नई दिल्ली : आज से 48 साल पहले 25 जून 1975 को रात के साढ़े ग्यारह बजे पूरे देश में आपातकाल की घोषणा कर दी गई थी. 26 जून को तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने सुबह-सुबह ऑल इंडिया रेडियो पर देश को संबोधित किया. उन्होंने कहा कि राष्ट्रपति ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी है, लेकिन इससे किसी को भी घबराने की कोई जरूरत नहीं है. आगे गांधी ने कहा कि आप सभी लोग हाल फिलहाल के उन षडयंत्रों से वाकिब ही होंगे, जिसके जरिए हमारे प्रोग्रेसिव कदमों को दबाने की कोशिश की गई. इंदिरा ने कहा कि उन्होंने जो भी कदम उठाए थे, उनसे आम आदमी और महिलाओं को लाभ मिलता. इन्हीं शब्दों के साथ देश में आपातकाल की घोषणा की गई थी.
कांग्रेस पार्टी आज तक इस आपातकाल का राजनीतिक 'दंश' झेल रही है. गैर कांग्रेसी दल गाहे-बगाहे उन पर निशाना साधते रहे हैं. इमरजेंसी का दौर 21 महीने का कहा. 25 जून 1975 से 21 मार्च 1977 तक. 26 जून 1975 को पुलिस ने देश के सभी प्रमुख विपक्षी नेताओं को गिरफ्तार कर लिया. मीडिया दफ्तरों पर पाबंदी लगा दी गई. बिना सेंसर के कोई भी न्यूज नहीं छप सकती थी. समाचार दफ्तरों की बिजली भी काट दी गई थी.
आपातकाल के दौरान संवैधानिक अधिकारों को निलंबित कर दिया गया था. औपचारिक रूप से आंतरिक अशांति को आपातकाल का कारण बताया गया था. देश के संबोधन के दौरान इंदिरा गांधी ने विदेशी ताकतों का भी जिक्र किया था. गांधी ने कहा था कि बाहर की शक्तियां देश को कमजोर और अस्थिर करने की कोशिश कर रही हैं.
आपातकाल से पहले की क्या थी राजनीतिक परिस्थितियां - इंदिरा गांधी 1966 में प्रधानंत्री बनीं थीं. नवंबर 1969 में कांग्रेस का विभाजन हो गया. एक गुट इंदिरा गांधी के साथ रहा (कांग्रेस आर), दूसरा गुट कांग्रेस (ओ) कहलाया. कांग्रेस ओ को ही सिंडिकेट गुट का नेता कहा जाता था. 1973-75 के बीच देश के दूसरे इलाकों में इंदिरा गांधी और उनकी सत्ता के खिलाफ कई आंदोलन हुए.
गुजरात का नवनिर्माण आंदोलन- 1973 में यह आंदोलन हुआ था. इसकी शुरुआत मुख्य रूप से कॉलेज फीस में बढ़ोतरी के खिलाफ हुई थी. फिर गुजरात यूनिवर्सिटी के छात्रों ने लोकल कांग्रेस सरकार को बर्खास्त करने की मांग की. गुजरात में चिमनभाई पटेल सीएम थे. जय प्रकाश नारायण और मोराजी देसाई ने छात्रों के आंदोलन का समर्थन किया था.
गुजरात आंदोलन से ही प्रेरित होकर बिहार में छात्रों का आंदोलन शुरू हो गया. यहां पर आंदोलन का नेतृत्व खुद जय प्रकाश नारायण के हाथों था. इसी दौरान जॉर्ज फर्नांडीज ने 1974 में रेल सेवा को बाधित किया था. जगह-जगह पर हड़ताल किए गए. इसी आंदोलन से नीतीश कुमार और लालू यादव जैसे नेता सामने आए.
क्या था राजनारायण मामला - इंदिरा गांधी के राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी समाजवादी नेता राजनारायण ने 1971 में उनके खिलाफ चुनावी फ्रॉड का एक मामला दर्ज कराया था. भ्रष्ट आचरण और गलत तरीकों से चुनाव करने का आरोप था. और सीधी बात करें तो सरकारी कर्मचारियों की मदद और अनुमति से अधिक खर्च करने के आरोप लगे थे. 12 जून 1975 को इलाहाबाद हाईकोर्ट के न्यायाधीश जगमोहन लाल सिन्हा ने इंदिरा गांधी को दोषी ठहरा दिया. 24 जून 1975 को सुप्रीम कोर्ट ने इंदिरा गांधी को थोड़ी राहत प्रदान की, लेकिन उन्हें मतदान करने से वंचित कर दिया गया. वह संसद में उपस्थित रह सकती थीं और पीएम भी रह सकती थीं.
इसके ठीक एक दिन बाद ही राष्ट्रपति फखरूद्दीन अली अहमद ने देश में आपातकाल की घोषणा कर दी. 26 जून 1975 को इंदिरा गांधी ने देश के नाम संबोधन किया. आपातकाल के दौरान कुछ ऐसे कदम उठाए गए, जिस पर आज तक विवाद जारी है. इन्हीं में से एक कदम था, स्टरलाइजेशन का. इसे नसबंदी के रूप में लोग जानते हैं. दिल्ली के एक इलाके में जबरदस्ती नसंबदी को लागू किया गया. संजय गांधी ने इसके आदेश दिए थे. एक अनुमान है कि इमरजेंसी के दौरान पूरे देश में करीब 83 लाख लोगों की जबरदस्ती नसबंदी करवाई गई थी. इस कदम के खिलाफ लोगों में बहुत गुस्सा था.
मीसा और डीआईआर के तहत एक लाख से भी अधिक नेताओं को जेल में डाल दिया गया था. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार उस समय सत्ता की बागडोर संजय गांधी, बंसीलाल, विद्याचरण शुक्ल और ओम मेहता जैसे नेता नियंत्रित कर रहे थे. संजय गांधी के कहने पर वीसी शुक्ला को संचार मंत्री तक बना दिया गया था. कुछ मीडिया रिपोर्ट में यह भी दावा किया जाता है कि उस समय के वरिष्ठ नेता सिद्धार्थ शंकर रे ने ही आपातकाल को लेकर इंदिरा गांधी को सलाह दी थी.
18 जनवरी 1977 को इंदिरा गांधी ने सभी राजनीतिक बंदियों को रिहा करने के आदेश दिए और नई चुनावों की तारीखों का ऐलान भी कर दिया गया. 23 मार्च 1977 को आपातकाल की समाप्ति हो गई.
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