नई दिल्ली: ईटीवी भारत के पॉजिटिव पॉडकास्ट (Positive Bharat Podcast) में आज हम आपको सुनाएंगे रिटायर्ड चीफ जस्टिस लीला सेठ (Retired Chief Justice Leela Seth) की कहानी. जिन्होंने अपने संघर्षों से वो मुकाम हासिल किया, जो आज के जमाने में भी महिलाओं के लिए आसान नहीं है. लीला सेठ हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) की पहली महिला चीफ जस्टिस (first woman chief justice) थीं. इससे पहले वे दिल्ली हाईकोर्ट (Delhi High Court) में जज थीं. लेकिन लीला सेठ के लिए हिमाचल हाईकोर्ट (Himachal High Court) की चीफ जस्टिस (chief justice) बनना आसान नहीं था, क्योंकि उन्होंने बहुत छोटी उम्र में अपने पिता को खो दिया था, लेकिन उन्होंने कभी हार नहीं मानी. उनका आत्मविश्वास उन्हें इस मुकाम तक ले आया. आइए जानते हैं 'मदर इन लॉ' (mother in law) के नाम से मशहूर रिटायर्ड चीफ जस्टिस लीला सेठ की कहानी.
लीला सेठ (Leela Seth) का जन्म 1930 में एक संपन्न परिवार में हुआ था. उनके पिता इम्पीरियल रेलवे सर्विस में काम करते थे. उनके पिता की मृत्यु तब हो गई जब वो महज 11 साल की थीं, लेकिन इसका प्रभाव लीला की पढ़ाई पर नहीं पड़ा. उन्होंने दार्जीलिंग के एक कॉन्वेंट स्कूल से अपनी शिक्षा पूरी की. उन्होंने अपने करियर की शुरुआत स्टेनोग्राफर के तौर पर की थी. इसी दौरान उनकी मुलाकात प्रेम सेठ हुई, जिनसे आगे चलकर उन्होंने शादी की. शादी के बाद वो लंदन चली गईं, जहां उन्होंने एक बार फिर अपनी पढ़ाई शुरू की. एक बच्चे की मां लीला ने 27 साल की उम्र में लंदन बार परीक्षा में टॉप (London bar exam toper) किया.
अकादमिक सफलता से लबरेज जब लीला (Leela Seth) भारत लौटीं तो उन्हें अपने जीवन का पहला ब्रेक कलकत्ता हाईकोर्ट (Calcutta High Court) में मिला, लेकिन सामाजिक रूढ़िवादिता के कारण एक महिला का कोर्ट में खड़े होकर बहस करना इतना आसान नहीं था. दरअसल बात तब की है जब लीला प्रैक्टिस के लिए चैम्बर से जुड़ने के लिए सीनियर की तलाश कर रही थीं. इस सिलसिले में कलकत्ता हाईकोर्ट के रजिस्ट्रार अहमद से मिलने पहुंची, जिनके पास तीस बैरिस्टरों की ऐसी सूची थी, जो प्रशिक्षु रखने के लिए अधिकृत थे और जूनियर वकीलों की तलाश में भी थे.
जब लीला ने उनसे पूछा कि उन्हें किसके चैम्बर में शामिल होना चाहिए ? तो उन्होंने पूछा कि किसी को जानती हो ? तब उन्होंने जवाब दिया कि जनाब मैं किसी को नहीं जानती, तो आश्चर्य से पूछा कि फिर तुम इस पेशे में क्या कर रही हो... इस सवाल पर उन्होंने कहा कि आप बस इतना बताएं कि सबसे बेहतरीन बैरिस्टर कौन है, बाकी मुझ पर छोड़ दें. फिर थोड़ी टालमटोल के बाद उन्होंने दो वकीलों के नाम सुझाए, एक सचिन चौधरी, दूसरा एलिस मायर्स. उन्होंने तय किया कि वो सचिन चौधरी का ही चैम्बर ज्वाइन करेंगीं.
लीला (Leela Seth) जब सचिन चौधरी से मिलने पहुंची तो उन्होंने काफी गंभीर व कड़क आवाज में पूछा, क्या है ? तब उन्होंने बताया कि वो कानूनी पेशा अपनाने के लिए आई हैं, जिसके बाद सचिन चौधरी ने कहा कि कानूनी पेशा अपनाने के बजाय जाकर शादी-वादी करो, जिसके जवाब में उन्होंने कहा कि मैं पहले से ही शादीशुदा हूं, तो उनकी सलाह थी कि तो जाकर बच्चे पैदा करो, जब उन्होंने बच्चा होने की बात बताई तो उनका अगला वाक्य था कि यह तो ठीक नहीं है कि बच्चा अकेला रहे इसलिए दूसरे बच्चे के बारे में सोचो, लेकिन इसके बाद जब लीला ने बताया कि उनके दो बच्चे हैं, तो सचिन चौधरी थोड़ा चौंके और बोले कि तब ठीक है मेरे चैम्बर में शामिल हो जाओ. दृढ़ निश्चयी युवती हो और बार में अच्छा काम करोगी. इसके बाद से लीला सेठ ने कभी पीछे मुड़ कर नहीं देखा.
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1958 में उनके पति का पटना तबादला होने के बाद उन्होंने करीब 10 साल तक पटना हाईकोर्ट में प्रैक्टिस की. लीला भारत में महिलाओं के अधिकारों को लेकर अहम फैसले देने वाली कमेटियों का हिस्सा रही हैं. वो 15वें लॉ कमिशन का भी पार्ट थीं. जिसने हिंदू उत्तराधिकार अधिनियम में कुछ अहम संशोधन सुझाए थे. इस दौरान महिलाओं को पारिवारिक संपत्ति में बराबर का हक देने का फैसला किया गया था. इससे अलावा वो जस्टिस वर्मा कमेटी का भी हिस्सा रही थीं. इस कमेटी ने अपनी रिपोर्ट में मैरिटल रेप को गैरकानूनी और अपराध की श्रेणी में डालने की बात की थी.
तो ये थी चीफ जस्टिस लीला सेठ की कहानी. लीला सेठ की जिंदगी हमें सीख देती है कि कैसे विपरीत परिस्थितियों में भी बिना हिम्मत हारे, बिना किसी के आगे झुके और बिना किसी झिझक के आगे बढ़ते रहने से सफलता मिलती है.