श्रीनगर (जम्मू-कश्मीर) : पूर्व मुख्यमंत्री और जे-के नेशनल कॉन्फ्रेंस के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने बुधवार को एक प्रेस कॉन्फ्रेंस के दौरान चुनाव आयोग और केंद्र सरकार की आलोचना की. शहरी स्थानीय निकाय चुनावों से पहले परिसीमन अभ्यास करने के लिए केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए उमर अब्दुल्ला ने कहा कि अगर परिसीमन जरूरी था तो प्रशासन इसे पहले भी कर सकता था.
जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र हो रही हत्या-उमर अब्दुल्ला
बता दें, जम्मू-कश्मीर में पंचायत प्रतिनिधियों का कार्यकाल 9 जनवरी मंगलवार को समाप्त हो गया है, जबकि शहरी स्थानीय निकायों का कार्यकाल पिछले महीने समाप्त हो गया था और अभी तक इस पर कुछ भी स्पष्ट नहीं हुआ है कि दोनों के लिए अब अगला चुनाव कब होगा. इसपर सरकार पर तंज करते हुए पूर्व सीएम अब्दुल्ला ने कहा कि दुर्भाग्य से यहां चुनाव नहीं हो रहा है. हम अक्सर कहते हैं कि भारत लोकतांत्रिक देश है. लेकिन जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र देखने को नहीं मिल रहा है. जम्मू-कश्मीर में लोकतंत्र की हत्या हो रही है.अगर शहरी स्थानीय निकाय चुनावों के लिए परिसीमन जरूरी था, तो प्रशासन इसे बहुत पहले कर सकता था. लेकिन उन्होंने निर्वाचित निकायों का कार्यकाल समाप्त होने तक इंतजार क्यों किया?
चुनाव आयोग पर भी साधा निशाना
पूर्व सीएम ने एक प्रेस कॉन्फ्रेंस को संबोधित करते हुए चुनाव आयोग पर भी निशाना साधा. जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए जरूरी कदम नहीं उठाने के लिए चुनाव आयोग पर निशाना साधते हुए जेकेएनसी उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने कहा कि चुनाव आयोग को शर्म आनी चाहिए. चुनाव आयोग को अपना सिर शर्म से झुका लेना चाहिए, उन्हें राज्य के लोगों से माफी मांगनी चाहिए, क्योंकि चुनाव पर फैसला आयोग को लेना चाहिए था, लेकिन यह फैसला भारत के सर्वोच्च न्यायालय द्वारा लिया जा रहा है.
30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने का दिया था निर्देश
बता दें, इससे पहले 11 दिसंबर को सुप्रीम कोर्ट ने चुनाव आयोग को अगले साल 30 सितंबर तक जम्मू-कश्मीर में विधानसभा चुनाव कराने के लिए जरूरी कदम उठाने का निर्देश दिया था. यह निर्देश केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 के तहत पूर्ववर्ती राज्य के विशेष संवैधानिक विशेषाधिकारों को रद्द करने को चुनौती देने वाली याचिकाओं पर सुनवाई के दौरान आया था. एक ऐतिहासिक फैसले में सुप्रीम कोर्ट की पांच-न्यायाधीशों की संविधान पीठ ने केंद्र द्वारा अनुच्छेद 370 को निरस्त करने को बरकरार रखा और कहा कि यह एक अस्थायी प्रावधान था और राष्ट्रपति के पास इसे रद्द करने की शक्ति थी.