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#Positive Bharat Podcast: इब्राहिम अलक़ाज़ी, जिसने हिन्दी रंगमंच को लोकप्रिय बनाया - national school of drama

इब्राहिम अलकाजी भारतीय रंगमंच में उस शख्सियत का नाम है, जिसे हिंदुस्तानी कंटेंपरेरी थिएटर का पर्याय माना जाता है. यह वो नाम है, जिसके बिना 20वीं सदी के हिंदुस्तानी थिएटर का जिक्र अधूरा है, जिन्हें हमारी पीढ़ी उनकी दंतकथाओं में लिखी कहानी और शब्दों से जानती है. आज के Positiv Podcast में सुनेंगे कला के विभिन्न विधाओं के संरक्षक और महान कला प्रेमी इब्राहिम अलक़ाज़ी की कहानी, जिन्होंने 1962 से 1977 तक राष्ट्रीय नाट्य विद्यालय के निदेशक रहते हुए भारतीय रंगमंच में एक गुणात्मक परिवर्तन लाया.

इब्राहिम अलक़ाज़ी
इब्राहिम अलक़ाज़ी
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Published : Oct 18, 2021, 8:18 AM IST

नई दिल्ली : इब्राहिम अलक़ाज़ी (Ibrahim Alqazi) लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स (राडा) से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके थे. बंबई को ही उन्होंने अपनी रंगमंचीय गतिविधियों का केंद्र बनाया था, जिसमें प्रदर्शन और प्रशिक्षण दोनों ही शामिल था. इब्राहिम अलक़ाज़ी की प्रस्तुतियों (Ibrahim Alqazi Drama) की रेंज बहुत व्यापक थी, जिसमें 'अंधा युग', 'आषाढ़ का एक दिन', 'तुगलक' की प्रस्तुति शामिल हैं. अलक़ाज़ी ही वो चहेरा थे, जिन्होंने भारत में दर्शकों को रंगमंच तक ले आने की पहल की.

इब्राहिम अलक़ाज़ी (Ibrahim Alqazi NSD) के व्यक्तित्व में प्रशिक्षक झलकता था. शायद इसलिए ही वह थिएटर में भी प्रशिक्षण और शिक्षा की साझेदारी को ज्यादा महत्व देते थे और शायद इसलिए भी अलक़ाज़ी अभिनेताओं को रंगमंच पर प्रस्तुती दने से पहले उनकी आवाज़ (Ibrahim Alqazi Training), रंग भाषण, शरीर, दिमाग़, सोच आदि सब कुछ में प्रशिक्षित करने का पाठ्यक्रम को विकसित किया करते थे.

इब्राहिम अलक़ाज़ी

अलक़ाज़ी विश्व की सभी रंग परंपराओं से अवगत थे, उनका मानना था कि आधुनिक समय में कला वह स्थल है, जहां देश की सीमायें धुंधली हो जाती हैं. उनकी यह सोच उन पर शायद इसलिए भी हावी थी, क्योंकि उनका बचपन विभिन्न अस्मिताओं और विभिन्न सामाजिक सरंचना से होकर गुजरा था.

दरअसल, इब्राहिम अल-क़ाज़ी अरबी मां-बाप की संतान थे, उनका जन्म पुणे में हुआ और कार्यक्षेत्र बंबई और दिल्ली रहा. ऐसे में उनके घर में अरबी, उर्दू, हिन्दी, मराठी, गुजराती मिलाकर यह सभी प्रमुख भाषाओं का उपयोग किया जाता था (Ibrahim Alqazi Delhi).

अगर देखा जाए तो हिन्दी को राष्ट्रीय रंगमंच की भाषा या रंगमंच की केन्द्रीय भाषा बनाने में भी इब्राहिम अल-क़ाज़ी का अहम योगदान था. उन्होंने अपने दिल्ली आने के बाद और एनएसडी की स्थापना के बाद हिन्दी भाषा की उम्दा प्रस्तुतियों से लगभग यह तय कर दिया कि हिन्दी ही दिल्ली रंगमंच की केंद्रीय भाषा होगी.

एनएसडी में 15 साल बतौर निदेशक, कार्यभार संभालने के बाद 1977 में उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया. साथ ही रंगमंच को भी अलविदा कह दिया. अल-क़ाज़ी भले रंगमंच से अलग हो गए हो, (Ibrahim Alqazi NSD Director) लेकिन रंगमंच ने उनको कभी अलग नहीं किया. हालांकी भारतीय रंगमंच में उनकी कमी हमेशा महसूस की गई है. ऐसी कमी जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सका.

अल-क़ाज़ी साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन भारतीय रंगमंच को सच्चे मायनों में आधुनिक बनाने वाले रंगकर्मी की विरासत उनकी कृतियों और सबसे अधिक उनके छात्रों में सुरक्षित है..

इब्राहिम अल-क़ाज़ी के वीराट जीवनी से जुड़ी यह छोटी सी कहानी हमें उनके शख्सियत को बयां करती है. साथ ही हमें यह सीखाती है कि अपनी प्रतिभा को सार्थक बनाने के लिए श्रम और अभ्यास का सम्बल जरूरी है. आज के पॅाडकास्ट में उनकी यह कहानी उदाहरण बनती है कि जब एक बार आप किसी मुकाम को हासिल कर लें, तो फिर एक दीये की तरह अपने सफलता के उजाले को अन्य लोगों को तक जरूर पहुंचाए.

नई दिल्ली : इब्राहिम अलक़ाज़ी (Ibrahim Alqazi) लंदन के प्रतिष्ठित रॉयल एकेडमी ऑफ ड्रामेटिक आर्ट्स (राडा) से प्रशिक्षण प्राप्त कर चुके थे. बंबई को ही उन्होंने अपनी रंगमंचीय गतिविधियों का केंद्र बनाया था, जिसमें प्रदर्शन और प्रशिक्षण दोनों ही शामिल था. इब्राहिम अलक़ाज़ी की प्रस्तुतियों (Ibrahim Alqazi Drama) की रेंज बहुत व्यापक थी, जिसमें 'अंधा युग', 'आषाढ़ का एक दिन', 'तुगलक' की प्रस्तुति शामिल हैं. अलक़ाज़ी ही वो चहेरा थे, जिन्होंने भारत में दर्शकों को रंगमंच तक ले आने की पहल की.

इब्राहिम अलक़ाज़ी (Ibrahim Alqazi NSD) के व्यक्तित्व में प्रशिक्षक झलकता था. शायद इसलिए ही वह थिएटर में भी प्रशिक्षण और शिक्षा की साझेदारी को ज्यादा महत्व देते थे और शायद इसलिए भी अलक़ाज़ी अभिनेताओं को रंगमंच पर प्रस्तुती दने से पहले उनकी आवाज़ (Ibrahim Alqazi Training), रंग भाषण, शरीर, दिमाग़, सोच आदि सब कुछ में प्रशिक्षित करने का पाठ्यक्रम को विकसित किया करते थे.

इब्राहिम अलक़ाज़ी

अलक़ाज़ी विश्व की सभी रंग परंपराओं से अवगत थे, उनका मानना था कि आधुनिक समय में कला वह स्थल है, जहां देश की सीमायें धुंधली हो जाती हैं. उनकी यह सोच उन पर शायद इसलिए भी हावी थी, क्योंकि उनका बचपन विभिन्न अस्मिताओं और विभिन्न सामाजिक सरंचना से होकर गुजरा था.

दरअसल, इब्राहिम अल-क़ाज़ी अरबी मां-बाप की संतान थे, उनका जन्म पुणे में हुआ और कार्यक्षेत्र बंबई और दिल्ली रहा. ऐसे में उनके घर में अरबी, उर्दू, हिन्दी, मराठी, गुजराती मिलाकर यह सभी प्रमुख भाषाओं का उपयोग किया जाता था (Ibrahim Alqazi Delhi).

अगर देखा जाए तो हिन्दी को राष्ट्रीय रंगमंच की भाषा या रंगमंच की केन्द्रीय भाषा बनाने में भी इब्राहिम अल-क़ाज़ी का अहम योगदान था. उन्होंने अपने दिल्ली आने के बाद और एनएसडी की स्थापना के बाद हिन्दी भाषा की उम्दा प्रस्तुतियों से लगभग यह तय कर दिया कि हिन्दी ही दिल्ली रंगमंच की केंद्रीय भाषा होगी.

एनएसडी में 15 साल बतौर निदेशक, कार्यभार संभालने के बाद 1977 में उन्होंने पद से त्यागपत्र दे दिया. साथ ही रंगमंच को भी अलविदा कह दिया. अल-क़ाज़ी भले रंगमंच से अलग हो गए हो, (Ibrahim Alqazi NSD Director) लेकिन रंगमंच ने उनको कभी अलग नहीं किया. हालांकी भारतीय रंगमंच में उनकी कमी हमेशा महसूस की गई है. ऐसी कमी जिसकी भरपाई कोई नहीं कर सका.

अल-क़ाज़ी साहब आज हमारे बीच नहीं हैं, लेकिन भारतीय रंगमंच को सच्चे मायनों में आधुनिक बनाने वाले रंगकर्मी की विरासत उनकी कृतियों और सबसे अधिक उनके छात्रों में सुरक्षित है..

इब्राहिम अल-क़ाज़ी के वीराट जीवनी से जुड़ी यह छोटी सी कहानी हमें उनके शख्सियत को बयां करती है. साथ ही हमें यह सीखाती है कि अपनी प्रतिभा को सार्थक बनाने के लिए श्रम और अभ्यास का सम्बल जरूरी है. आज के पॅाडकास्ट में उनकी यह कहानी उदाहरण बनती है कि जब एक बार आप किसी मुकाम को हासिल कर लें, तो फिर एक दीये की तरह अपने सफलता के उजाले को अन्य लोगों को तक जरूर पहुंचाए.

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