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EWS आरक्षण देना एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण को प्रभावित नहीं करता : केंद्र - उच्चतम न्यायालय

केंद्र ने ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन का जोरदार बचाव किया है. केंद्र ने सुप्रीम कोर्ट में कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण (EWS quota) देना एससी, एसटी, ओबीसी आरक्षण को प्रभावित नहीं करता.

Supreme Court
उच्चतम न्यायालय
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Published : Sep 20, 2022, 10:54 PM IST

नई दिल्ली : अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 'पूरी तरह से स्वतंत्र' आरक्षण को खत्म किए बिना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को पहली बार सामान्य वर्ग की 50 प्रतिशत सीटों में से दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) को यह जानकारी दी.

ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन का जोरदार बचाव करते हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि इसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत कोटे में हस्तक्षेप किए बिना दिया गया है. हालांकि, तमिलनाडु ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि वर्गीकरण का आधार आर्थिक मानदंड नहीं हो सकता है और अगर उच्चतम न्यायालय ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला करता है तो उसे इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए.

आरक्षण के अलावा सरकार की सकारात्मक कार्रवाई पर प्रकाश डालते हुए वेणुगोपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया और कहा कि एससी और एसटी समुदाय को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण दिया गया है. पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं.

अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा, 'ईडब्ल्यूएस को यह (आरक्षण) पहली बार दिया गया है. दूसरी ओर, जहां तक एससी और एसटी समुदाय का संबंध है, उन्हें सरकार की सकारात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से लाभान्वित किया गया है.' उन्होंने कहा, 'इस सामान्य वर्ग की एक बड़ी आबादी, जो शायद अधिक मेधावी है, शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अवसरों से वंचित हो जाएगी (यदि उनके लिए आरक्षण समाप्त कर दिया जाता है).'

वेणुगोपाल ने एसईबीसी और सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बीच भेद करने पर जोर देते हुए कहा कि दोनों असमान हैं और समरूप समूह नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण अलग है. पीठ ने पूछा, 'क्या आपके पास कोई आंकड़ा है जो ईडब्ल्यूएस को खुली श्रेणी में दर्शाता है, उनका प्रतिशत कितना होगा?'

वेणुगोपाल ने नीति आयोग द्वारा उपयोग किए जाने वाले 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक को संदर्भित करते हुए कहा कि कुल मिलाकर सामान्य वर्ग की कुल आबादी का 18.2 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस से संबंधित है. उन्होंने कहा, 'जहां तक आंकड़े का सवाल है, तो यह कुल आबादी का लगभग 3.5 करोड़ होगा.' वेणुगोपाल मामले में बुधवार को भी दलीलें पेश करेंगे. सुनवाई की शुरुआत में गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'यूथ फॉर इक्वेलिटी' की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह 'लंबे समय से लंबित' और 'सही दिशा में सही कदम' है.

वहीं, तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि निष्पक्षता का सिद्धांत और मनमानी नहीं किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और केवल आरक्षण देने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना, इसका उल्लंघन होगा.

पढ़ें- हिजाब विवाद : कर्नाटक सरकार ने कहा, पोशाक संबंधी आदेश 'धर्म निरपेक्ष'; गड़बड़ी के लिए PFI जिम्मेदार

(पीटीआई-भाषा)

नई दिल्ली : अनुसूचित जाति (एससी), अनुसूचित जनजाति (एसटी) और अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) के लिए 'पूरी तरह से स्वतंत्र' आरक्षण को खत्म किए बिना आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग (ईडब्ल्यूएस) को पहली बार सामान्य वर्ग की 50 प्रतिशत सीटों में से दाखिले और नौकरियों में 10 प्रतिशत आरक्षण दिया गया है. केंद्र ने मंगलवार को उच्चतम न्यायालय (Supreme Court) को यह जानकारी दी.

ईडब्ल्यूएस को 10 प्रतिशत आरक्षण देने वाले 103वें संविधान संशोधन का जोरदार बचाव करते हुए अटॉर्नी जनरल के.के. वेणुगोपाल ने प्रधान न्यायाधीश यू.यू. ललित की अध्यक्षता वाली पांच सदस्यीय संविधान पीठ से कहा कि यह संविधान के मूल ढांचे का उल्लंघन नहीं करता है क्योंकि इसे सामाजिक और आर्थिक रूप से पिछड़े वर्गों (एसईबीसी) के लिए निर्धारित 50 प्रतिशत कोटे में हस्तक्षेप किए बिना दिया गया है. हालांकि, तमिलनाडु ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण का विरोध करते हुए कहा कि वर्गीकरण का आधार आर्थिक मानदंड नहीं हो सकता है और अगर उच्चतम न्यायालय ईडब्ल्यूएस आरक्षण को बरकरार रखने का फैसला करता है तो उसे इंदिरा साहनी (मंडल) फैसले पर फिर से विचार करना चाहिए.

आरक्षण के अलावा सरकार की सकारात्मक कार्रवाई पर प्रकाश डालते हुए वेणुगोपाल ने संवैधानिक प्रावधानों का उल्लेख किया और कहा कि एससी और एसटी समुदाय को सरकारी नौकरियों में पदोन्नति में आरक्षण दिया गया है. पीठ में न्यायमूर्ति दिनेश माहेश्वरी, न्यायमूर्ति एस. रवींद्र भट, न्यायमूर्ति बेला एम. त्रिवेदी और न्यायमूर्ति जे. बी. पारदीवाला भी शामिल हैं.

अटॉर्नी जनरल ने पीठ से कहा, 'ईडब्ल्यूएस को यह (आरक्षण) पहली बार दिया गया है. दूसरी ओर, जहां तक एससी और एसटी समुदाय का संबंध है, उन्हें सरकार की सकारात्मक कार्रवाइयों के माध्यम से लाभान्वित किया गया है.' उन्होंने कहा, 'इस सामान्य वर्ग की एक बड़ी आबादी, जो शायद अधिक मेधावी है, शैक्षणिक संस्थानों और नौकरियों में अवसरों से वंचित हो जाएगी (यदि उनके लिए आरक्षण समाप्त कर दिया जाता है).'

वेणुगोपाल ने एसईबीसी और सामान्य वर्ग के ईडब्ल्यूएस श्रेणी के बीच भेद करने पर जोर देते हुए कहा कि दोनों असमान हैं और समरूप समूह नहीं हैं. उन्होंने कहा कि ईडब्ल्यूएस आरक्षण अलग है. पीठ ने पूछा, 'क्या आपके पास कोई आंकड़ा है जो ईडब्ल्यूएस को खुली श्रेणी में दर्शाता है, उनका प्रतिशत कितना होगा?'

वेणुगोपाल ने नीति आयोग द्वारा उपयोग किए जाने वाले 'बहुआयामी गरीबी सूचकांक को संदर्भित करते हुए कहा कि कुल मिलाकर सामान्य वर्ग की कुल आबादी का 18.2 प्रतिशत ईडब्ल्यूएस से संबंधित है. उन्होंने कहा, 'जहां तक आंकड़े का सवाल है, तो यह कुल आबादी का लगभग 3.5 करोड़ होगा.' वेणुगोपाल मामले में बुधवार को भी दलीलें पेश करेंगे. सुनवाई की शुरुआत में गैर-सरकारी संगठन (एनजीओ) 'यूथ फॉर इक्वेलिटी' की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता गोपाल शंकरनारायणन ने ईडब्ल्यूएस आरक्षण योजना का समर्थन करते हुए कहा कि यह 'लंबे समय से लंबित' और 'सही दिशा में सही कदम' है.

वहीं, तमिलनाडु की ओर से पेश वरिष्ठ अधिवक्ता शेखर नफड़े ने कहा कि निष्पक्षता का सिद्धांत और मनमानी नहीं किया जाना, संविधान के अनुच्छेद 14 (समानता का अधिकार) का हिस्सा है. उन्होंने कहा कि समानता का अधिकार बुनियादी ढांचे का हिस्सा है और केवल आरक्षण देने के लिए आर्थिक मानदंड तय करना, इसका उल्लंघन होगा.

पढ़ें- हिजाब विवाद : कर्नाटक सरकार ने कहा, पोशाक संबंधी आदेश 'धर्म निरपेक्ष'; गड़बड़ी के लिए PFI जिम्मेदार

(पीटीआई-भाषा)

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