देहरादून : सरकार भले ही विकास को लेकर लाख दावे करती हो, लेकिन जमीनी हकीकत इसके ठीक उलट नजर आती है. इसकी बानगी उत्तरकाशी जिले में देखने को मिल रही है. जहां लोग आज भी आदम युग में जीने को मजबूर हैं. पुरोला विकासखंड का सर-बडियार क्षेत्र स्वास्थ्य, सड़क जैसी मूलभूत सुविधाओं से कोसों दूर हैं.
ऐसे में ग्रामीणों को सड़क तक पहुंचने के लिए खतरनाक और घंने जंगलों से होकर गुजरना पड़ता है. सबसे ज्यादा परेशानी बुजुर्गों, बीमार और गर्भवती महिलाओं को होती है. इन दिनों भी सबसे ज्यादा परेशानी कोविड टीकाकरण के सरनौल पहुंच रहे बुजुर्गों को हो रही है.
दरअसल, जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग के कारण इस क्षेत्र के 8 गांव के बुजुर्गों को परेशान होना पड़ रहा है. सर-बडियार के बुजुर्गों को कोविड टीकाकरण के लिए करीब 9 से 10 किमी पैदल जान जोखिम में डालकर सरनौल पहुंचना पड़ रहा है. जबकि, पूर्व में सर-बडियार में ही टीकाकरण केंद्र बनाया गया था, लेकिन ये टीकाकरण सरनौल गांव में हो रहा है. ऐसे में उम्र के पड़ाव में भी बुजुर्गों को कई किलोमीटर पैदल दूरी नापनी पड़ रही है.
स्थानीय लोगों का कहना है कि पूर्व में जिला प्रशासन ने 60 वर्ष और उससे अधिक उम्र के बुजुर्गों के लिए पौंटी और सर गांव में ही टीकाकरण केंद्र बनाया था, लेकिन दो दिन पहले ही केंद्र बदलकर आनन-फानन में सरनौल गांव में लाया गया. जिस कारण 8 गांव के बुजुर्गों को मुसीबत का सामना करना पड़ रहा है. जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग की हठधर्मिता बुजुर्गों के टीकाकरण की बजाय उनकी जान के साथ खिलवाड़ किया जा रहा है.
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सर बडियार के बुजुर्गों को करीब 10 किमी के ऐसे रास्ते पार करने पड़ रहे हैं, जिसमें एक गलती कभी भी जान पर भारी पड़ सकती है. बुजुर्गों का कहना है कि वर्षों से वह सड़क और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं की बाट जोह रहे हैं तो वहीं अब टीकाकरण भी 10 किमी दूर हो रहा है.
पूरे मामले में डीएम मयूर दीक्षित का कहना है कि टीकाकरण टीम को कई बार जिला प्रशासन और स्वास्थ्य विभाग से सम्पर्क करने के लिए संचार आदि की आवश्यकता पड़ती है. इसलिए सरनौल में केंद्र बनाया गया है. साथ ही सभी विकासखंडों में टीकाकरण किया जा रहा है.