हैदराबाद : भारत के पड़ोसी देश म्यांमार की लोकतांत्रित सरकार को अपदस्थ हुए 6 महीने बीत चुके हैं. वहां विरोध-प्रदर्शन का दौर जारी है. 6 महीने बाद म्यांमार की राजनीति में एक बदलाव आया है. तख्तापलट करने वाले करने वाले सैन्य तानाशाह मिन आंग हलिंग ने खुद को देश का नया प्रधानमंत्री घोषित कर लिया है और उसने 2023 में चुनाव कराने का वादा किया है. मिन आंग हलिंग ने राज्य प्रशासन परिषद (एसएसी) की आड़ में म्यांमार का शासन चला रहे थे. सैन्य तानाशाह ने कहा कि दो साल के भीतर देश में स्वतंत्र और निष्पक्ष बहुदलीय चुनाव कराने के लिए स्थितियां बनाईं जाएंगी.
आखिर सैन्य तानाशाह ने रुख क्यों बदला
म्यांमार में डेमोक्रेटिक सरकार के तख्तापलट के बाद यूरोपियन देश और अमेरिका ने सैन्य शासक (जुंटा) पर प्रतिबंध लगा दिए है. अमेरिकी विदेश मंत्री एंटनी ब्लिंकन ने एसोसिएशन ऑफ साउथईस्ट एशियन नेशंस (asian countries) से म्यांमार में हिंसा समाप्त करने और लोकतंत्र को बहाल करने के लिए हस्तक्षेप की अपील की थी. म्यांमार भी आसियान का मेंबर हैं. इसमें शामिल 48 देश म्यांमार में शांति के लिए कूटनीतिक प्रयास कर रहे हैं.
एक तरफ नरम तो आंग सान सू की पर गरम है जुंटा
विदेशी दबाव के कारण मिन आंग हलिंग ने एक ओर लोकतंत्र बहाल करने की चर्चा शुरू की है, दूसरी ओर नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी की नेता ने आंग सान सू की को कानूनी दांवपेच में उलझा रहा है. माना जा रहा है कि जुंटा शासन ने आंग सान सू की राजनीति से बेदखल करने की तैयारी कर रहा है. सैन्य शासन ने आंग सान सू की के खिलाफा कोर्ट में ट्रायल शुरू किया है. रिपोर्टस के अनुसार इस दौरान डेमोक्रेटिक लीडर को किसी वकील का सहयोग भी नहीं मिलेगा.
जुंटा ने सू ची पर ताबड़तोड़ आरोप लगा रखे हैं
तख्तापलट के बाद सैन्य शासन ने आंग सान सू की पर कई आरोप लगाए हैं. आंग सान सू की पर आरोप है कि उन्होंने अपने बॉडीगार्ड के लिए वॉकी टॉकी आयात किए, जो गैरकानूनी था. इसके अलावा सत्ता का दुरुपयोग कर बिना लाइसेंस के रेडियो इस्तेमाल किया. सू ची पर अशांति फैलाने वाले भाषण देने के आरोप लगाए गए है. आरोपों की लिस्ट में बताया गया है कि 2020 में चुनाव प्रचार के दौरान कोरोना प्रोटोकॉल तोड़ने यानी प्राकृतिक आपदा प्रबंधन कानून का उल्लंघन किया है.
अबतक 900 से अधिक लोग हो चुके हैं गोली के शिकार
बता दें कि एक फरवरी 2021 को आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार को सत्ता से बेदखल कर दिया था और म्यांमार में आपातकाल की घोषणा की गई थी. सैन्य शासन (Junta) ने आंग सांग सू ची को उनके घर में नजरबंद कर दिया था. साथ ही नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी के कई नेताओं को गिरफ्तार कर लिया गया. इसके बाद से म्यांमार में लगातार लोकतंत्र बहाल करने की मांग को लेकर प्रदर्शन हो रहे हैं. सैन्य शासकों पर प्रदर्शनों के दौरान गोली चलाने का भी आरोप लग रहे हैं. रिपोर्टस के अनुसार, अभी भी करीब 4500 लोग सेना की हिरासत में हैं जबकि 900 से अधिक लोगों की गोलीबारी में मौत हो चुकी है.
फरवरी में म्यांमार सेना ने किया था तख्तापलट
एक फरवरी 2021 को आंग सान सू की की निर्वाचित सरकार का तख्ता पलट करने के बाद आपातकाल की घोषणा की गई थी. सैन्य अधिकारियों ने दावा किया था कि सैन्य प्रमुखता वाले 2008 के संविधान में आपात स्थिति घोषित करने का उन्हें हक है. जुंटा ने सू की की पार्टी नेशनल लीग फॉर डेमोक्रेसी पर 2020 में हुए चुनाव में धांधली के आरोप लगाए थे. 8 नवंबर 2020 को आए चुनावी नतीजों में आंग सान सू की पार्टी ने 83 पर्सेंट सीटें जीत ली थीं. इस चुनाव को म्यांमार और विदेशी मीडिया में जनमत संग्रह के रूप में आंका गया था. साल 2011 में सैन्य शासन ख़त्म होने के बाद से यह दूसरा चुनाव था.
म्यांमार की हिंसा में बेघर हुए हैं लाखों लोग
अंतरराष्ट्रीय मीडिया रिपोर्टस के मुताबिक, 6 महीने पहले हुए राजनीतिक तख्ता पलट के बाद से म्यांमार में हिंसा का दौर जारी है. एक ओर अल्पसंख्यक समूह सेना के निशाने पर हैं तो दूसरी ओर लोकतंत्र समर्थक भी गोलियों का शिकार हो रहे हैं. म्यांमार के काया राज्य में स्थानीय विद्रोहियों की करेन्नी पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) ने सेना की ज्यादतियों के खिलाफ मोर्चा खोल दिया है. संयुक्त राष्ट्र ने अनुमान लगाया है कि काया में हाल में हुई हिंसा में 1लाख10 हजार लोग विस्थापित हुए हैं. उत्तरी और पश्चिमी म्यांमार में भी हिंसा के कारण 2 लाख लोगों को अपना घर छोड़ना पड़ा है. सेना ने काया राज्य में स्थानीय विद्रोहियों की करेन्नी पीपुल्स डिफेंस फोर्स (पीडीएफ) को आतंकवादी समूह कर दिया है.
कौन हैं आंग-सांग सू ची, जिसके पीछे पड़ा है जुंटा शासन
आंग सान सू की वर्मा (म्यांमार) के पूर्व राष्ट्रपति आंग सांग की बेटी हैं. 1947 में जब तत्कालीन राष्ट्रपति आंग-सांग की हत्या कर दी गई थी तब सू ची दो साल की थी. नई बर्मा सरकार के गठन के बाद उनकी की मां खिन राजनीति में सक्रिय हुईं और भारत और नेपाल में बर्मा का राजदूत बनीं. आंग सान सू की ने लेडी श्रीराम कॉलेज, नई दिल्ली से 1964 में ग्रैजुएशन कंप्लीट किया. आगे की पढ़ाई उन्होंने ऑक्सफोर्ड से की. इसके बाद उन्होंने संयुक्त राष्ट्र में भी काम किया. वह 80 के दशक के अंतिम वर्षों में म्यांमार लौटी.
15 साल तक पहले भी नजरबंद रह चुकी हैं आंग-सान सू ची
वर्ष 1990 में बर्मा में चुनाव होने थे, इससे पहले ही सैन्य शासकों ने आंग सान सू की को घर में नजरबंद कर दिया गया था. राजनीतिक अशांति के दौरान पांच लाख लोगों के विरोध प्रदर्शन को संबोधित करने के बाद सेना ने उन पर कार्रवाई की थी. सू की को साल 1991 में नोबेल शांति पुरस्कार से सम्मानित किया गया था . आंग सान सू की ने 1989 से 2010 तक लगभग 15 साल नज़रबंदी में गुजारे.