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Damoh MP : बड़ी बेटी ने पिता की जान बचाने के लिए लिवर किया डोनेट, 40 दिन बाद मौत, तीनों बेटियों ने किया अंतिम संस्कार - तीनों बेटियों ने किया अंतिम संस्कार

कहते हैं कि बेटा भाग्य से पैदा होता है और बेटियां सौभाग्य से पैदा होती हैं. जी हां, इस बात को बीना की तीन बेटियों ने चरितार्थ कर दिखाया है. बेटियों ने अपने पिता की बेटों से बढ़कर न सिर्फ देखरेख की बल्कि बड़ी बेटी ने लिवर का 60 प्रतिशत हिस्सा देने में भी संकोच नहीं किया. बावजूद इसके लिवर ट्रांसप्लांट के 40 दिन बाद पिता की मौत हो गई. तीनों बेटियों ने बेटे का धर्म निभाया. (Daughter donated liver to save father life) (Daughter donate liver but to father died) (Three daughters performed last rites)

Daughter donate liver but to father died
बेटी ने पिता की जान बचाने के लिए लिवर किया डोनेट
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Published : Jul 30, 2022, 10:13 PM IST

दमोह। तीनों बेटियों ने बेटे का धर्म निभाते हुए गुरुवार शाम कटरा मंदिर मुक्तिधाम में पिता का अंतिम संस्कार कर किया. पिता के प्रति बेटियों का यह समर्पण समाज के लिए आदर्श है. मामला सागर जिले की बीना तहसील का है. शाह कॉलोनी में रहने वाले राजेश पिता महेंद्र जैन (58) बसहारी गांव के मूल निवासी हैं. वर्षों पहले वह परिवार के साथ शहर में आकर रहने लगे थे. वह अपनी पत्नी सुमन और तीनों बेटियों हिमांशी जैन (28), रूपल जैन (25) और सबसे छोटी बेटी जैनिशा जैन (22) के साथ रहते थे.

दिल्ली में कराया लिवर ट्रांसप्लांट : पिछले कुछ सालों से वह बीमार चल रहे थे. इस दौरान उनका अलग-अलग अस्पताल में इलाज कराया गया, लेकिन कहीं आराम नहीं मिला. कुछ महीने पहले भोपाल के एक निजी अस्पताल में इलाज करने पर पता चला कि उनका लिवर खराब हो चुका है. पिता का अच्छे से अच्छा इलाज कराने के लिए हिमांशी और रूपल उन्हें दिल्ली लेकर पहुंचीं. जांच के दौरान डॉक्टरों ने कहा कि बिना लिवर ट्रांसप्लांट मरीज की जान बचाना मुश्किल है. डॉक्टर की बात सुनकर बेटियों के सामने भयंकर संकट खड़ा हो गया. एक तरफ जहां बेटियों को 30 लाख रुपये का इंतजाम करना था तो वहीं दूसरी और लिवर दान करने वाले की तलाश थी.

एक बेटी ने इलाज के लिए राशि का इंतजाम किया : मुसीबत के समय बेटियों ने हार नहीं मानी और अपने दम पर सारी व्यवस्थाएं करने का फैसला किया. बड़ी बेटी हिमांशी ने पिता की जान बचाने अपने लिवर का 60 प्रतिशत हिस्सा पिता को दे दिया तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटी ने करीब 20 लाख रुपये का इंतजाम किया. 16 जून को आपरेशन के बाद पिता की सेहत में तेजी से सुधार होने पर बेटियों ने राहत की सांस ली, लेकिन एक सप्ताह पहले पिता की अचानक तबियत बिगड़ गई और 27 जून को पिता की मौत हो गई.

परिवार में 45 साल बाद हुई बेटी तो झूमे परिजन, अस्पताल से डोली में बिठाकर लाई गई घर

नहीं होने दिया बेटे की कमी का एहसास : राजेश जैन के भतीजे गौरव जैन ने बताया कि चाचा की तीनों बेटियों ने उन्हें कभी बेटे की कमी का एहसास नहीं होने दिया. अंतिम क्षण तक बेटियां उनका सहारा बनी रहीं. दो बेटियों ने पिता के साथ रहकर इलाज कराया तो छोटी बेटी ने मां के साथ घर का कामकाज संभाला. यहां तक कि बेटों की तरह अर्थी को सहारा देकर तीनों बेटियों ने पिता का अंतिम संस्कार किया. गौरव ने बताया कि चाचा हमेशा कहा करते थे कि मैं किस्मत वाला हूं कि मुझे भगवान ने बेटियां दी हैं. वह अपनी बेटियों को वरदान मानते थे. उनकी तीनों बेटियों ने भी कभी उन्हें बेटा न होने का एहसास नहीं होने दिया. पिता की सेवा कर समाज में तीनों बेटियां आदर्श बन गई हैं. इनकी हर जगह सराहना हो रही है. (Daughter donated liver to save father life) (Daughter donate liver but to father died) (Three daughters performed last rites)

दमोह। तीनों बेटियों ने बेटे का धर्म निभाते हुए गुरुवार शाम कटरा मंदिर मुक्तिधाम में पिता का अंतिम संस्कार कर किया. पिता के प्रति बेटियों का यह समर्पण समाज के लिए आदर्श है. मामला सागर जिले की बीना तहसील का है. शाह कॉलोनी में रहने वाले राजेश पिता महेंद्र जैन (58) बसहारी गांव के मूल निवासी हैं. वर्षों पहले वह परिवार के साथ शहर में आकर रहने लगे थे. वह अपनी पत्नी सुमन और तीनों बेटियों हिमांशी जैन (28), रूपल जैन (25) और सबसे छोटी बेटी जैनिशा जैन (22) के साथ रहते थे.

दिल्ली में कराया लिवर ट्रांसप्लांट : पिछले कुछ सालों से वह बीमार चल रहे थे. इस दौरान उनका अलग-अलग अस्पताल में इलाज कराया गया, लेकिन कहीं आराम नहीं मिला. कुछ महीने पहले भोपाल के एक निजी अस्पताल में इलाज करने पर पता चला कि उनका लिवर खराब हो चुका है. पिता का अच्छे से अच्छा इलाज कराने के लिए हिमांशी और रूपल उन्हें दिल्ली लेकर पहुंचीं. जांच के दौरान डॉक्टरों ने कहा कि बिना लिवर ट्रांसप्लांट मरीज की जान बचाना मुश्किल है. डॉक्टर की बात सुनकर बेटियों के सामने भयंकर संकट खड़ा हो गया. एक तरफ जहां बेटियों को 30 लाख रुपये का इंतजाम करना था तो वहीं दूसरी और लिवर दान करने वाले की तलाश थी.

एक बेटी ने इलाज के लिए राशि का इंतजाम किया : मुसीबत के समय बेटियों ने हार नहीं मानी और अपने दम पर सारी व्यवस्थाएं करने का फैसला किया. बड़ी बेटी हिमांशी ने पिता की जान बचाने अपने लिवर का 60 प्रतिशत हिस्सा पिता को दे दिया तो सॉफ्टवेयर इंजीनियर बेटी ने करीब 20 लाख रुपये का इंतजाम किया. 16 जून को आपरेशन के बाद पिता की सेहत में तेजी से सुधार होने पर बेटियों ने राहत की सांस ली, लेकिन एक सप्ताह पहले पिता की अचानक तबियत बिगड़ गई और 27 जून को पिता की मौत हो गई.

परिवार में 45 साल बाद हुई बेटी तो झूमे परिजन, अस्पताल से डोली में बिठाकर लाई गई घर

नहीं होने दिया बेटे की कमी का एहसास : राजेश जैन के भतीजे गौरव जैन ने बताया कि चाचा की तीनों बेटियों ने उन्हें कभी बेटे की कमी का एहसास नहीं होने दिया. अंतिम क्षण तक बेटियां उनका सहारा बनी रहीं. दो बेटियों ने पिता के साथ रहकर इलाज कराया तो छोटी बेटी ने मां के साथ घर का कामकाज संभाला. यहां तक कि बेटों की तरह अर्थी को सहारा देकर तीनों बेटियों ने पिता का अंतिम संस्कार किया. गौरव ने बताया कि चाचा हमेशा कहा करते थे कि मैं किस्मत वाला हूं कि मुझे भगवान ने बेटियां दी हैं. वह अपनी बेटियों को वरदान मानते थे. उनकी तीनों बेटियों ने भी कभी उन्हें बेटा न होने का एहसास नहीं होने दिया. पिता की सेवा कर समाज में तीनों बेटियां आदर्श बन गई हैं. इनकी हर जगह सराहना हो रही है. (Daughter donated liver to save father life) (Daughter donate liver but to father died) (Three daughters performed last rites)

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