देहरादून: उत्तराखंड में एक बार फिर भूकंप के झटके महसूस किये गये हैं. भूकंप का केंद्र देहरादून में जमीन के 10 किलोमीटर नीचे था. दोपहर एक बजकर 42 मिनट में यह भूकंप महसूस किया गया. भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3.8 मेग्निट्यूट मापी गई. हालांकि, इससे कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ है. इस तरह के भूकंप सैलो भूकंप में काउंट किया जाते हैं.
बता दें कि उत्तराखंड अपनी विषम भौगोलिक परिस्थितियों के चलते आपदा से जूझता रहा है. भूकंप के लिहाज से उत्तराखंड को बहुत संवदेनशील माना गया है. प्रदेश में छोटे भूकंप आते रहते हैं. प्रदेश को जोन चार और पांच में रखा गया है. वैसे मंगलवार दोपहर को आए इस भूकंप से कोई जानमाल का नुकसान नहीं हुआ है जबकि, भूकंप की तीव्रता रिक्टर स्केल पर 3.8 मेग्निट्यूट मापी गई है.
हालांकि, इस भूकंप का संबंध मॉनसून से जोड़कर भी देखा जा रहा है. ऐसा इसलिए क्योंकि मॉनसून के बाद वैज्ञानिकों ने हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप के आने की आशंका भी जताई थी. राजधानी देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के भूकंप वैज्ञानिकों ने इस बात की पुष्टि की थी कि मॉनूसन सीजन के बाद हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आ सकता है. वाडिया इंस्टीट्यूट ऑफ हिमालयन जियोलॉजी के वैज्ञानिक डॉ. सुशील कुमार रुहेला ने इसके पीछे की वजह भी साझा की.
मॉनसून और भूकंप का क्या है कनेक्शन
सर्दियों के मौसम की शुरुआत में भूकंप आने की संभावना पर रिसर्च किया गया है जो हिमालयन जियोलॉजी में पब्लिश हुआ है. इस रिसर्च के अनुसार, मॉनसून सीजन के बाद सर्दियों का मौसम शुरू होने के दौरान भूकंप आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है, जिसकी कई वजह हैं.
दरअसल, इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिलीमीटर तक मूव कर रहा है. इंडियन और यूरेशियन प्लेट के घर्षण से एनर्जी उत्पन्न होती है, जो एक सीमा तक एकत्र होती रहती है. मॉनसून सीजन के दौरान हिमालयन फ्रंट बारिश की वजह से लोडेड हो जाता है. सर्दियां आते-आते, इससे जो स्ट्रेस उत्पन्न होता है वो प्लेट के मूवमेंट से ऐडअप हो जाता है, जिसके चलते प्लेट के मूवमेंट से ज्यादा एनर्जी उत्पन्न होती है. लिहाजा, अर्थक्वेक आने की फ्रीक्वेंसी बढ़ जाती है. यही वजह है कि सर्दियों की शुरुआत में हिमालयी क्षेत्रों में भूकंप आने की आशंका जताई जा रही है.
आखिर हिमालयी क्षेत्रों में क्यों होती है हलचल?
हिमालय एक डायनेमिक सिस्टम है न कि एक स्टैटिक्स बेस्ड सिस्टम. हिमालय के स्वरूप में कुछ न कुछ हलचल होती रहती है, इसके स्वरूप में बदलाव भी देखने को मिलते रहते हैं. हिमालय के बदलते स्वरूप के चलते ही लैंडस्लाइड होता है. भूकंप की गतिविधियां भी हिमालय के बदलते स्वरूप का ही नतीजा मानी जा सकती हैं.
इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिमी मूव कर रही है
वैज्ञानिक सुशील कुमार के अनुसार इंडियन प्लेट हर साल 40 से 45 मिलीमीटर तक मूव कर रही है. इससे उत्पन्न होने वाली एनर्जी, किसी न किसी माध्यम से रिलीज होगी. ऐसे में अब वो इस बात पर स्टडी कर रहे हैं कि साल 1897 से 1950 तक यानी इन 53 सालों में चार बड़े भूकंप देखे गए. इसमें 1897 में असम, 1905 में कांगड़ा, 1934 में बिहार-नेपाल और 1950 में असम में 8 मेग्नीट्यूड से अधिक के भूकंप आये थे. लेकिन 1950 के बाद अभी तक यानी इन 71 सालों में एक भी इतना बड़ा भूकंप नहीं आया है. ऐसे में एक आशंका यह भी है कि एक बड़ा भूकंप आ सकता है. दूसरी ओर इस बात की भी संभावना है कि इन 71 सालों के भीतर स्लो भूकंप के माध्यम से एनर्जी रिलीज होती रही हो.
यह भूकंप सैलो भूकंप में काउंट किये जाते हैं. ऐसे में यह भी अटकलें लगाई जा रही हैं कि स्लो अर्थक्वेक के माध्यम से एनर्जी रिलीज हो जाती है, क्योंकि दो तरीके से ही एनर्जी रिलीज होती है. इसमें फास्ट अर्थक्वेक और स्लो अर्थक्वेक शामिल हैं.
उत्तराखंड में 2017 के बाद नहीं आये हैं मॉडरेट अर्थक्वेक
उत्तराखंड में साल 2017 के बाद कोई बड़ा भूकंप महसूस नहीं किया गया है. हालांकि इन 4 सालों के भीतर हजारों सैलो भूकंप आए हैं जिनकी तीव्रता 1.5 मेग्नीट्यूड से कम रही है. इसकी वजह से ये भूकंप महसूस नहीं होते हैं. यही नहीं इन 4 सालों के भीतर कई मॉडरेट अर्थक्वेक भी आए हैं, साल 1991 में उत्तरकाशी में 6.5 मेग्नीट्यूड, साल 1999 में चमोली में 6.0 मेग्नीट्यूड के साथ ही साल 2017 में रुद्रप्रयाग में करीब 6.0 मैग्नीट्यूड के भूकंप आए थे. ये मॉडरेट अर्थक्वेक थे और सैलो डेप्थ से आये थे.
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