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ETV भारत से बोले पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त, 'धर्म संसद पर चुप्पी सबको समझ आ रही'

पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी ने कहा कि धर्म संसद पर चुप्पी, सबको समझ आ रही है. यह सीधे तौर पर सरकार की संलिप्तता या कहें तो उनका संरक्षण दर्शा रहा है. ईटीवी भारत के साथ विशेष बातचीत में उन्होंने कहा कि सरकार को कानून के कड़े प्रावधानों के तहत कार्रवाई करनी चाहिए थी. रैली को लेकर उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को 15 जनवरी के बाद होने वाली सभी रैलियों पर रोक लगाने की घोषणा करनी चाहिए थी. उनसे बातचीत की है ईटीवी भारत के वरिष्ठ संवाददाता सौरभ शर्मा ने.

ex cec sy quraishi
पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी
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Published : Jan 10, 2022, 9:24 PM IST

नई दिल्ली : हरिद्वार में हुई धर्म संसद के दौरान कुछ साधु-संतों के भाषण को लेकर विवाद जारी है. सुप्रीम कोर्ट भी इससे जुड़ी याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई है. हालांकि, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी मानते हैं कि इस मामले में कार्यपालिका को जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी, वैसा कुछ भी नहीं किया गया. ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में कुरैशी ने कहा कि जिस तरह की चर्चाएं वहां पर हुईं हैं, सरकार को कानून के कड़े प्रावधानों के तहत कार्रवाई करनी चाहिए थी. यह अफसोस की बात है, कि इस मामले में तत्परता नहीं दिखी. क्या हो रहा है, लोगों को सब दिख रहा है.

कुरैशी ने दो टूक कहा कि इन लोगों को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है. चारों ओर जिस तरह से इस मुद्दे पर चुप्पी है, यह बहुत ही चिंताजनक है. बल्कि आप कहिए कि यह 'चुप्पी' भी तो 'संलिप्तता' ही है. किसी ने निंदा तक नहीं की है, इससे अफसोसनाक बात और क्या हो सकती है. एक दिन पहले रविवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजनीति में धर्म के प्रयोग पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने चुनाव आयोग से इस मामले में कार्रवाई करने की भी अपील की. दरअसल, जिस दिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक भाषण के दौरान कहा था कि यूपी में 80 पर्सेंट वर्सेस 20 पर्सेंट चुनाव में देखने को मिलेगा, उसके ठीक अगले दिन धर्म संसद में विवादास्पद भाषण दिया गया.

इससे जुड़ा सवाल जब कुरैशी से किया गया, तो उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को सजग रहना होगा. अगर कोई नियमों का उल्लंघन करता है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी. आयोग को किसी तरह की ढिलाई या लचीला रूख नहीं अपनाना चाहिए. और वैसे भी चुनाव की घोषणा होते ही कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के पास चली आती है. कोई भी किसी तरह का बयान देता है, तो आयोग उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है.

कुरैशी से जब पूछा गया कि ओमीक्रोन की वजह से आयोग ने 15 जनवरी तक पब्लिक रैली पर पाबंदी की घोषणा कर दी है, इस पर उन्होंने कहा कि बेहतर होता कि आयोग रैली और जनसभा दोनों पर रोक लगा देता. आयोग ने 10 मार्च यानी मतगणना वाले दिन भी विजय जुलूस और सेलिब्रेशन्स को इजाजत नहीं दी है. लेकन मुझे यह नहीं समझ आ रहा है कि आयोग ने 10 मार्च को तो प्रतिबंध की घोषणा कर दी, लेकिन उसके पहले और 15 जनवरी के बाद के लिए भी ऐसी ही घोषणा क्यों नहीं की.

उन्होंने कहा कि जैसे ही बड़े नेता जनसभा में जाएंगे, तो भीड़ इकट्ठा होगी ही. वैसे भी जनसभा हो या रैली, वहां पर लोग एकत्रित होते ही हैं. आप इसे जो भी नाम दे दें, जनता आएगी ही. इसलिए अच्छा होता कि सभी तरह की रैली, जनसभा और बैठकों पर आयोग रोक लगाता. यह समय की जरूरत है. आखिरकार सबके स्वास्थ्य का हित इससे जुड़ा है. इसे आप कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं.

आपको बता दें कि आठ जनवरी को चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था. उसी दिन से मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू है. यह देखना बाकी है कि ये चुनाव ध्रुवीकरण और धार्मिक विभाजन के आधार पर होता है या फिर विकास के नाम पर.

ये भी पढे़ं : उत्तर प्रदेश की चुनावी फिजा में राम के बाद अब गूंजा कृष्णा का नाम..

नई दिल्ली : हरिद्वार में हुई धर्म संसद के दौरान कुछ साधु-संतों के भाषण को लेकर विवाद जारी है. सुप्रीम कोर्ट भी इससे जुड़ी याचिका पर सुनवाई के लिए तैयार हो गई है. हालांकि, पूर्व मुख्य चुनाव आयुक्त एसवाई कुरैशी मानते हैं कि इस मामले में कार्यपालिका को जिस तरह की कार्रवाई करनी चाहिए थी, वैसा कुछ भी नहीं किया गया. ईटीवी भारत के साथ एक्सक्लूसिव बातचीत में कुरैशी ने कहा कि जिस तरह की चर्चाएं वहां पर हुईं हैं, सरकार को कानून के कड़े प्रावधानों के तहत कार्रवाई करनी चाहिए थी. यह अफसोस की बात है, कि इस मामले में तत्परता नहीं दिखी. क्या हो रहा है, लोगों को सब दिख रहा है.

कुरैशी ने दो टूक कहा कि इन लोगों को सत्ता का संरक्षण मिला हुआ है. चारों ओर जिस तरह से इस मुद्दे पर चुप्पी है, यह बहुत ही चिंताजनक है. बल्कि आप कहिए कि यह 'चुप्पी' भी तो 'संलिप्तता' ही है. किसी ने निंदा तक नहीं की है, इससे अफसोसनाक बात और क्या हो सकती है. एक दिन पहले रविवार को बसपा सुप्रीमो मायावती ने राजनीति में धर्म के प्रयोग पर चिंता व्यक्त की थी. उन्होंने चुनाव आयोग से इस मामले में कार्रवाई करने की भी अपील की. दरअसल, जिस दिन यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ ने एक भाषण के दौरान कहा था कि यूपी में 80 पर्सेंट वर्सेस 20 पर्सेंट चुनाव में देखने को मिलेगा, उसके ठीक अगले दिन धर्म संसद में विवादास्पद भाषण दिया गया.

इससे जुड़ा सवाल जब कुरैशी से किया गया, तो उन्होंने कहा कि चुनाव आयोग को सजग रहना होगा. अगर कोई नियमों का उल्लंघन करता है, तो उनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करनी होगी. आयोग को किसी तरह की ढिलाई या लचीला रूख नहीं अपनाना चाहिए. और वैसे भी चुनाव की घोषणा होते ही कानून एवं व्यवस्था की जिम्मेदारी चुनाव आयोग के पास चली आती है. कोई भी किसी तरह का बयान देता है, तो आयोग उनके खिलाफ कदम उठाने के लिए पूरी तरह से स्वतंत्र है.

कुरैशी से जब पूछा गया कि ओमीक्रोन की वजह से आयोग ने 15 जनवरी तक पब्लिक रैली पर पाबंदी की घोषणा कर दी है, इस पर उन्होंने कहा कि बेहतर होता कि आयोग रैली और जनसभा दोनों पर रोक लगा देता. आयोग ने 10 मार्च यानी मतगणना वाले दिन भी विजय जुलूस और सेलिब्रेशन्स को इजाजत नहीं दी है. लेकन मुझे यह नहीं समझ आ रहा है कि आयोग ने 10 मार्च को तो प्रतिबंध की घोषणा कर दी, लेकिन उसके पहले और 15 जनवरी के बाद के लिए भी ऐसी ही घोषणा क्यों नहीं की.

उन्होंने कहा कि जैसे ही बड़े नेता जनसभा में जाएंगे, तो भीड़ इकट्ठा होगी ही. वैसे भी जनसभा हो या रैली, वहां पर लोग एकत्रित होते ही हैं. आप इसे जो भी नाम दे दें, जनता आएगी ही. इसलिए अच्छा होता कि सभी तरह की रैली, जनसभा और बैठकों पर आयोग रोक लगाता. यह समय की जरूरत है. आखिरकार सबके स्वास्थ्य का हित इससे जुड़ा है. इसे आप कैसे नजरअंदाज कर सकते हैं.

आपको बता दें कि आठ जनवरी को चुनाव आयोग ने उत्तर प्रदेश, उत्तराखंड, पंजाब, मणिपुर और गोवा के लिए चुनाव की तारीखों का ऐलान कर दिया था. उसी दिन से मॉडल कोड ऑफ कंडक्ट लागू है. यह देखना बाकी है कि ये चुनाव ध्रुवीकरण और धार्मिक विभाजन के आधार पर होता है या फिर विकास के नाम पर.

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