरंसहार' जैसी शब्दावली का इस्तेमाल करने और (केंद्र की नरेंद्र) मोदी सरकार को बदनाम करने का आसान बहाना हो गया है.

सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों ने लिखा था पत्र

इससे पहले, सशस्त्र बलों के पांच पूर्व प्रमुखों, नौकरशाहों समेत कई प्रतिष्ठित नागरिकों ने राष्ट्रपति रामनाथ कोविंद और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को 'नफरत फैलाने वाले भाषणों की हालिया घटनाओं' को लेकर पत्र लिखा था और उनसे उपयुक्त कदम उठाने का आग्रह किया था. पत्र में, 100 से अधिक लोगों के समूह ने हाल में उत्तराखंड के हरिद्वार में की गई मुस्लिम विरोधी टिप्पणियों का हवाला दिया था और इसकी निंदा की थी.

जानिए जवाबी पत्र में क्या

अपने जवाबी पत्र में पूर्व आईएफएस अधिकारियों ने स्वीकार किया कि हरिद्वार के कार्यक्रम में की गई टिप्पणियों की सभी विचारधाराओं द्वारा निंदा की जानी चाहिए. उन्होंने कहा कि इन इक्का-दुक्का घटनाओं को इस तरह बढ़ा-चढ़ा कर बताया जाता है जैसे कि वह सत्तारूढ़ दल की भावना का प्रतिनिधित्व करती हों, ऐसे में आलोचकों की राजनीतिक प्रतिबद्धता और नैतिकता पर सवाल उठाना चाहिए.

पढ़ें- ओवैसी के खिलाफ CJI को लिखा पत्र, 'नफरत भरे भाषण' पर संज्ञान लेने की अपील

उन्होंने कहा, 'सरकार पर यह सभी हमले पूरी तरह से एकतरफा और एक ओर झुकाव रखने वाले हैं. वे देश में कहीं भी किसी भी उस समूह द्वारा दिए गए बयान के लिए सरकार को दोषी ठहराने की कोशिश करते हैं जो 'हिंदू' नाम का इस्तेमाल करते हैं.'

'पुरस्कार नहीं मिलने की हताशा'

राष्ट्रपति और प्रधानमंत्री को पत्र लिखने वालों की आलोचना करते हुए, उन्होंने कहा कि क्या यह सेवानिवृत्ति के बाद सरकार से कुछ पुरस्कार नहीं मिलने की हताशा को प्रदर्शित करता है या उन्हें सेवानिवृत्ति के बाद अब तक निष्क्रिय पड़े अपने राजनीतिक जुड़ाव का पता चला? क्या वे केंद्र में संभावित राजनीतिक बदलाव में निवेश कर रहे हैं.

उन्होंने कहा कि ऐसा नहीं है कि इन ज्ञानी व्यक्तियों को स्वतंत्रता के बाद और पहले से मौजूद सांप्रदायिक और धार्मिक हिंसा के बारे में जानकारी नहीं है तथा यह 2014 के बाद अचानक नहीं प्रकट हुआ है.

पढ़ें- हेट स्पीच केस : हाईकोर्ट से बोला आरोपी, हिंदू राष्ट्र की मांग धार्मिक समूहों के बीच शत्रुता बढ़ाना नहीं

उन्होंने कहा कि अपील पर हस्ताक्षर करने वालों की नजर में भारत की राष्ट्रीय सुरक्षा को पाकिस्तान और चीन से उतना खतरा नहीं है, जितना कि मुट्ठी भर हिंदू सक्रियतावादियों द्वारा अल्पसंख्यकों के बारे में कम महत्व के मंच से कुछ बुरा कहना और आक्रामक रूप से अपनी हिंदू पहचान का दावा करने से है. दरअसल एक अन्य पार्टी ने एक समुदाय के लोगों को 'भारत में चार मिनी पाकिस्तान बनाने' के लिए एक साथ आने के लिए उकसाया था. इससे पहले 'पूरे बहुसंख्यक समुदाय का सफाया करने के लिए केवल 15 मिनट की आवश्यकता है' वाला बयान भी सामने आया था.

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