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भारत-चीन के बीच 6 नवंबर को हो सकती है आठवें दौर की वार्ता - आठवें दौर की वार्ता

भारत और चीन के बीच आठवें दौर की वार्ता छह नवंबर को होने की संभावना है. इससे पहले सातवें दौर की सैन्य वार्ता 'सकारात्मक और रचनात्मक' रही. यह बात दोनों देशों की सेनाओं की ओर से जारी एक संयुक्त बयान में कही गई थी.

आठवें दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता
आठवें दौर की कोर कमांडर स्तर की वार्ता
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Published : Nov 4, 2020, 8:16 PM IST

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को लेकर भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की आठवें दौर की वार्ता छह नवंबर को हो सकती है. दोनों पक्ष इस साल अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चल रहे सैन्य गतिरोध को दूर करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे.

आठवें दौर की सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन करेंगे जो हाल में लेह की 14वीं कोर के कमांडर नियुक्त किये गये हैं.

बता दें, इससें पहले 13 अक्टूबर को वार्ता की गई थी. 12 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों सेनाओं द्वारा जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमत हुए थे. साथ ही दोनों पक्ष जितनी जल्दी हो सके सैनिकों की वापसी के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हल पर पहुंचने को लेकर सहमत हुए थे. बयान दिल्ली और बीजिंग दोनों ही जगह जारी किया गया था.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इस बीच, एक बार फिर यह टिप्पणी की थी कि चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है. उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत द्वारा बुनियादी ढांचे का निर्माण और चीन के साथ लगती सीमा पर सैन्य तैनाती तनाव का मूल कारण है.

भारत का पुरजोर तरीके से यह कहना है कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख दोनों देश के अभिन्न अंग हैं और चीन को उसके आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए. प्रवक्ता झाओ बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में पश्चिमी मीडिया के एक पत्रकार द्वारा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की ओर से कई पुलों के निर्माण को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हाल में बनी सहमति के आधार पर, किसी भी पक्ष द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे सीमाक्षेत्र में स्थिति के जटिल बनने की आशंका है, ताकि तनाव कम करने के द्विपक्षीय प्रयास कमजोर नहीं हों. उन्होंने कहा कुछ समय से भारतीय पक्ष चीन के साथ लगती सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण और सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है. यह तनाव का मूल कारण है.

उन्होंने कहा हम भारतीय पक्ष से आग्रह करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच बनी आम सहमति को ईमानदारी से लागू करें, ऐसी किसी कार्रवाई से बचे, जिससे स्थिति जटिल बन सकती है तथा सीमा पर शांति की रक्षा के लिए ठोस उपाय करे.

कड़ाके की सर्दियों के महीनों के दौरान मौजूदा तैनाती को बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों द्वारा व्यापक रूप से तैयारियों के बीच यह सैन्य वार्ता पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के भारतीय हिस्से चुशूल में हुई.

सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया था और इसमें विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव भी शामिल थे. इसमें लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन भी शामिल थे, जिन्होंने मंगलवार को सिंह के स्थान पर 14वीं कोर के कमांडर का कार्यभार संभाला था.

चीनी पक्ष की अगुवाई दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने की थी. दिल्ली में सूत्रों ने कहा कि भारत ने 'चुनिंदा' नहीं बल्कि व्यापक तौर पर सैनिकों की वापसी पर जोर दिया. पीएलए, पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर कई रणनीतिक चोटियों से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग कर रहा है, ताकि सैनिकों की वापसी प्रक्रिया को शुरू किया जा सके.

गत 29 और 30 अगस्त की दरम्यानी रात को इलाके में पीएलए के सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों को डराने-धमकाने की कोशिश के बाद भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के आस-पास स्थित मुखपारी, रेजांग ला और मगर पहाड़ी इलाकों में नियंत्रण हासिल कर लिया था.

गत 21 सितंबर को छठे दौर की सैन्य वार्ता के बाद, दोनों पक्षों ने कई फैसलों की घोषणा की थी, जिसमें अग्रिम क्षेत्रों में और अधिक सैनिकों को नहीं भेजने, एकतरफा रूप से जमीन पर स्थिति को बदलने से बचने और ऐसी कोई भी कार्रवाई करने से बचना शामिल था, जिससे मामला और जटिल हो जाए.

नई दिल्ली : पूर्वी लद्दाख में सैनिकों के पीछे हटने की प्रक्रिया को लेकर भारत और चीन के बीच कोर कमांडर स्तर की आठवें दौर की वार्ता छह नवंबर को हो सकती है. दोनों पक्ष इस साल अप्रैल-मई से पूर्वी लद्दाख क्षेत्र में चल रहे सैन्य गतिरोध को दूर करने के तरीकों पर चर्चा करेंगे.

आठवें दौर की सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल की अगुवाई लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन करेंगे जो हाल में लेह की 14वीं कोर के कमांडर नियुक्त किये गये हैं.

बता दें, इससें पहले 13 अक्टूबर को वार्ता की गई थी. 12 घंटे तक चली वार्ता के बाद दोनों सेनाओं द्वारा जारी एक संयुक्त प्रेस बयान में कहा गया कि दोनों पक्ष सैन्य और राजनयिक माध्यम से संवाद और संचार बनाए रखने के लिए सहमत हुए थे. साथ ही दोनों पक्ष जितनी जल्दी हो सके सैनिकों की वापसी के लिए पारस्परिक रूप से स्वीकार्य हल पर पहुंचने को लेकर सहमत हुए थे. बयान दिल्ली और बीजिंग दोनों ही जगह जारी किया गया था.

चीनी विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता झाओ लिजियान ने इस बीच, एक बार फिर यह टिप्पणी की थी कि चीन केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख या अरुणाचल प्रदेश को मान्यता नहीं देता है. उन्होंने यह भी दावा किया कि भारत द्वारा बुनियादी ढांचे का निर्माण और चीन के साथ लगती सीमा पर सैन्य तैनाती तनाव का मूल कारण है.

भारत का पुरजोर तरीके से यह कहना है कि अरुणाचल प्रदेश और लद्दाख दोनों देश के अभिन्न अंग हैं और चीन को उसके आंतरिक मामलों पर टिप्पणी करने से बचना चाहिए. प्रवक्ता झाओ बीजिंग में एक मीडिया ब्रीफिंग में पश्चिमी मीडिया के एक पत्रकार द्वारा लद्दाख और अरुणाचल प्रदेश के सीमावर्ती क्षेत्रों में भारत की ओर से कई पुलों के निर्माण को लेकर पूछे गए एक सवाल का जवाब दे रहे थे.

चीनी प्रवक्ता ने कहा कि दोनों पक्षों के बीच हाल में बनी सहमति के आधार पर, किसी भी पक्ष द्वारा ऐसी कोई कार्रवाई नहीं की जानी चाहिए, जिससे सीमाक्षेत्र में स्थिति के जटिल बनने की आशंका है, ताकि तनाव कम करने के द्विपक्षीय प्रयास कमजोर नहीं हों. उन्होंने कहा कुछ समय से भारतीय पक्ष चीन के साथ लगती सीमा पर बुनियादी ढांचे का निर्माण और सैन्य तैनाती बढ़ा रहा है. यह तनाव का मूल कारण है.

उन्होंने कहा हम भारतीय पक्ष से आग्रह करते हैं कि दोनों पक्षों के बीच बनी आम सहमति को ईमानदारी से लागू करें, ऐसी किसी कार्रवाई से बचे, जिससे स्थिति जटिल बन सकती है तथा सीमा पर शांति की रक्षा के लिए ठोस उपाय करे.

कड़ाके की सर्दियों के महीनों के दौरान मौजूदा तैनाती को बनाए रखने के लिए दोनों पक्षों द्वारा व्यापक रूप से तैयारियों के बीच यह सैन्य वार्ता पूर्वी लद्दाख में वास्तविक नियंत्रण रेखा (एलएसी) के भारतीय हिस्से चुशूल में हुई.

सैन्य वार्ता में भारतीय प्रतिनिधिमंडल का नेतृत्व लेह स्थित 14वीं कोर के कमांडर लेफ्टिनेंट जनरल हरिंदर सिंह ने किया था और इसमें विदेश मंत्रालय के संयुक्त सचिव (पूर्वी एशिया) नवीन श्रीवास्तव भी शामिल थे. इसमें लेफ्टिनेंट जनरल पी जी के मेनन भी शामिल थे, जिन्होंने मंगलवार को सिंह के स्थान पर 14वीं कोर के कमांडर का कार्यभार संभाला था.

चीनी पक्ष की अगुवाई दक्षिण शिनजियांग सैन्य जिले के कमांडर मेजर जनरल लियू लिन ने की थी. दिल्ली में सूत्रों ने कहा कि भारत ने 'चुनिंदा' नहीं बल्कि व्यापक तौर पर सैनिकों की वापसी पर जोर दिया. पीएलए, पैंगोंग झील के दक्षिणी तट पर कई रणनीतिक चोटियों से भारतीय सैनिकों को हटाने की मांग कर रहा है, ताकि सैनिकों की वापसी प्रक्रिया को शुरू किया जा सके.

गत 29 और 30 अगस्त की दरम्यानी रात को इलाके में पीएलए के सैनिकों द्वारा भारतीय सैनिकों को डराने-धमकाने की कोशिश के बाद भारतीय सैनिकों ने पैंगोंग झील के दक्षिणी तट के आस-पास स्थित मुखपारी, रेजांग ला और मगर पहाड़ी इलाकों में नियंत्रण हासिल कर लिया था.

गत 21 सितंबर को छठे दौर की सैन्य वार्ता के बाद, दोनों पक्षों ने कई फैसलों की घोषणा की थी, जिसमें अग्रिम क्षेत्रों में और अधिक सैनिकों को नहीं भेजने, एकतरफा रूप से जमीन पर स्थिति को बदलने से बचने और ऐसी कोई भी कार्रवाई करने से बचना शामिल था, जिससे मामला और जटिल हो जाए.

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