जम्मू : प्रवर्तन निदेशालय (ED) द्वारा आर्म्स लाइसेंस मामले में अनंतिम रूप से संलग्न संपत्ति पर अब सरकार का पूरा हक होगा. इस संबंध में आईएएस अधिकारी राजीव रंजन, जेकेएएस अधिकारी इतरत हुसैन और आर्म्स लाइसेंस डीलरों की 4.69 करोड़ रुपये की संपत्ति जब्त करने की मंजूरी दे दी गई है. इस संपत्ति में बैंक खाते, प्लाट, आवास शामिल हैं. इस प्रकार 21 प्रकार की अचल और चल संपत्ति को जब्त करने के बारे में ईडी ने संपत्ति को मंजूरी के लिए न्यायनिर्णायक प्राधिकरण नई दिल्ली के समक्ष रखा था, जिसे मंजूरी दे दी गई है.
बताया जाता है कि यह संपत्ति इन अधिकारियों और आर्म्स डीलरों ने अवैध रूप से अर्जित की है. आर्म्स लाइसेंस मामले में जम्मू-कश्मीर के कई सेवारत, सेवानिवृत्त नौकरशाहों, सरकारी अधिकारियों और विभिन्न गन डीलरों व दलालों के खिलाफ जांच शुरू की गई थी. ईडी ने उक्त मामले में धन शोधन निवारण अधिनियम के तहत जांच शुरू की थी. वहीं सीबीआई की चंडीगढ़ स्पेशल क्राइम ब्रांच ने कुपवाड़ा जिले के तत्कालीन उपायुक्तों और अन्य के खिलाफ कार्रवाई की मंजूरी दी थी. ईडी ने जांच में पाया था कि जम्मू-कश्मीर के कई गन डीलरों और दलालों के साथ मिलकर सरकारी अधिकारियों ने सार्वजनिक रूप से अपने पद का दुरुपयोग किया. इतना ही नहीं नियमों को ताक पर रखकर लाइसेंस जारी करने के मानदंडों, प्रक्रिया और नियमों की खुलेआम धज्जियां उड़ाई गईं.
सरकारी अधिकारी गन डीलरों और दलालों से सीधे उनके बैंक खातों में और उनके परिवार के सदस्यों के बैंक खातों में लाइसेंस जारी करने के लिए पैसे लेते थे. जांच के बाद निदेशालय ने जम्मू कश्मीर के 11 स्थानों पर छापे मारे थे. कुपवाड़ा जिले के उपायुक्त रहे आईएएस राजीव रंजन, रिटायर जेकेएएस अधिकारी इतरत हुसैन,उपायुक्त कार्यालय कुपवाड़ा के स्टाफ, गन डीलर अमरनाथ भार्गव, मदन मोहन भार्गव, मुकेश भार्गव, मोहिंदर कोतवाल, स्वर्ण सिंह, दशमेष गन डीलर और कश्मीर आर्म्स कारपोरशन पर छापे मारे गए. इसमें 2.50 करोड़ रुपये से अधिक के कैश और सोने के जेवरों के साथ संपत्ति संबंधी दस्तावेज भी बरामद किए गए थे. साथ ही बड़े स्तर पर फोटोकॉपी और मूल लाइसेंस भी मिले थे. इसी वर्ष अप्रैल में ईडी ने न्यायनिर्णायक प्राधिकरण नई दिल्ली के पास इन लोगों की संपत्ति पर सरकारी नियंत्रण की मंजूरी मांगी थी.
राजस्थान से भी जुड़े थे तार : फर्जी हथियार लाइसेंस मामले के तार राजस्थान से भी जुड़े हुए थे. पुलिस ने रंजन के भाई ज्योति रंजन को 2017 में गिरफ्तार कर फर्जी हथियार लाइसेंस पकड़े थे. उस समय डीजीपी रहे ओपी गिल्होत्रा ने शक जताया था कि इसमें राजीव रंजन का भी हाथ हो सकता है. श्रीगंगानगर में 2007 में फर्जी हथियार लाइसेंस के मामले सामने आए थे. उस समय करीब आधा दर्जन केस दर्ज हुए. इसके साथ ही तत्कालीन दाे-तीन आईएएस की सुपरविजन मामले में लापरवाही मानी गई थी. संबंधित शाखा के दाे लिपिकाें और एक सहायक कर्मचारी पर भी विभागीय कार्रवाई की गई थी. पूरे मामले कई आर्मी अफसर भी लिप्त माने गए. जम्मू से यहां आकर फर्जी दस्तावेजाें के आधार पर लाइसेंस जारी करवा लिए थे.
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